मजदूर की हालत
मनै मजदूरी ना मिलती हुया दुखी घरबार मेरा।।
कितै चांदना नहीं दीखै छाया चारों तरफ अँधेरा।।
फुटया ढूंढ एक कमरा मुश्किल हुया गुजारा रै
चौमासे मैं मुशीबत भारी यो घर टपकै म्हारा रै
माछर खावैं ताप चढ़ै खावण नै आवै सूना डेरा।।
पड़ौसियाँ कै सोणा पड़ै संकट होज्या घणा भारी
रोजगार कोए थयावै ना रूखी सूखी रोटी म्हारी
कहैं कामचोर दारू बाज काम नै ना करै जी तेरा।।
दिन रात मण्डी रैहवै बीमारी मैं भी घरआली या
भैंस पाल दूध बेचकै नै करती म्हारी रूखाली या
बालकां की कड़ै पढ़ाई ज़िब जीने का नहीं बेरा।।
कुआँ न्यारा भेंट करैं ना राजी साथ बिठा कै रै
महंगाई नै लूटे जहर जात धर्म का फैला कै रै
रणबीर अंसमझी मैं कहवैं यो किस्मत का फेरा।।
मनै मजदूरी ना मिलती हुया दुखी घरबार मेरा।।
कितै चांदना नहीं दीखै छाया चारों तरफ अँधेरा।।
फुटया ढूंढ एक कमरा मुश्किल हुया गुजारा रै
चौमासे मैं मुशीबत भारी यो घर टपकै म्हारा रै
माछर खावैं ताप चढ़ै खावण नै आवै सूना डेरा।।
पड़ौसियाँ कै सोणा पड़ै संकट होज्या घणा भारी
रोजगार कोए थयावै ना रूखी सूखी रोटी म्हारी
कहैं कामचोर दारू बाज काम नै ना करै जी तेरा।।
दिन रात मण्डी रैहवै बीमारी मैं भी घरआली या
भैंस पाल दूध बेचकै नै करती म्हारी रूखाली या
बालकां की कड़ै पढ़ाई ज़िब जीने का नहीं बेरा।।
कुआँ न्यारा भेंट करैं ना राजी साथ बिठा कै रै
महंगाई नै लूटे जहर जात धर्म का फैला कै रै
रणबीर अंसमझी मैं कहवैं यो किस्मत का फेरा।।
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