पृथ्वीसिंह बेधड़क को यू पी और हरयाणा के लोग
अच्छी तरह से जानते हैं उनकी एक रचना ;
भजन पेश है
हाय रोटी
जय जय रोटी बोल जय जय रोटी ।
बिन रोटी बेकार जगत मैं दाढ़ी और चोटी्बोल जय
गर्मी सर्दी धूप बर्फ जिसनै सर पै ओटी।
पूंजीपति नै बुरी तरह उसकी गर्दन घोटी्बोल जय।1।
दाना खिलाया दूब चराई और हरी टोटी।
जिस दिन ब्याई खोल कै लेग्या सूदखोर झोटी्बोल जय।2।
मंदिर मस्जिद और शिवाले की चोटी खोटी।
बिन रोटी कपड़े के ये सब चीजें हैं छोटी् बोल जय।3।
नहीं हम चाहते महल हवेली नहीं चाहते कोठी।
हम चाहते हैं रोटी कपड़ा रहने को तम्बोटी्बोल जय।4।
मेहनतकश कशो एक हो जाओ कस कर लँगोटी।
सारी दुनिया तेरे चरण मैं फिरै लौटी लौटी ्बोल जय ।5।
जिसनै रोटी छीन हमारी की गर्दन मोटी ।
पृथ्वीसिंह श्बेधडकश् होय उनकी ओटी बोटी।6।
अच्छी तरह से जानते हैं उनकी एक रचना ;
भजन पेश है
हाय रोटी
जय जय रोटी बोल जय जय रोटी ।
बिन रोटी बेकार जगत मैं दाढ़ी और चोटी्बोल जय
गर्मी सर्दी धूप बर्फ जिसनै सर पै ओटी।
पूंजीपति नै बुरी तरह उसकी गर्दन घोटी्बोल जय।1।
दाना खिलाया दूब चराई और हरी टोटी।
जिस दिन ब्याई खोल कै लेग्या सूदखोर झोटी्बोल जय।2।
मंदिर मस्जिद और शिवाले की चोटी खोटी।
बिन रोटी कपड़े के ये सब चीजें हैं छोटी् बोल जय।3।
नहीं हम चाहते महल हवेली नहीं चाहते कोठी।
हम चाहते हैं रोटी कपड़ा रहने को तम्बोटी्बोल जय।4।
मेहनतकश कशो एक हो जाओ कस कर लँगोटी।
सारी दुनिया तेरे चरण मैं फिरै लौटी लौटी ्बोल जय ।5।
जिसनै रोटी छीन हमारी की गर्दन मोटी ।
पृथ्वीसिंह श्बेधडकश् होय उनकी ओटी बोटी।6।
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