Wednesday, 9 May 2012

एक महिला की पुकार

एक महिला की पुकार 
खत्म हुई सै श्यान मेरी , मुश्किल मैं सै ज्यान मेरी 
छोरी मार कै भान मेरी , छोरा चाहिए परिवार नै ||
पढ़ लिख कै कई साल मैं मनै नौकरी थयाई बेबे 
सैंट्रो कार दी ब्याह मैं , बाकी सब कुछ ल्याई बेबे 
घर का सारा काम करूँ , ना थोड़ा बी आराम करूँ
पूरे हुक्म तमाम करूँ , औटूं सासू की फटकार नै ||
पहलम मेरा साथ देवै था वो मेरे घर आला बेबे
दो साल पाछै छोरी होगी फेर वो करग्या टाला बेबे
चाहवें थे जाँच कराई ,कुनबा हुया घणा कसाई
मैं बहोत घनी सताई , हे पढ़े लिखे घरबार नै ||
जाकै रोई पीहर के महँ पर वे करगे हाथ खड़े
दूजा बालक पेट मैं जाँच कराण के दबाव पड़े
ना जाँच कराया चाहूं मैं, पति के थपड़ खाऊँ मैं
जी चाहवै मर जाऊं मैं , डाटी सूँ छोरी के प्यार नै ||
दूजी छोरी होगी सारा परिवार तन कै खड्या हुया
नाराजगी अर गुस्सा दिखे सबके मुंह जडया हुया
अमीर के धोरै जाऊं मैं ,अपनी बात बताऊँ मैं
रणबीर पै लिखाऊँ मैं , बदलां बेढंगे संसार नै ||

भद्दा मजाक !!!!!!

भद्दा मजाक !!!!!!
कहते हैं जीन्ज पहनना 
कम कपड़ों का ये पहनावा 
बलात्कारियों को देता बुलावा 
मग़र इसमें रत्ती भर सच नहीं है 
पिछले एक हफ्ते के बलात्कारों का 
विश्लेषण करके देखो तो सही 
या अगले एक हफ्ते का लेखा जोखा 
बताएगा हमको कि हकीकत क्या है ?
या तो दस साल से कम उमर की बच्चियां हैं 
या फिर खेतों खलिहानों में कम करती 
कमजोर तबकों कि महिलाओं पर कहर 
ढाया जता है या फिर आस पडौस या 
परिवार के लोग धार लेते है दानव का रूप!
इन सबमें कहाँ है फैशन का उकसावा 
तो फिर क्या करण है इन सबका 
जीन्ज पहनना या कुछ और 
बलात्कार का करण ???
रुग्न मंशिकता है पुरुष की 
उसका दंभ है इसके पीछे ||

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Monday, 7 May 2012

Bhrun Hatya

म्हारा  हरयाणा दो तरियां आज दुनिया के महँ छाया 
आर्थिक उन्नति करी कम लिंग अनुपात नै खाया 
छाँट कै मारें पेट मैं लडकी समाज के नर नारी 
समाज अपनी कातिल की माँ कै लावै जिम्मेदारी 
जनता हुइ  सै हत्यारी पुत्र लालसा नै राज जमाया ||
औरत औरत की दुश्मन यो जुमला कसूता चा लै 
आदमी आदमी का दुश्मन ना यो  रोजै ए घर घा लै 
समाज की बुन्तर सा लै  यो हरयाणा बदनाम कराया ||
वंश का पुराणी परम्परा पुत्र नै चिराग बतावें देखो 
छोरा जरूरी होना चाहिए छोरियां नै मरवावें देखो 
जुलम रोजाना बढ़ते जावें देखो सुन कै कांपै सै काया||
अफरा तफरी माच रही महिला कितै महफूज नहीं 
जो पेट  मार तैं बचगी उनकी समाज मैं बूझ नहीं 
आती हमनै सूझ नहीं रणबीर सिंह घणा घबराया ||

Tuesday, 1 May 2012

FAGAN

मनै पाट्या कोन्या तोल, क्यों करदी तनै बोल
नहीं गेरी चिट्ठी खोल, क्यों सै छुट्टी मैं रोळ
मेरा फागण करै मखोल, बाट तेरी सांझ तड़कै।।

या आई फसल पकाई पै, दुनिया जावै लाई पै
लागै दिल मेरे पै चोट, क्यूकर ल्यूं इसनै ओट
सोचूं खाट के मैं लोट, तूं कित सोग्या पड़कै।।

खेतां मैं मेहनत करकै, रंज फिकर यो न्यारा धरकै
लुगाइयां नै रोनक लाई, कट्ठीी हो बुलावण आई
मेरी कोन्या पार बसाई, तनै कसक कसूती लाई
पहली दुलहण्डी याद आई, मेरा दिल कसूता धड़कै।।

इसी किसी तेरी नौकरी, कुणसी अड़चन तनै रोकरी
अमीरां के त्योहार घणे सैं, म्हारे तो एकाध बणे सैं
खेलैं रळकै सभी जणे सैं, बाल्टी लेकै मरद ठणे सैं
मेरे रोंगटे खड़े तनै सैं, आज्या अफसर तै लड़कै।।

मारैं कोलड़े आंख मीचकै, खेलैं फागण जाड़ भींचकै
उड़ै आग्या था सारा गाम, पड़ै था थोड़ा घणा घाम
पाणी के भरे खूब ड्राम, दो तीन थे जमा बेलगाम
मनै लिया कोलड़ा थाम, मारया आया जो जड़कै।।

पहल्यां आळी ना धाक रही, ना बीरां की खुराक रही
तनै मैं नई बात बताऊं, डरती सी यो जिकर चलाऊं
रणबीर पै बी लिखवाऊं, होवे पिटाई हर रोज दिखाऊं
कुण कुण सै सारी गिणवाऊं, नहीं खड़ी होती अड़कै।।

LAL CHUNDADEE

लाल चूंदड़ी दामण काळा, झूला झूलण चाल पड़ी ... टेक
कूद मारकै चढ़ी पींग पै देखै सहेली साथ खड़ी।।

झूंटा लेकै पींग बधाई, हवा मैं चुंदड़ी लाल लहराई
ऊपर जाकै तळे नै आई, उठैं दामण की झाळ बड़ी।।

पींग दूगणी बढ़ती आवै, घूंघट हवा मैं उड़ता जावै
झूंटे की हींग बधावै, बाजैं पायां की छैल कड़ी।।

मुश्किल तै आई तीज, फुहारां मैं गई चुंदड़ी भीज
नई उमंग के बोगी बीज, सुख की देखी आज घड़ी।।

रणबीर पिया की आई याद, झूलण मैं आया नहीं स्वाद
नहीं किसे नै सुनी फरियाद, आंसूआं की या लगी झड़ी।।

NAL DAMYANTEE

नल दमयन्ती की गावै तूं कद अपनी रानी की गावैगा .... टेक
नल छोड़ गया दमयन्ती नै तूं कितना साथ निभावैगा।।

लखमीचन्द बाजे धनपत नल दमयन्ती नै गावैं क्यों
पूरणमल का किस्सा हमनै लाकै जोर सुणावैं क्यों
अपणी राणी बिसरावैं क्यों कद खोल कै भेद बतावैगा।।

द्रोपदी चीर हरण गाया जा पर तनै म्हारे चीर का फिकर नहीं
हजारां चीर हरण होरे आड़ै तेरे गीत मैं जिकर नहीं
आवै हमने सबर नहीं जो ना म्हारे गीत सुणावैगा।।

देश प्रेम के गीत बणाकै जनता नै जगाइये तूं
किसान की बिपता के बारे में बढिय़ा छन्द बनाइये तूं
इतनी सुणता जाइये तूं कद फौज मैं मनै बुलावैगा।।

बाबू का ना बुरा मानिये करिये कला सवाई तूं
अच्छाई का पकड़ रास्ता ना गाइये जमा बुराई तूं
कर रणबीर की मन चाही तूं ना पाछै पछतावैगा।।

BANDHE UPPAR

बन्धे ऊपर नागन काळी डटगी फण नै ठाकै .... टेक
सिर तै उपर कस्सी ठाई मारी हांगा लाकै।।

नागण थी जहरीली वा फौजी का वार बचागी
दे फुफकारा खड़ी हुई आंख्यां मैं अन्धेर मचागी
दो मिनट मैं खेल रचागी चोट कसूती खाकै।।

हिम्मत कोन्या हारया फौजी हटकै उसनै वार किया
कुचल दिया फण लाठी गेल्यां नाका अपणा त्यार किया
चला अपणा वार लिया काळी नागन दूर बगाकै।।

रात अन्धेरी गादड़ बोलैं जाड्डा पड़ै कसाई
सुर सुर करता पानी चालै घणी खुमारी छाई
डोळे ऊपर कड़ लाई वो सोग्या मुंह नै बाकै।।

बिल के मां पानी चूग्या सूकी रैहगी क्यारी
बाबू का सांटा दिख्या या तबीयत होगी खारी
मेहरसिंह जिसा लिखारी रोया मां धोरे जाकै।।

RUKHALA

नींद मैं रुखाळा

लेज्यां म्हारे वोट करै बुरी चोट आवै क्यों नींद रुखाळे नै
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।

जब पाछै सी भैंस खरीदी देखी धार काढ़ कै हो
जब पाछै सी बीज ल्याया देख्या खूब हांड कै हो
जब पाछै सी हैरो खरीद्या देख्या खूब चांड कै हो
जब पाछै सी नारा ल्याया देख्या खूड काढ़ कै हो
वोटां पै रोळ पाटै कोन्या तोल लावां मुंह लूटण आळे नै।
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।

घणे दिनां तैं देख रही म्हारी या दूणी बदहाली होगी 
आई बरियां म्हानै भकाज्यां इबकै खुशहाली होगी
क्यों माथे की सैं फूट रही या दूणी कंगाली होगी
गुरु जिसे चुनकै भेजां इसी ए गुरु घंटाली होगी
छाती कै लावै क्यूं ना दूर भगावै इस बिषयर काळे नै।
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।

ये रंग बदलैं और ढंग बदलैं जब पांच साल मैं आवैं सैं
जात गोत की शरम दिखाकै ये वोट मांग कै ले ज्यावैं सैं
उनकै धोरे जिब जाणा होज्या कित का कौण बतावैं सैं
दारु बांटैं पीस्सा बी खरचैं फेर हमने ए लूटैं खावैं सैं
करैं आपा धापी ये छारे पापी थापैं ना किसे साळे नै।
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।

क्यों हांडै सै ठाण बदलता सही ठिकाना मिल्या नहीं
बाही मैं लागू और टिकाऊ ऐसा नारा हिल्या नहीं
म्हारे तन ढांप सकै जो ऐसा कुड़ता सिल्या नहीं
खेतां में नाज उपजावां सां फूल म्हारै खिल्या नहीं
साथी रणबीर बनावै सही तसबीर खींच दे असली पाळे नै।
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।

YA NAREE

नारी
माणस तो बणै बिचारा कहैं बिघणां की जड़ या नारी।।
बतावैं वासना छिपावण नै चोट कामनी की हो न्यारी।।

योग ध्यान करणिया नारद पूरा योगी गया जताया
विश्व मोहिनी पै गेरी लार काया मैं काम जगाया
पाप लालसा डटी ना उसकी मोहिनी का कसूर बताया
सदियां होगी औरत ऊपर हमेशा यो इल्जाम लगाया
आगा पाछा देख्या कोन्या सही बात नहीं बिचारी।।

कीचक बी एक हुया बतावैं विराट रूप का साळा
दासी बणी द्रोपदी पै दिया टेक पाप का छाळा
अपनी बुरी नजर जमाई कर्या चाहया मुंह काळा
भीम बली नै गदा उठाई जिब देख्या जुल्म कुढ़ाळा
सारा राज पुकार उठ्या था नौकरानी की अक्कल मारी।।

पम्पापुर मैं रीछ राम का बाली बेटा होग्या देखो
सुग्रीव की बहु खोस लई बीज कसूते बोग्या देखो
गैंद बणा दी जमा बीर की उसका आप्पा खोग्या देखो
जमीन का हक खोस लिया मोटा रासा होग्या देखो
सबतैं घणी सताई जावै घर मैं हो चाहे करमचारी।।

पुलस्त मुनि का पोता हांगे मैं पूरा ए मगरुर होया
पंचवटी तें सीता ठाकै घमण्ड नशे मैं चूर होया
सीता थपी कलंकणी थी धोबी का कथन मंजूर होया
उर्मिला का तप फालतू था जिकरा चाहिए जरुर होया
झूठी शान की बलि चढ़ाई रणबीर या सबला म्हारी।।

KISE AUR KEE KAHANI KONYA

कहानी
किसे और की कहाणी कोन्या इसमैं राजा रानी कोन्या
सै अपनी बात बिराणी कोन्या, थोड़ा दिल नै थाम लियो।।

यारी घोड़े घास की भाई, नहीं चलै दुनिया कहती आई
मैं बाऊं और बोऊं खेत मैं, बाळक रुळते मेरे रेत मैं
भरतो मरती मेरी सेत मैं, अन्नदाता का मत नाम लियो।।

जमकै लूटै सै मण्डी हमनै, बीज खाद मिलै मंहगा सबनै
मेहनत लुटै मजदूर किसान की, आंख फूटी क्यों भगवान की
भरै तिजूरी क्यों शैतान की, देख सभी का काम लियो।।

चाळीस साल की आजादी मैं, कसर रही ना बरबादी मैं
बाळक म्हारे सैं बिना पढाई, मरैं बचपन मैं बिना दवाई
कड़ै गई म्हारी कष्ट कमाई, झूठी हो तै लगाम दियो।।

शेर बकरी का मेळ नहीं, घणी चालै धक्का पेल नहीं
टापा मारें पार पडैग़ी धीरे, मेहनतकश रुपी जितने हीरे
बजावैं जब मिलकै ढोल मंजीरे, रणबीर का सलाम लियो।

POH KA MIHNA

पोह का म्हिना 
पोह का म्हिना रात अन्धेरी, पड़ै जोर का पाळा।।
सारी दुनिया सुख तैं सोवै मेरी ज्यान का गाळा।।

सारे दिन खेतां के म्हां मनै ईंख की करी छुलाई
बांध मंडासा सिर पै पूळी, हांगा लाकै ठाई
पूळी भारया जाथर थोड़ा चणक नाड़ मैं आई
आगे नै डिंग पाटी कोन्या, ठोड़ अन्धेरी छाई
झटका देकै चणक तोड़ दी हुया दरद का चाळा।।

साझे का तै कोल्हू था मिरी जोट रात नै थ्याई
रुंग बुळध के खड़े हुए तो दया मनै भी आई
इसा कसाई जाड्डा था भाई मेरी बी नांस सुसाई
मजबूरी थी मिरे पेट की, कोन्या पार बसाई
पकावे तैं न्यों कहण लग्या कदे होज्या गुड़ का राळा।।

कइ खरच कठ्ठे होरे सैं, ज्यान मरण मैं आई
गुड़ नै बेचो गुड़ नै बेचो, इसी लोलता लाई
छोरी के दूसर की सिर पै, आण चढ़ी करड़ाई
सरकारी करजे आळ्यां नै, पाछै जीप लगाई
मण्डी के म्हां फंसग्या क्यूकर होवै जीप का टाळा।।

खांसी की परवाह ना करी पर, ताप नै आण दबोच लिया
डाक्टर नै एक सुआ लाया, दस रुपये का नोट लिया
मेरे पै गरदिश क्यों चढग़ी, मनै इसा के खोट किया
कई मुसीबत कठ्ठी होगी, सारियां नै गळजोट लिया 
रणबीर साझे जतन बिना भाई टळै ना दुख का छाह्ला।।