Tuesday, 1 May 2012

POH KA MIHNA

पोह का म्हिना 
पोह का म्हिना रात अन्धेरी, पड़ै जोर का पाळा।।
सारी दुनिया सुख तैं सोवै मेरी ज्यान का गाळा।।

सारे दिन खेतां के म्हां मनै ईंख की करी छुलाई
बांध मंडासा सिर पै पूळी, हांगा लाकै ठाई
पूळी भारया जाथर थोड़ा चणक नाड़ मैं आई
आगे नै डिंग पाटी कोन्या, ठोड़ अन्धेरी छाई
झटका देकै चणक तोड़ दी हुया दरद का चाळा।।

साझे का तै कोल्हू था मिरी जोट रात नै थ्याई
रुंग बुळध के खड़े हुए तो दया मनै भी आई
इसा कसाई जाड्डा था भाई मेरी बी नांस सुसाई
मजबूरी थी मिरे पेट की, कोन्या पार बसाई
पकावे तैं न्यों कहण लग्या कदे होज्या गुड़ का राळा।।

कइ खरच कठ्ठे होरे सैं, ज्यान मरण मैं आई
गुड़ नै बेचो गुड़ नै बेचो, इसी लोलता लाई
छोरी के दूसर की सिर पै, आण चढ़ी करड़ाई
सरकारी करजे आळ्यां नै, पाछै जीप लगाई
मण्डी के म्हां फंसग्या क्यूकर होवै जीप का टाळा।।

खांसी की परवाह ना करी पर, ताप नै आण दबोच लिया
डाक्टर नै एक सुआ लाया, दस रुपये का नोट लिया
मेरे पै गरदिश क्यों चढग़ी, मनै इसा के खोट किया
कई मुसीबत कठ्ठी होगी, सारियां नै गळजोट लिया 
रणबीर साझे जतन बिना भाई टळै ना दुख का छाह्ला।।

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