किस्सा
चम्पा चमेली
लेखक :
रणवीर सिंह
भावी प्रकाशन
किस्सा सफदर हाशमी
जलियां वाला बाग
रानी लक्ष्मी बाई
भूरा निगाहिया
फूल कमल
अण्डी सद्दाम
फौजी किसान
प्रोग्रेसिव प्रिंटर्स, ए-21 झिलमिल इंडस्ट्रिएल एरिया, जी० टी० रोड, शाहदरा, दिल्ली-95 से मुद्रित.
वार्ता:
किसान को अन्नदात्ता कहते हैं। परन्तु उसके परिवार की, उसके बाल बच्चों की हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है। फौज के दरवाजे भी कमोबेश बन्द हो चुके हैं। मेहनतकश की आवाज को सुनकर भी अनसुनी कर दिया जाता है। संस्कृति के नाम पर राजे रानियों के किस्से सुनाए जाते हैं। उसकी अपनी रानी, अपनी घरवाली के साथ क्या गुजरती है, यह बहुत कम गाया जाता है। औरत का चित्रण भी बड़े अजीब ढंग से किया जाता है। एक किसान को घरवाली चमेली व फौजी की पत्नी चम्पा, दो सहेलियों की रोजमर्रा की जिन्दगी पर लिखा गया है, यह महज चम्पा चमेली का किस्सा नहीं है बल्कि अपनी तमाम प्रतिबध्दता और ईमानदारी के बावजूद महिला 45 वर्षों बाद भी मुख्यधारा में नहीं आ पायी, इस सवाल का जवाब उन सभी को खोजना होगा जिन्हें महिलाओं की स्थिति का अंदाजा है। नारी हिमायतियों द्वारा शोषण का मुद्दा शोषण के विभिन्न उपायों से कन्नी काट कर प्रस्तुत किया है। और इस बात पर जोर दिया है कि समाज में शोषण के विभिन्न स्वरूपों के रहते नारी का पृथक रूप से शोषण मुक्त होना संभव नहीं है। यूं तो हमारे समाज में अनेक ऐसे महिला वर्ग है जो संख्या और प्रभाव में खासे बड़े हैं पर वे एक भूमिका के लिए संगठित हुए हो ऐसे उदाहरण नहीं मिलते। खैर मेरा तो यह पहला प्रयास है। सही-गलत का फैसला जनता के दरबार में होगा। आप सभी के सुझाव आमंत्रित हैं। मैं तो इतना ही कह सकता हूं कि :
1
किसे और की कहाणी कोण्या, इसमें राजा राणी कोण्या सै अपणी बात बिराणी कोण्या, थोड़ा दिल नै थाम लियो ॥ यारी घोड़े घास की भाई, चलै ना दुनिया कहती आई बाहूं और बोऊं खेत में, बालक रूलते मेरे रेत मैं भरतो मरती मेरी सेत मैं, मत अन्नदाता का नाम दियो । हमनै मण्डी जमकै लूटै, म्हंगाई म्हारे जिगर नै चूटै लुटै मेहनत आज किसान की, गई फूट आंख भगवान की तिजौरी भरै शैतान की, देख सभी का काम लियो । चवालीस साल की आजादी मैं, कसर रही ना बरबादी मैं म्हारे बालक सैं बिना पढ़ाई, बचपन में मरें बिना दवाई कड़ै गई म्हारी कष्ट कमाई, झूठी होतै लगाम दियो । शेर बकरी का मेल नहीं घणी चालै धक्का पेल नहीं आप्पा मारें पार पड़ेगी धीरे, मेहनतकश रूपी जितने हीरे बजावैं मिलकै ढोल मंजीरे, रणबीर सिंह का सलाम लियो ।
रणवीर सिंह
किस्सा चम्पा-चमेली
वार्ता:
करमपुर गांव में रिसाल सिंह व मामचन्द फौजी रहते हैं। रिसाल सिंह के पास तीन एकड जमीन है। फोजी के पास भी दो एकड़ जमीन है। दोनों हम उमर हैं। बचपन साथ साथ बीता है। दोनों परिवारों का अच्छा मेल जोल है। रिसाल सिंह की माली हालत काफी कमजोर है। घरवाली पर ही गुस्सा निकलता है रिसाल सिंह की घरवाली चमेली काफी उदास रहती है। मामचन्द की घरवाली चम्पा, चमेली की परकी सहेली है। चम्पा रिसाल सिंह के चमेली के प्रति व्यवहार को लेकर बहुत चिन्तित रहती है। एक दिन चम्पा अपनी सहेली से दिल की बात करती है और पूछती है—
चम्पा का सवाल
तर्ज - रिम झिम बरसता सावन होगा -
रागनी 1
क्यों उसकी घर मैं मेर नहीं मनै साची आज बतादे नै ।
क्यों तनै खावण नै आव से असली राज बतादे नैं ।।
क्यों चेहरा काला पडग्या ना दीखे खून बदन मैं हे उभाणे पायां क्यों हांडै ओ देरया ज्यान विघन मैं हे होठ सूकगे क्यों उसके अर पाट्या कुड़ता तन मैं हे क्यों इसा सूका पतझड़ छार्या बेबे थारे चमन मैं हे क्यों उसने चौबीस घण्टे की भाजम भाज बतादे नै ।
के किसे नै झूठा लाया खोट थारे पं बेबे हे के करग्या कोए धोखा लेग्या नोट थारे पै बेबे हे के कोए जुल्मी नेता लेग्या बोट थारे पै बेबे हे के कोए पुराना दुश्मन देग्या चोट थारे पै बेबे हे क्यों झपर्ट चिड़िया के ऊपर जुलमी बाज बतादे ने ।।
क्यों अनपढ़ बालक सारे ना आसंग ईब पढ़ाणे की थारी कष्ट कमाई क्यों नहीं घर थारे मैं पाणे की
नारी शोषण और अत्याचारों को लेकर अनेक संगठन व व्यवसायिक घराने अपनी दुकान चला रहे हैं। महिलाओं के नाम पर पत्र-पत्रिकाएं बाजार में आ रही हैं। मनग किस्से व रसभरी कहानियां छापकर ये पत्र-पत्रिकाएं अपनी बिक्री बढ़ाने के कोशिश कर रही है। इनकी सोच के अनुसार महिलाओं को फैशन, व्यंजन व रसभरी कहानियों/ किस्सों की आवश्यकता है। इस दौड़ में सरकारी माध्यम भी पीछे नहीं है। दूरदर्शन पर औरत का चीरहरण कर दिया है। जाहिर है कि महिलाओं के हितों को लेकर जो प्रयास चल रहे हैं, वे कारगर सिद्ध नहीं हो रहे हैं जब तक गरीब व निम्न वर्ग की औरतों को शिक्षित नहीं बनाया जायेगा तब तक वे दकियानूसी विचारों, रूढ़ियों को तोड़ कर सुख की सांस नहीं ले सकती। मेरी यह पुस्तक उन जुझारू महिलाओं को समर्पित है जिन्होने समाज परिवर्तन के लिए अपना बलिदान दिया।
आवरण छाया कार : अजय वर्मा
रूप सज्जा : साहिब, सुभाष
कापी राईट : सर्वाधिकार सुरक्षित है
मुद्रक : क्रियेटिव आर्ट कम्यूनिकेशन, 199/20,
नजदीक इंडियन बैंक रोहतक-124001
क्यों नहीं बचता धेल्ला सुध कोण्या से बालक याणे की क्यों कमनू सा हांडे जा नहीं सोधी पीणे खाणे की क्यों रहै भूखा रोज कमेरा असल इलाज बतादे नै ।। कितने दिन न्यों चालैगा जो हुआ था इकरार थारा कड़े ताहि चालैगा न्यों यो घर और परिवार थारा करले तू' किर्म जतन चमेली टूट चल्या घरबार थारा पड़े रणबीर सिंह धौरै जाणा जिब होगा उद्धार थारा बरोने मैं फिलहाल पिछोड़े ऐसा छाज बतादे नै ।।
वार्ता - चमेली इतनी सुण के चम्पा के कान्यै सिर घरकै रोवण लागी । पर आंसु पीगी । बात बदल के उसने पूछया- तेरा फौजी कद छुट्टी बावैगा । फागण का म्हिना बी जाण नै होरया से। चम्पा की दुखती रग पै पां टैक दिया जणों चमेली नै । लाम्बी सी सांस भरी पहलम तो फेर बोली ए भाण बूझै मतना कई वै तो फोजी इतनी कसूती बाट दिखावे से अक के बताऊं चम्पा अपने आप नै रोक नहीं पाई: के कहण लागी चमेली ताहि : -
कहण चम्पा का
तर्ज: सिर पै धरया पाप का भार
रागनी 2
मेरा फागन करै मखौल, मनै पाट्या कोण्या तोल
हे क्यों करदी उसने बोल, कोन्या गेरी चिठ्ठी खोल
पता ना क्यों छुट्टी मैं रोल, देखें बाट सांझ तड़कै,
आज्या तावल करके ।
आई फसल पकाई पै है, जासै दुनिया लाई पै हे
मेरै लागे दिल पे चोट, बतादे मैं क्यूकर ल्यू ओट
मेरा कौणसा से खोट, सोचू रोज एकली लोट
म्हारी सारस बरगी जोट, ओ कित सोया पड़कै
आज्या तावल करके ॥
पता ना इसी के हुई नौकरी, कुण अड़चन उनै रोकरी
अमीरां के त्यौहार धणे, म्हारे तो से एकाध बणे
(2)
खेलें रल के सभी जणे, बाल्टी लेकै मरद ठणे
देख के मेरे रूग तणे, औली आंख मेरी फड़कै,
आज्या तावल करकै ।।
मारै कोलड़े आंख मींच के, खेलें फागण जाड़ भींच के
उड़े आया सारा गाम, पड़े से थोड़ा थोड़ा घाम
घरे पानी के भरे ड्राम, रणवीर सिंह ने दिया सलाम
मनै लिया कोलड़ा थाम, मारया आया जो जड़कै
आज्या तावल करकै ।।
बार्ता - चमेली के परिवार का अधिक संकट बढ़ता चला गया । म्हंगाई की मार हृद तै बाहर होगी। कई बार झगड़ा होज्या था । एक दिन चमेली ने अपने पति रिसाल सिंह से सवाल करया-न्यों तो पार कोण्या पर्छ ? रोज रोज के झगड़े का कदे अन्त होगा अक नहीं? कद घर की राड़ खत्म होगी? कद म्हारे बालक बी पढ़ लिख के अफसर बनेंगे? रिसाल सिह चुप रहया। चमेली और घणी परेशान होगी और रिसाल सिंह से पूछने लगी -
सवाल चमेली का
तर्ज : ये मर्द बड़े वे दर्द बड़े (झोंका)
रागनी 3
ना रहै ठगी चोरी जारी औ दिन कद आवैगा ।
मार पिटाई बन्द हो सारी औ दिन कद आवैंगा ।।
रोटी कपड़ा किताब कापी नहीं घाट दिखाई देंगे
चेहरे की त्यौरी मिटज्यां सब ठाठ दिखाई देंगे
काम करण के घण्टे पूरे आठ दिखाई देंगे
म्हारे बालक वणे हुये मुल्को लाठ दिखाई देंगे
कूकै कोयल बागां मैं प्यारी औ दिन कद आवैगा ।।
दूध दही का खाणा हो बालकां नै मौज रहैगी
छोरी मां बापां नै फेर कति ना बोझ रहैगी
तांगा तुलसो नहीं रहै दिवाली सी रोज रहैगी
बढ़िया व्यौहार होज्यागा ना सिर पे फौज रहैगी
ना हो औरत नै लाचारी श्रो दिन कद आवँगा ।।
(3)
बुलफा चरस फीम का ना कोए भी अमली पावै
माणस डांगर नहीं रहै ना कोए जंगली पावै
पीस्सा ईमान नहीं रहै ना कोए नकली पावै
दान दहेज करकै नै दुख ना कोए बबली पावै
हौवें बराबर नर और नारी औ दिन कद आवैगा ।।
माणस के गल नै माणस नहीं कदे बी काटेगा
गाम बरोना रणबीर का असली सुर नै छांटैगा
लिख कै बात चमेली की सब दुख सुख नै बांटैगा
बोहे पापी होगा जो इसा सुणनै तै नाटैगा
राड़ खत्म हो म्हारी थारी औ दिन कद आवैगा ।
वार्ता-चमेली की बात सुणकै रिसाल सिंह का दिल थोड़ा सा पसीज्या। बात कुछ समझ में आई। बोल्या हांडी का छोह बरोली पै सवा ए वै उतरता आया चमेली। फेर पार तो कोण बसान्दी। बीमारी की जड़ पकड़ मैं ए नही बाली। रिसाल सिह जवाब देता है।
जवाब रिसाल सिंह का
तर्ज : आल्हा
रागनी 4
सुण ध्यान लगाकै बात या पार हमारी जाणी ना ।
व्यवस्था माई हुई हड़खाई काट्या मांगे पाणी ना ।।
म्हंगाई की मार कसूती बस भाड़ा और बढ़ा दिया
भंगड़ा जुगनी भुला दिये मन मैं मन्दिर चढ़ा दिया
जलूस म्हारा कढ़ा दिया हमनै चाल पिछाणी ना ।
किसान और मजदूर गरीब सब फूट डाल कै बांट दिए
क्यूकर भरै उडारी जड़ तै पर मैना के काट दिए
बरोने मैं तो नाट लिये कति मानी उनकी बाणी ना ।।
जूती म्हारी सिर भी म्हारा अमीर कसूती मार करे
अपणा मारै छां मैं गेरै घणा झूठा प्रचार करै
दूर बैठ के वार करें या म्हारी समझ मैं आणी ना ॥
(4)
चमेली सुण ले पांच साल मैं भेड़ की ऊन तराई हो
नहीं सम्भाल होवै रणबीर की क्यूकर ईव समाई हो
न्यों म्हारी चीज पराई हो या रूकती कुण्बा घाणी ना ।।
वार्ता - रिसाल सिंह चमेली को बताता है- मैं के तेरी गैल्यां खां पाड करकै सुख पाऊ सू? पर के करू टोटे के म्हां गोड्डे भिड़ते हार्ड से म्हारे बरग्यां के। जिसी किस्मत मैं लिख राखो से उसी ए भुगतनी पड़ेगी । चमेली अचरज से मैं बोली---फेर म्हारी ए किस्मत मोटी कलम तै क्यों लिख दी राम जी नै । मेहनत करके खांवा सां। किसे के चोरी करते ना. डाका मारते ना, रिश्वत लेते ना, फेर म्हारे घर ते खाली अर चोरां के घर राम जी क्यों भरै से ? यों कितका न्या से ? इतनी सुण के रिसाल सिह फेर छोह मैं आग्या - तेरे ताडि के बर कहली अक तू आगे तै मतना बोल्या कर। न्यों कहकै बुल्धां की सान्नी भेण चाल्या गया। चमेली की बात का जवाब ऊंकै घोरै नहीं था। चमेली भी बन सा मारकै बर्तन मांजण लागगी।
दोहा : किस्मत के ऊपर सवाल कोए ठाणा ना चाहिए ।
गरीबी अमीरी किस्मत करकै दूजा गाणा ना चाहिए ।।
वार्ता- रिसाल सिंह सोचता है कि कदे रामजी साचेए तो म्हारी गेल दुमांत नहीं करर्या से ? फेर यकीन सा नहीं आया। सोच्या रामजी को मेरी गेल्यां के दुश्मनी से ? अर जिस दिन राम जी दुभांत करण लागज्यागा, उस दिन फेर के रहज्यागा ? चमेली बर्तन मांज कै पाणी भरण चाली गई ।
दोहा : ठाकै दोघड़ पहर लीतरे चमेली नलके पै आगी ।
गाल मैं चलती न्यों सोचे या दुनिया कित जागी ।।
वार्ता - चम्पा चमेली तथा तीन सखियां नलके पर पानी भरण पहुंचणी । चम्पा बताती है कि फौज मैं लड़ाई छिड़ण नै होरी से। दूसरी सहेली पूछती है -तनै के बेरा ? तेरे घोरै के फौजी का तार आया से? सभी खिल खिला कर हंसने लगती हैं। नलके अभी आये नही हैं। सब अपने-२ घर की चर्चा करने लगती हैं। तरह तरह की बातचीत होती हैं।
(5)
सखियों की बातचीत
तर्ज : डाल डाल पर सोने की चिड़िया
रागनी 5
पांच बहू नल के ऊपर आपस मैं बतलाई ।
बारी बारी जिकर करया बढ़ चढ़ कै बात सुनाई ।।
चमेली नै मटका धरकै फरे खुल के बात बताई
माथै हाथ मारकै बोली मैं हाली गेल्यां ब्याही
सोतै काम तै उल्टा आवै धन्धे नै रेल बनाई
तीज त्यौहार भूल गये सामण की पींग झुलाई
खेतां मैं लीतर घिसगे मैं क्यूकर करू समाई ।।
सन्तरा नै सुणकै सारी फेर अपना नाक चढ़ाया
न्यों बोली पति मेरे नै सब चीजां का ढू लाया
ओवर सीयर होकै बी उनै पीस्सा बहोत कमाया
रूंढ़ी झोटी ल्याकै बांधी कर दिया मन का चाहया
इन सबनै के चाटू परनारी पं नीत डिगाई ।।
तीजी बहू न्यों बोली मेरा पति न्यारा कर दिया
दोनों एम ए करकै बैठे जी म्हारा कति भर लिया
दोनां का सै हाल बुरा चा म्हारा सारा मर लिया
गोली खा हो ज्यान खपाणी इतना म्हारे जर लिया
इस कंगाली नै मेरी ये सारी टूम बिकाई ।।
छन्नो बोली इसा सुधा सै कोण्या थारै भाण जंचे
दिन रात के धन्धे तै ग्यारा बजे सी ज्याण बचै
सो परपंच म्हारे घर मैं सासू मेरी ल्याण रचे
झूठी बांता के कारण पति की गेल्यां आण खिचे
सास बहू घणी दुखी हम दोनों टोही चाहवं दवाई ।।
सुणकै सबकी बात चम्पा नै दोघड़ अपनी ठाई
बोली सारी भाण दुखी सां ना सुखिया कोए पाई
कोए कहरी किस्मत कोए करमां की कहै लिखाई
(6)
मिलकै सोचो कष्ट निवारण रणबीर नै समझाई
सदियां तै म्हारी जात बीर की गई स घणी दबाई ।।
वार्ता - रिसाल सिंह का गुजारा नहीं होता। सोसाइटी से कर्ज लेना पड़ता है। सैकटरी की ऊपर तक पहुंच थी। मन्त्री का ब्बास माणस था । चौबीस घण्टे दारू मैं धुत्त रहता था। और बी कई ऐब बतावें थे उसमें। कर्ज का तकाजा करण संकटरी कई बर आ लिया था। भई मजाक करता था। उस दिन भी दारू पीकर बाया था। चमेली उसकी बातों का मतलब समझगी। उसने कहुया बरू ओ घरां कोण्या । जब औ घरां हो जिब आइये । सांझ नै रिसालसिंह चव घरां आया तो बमेली बताती है ।
कहण पति से
तर्ज : कस्में वायदे प्यार वफा ये बातें हैं बातों का क्या -
रागनी 6
सोसाटी आला बाबू जी रोजाना फेरी मारै सै
दारू पीकै घरने आनै कुबध करण की धारै रौ ।।
म्हारे घर अन्न वस्त्र का टोटा इतने जतन करें पिया
म्हारी जिन्दगी बीत गई हम टोटे के म्हां मरैं पिया
लत्ता कपड़ा नहीं ओढ़ण नै जाड़े के म्हां ठिरै पिया
बता जुल्मी करजे का पेटा किस तरियां तै भरै पिया
इस करजे की चिन्ता मनै शाम सबेरी मारै सै ।।
धरती सारी गहने घरदी दवा लिये करजे नै
जितने जेवर थे घर मैं सब बिका दिये करजे नै
म्हारे कान्धे आज तले नै झुका दिये करजे नै
रोटी कपड़े के मोहताज हम बना दिये करजे नै
सोसाटी आला बाबू जी ईज्जत पै हाथ पसारै से ।।
जहरी नाग फण ठारे कुएं जोहड़ मैं पड़ना दीखे
क्यों नहीं गुजारा चलै ज्यान का गाला करना दीखें
करजा म्हारा नाश करैगा दुख घणा भरना दीखे
मारू सैकटरी नाश जले नै ना आप्पै मरना दीखें
आंख मूं'दगे हीजड़े होगे ओ गाम नै ललकारं से ।।
(7)
गरीब की बहू जोरू सबकी समझे दुनिया सारी
मेहनत तै लूट लई म्हारी ईज्जत लूटण की तैयारी
सारा गाम बिलखै पिया कड़े गया कृष्ण मुरारी
रणबीर सिंह बरोने मैं बताने खोल या बेमारी
करियो ख्याल तावले सारे चमेली खड़ी पुकार सै ॥
वार्ता - रिसाल सिंह चमेली की बात सुनकर आग बबुला हो जाता है। सैक्टरी की इतनी मजाल। जेली ठाकै चाल पड़या हिसाब बराबर करण । घर-वाली रिसाल सिंह के पायां पड़ जाती है और कहती है- 10 हजार कर्ज ले राख्या उसका के बनैगा ? रिसाल सिंह कहता है देखी जागी। जेल काट ल्यांगे । पर म्यों तहलैंडू रहकै कितने दिन जीवांगे? सैक्टरी रमले की पोली मैं बैठ्या था। दो पहलवान भी उसके घोरै बैठे थे। ताश खेलण लागरे थे। रिसाले के तन-बदन में आग लागगी। बोल चुप्पाके नै सीधा जाकै दोनू वांह सम्हां के सैक्टरी के जेली लाठी की ढाल मारी कड़ मैं। दोनू पहलवान तै बांड टोहे भी ना पाये । लोगां नै बीच बचाव करा दिया। सैक्टरी नै माफी मांगी। पर भीतरै भीतर जल के राख होग्या। सारे गाम में चरचा होग्या। जितने मुंह उतनी ए बात । कोए सैक्टरी का कसूर बतावै अर कोए चमेली का। चमेली का राह चालना मुश्किल कर दिया । एक दिन तीन-चार पुलिस आले आये अर रिसाल सिंह ने थाने में पकड़ कै लेगे। थाने में बुरी बनी उसके साथ ।
थाने में दो रात
तर्ज : हो दूर जाने वाले कोई रास्ता बतादे
रागनी 7
हथकड़ी पुलिस नै रिसाल सिंह कै आण चाणचक लाई ।
किवाड़ां पाछे खड़ी चमेली ना उसकी पार बसाई ।।
थाने के म्हां करी मंजाई कोए कसूर बताया ना
दो दिन राख्या थाने के म्हां परचा कोए बनाया ना
कागजां मैं दरज पाया ना चमेली धक्के खाकै आई ।।
बड्डे चौधरी गाम के जितने मार गये दड़ सारे
मन्त्री का डर सबनै लागे जितने मितर प्यारे
चम्पा चमेली ना होंसला हारे ना पुलिस तै दहशत खाई ।।
(8)
पिट छित के उल्टा आग्या घेला एक दिया कोण्या
अपने मन मैं धार लिया सैक्टरी माफ किया कोण्या
ऊतां का संग लिया कोन्या रणबीर की यारी चाही ।।
संगठन करकै लड़ां लड़ाई ना ताकत बरबाद करां
हम सारे भाई कट्ठे होकै हक मागां ना फरियाद करां
न्यों जिन्दगी अपनी आजाद करा ईब ना हो म्हारै समाई ।।
वार्ता - थाने से वापिस आने के बात चमेली रिसाल सिंह से पूछती है-बिमला के बाबू बता यो राम जो म्हार ए पाछे क्यों पड़ऱ्या से ? सांच ने आंच नहीं सुण्या करदे। फेर आज तो आंच से सोच नैं कहावत बणनी चाहिए। बद-फेली करें अर ऊपर तें सीना जोरी। रिसाल सिंह कहता है बस बिमला की मां बूझे ना। जी तै इसा करें से अक सब क्यांहे कै आग लाकै भस्म करदयू पर ये चोर बदमाश अर काले बजारिये तो फेर भी बचे रहज्यांगे ।
दौहा : राम जी के भगत दोनों हाथ जोड़ फरियाद करें ।
साथ निभा कृष्ण मुरारी सैक्टरी हमने बरबाद करें ।।
वार्ता - एक दिन रिसाल सिह से उसका दोस्त नफे सिह पृश्यता है- भाई घरां किमै तकरार तो नहीं चालरी' सूकता क्यों आवै सै ? रिसाल सिंह बोल्या-ना तकरार तो किमै ना नफे फेर बोल्या ताप तूप आवै था ? रिसाल बोल्या-ना नफे सिह नै ठाडू बोल मैं बूझ्या तो फेर के सूई खाग्या, बतान्दा कोन्या के मरज से यार के ? रिसाल सिंह ने जवाब दिया मैं तो म्हंगाई नैं खा लिया जमा नफे सिह बोल्या म्हंगाई तो सबनै सेधै से। न्यों कहै नै अक घरआली नाज डिगादे से । रिसाल सिंह बोल्या र उसका तो तर्ने बेरा ए सै। इसी बातां के घोरै के बी ना जान्ती चमेली। नफे सिह नै बूझ्या तो के बात से ? रिसाल सिह उसे समझाता है ।
जवाब रिसाल सिह का
तर्ज : फूल तुम्हें भेजा खत में
रागनी 8
म्हंगाई नै काल कर्या मैं बहुत घरणा दुखी पारया सू' ।
बीर मेरी तै हीरा से रल मिल के बात बणारया सूः ॥
(9)
बरते बिना तो भले खोटे का कोण्या बेरा पटता
भीरू माणस मोक मारज्या सच्चे का सिर कटता
गण्डा पैदा करै रिसाला मौज क्यों साहू खटता
गाम राम मैं माणस छिदा अपणी आण पै डटता
लाख टके की बात खरी से मुफ्त मैं आज सुणारया सू' ।।
सहनशील गुणवन्ती मिलगी अकलमन्द और स्याणी
चेहरा देख मनै म्यों लागै जणू हो झांसी की राणी
उस गेल्यां रल मिल काटूं मनै पड़ी बिपता ठाणी
बहोत घणा सबर उसमें नहीं चमेली जमा अंघाणी
इसो मिली मनै नार नफे तनै सही बतारया सूं ।।
मैले लत्ते पहर रही जण बादल में सूरज ल्हुकण्या
घाम पड़े लू चालै उसका हाथ कसोले पै झुकरया
हुई बेहाल पसीने मैं तर जी ढाठे के मैं घुटरया
ऊपर तै यो काम कसाई तल्लै रेत्ता बालू फुकरया
मैं लाचार खड़या डोले पै उसकी तरफ लखारया सूं ।।
मैं कहूं मत लड़े बहू तै मां लोग हंसाई हो ज्यागी
माँ बोली चुप रहज्या ना तो घणी लड़ाई हो ज्यागी
सोना कहै रांग नै क्यूकर मेरै समाई हो ज्यागी
के न्यों बिसराये तै नफे पाणी में काई हो ज्यागी
कदे रोकै कदे हंसकै मैं जिन्दगी की तान बजारया सूं ।
ना रोकी ना टोकी कदे ना मन्दा बोल्या चाल्या
बीर समझ कै मरद पने का रोब कदे ना डाल्या
गैर बीर नहीं कदे निगाही ना मेरा हिया हाल्या
क्यों म्हारा पूरा पटता ना मैं इस चिन्ता नै साल्या
रणबीर किसी कविताई से मैं अपणा दुखड़ा गारया सूं ॥
वार्ता - रिसाल सिह नफे सिह की बात चमेली ने बतावै से। चमेली को दुख तो बहुत आता है पर खुश भी हो से बक रिसाल सिंह के दिल में उसने द्वारे मैं बढ़िया भावना से ।
(10)
दोहा : रल मिल के कर गुजारा नहीं हो तकरार कभी ।
बुरे दिन और हैं बाकी रहना हो तैयार अभी ।॥
वार्ता - चम्पा एक दिन चमेली के पास आती है और चिट्ठी लिखने को कहती है। चम्पा है तो अनपढ़ पर दिल की बहुत अच्छी है कहने लगी- फागण गया, चैत गया, ईब बसाख भी जाण लागऱ्या से। बालक बीमार से। दो चिट्ठी पहलम लिखवाली पर कोए बेरा नहीं बाया। ईब के सख्त व सक्त चिट्ठी विश्वये । चम्पा मोटी मोटी बात बता देती है।
चम्पा की पुकार
तर्ज : घड़ी मिलन की आई
रागनी 9
जै उड़े रोटी खावै पिया आड़े आकै पिये पाणी ।
मींह बरगी तेरी बाट पिया गेरै चिट्ठी तेरी राणी ।
तनै बताऊ इस घर मैं मनै दीखे घोर अन्धेरा हो
बरोने मैं पिया जी पड्या सै तेरा सूना डेरा हो
घर मैं तंगी याद तेरी और दिया ताप नै घेरा हो
तनै हो लिया पूरा डेढ़ साल ना लाया इब तक फेरा हो
बेमार पड़ी कई दिन तै होती दीखै कुण्बा घाणी ।।
थी फूलां मैं तोलण जोगी होया नाश शरीर का हो
बहता पानी गुणकारी बणै कुछ ना खड़े नीर का हो
दिल घबरावै मेरा भरोसा ना तकदीर का हो
ताने मारै दुनिया जणू निशाना तीर का हो
बालक रोवं पायतां बैठे उमर से इनकी याणी ।।
थोड़ी लिखी नै घणी मानिये हाथ जोड़ के कहण मेरा
सुसरा मेरा गाली दे दे करदे मुश्किल रहण मेरा
इसतै आच्छा तो पिया जी आर्क करदे दहण मेरा
घणे दिन ओटी ईव कति दिल करता कोन्या सहण मेरा
बख्त पे आण सम्भाल लिये कदे होज्या लाश उठाणी ॥
(11)
भूल गये वो बाग बगीचे थी कोयल की कूक जड़ै
भूल गये वे राग रसीले लखमीचन्द की हुक जड़ै
भूल गए वे स्कूल मदरसे पढ़ाई की थी भूख जड़ै
कौल करार भूल गए वे आपस की रसूक जड़ै
रणबीर तै बूझू जाकै हो कित अरजी ले ज्याणी ।।
वाताँ—चिट्ठी लिख कर चम्पा को दे देती है। चम्पा चिठ्ठी की तरफ खाली नजरों से देखते हुए अपने घर की तरफ चल पड़ी। लाम्बी सांस खीच के लोचण लागी-मैं भी पढ़ लिख लेती तो ? ख्यालों में खो जाती है चम्पा ।
चम्पा का सोचना
रागनी 10
मैं लिखी पढ़ी होती तै दिल खोल तनै दिखा देती ।
लिखकै सारी बात पिया जी तत्काल तनै बुला लेती ।।
बचपन मैं पढ़ नहीं पाई मनै भाई खूब खिलाया था
मां बाबू अनपढ़ मेरे नहीं रस्ता स्कूल दिखाया था
गोबर पाथना खूब सिखाया था जड़ मैं भाई बिठा लेतो ।
छोरी का पढ़ना ठीक नहीं बस इतना ही सुण्या हमने
दुख सुख किस्मत करकै इसा ए नक्शा बुण्या हमनै
नहीं खुद रस्ता चुण्या हमनै भाभी दो बात सिखा देती ।
देखते देखते म्हारे साहमी यो बख्त पुराना बदल गया
नए तौर तरीके खोज लिए साइंस का बढ़ दखल गया
ईव मनुष्य हो सफल गया साइस मरते नै जिला देती ।
मेरी पार बसावै पिया तो विद्या पढ़ज्यां सारी नै
डर लागे दुनिया के कहवै लग्या राम बुढ़ियारी नै
रणवीर सिह से लिखारी ने लिख के बोल हिला देती ।
(12)
वार्ता- चिठ्ठी के बाद चम्पा का घरवाला दो हफ्ते की छुट्टी आग्या। चम्पा की हालत सुधर रही है। चमेली एक दिन हाल चाल पूछने आती है। फौजी भी वहीं पर है। फौज की जिन्दगी के बारे में बातचीत होती हैं। फौजी बताता है-ईब पहल्यां आली बात कड़े से फौज मैं भी। वह चमेली के घर के बारे में पूछता है। चमेली का धन्यवाद भी करता है कि चम्पा की चिट्ठियां वह लिख देती है।
दोहा : तेरे बिना नहीं चालै काम तेरी सहेली का ।
फौजी कोन्या भूलै चढ्या जो शान चमेली का ।।
वार्ता - चमेली कै तो टोटे की खटक कसूती लागरी थी। बोली- ए' बो दियाल कोट मैं भी इतनी ए म्हंगाई से के इन वार्ता की चरचा फौज में नहीं चालती ? मामचन्द बताता है कि घणहरे फौजी इसी चिन्ता में रहते हैं कि के बर्णगा ? चमेली फौजी से पूछती है।
सवाल चमेली का
तर्ज : आपकी इनायते आपकी
रागनी 11
अन्न वस्त्र का टोटा घर मैं इतने जतन करें फौजी ।
सारी जिन्दगी बीत गई हम टोटे बीच मरै फौजी ।।
टोटा खोटा दुनिया के मां इस टोटे कै लिहाज नहीं
म्हारे जिसे मोहताजां की कम दुनिया मैं तादाद नहीं
कितना दुख बाकी बचरया से इसका जमा अन्दाज नहीं
दूध मलाई किततै आवै खावण खातर नाज नहीं
लत्ता कपड़ा ना ओढ़ण नै जाड़े बीच ठिरै फौजी ।
चोर जार ठग मौज उड़ावै गरीब रहें दुख भरते
सै बदमाशां की चान्दी सांचे फिर गुलामी करते
तिजौरी भरी अमीरां की गरीब भूख मैं मरते
मेहनतकश की लूट कमाई अमीर मौज मैं फिरते
क्यों बालक म्हारे गालां के मैं हुए उदास फिरें फौजी ।
(13)
कमा कमा के मर लिए हमने दिन और रात गिनी कोन्या
टोटा आगे आगे चाल्या नफे की बात बनी कोन्या
म्हारे ऊपर टोटा क्यों से या पल्ले मेरै घली कोन्या
बालक बाट मिठाई की देखें चुल्हे आग जली कोन्या
इतना सबर तो करया और ना ज्यादा घूट भरे फोजी ।
लहू चूस लिया सारे गात का घणा सताए टोटे नै
घर बिगड़ण मैं कसर रही ना बिधन खिडाए टोटे ने
किसी माया रच राखी ये जाल बिछाए टोटे नै
इसे फंसाए बांध जूड़ लाचार बनाए टोटे नै
कहै रणबीर बरोने आला क्यूकर पार तिर फौजी ।।
वार्ता – मामचन्द चमेली को बताता है कि फौज में भी कई कमी बागी। दूर के ढ़ोल सुहावने लाँगे से। चरचा सारे से अक देश का के बर्णगा? के बदाब न्यारे न्यारे मिले से ।
दोहा : लोगों की सेवा की बजाए राजनीति बनी कपट का खेल।
चोर बदमाश यहां बने चौधरी सच्चों को मिलती जेल ॥
वार्ता-मामचन्द फौजी की छुट्टी खत्म होगी। वापिस चालने की तैयारों करता है। चम्पा कुछ दिन और ठहर जाने का तकाजा करती हैं। मामवर कहता है-तने तो बेरा से चम्पा फोज की नौकरी का । बिना खास कारण हो नहीं बघवाई जा सकती । चम्पा कहती है कि घरवाली की बीमारी नै फोज बाह कारण नहीं मानती के ? चम्पा कहती है।
दोहा । टेलीफून मिला अफसर तै फरियाद करिए हाथ जोड़ है।
दस दिन की छुट्टी बधाद्यो कहिए फौजी मुह फोड़ कै ॥
वार्ता-दस दिन की छुट्टी भी खतम होने को आ गई चम्पा को बहुत खराब सपना आया। सरहद पे जणों लड़ाई छिड़गी फौजी की पलटन दुश्मनों से विर जाती है। फोजी लड़ाई में मारा जाता है। चम्पा फोजी को फिर कहती है-छो फौज की नौकरी। बाई ए खा कथा ल्यांगे सपने का जिकर करती है।
(14)
सपने का हाल
तर्ज : डस गया नाग बरी
रागनी 12
दिख्या छलनी पड़या सरहद पे शरीर की नाड़ी छूट गई ।
रोती हांडू गालां के म्हा मेरी क्यों किस्मत फूट गई ।।
तेरी पलटन कलकत्ते तै चल के आई थी पंजाब मैं
लैफ्ट राइंट करता दीख्या थी ज्यादा अकड़ जनाब मैं
पाकिस्तानी फौज दो आब मैं मेरा कालजा या चूट गई ।
हवाई जहाज बम्ब बरसावं उड़े दनादन गोली चाली
पैटन टैंक दाग रहे गोले चोगरदं धरती हाली
उड़ें धरती पै छाई लाली मैं पी सबर का छूट गई ।
पहल्यां कदे बी देखी नां इसी घमासान लड़ाई मनै
माणस का बैरी माणस था देखी मची तबाही मनै
तों ना दिया दिखाई मनै मेरी दुनिया जण लूट लई ।
थोड़ी हाण मैं मोर्चे पै तू आगै खड़ा दिखाई दिया
करै बौछार एल एम जी स्याहमी पिया अड्या दिखाई दिया
फेर रणबीर पड़या दिखाई दिया या नींद मेरो तो टूट गई।
वार्ता-मामचन्द बोल्या-सपना साचो नहीं हुआ करै। चिन्ता मतना करिये । फौजी वापिस चला गया। चम्पा की ननद मिलकपुर में व्याही थी। ऊपर तै दीखण में सब बढ़िया चालरया था। पर भीतर भीतर गम्भीर पाकरी थी। खबर आई नक किताबो जल के मरगी। रोटी पोवै थी। स्टोव पाटण्या । आग लावगी मैडिकल में जाकै मरगी । चमेली चम्पा को उदास देखती है तो कारण पूछती है। चम्पा ननद के हादसे के बारे मैं बतावै से। चमली बोली-ए स्टोव तै नपूत्यां क था एना। पाट किततै गया ?
(15)
तर्ज : दोवां म्हाते एक काम कर
रागनी 13
के बूझे से भाण चमेली सारा तो तनै बेरा है ।
देख देख इसी करतूतां नै विध्या कालजा मेरा है ।।
नणद मारदी दिन घोली घणा बुरा जमाना आया
स्टोव नपूते नै बी बेबे म्हारे कान्हीं मुंह बाया
कोसली हो चाहे गोहाना घणा कसूता जुलम कमाया
किस किस का जिकरा हे आज दुर्योधन बी शरमाया
जली नहीं से गई जलाई न्यों छाया बाज अन्धेरा है ।
इस देश में छोरी पैदा होण पै सारै छा मुरदाई जा
छोरे के उपर बाजै थाली घणीए खुशी मनाई जा
जिसकै होवै लागती छोरी वा निरभाग बताई जा
इसकी दोषी कहें बीर नै न्यों म्हारी आ करड़ाई जा
म्हारी समझ मैं आया कोन्या यो विधनां का घेरा हे ।
मनू महाराज नै भाण चमेली कसूता अत्याचार करया
लूंला लंगड़ा गंवार और कोढ़ी पति म्हारा स्वीकार करया
नाड़ झुका और गूंगी बणकै हुकम हमें अंगीकार करया
नाड़ उठाकै जो बोली कुल्टा जिसा ब्यौहार करया
हमनै नागन कहै माणस क्यों चाहवै बण्या सपेरा है ।
पां की जूती बरोबर म्हारी क्यों तसबीर दिखाई जा
राज करण की छोरयां तैं पूरी तदबीर बताई जा
वीर नै गम खाणा चाहिए म्हारी तकदीर सिखाई जा
म्हारै वासी खिचड़ी थ्यावै उननै हल्वा खीर खिलाई जा
रणबीर सिंह ना झूठ लिखे से गाम बरोने डेरा है ।
(16)
वार्ता - चमेली लाम्बी सी सांस भरकै बोली- चम्पा बात तै तू ठीक कहै से पर करां के ? कोए राहू गोण्डा तो नहीं दिखाई देता। अन्धेरा ए अन्धेरा दिखे से। कई में तो इसा जी कर से अक गोली खा के लाम्बी तान के सो ज्याक चम्पा बोली- ना बेबे इसी मना सोचिए । एक तै दो भले । मरना ए से तो कुछ करके मरना चाहिए। न्यों किसे के के अजार आवै से।
दोहा : बिराणे भरोसे बैठ के म्हारा कदे उद्धार नहीं होने का ।
आपा मारें पार पड़ेगी पुकारै बच्चा बच्चा गाम बरोने का ।।
वार्ता - दिन बीत रहे थे। एक दिन की बात है रिसाल सिद्ध के घर मैं उसकी लड़की बिमला अकेली थी। सैक्टरी अपणे चकरां मैं था। रिसाल सिह थाने में पिटवा के भी उसकी तसल्ली नहीं होई थी। उसने बेरा था अक बिमला अकेली है। घर पहुंच कर वह बिमला को फुसलाने की कोशिश करता है।
सैक्टरी का कहना
तर्ज : कहकै उल्टा नहीं फिरूंगी
रागनी 14
करमां करकै विमला फेटी, क्यों वनरी तू इतनी ढ़ेठी,
ना मैं चाचा ना तूं बेटी, करदे मन चाहया ।।
आग क्यों ना कदम डालती, क्यों मेरी कही बात टालती
चालती सांस दोखरी बड़ मैं, भरया रस केले केसी घड़ मैं
आज्या बैठ पलंग पै जड़ मैं, हो आनन्द काया ।।
मेरै छिड़ी से इश्क बिमारी, तेरी या खिलरी केसर क्यारी
सारी उमर रहै दुख भरना, गरीब बाप का लेरी सरना
मान ले ब्याह मेरे लें करना, तेरी सब घन माया ।।
होसै करे करम की लाग, ना समझेंगी तों निरभाग
इसतै ज्यादा तोड़ नहीं से, तनै मरण नै ठोड़ नहीं से
मेरै चिजां की ओड़ नहीं से, पाज्या सुख काया ।।
गया हुआ वस्त हाथ ना आवै, दखे कदे तू' पाछे पछतावे
बात पते की समझाऊ मैं, तेरे मेटना दुख चाहूं मैं
रणबीर सिंह नै मरवाऊं मैं, उनै सत्यानाश कराया ।।
(17)
वार्ता बिमला सैक्टरी की चाल समझ जाती है। उसे एक बार तो बहुत डर लगता है। सेक्टरी उसे अन्दर की तरफ बुलाता है। बिमला बगड मै वही खड़ी होती है और कहती है में ईव सक्का दयू सुनाते बोल चुपचाप चाल्या जा चाचा। सैक्टरी फिर भी फुसलाने की कोशिश करता है तो बिमला क्या कहती है।
जवाब बिमला का
तर्ज : एक प्रदेशी मेरा दिल ले गया
रागनी 15
देख एकली विमला नै क्यों लाग्या करण ग्रंघाई चाचा।
करज लिया से हमनै ना ईज्जत गहन घरवाई चाचा ।।
माणस होक डांगर की ज्यू मतना नीत डिगाईये
मेरी आधी उमर तेरी अकल मारी तावला चाल्या जाइवे
घणी वार मतना लाईए ईव होती नहीं समाई चाचा ।
फूल समझ के ना हाथ लगाइये कदे कांटा चुभज्या
नीच काम से बहोत घणा यो नाम जगत मैं युकज्या
पापी तू उल्टा ए डिगरज्या में समझ गई चतराई चाचा ।
आंख खोल ले होश मैं आज्या क्यों मरणा चाहवं से
मनै देख पागल होग्या क्यों मनै वरणा चाहवै से
क्यों कुकरम करणा चाहवं से होज्या तेरी पिटाई चाचा ।
मेरा ख्याल छोड़ चाल क्यों बीज बदी के बोबे हो
इन्सानों के ये काम नहीं क्यों वृथा झगड़े झोने से
रणबीर तनै टोहवं से संग बरोने की लुगाई चाचा ।
दोहा : तीर चलाये हाड़े खाये दाल उड़े गली कोण्या ।
विमला पक्की कोण्या कच्ची गेल उसकी रली कोण्या ॥
वार्ता -बिमला का रुख देखकर सैक्टरी वहां से भाग जाता है। पर बाते जाते धमकी दे जाता है कि यदि किसी को कुछ बताया तो बेड़े वे लाश पार्वणी बेरी किसे दिन । बपनी भलाई चाहवे से तो मेरी बात मान जाइये ।
दोहा : मन में डरें के करें बिमला सौर्च मन के म्हां ।
थर थर कांप गुस्सा आगे नहीं बाकी तन के म्हां ।।
(18)
वार्ता – बिमला की मां बिमला को दो तीन दिन से उदास देख रही थी। कारण पूछती है। बिमला रो पड़ती है। चमेली को भी पक्का सा बगता है। कई तरां की बात मन में सोचती है फिर कहती है।
दोहा : क्यों रोगे बेटी बिमला के तंग करै ऊत लु'गाड़ा ।
चुप होज्या मेरी जाई बता के हुया कोए पवाड़ा ।।
वार्ता- डरती डरती विमला अपनी मां को सारी बात बता देती है। चमेली की आंखों के सामने अन्धेरा सा छा जाता है। रिसाल सिंह की थाने में पिटाई शेर सारी घटना उसकै साहमी बा खड़ी हो से। वेबस होकै चमेली बी रोण लागज्या से। इतनी वार में चम्पा आज्या से चमेली पहले तो बात को छिपाना चाहती है। कवारी छोरी का मामला से। पर चम्पा के सामी चमेली पहलम कदे कोए बात ल्यको पाई होते ईब रहको पान्ती। सुणर्क चम्पा कहती है।
कहण चम्पा का
तर्ज : मेरा मन डोले मेरा तन डोले
रागनी 16
मरो कीड़े पड़कै, मेरै घणा कसूता रड़कै, क्यो कुवध करें से निरभाग
पड़े ईब खेलना खूनी फाग ।
उसकी गुण्डा गरदी बढ़गी ज्यान काढ़ ली म्हारी बेबे
सफेद पोश बदमाश नै करी दुखी या जनता सारी बेवे
कमला सरती घमलो रोवै ना बात एकली थारी बेबे
ना रहया गुजारा गरीवां का बादल संकट के भारी बेबे
हमनै लड़ना हो जमकै अड़ना हो चिन्गारी वर्ण धधकती आग
पड़े ईव खेलना खूनी फाग ।
बिमला जै चुप रहैगी तो यू सांड सैक्ट्री छूट ज्यागा
जितनी बहू बेटी से गाम की भाग सबका फूट ज्यागा
सजा मिले बिन ओ पापी सबकी ईज्जत नै लूट ज्यागा
जवान गाभरू हुये होजड़े विश्वास म्हारा टूट ज्यागा
हृया चुप भगवान दुखी हुया इन्सान तारां आप यो काला दाग
पड़े ईव खेलना खूनी फाग ।
(19)
मेरै जरगी बाहण चमेली मुश्किल म्हारी पार पड़ेगी हे
बिमला बेटी करो होंसला तेरी चाची त्यार लड़ेगी है
एक को श्रागै होके चालां बीरों की लार अडंगी हे
गाम संगठन बना करमपुर की या बहादर नार भिडंगी हे
ते ताहवें ना भाज्या ध्याने उसके आज्या मूह में झाग
पर्ड ईब खेलना खुनी फाग ।
सारी भाणो सुणल्यो रोज म्हारी गेल्यां ऐसी बात वर्ण
म्हारी आवरू तारण खातर या गुण्डयां की फौज फिरै
कदे कोसली कदे काण्ड गोहाना ज्यान हमारी रोज घिरै
झूठा पाखन्डी ढोंगी पापी आड़े जमकै मौज करै
चालै जोर नहीं सभाई और नहीं रणवीर सिह गांव म्हारे राग
पड़े ईब खेलना खूनी फाग ।
वार्ता - चम्पा चमेली सलाह करके रिगाल सिंह को फिलहाल इस घटना का जिकर न करने का मन बना लेती हैं। चमेली का दिल पहली घटना नै पकर राख्या सै। भय भी से अर गुस्सा भी आवै है सैंक्टरी पै, पर पार भी कुछ नहीं बसान्ती । चम्पा पें उसने भरोसा से। उसकै आगे एक दिन दिल की भडांर काड़ से। चमेली कहती है।
कहण चमेली का
तर्ज: उसकी करणी उसकै आगै जिकर करया ना करते
रागनी 17
चाला कर दिया उसने चम्पा भूल गया घरबार नै ।
बाकी कोण्या छोडी बेबे उस लुच्चे बदकार नै ।
खोटी कार करण नै क्यों खोटा ध्यान हो गया
साफ नीयत ना राखी क्यों बेईमान हो गया
कोए नहीं बोलता क्यों बियाबान हो गया
छह म्हिने तै म्हारा घर शमशान हो गया
कुबध करण की ठाणी उसनै भूलग्या सही विचार है।
चाचा होके डूबण लाग्या कती शरम ना आई
(20)
इश्क नशे मैं टूहल गया पाप की राह अपनाई
गलत सही नै भूलग्या चाही करनी उनै तबाही
काम वासना डटी ना टोहली नाश करण की राही
मींच लई क्यों आंख बता गरीबां के कृष्ण मुरार नै ।
भस्मासुर मरया था उसने उमा पै नीत डिगाई
रावण का के हाल हुआ जिब जानकी उनै चुराई
पाप पै आण मरया नारद जा मोहनी उन रिझाई
कीचक का भी वध होग्या जा उन द्रोपदी ठाई
इन्द्र जी भी रोया गेर अहिल्या ऊपर लार नै ।
भाण बेटी पै नीत डिगादे इसतै भूडा करम नहीं
डूबग्या चाचा होकै रैहरी उसकै जमा घरम नहीं
बदला जरूर लेवांगे सां इतने हम नरम नहीं
नाश जले उस सैक्टरी के हम छोड्डांगे भरम नहीं
रोज पिनागै रणबीर सिंह कलम रूपी तलवार नै ।
वार्ता - सैक्टरी की हरकतों से रिसाल सिंह दुखी है। बिमला बाली बात का उसे पता नहीं चलता पर कर्ज की चिन्ता और संक्टरी के फेरे उसके जी का जंजाल बणते जा रहे हैं। एक दिन रिसाल सिंह सोचता है कि कुण्बे में एक दादा है. उससे पीस्सा उधार लेकै सोसाटो का कर्ज तो तार द्यू। सैक्टरी के चक्कर तो बन्द हो ज्यांगे। दादा को रिसाल सिंह जाकर प्रार्थना करता है।
कहण रिसाल सिह का
तर्ज : सावन का महिना पवन करे शोर
रागनी 18
रिसाला : मदद करो दादा जी मनै देकै करज उधारा
दादा : पीस्सा उधार देण का ना से बेटा ब्योंत हमारा ।
रिसाला : ठीक नहीं से अड़ी भीड़ मैं अपणे ताहि ना करना
दादा : बात गलत से औरे गैरे ते करजे ताहि हां करना
रिसाला : चाहिये इस ढ़ाला ना करना करै क्यूकर गरीब गुजारा ।
दादा : लेण देण इसा चाहिये न्यों चालै ना साहूकारा ।
(21)
रिसाला : दादा मतना फरज भूल फंस के माया के जाल में
दादा : धरती गहणैए धरदे तो करूं ना करजे की टाल मैं
रिसाला : अमीरों के ताल मैं होसै गरीबों का निस्तारा ।
दादा : दादा के ख्याल मैं तेरे किसे लाखों ऊत आवारा ।
रिसाला : म्हारा थारा लेण देण घणे दिनां तै चलता आया
दादा : जिब बख्त बदलज्या साथ साथ ब्यौहार बदलता आया
रिसाला : चढ्या शिखर ढ़लता आया फेर माणस कोण बिचारा।
दादा : ढलकै काया माया छाया नहीं आवै कदे दोबारा ॥
दोहा : हजारों लाखों किसान बिचारे करज बोझ तै बिलख रहे ।
साहूकार आज मौज करें माये ऊपर लगा तिलक रहे ।।
वार्ता- रिसाल सिंह बहुत दुखी है। कई बार आत्म हत्या करने की सोचता है। पर फिर ख्याल आता है बिमला का, कमला का, शमशेर को इन बच्चों का क्या होगा ? सैक्टरी तो बसणैं कौनी दे चमेली नं। इसी बीच पचायत के चुनाव आ जाते हैं। नोट व दारू से वोट खरीदे जाते हैं। चमेली चम्पा सब देखती हैं। सैक्टरी बहुत भाग दौड़ में है। दो उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है। एक बदमाश आदमी है, पीस्से आला है, संक्टरी उसकी मदद पैसे। दूसरा बादसी शरीफ से । ईमानदार से। चमेली एक दिन रिसाल को क्या कहती है ?
सवाल चमेली का
तर्ज : मेरा मन डोले मेरा तन होने
रागनी 19
लेज्यां म्हारे वोट करें बुरी चोट आवै क्यों नींद रूखाले नै ।
घेर लिए मकड़ी के जाने में ।।
(22)
जब पाछे सी भैंस खरीदी देखी थी धार काढ़ के हो
जब पाछे सी बीज ल्याया देख्या था खूब हांड कै हो
जब पाछे सी हैरो खरीदया देख्या था खूब चांड कै हो
जब पाछे सी नारा ल्याया देख्या था खुड काढ़ के हो
बोटां पै रोल पार्ट कोण्या तोल लावां मुंह लूटण आलै नै ।
घेर लिए मकड़ी के जाले नै ।
घण दिनां तै देख रही म्हारी दूनी बदहाली होगी
हमनै भकाज्यां आई बरियां इवकै खुशहाली होगी
क्यों माथे की फूट रही या दूनी कंगाली होगी
गुरु जिसे चुनकै भेजा उसी ए गुरु घंटाली होगी
छाती कै लागे क्यों ना दूर भगावे इस विषहर काले नै ।
घेर लिए मकड़ी के जाले नै ।
ये रंग बदलें और ढंग बदलें जब पांच साल मैं आवै से
जात गोत की शरम दिखा के वोट मांग ले ज्यावैं सैं
उनकै धोरै जिव जाणा हो कितका कोण बतावै से
दारू बांटें पीस्सा वो खरच फेर हमनै ए खावैं सैं
करें आप्पा घापी छारे पापी घाप्पै ना किसे साले नै ।
घेर लिए मकड़ी के जाले नै ।।
क्यों हांडे से ठान बदलता सही ठिकाना मिल्या नहीं
बाही मैं लागू और टिकाऊ ऐसा नारा हिल्या नहीं
म्हारे तन ढ़ांप सकै जो कुड़ता ऐसा सिल्या नहीं
खेतां मैं धन उपजावां सां फूल म्हारै खिल्या नहीं
साथी रणबीर बणानै सही तसबीर खींच दे असली पाले नै ।
घेर लिए मकड़ी के जाले नै ।
(23)
वार्ता - सैंकटरी का सरपंच जीत जाता है। सैकटरी की हरकतें और बड जाती है। रिसाल सिंह उसकी शिकायत ऊपर महकमें को कर देता है। भूमी की इन्कवारी होती है। क्या क्या होता है।
कहण कवि का
तर्ज : रामचन्द्र जी कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
रागनी 20
अपणे खुद दस्तक करकै ऊपर उसने फरियाद करी।
सैकटरी के हथकड़ी लाओ इसनै जिन्दगी बरबाद करी ॥
पांच सात और जोड़ लिए बाहण बेटी की देकै दुहाई
मन्त्री के जा पेश हुए बोले ना होती ईव समाई
जा उसकी सब करतूत बताई ना मन्त्री नै इमदाद करी ।
झूठी साची हुई इन्क्रवारी हुया बेरी सैकटरी छूट गया
कर खंगारिया गालां मैं चमेली का होसला टूट गया
भरोसा राम तै उठ गया ईमान दारी मुर्दाबाद करी ।
सैक्टरी ने करली त्यारी रिसाल सिंह उनै घेर लिया
बदमाशां नै खेल रचाकै पिंजरे में कर शेर दिया
ऊ' के सपन्यां का ढेर किया या दुनिया जिनै आबाद करी ।
मुनादी बाले ढोलक पीट जमा कालजा चीर गरया
कुड़की आगी घरती की न्यू कोण्या जाने धीर धरया
रणबीर सिह फकीर करया बोने नै अलबाद करी ।
वार्ता- रिसाल सिंह चमेली से सलाह करता है। के बनेगी? के करां बमेडी के पास भी कोई जवाब नहीं। रिसाल चिमेली को क्या बताता है :
(24)
रिसाल सिंह का कहण
तर्ज : माऊ की ढाणी जिला भिवाणी पिवं पाणी सब नलका
रागनी 21
अनबोल पशू की ढाल कमाया फेर बी ज्यान मरण मैं से।
करजा ना लेना चाहिए पड़े रास्सा फेर भरण मैं से।
अफसर मनै न्यों बोल्या करजा देना चाहिए ले कै
फसल बिगड़ी बेरा तनै कित टक्कर मारूं दे कै
मुश्कल तै हम करें गुजारा गरमी सरदी नै खे कै
लाई कसूती दाब मेरै से रस्सी को ज्यों बल दे कै
कुणसी बिध ला पार तिरू' कोण्या जी काम करण मैं से।
बैंक आले उल्टा मांग मेरी जमा बी आसंग ना
धौरै थी जो धरदी सारी बची एक बी पासंग ना
मेहनत करकै बी कंगाली या सोचरण की आसंग ना
बालक हांड ठोकर खाते रोवण की बी आसंग ना
छोरी फिर कंवारी घर में क्यों दीखें चीर हरण में से ।
मेरे जिसां का गाम मैं घणा मुश्किल रैहणा से रे
कुड़की की दाब कसूती दुख कुणबे ने सैहणा से रै
अफसरों की नीत बुरी कदे ना कदे फैहणा से रै
टूम ठेकरी सब जाली ना धोरै ईब गहणा से रै
भगत नै बचाइये राम जी आया तेरी सरण मैं से ।
दी भोपू' की आवाज सुणाई थोड़ी वार मैं आण कर के
करमपूर सिघाणा मोई सुणल्यो लोगो ध्यान कर के
बहकारी विकास बैंक ल्याया जारी फरमाण कर कै
किश्त भपनी भर जाइयो बोल चुप्पाके आण कर कै
रणबीर सिंह नै माफ करिये बैठ्या तेरे चरण में से।
(25)
वार्ता – चमेली रिसाल सिंह की बात सुणक एक बं तो उदास होज्या से। पर फेर होसला कर लेती है। दो दिन पहले चम्पा से हुई बात उसके दिमाग में घमने लगती हैं। कर्ज और कूड़की का मसला उसको भी धुन की तरह खा रहा है। वह रिसाल सिंह से पूछती है –
दोहा : क्यों ना पिया बिचार कर किस तरियां खाल उतारी जा ।
कमाई खून पसीने की साहूकार लूट ले सारी जा ।।
क्यों दस के बीस पढ़ें देने तबीयत हो घणी खारी जा ।
वख्त पड़े पै कहें अन्नदाता क्यों म्हारी अक्ल मारी जा ।।
दोहा : रिसाल सिंह क्या जवाब दे, क्या ये इतना आसान है ।
जो जवाव सही दे इसका रणवीर सिंह का मेहमान है ।।
वार्ता – रिसाल सिंह के पास कोई जवाब नहीं है। सांटा उठाता है, बैल खोलता है और कोल्हू की तरफ चल पड़ता है। एक पहर रात बाकी है। रिसाल सिंह के घर सैंकटरी और पुलिस पहुंचती है। बिमला की आंख खुल जाती है। वह अपनी मां को उठाती है और क्या कहती है :-
बिमला और चमेली के सवाल जवाब तर्ज ।
आंखों ही आंखों में इशारा हो गया
रागनी 22
उठ बैठी हो मां मेरी दखे दिया पुलिस ने घेरा ।
दरवाजे पै थानेदार खड़या कदका रूक्के देरया
चमेली
के करणे आए के मतलब के काम से बेटी
जमघट लाया देहली पं के इल्जाम से बेटी
एक आवै एक जावै के देना इनाम से बेटी
(26)
ईब और के चाहिये यो बच्या चाम से बेटी
दिखे से कोए बाप तेरे पै सख्त मामला गेरया ।
म्हारे घर मैं आण का बेटी होसला क्यूकर पड़ग्या
के कोए चोर लुटेरा म्हारे घर के अन्दर बड़ग्या
मेरी समझ मैं बेटी रास्सा तेरे आला छिड़ग्या
जब तै देखी पुलिस मनै मेरै सहम सांप सा लड़ङ्ग्या
चाल बूझल्यो सब बातों का हमने पटज्या वेरा ।
मां बेटी थानेदार को
मां बेटी हम बझां सां हमने साची बात बता
कुणसी चीज बेगानी करकै एक बे हाथ बता
गैर बख्त क्यों आये चढ़गी किसकी श्यात बता
म्हारा घर क्यों घेरया तमनै आधी रात बता
के तपतीस करने आये सो किसके वारन्ट लेरया ।
जवाब थानेदार का
वारन्ट देख रिसाले के गिरफ्तार वो करना से
सजा सख्त दिलानी पेश सरकार वो करना से
सरकारी करज दिया ना भीतर एक बार वो करना से
आंडी पाकै लेज्या पकड़ त्यौहार यो करना से
पेश करो रणबीर सिंह नै ना लगै रोजाना फेरा ।
वार्ता - रिसाल सिंह को कोल्हू में से ही पुलिस पकड़ कर ले जाती है। चमेली बड़े हाच पैर भारती है। हल्के के एम एल ए के पास जाती है और स्था कहती है :
(27)
कहण चमेली का
तर्ज हो आज मन चेहरे से परदा हटा लिया
रागनी 23
तेरे दरवाजे पे दुखिया आई करिये मेरी सुणाई ।
बैंक नाल्यां ने भीतर कर दिया कति शरम ना खाई ।।
दिन रात कमाए दुख पाए क्यों दूना टोटा आया यो
ऐल फेल नहीं करया कोए खरया खोटा क्यों पाया यो
वो सोटा मार बिठाया क्यों करी कुण्बे की रूसवाई ।
दस दिन हो लिए उनै गए नै कुछ ना लाग्या बेरा
ना सूधे मुंह कोए बात करै मेरै दिया चिन्ता नै घेरा
मनै दीखें से कुआं झेरा सब साची बात बताई ।
मनै सुणों से गोहाने मैं तार दिया उसका चाम कहै
सूधी मूधी यो सोल्हू भी पूरा का पूरा गाम कहें
संकटरी ने लिया नाम कहैं अपनी खुन्दक काढ़ी चाही ।
अन्नदाता कहें सैं तो फेर क्यों म्हारा इसा हाल हुया
तेरै धोरै आई नेता जी यो कुण्बा कति निढ़ाल हुया
घणा थानेदार चण्डाल हुया रणवीर की करै पिटाई ।
वार्ता - एम एल ए कहता है-वोट तै गेरो दूसरे के अर ईब काम करवावण बाबो बाई । चमेली के जी में आया बक कहदे बोट तो हम आगे बी बढ़ ए बेरांगे। पर बीते पाछे तो एम एल ए सबका ए होना चाहिए। चमेली कुछ नहीं बोली। वापिस आ जाती है। चम्पा साथ में थी। रास्ते में घर पड़ता है, चम्पा चमेली को अपने घर से जाती है। चम्पा ढाढस बंधवाने की कोशिश करती है ।
(28)
कहण चम्पा का
तर्ज : सत्यवान के घरां चाल दुख भरया करेंगी सावित्री
रागनी 24
तेरी हालत देख चमेली मनै रात नींद नहीं आवै हे मेरी बाहूण
थानेदार का नाश जाइयो घणी सही ना जाने हे मेरी बाहण
जेवर अपने कठ्ठ करकै बेबे में ये ल्याई सू
देख तेरे हालात मैं बेबे बहुत घणी घबराई सू
टूम बेच के किश्त भरां या बात समझ मैं पाई सू
कुड़की हो घरती जावं मैं इस चिन्ता नै खाई सू
कैंडे सर की बात रहो ना या दुनिया बही पावै हे मेरी वाहण ।
गरीबां का जीना भारया या मेरे समझ मैं आगी हे
अमीरां के ठाठ बताये या विस्कुट कुतिया खागी हे
राजा नल दमयन्ती ने क्यों सारी दुनिया गागी है
रूलती हांडै आज चमेली ना कसक किसे कै लागी हे
अमीरा की सब मेर करें ना कोए गरीब नै चाहवं हे मेरी बाहण ।
बीस हजार की टूम मेरी दस हजार मैं घर दयांगे
गहने धरकै पोस्से ल्यावां पूरी किश्त नै भर दयांगे
रल मिल बांटा दुख अपणा बदले के मा सिर दयांगे
गिरते पड़ते हंसते रोते पार भव सागर कर दयांगे
राम जी तै बूझूगी क्यों गरीबां कै फांसी लागै है मेरी बहाण ।
फौजी की चिन्ता कोन्या उसनै मैं आप मना ल्यू'गी
सास मेरी घणी कलिहारी उसतै मैं गात छिपा ल्यू गी ।
तीज त्यौहार की देखी जा फेर तै मैं बाल बणा ल्यू गी
(29)
रिसाल सिंह उल्टा आज्या उसपै सात घड़ा ल्यूगी
रणबीर सिह का गाम बरोना रागनो ठही बणाव हे मेरी वाहण ।
दोहा : टूम बेच पीस्से लेके किश्त भरी बैंक के म्हां ।
रिसाल सिंह पड़या छोड़ना पांच मिन्ट के म्हां ।।
वार्ता - चमेली रिसाल सिह को चम्पा की टूमों के बारे में बताती है। रिसाल सिंह कहता है - है राम इसे माणस क्यों बचरे से ? चम्पा का यो शान में क्यूकर तारूंगा ? फेर चमेली से पूछता है-चमेली किभे करल्यां पर धरती बचनी मुश्किल दीखें से! क्या कहता है रिसाल सिह ।
कहण रिसाल सिंह का
तर्ज : भंवरे ने खिलाया फूल-
रागनी 25
कुड़की आगी जरदी छागी नाश होण मैं कसर नहीं ।
धरती जागी चिन्ता खागी डले ढ़ोण में विसर नहीं ।।
धरती गई तो के रहज्या गुलामी करनी दीख से
दिहाड़ी ऊपर जाणा होज्या बदनामी भरनी दीखें सै
गाम छोड जाणा पड़ज्या गुमनामी करनी दीखै से
घरबासे ताहि मनै या सलामी करनी दीखै से
अफसर आगै फरियाद करी कुछ हुया कान पै असर नहीं ।
क्यों माड़ा मन कररया से धरती अपणी बचाणी सै
नहीं अकेले सां हम आड़े मिलके अलख जगाणी से
गाम गाम मैं कुड़की आरी सही गलजोट बणाणी से
आप्पा मारें पार पड़ेगी सही तसवीर दिखाणी से
हों करजवान किसान कट्ठे और कोए तो डगर नहीं।
(30)
आंसू आरे धीर बंधावै तू' ईब तक हिम्मत हारी ना
कहै कुड़की ना होण दयू जब तक उठे लाश हमारी ना
क्यों पागल होरी सै तू कोए जावै पार हमारी ना
चारों तरफ खड़े लखावां कोए दीले यो रहबारी ना
वे म्हारे नेता कित से के उननै कोए खबर नहीं ।
कोए मखौल करें से मेरा कोए कसूता मारै तान्ना
कोए दिखावै दया घणी और कोए कहै मत दे आन्ना
दारू मैं पीग्या कोए कहै क्यों सोध्या नहीं रकाना
भांत भीत की चरचा होरी कोए नहीं खालो खान्ना
इन हालां अर इन चालां तो रणबीर होवै बसर नहीं ।
वार्ता - चमेली और चम्पा आपस में बात करती हैं-आगे क्या होगा ? इतनी ही देर में हरियाणा राज्य में चुनाव होने की वोषणा हो जाती है और कुड़की फिलहाल रोक दी जाती हैं। चम्पा व चमेली को थोड़ी राहत मिलती है मगर उनके दिल में भय ज्यों का त्यों है। बस उन्हें चुनाव का इन्तजार हैं, देखो उसके बाद क्या होता है ।
(31)
तर्ज : उस बैरण न ताह दिया धमका कै
रागनी
हम सबने कठ्ठे होकै यू मिलके नारा लाणा से ।
जन आन्दोलन के दम पै नया भारत हमे बणाणा से ।।
दिन दोगुनी रात चोगुनी या बढ़ती जा महंगाई
किते सूखा कितै बाढ़ मची से चारों तरफ तबाही
किसान कुमावै लुटता जा कीमत नै रोल मचाई
सबको शिक्षा सबको काम ना होती कितै सुनाई
मिलबन्दी तालाबन्दी तै मिलकै मजदूर बचाणा सै ।
यूनियन का अधिकार म्हारा खतरे में पड़ता जाने से
महिलाओं का हक समान तनखा थोड़ी मैं टकराने से
खेत मजदूर कानून बिना दुख सबतै ज्यादा ठाने से
भूमि सुधार की मांग के ऊपर अगर मगर क्यों लाने से
केन्द्र और राज्यों का रिश्ता हटकै हमनै उठाणा सै
चुनाव सुधार हों लागू या आवाज उठाई जागी
धर्म के ठेकेदारां की सही जड़ दिखलाई जागी
देश का एका कोण तोड़ता या बात बताई जागी
उग्रवाद का कोण हिम्माती या खोल सुनाई जागी
इन बातों की खातर जनता की अदालत आणा से ।
मजदूर किसानों के संग छात्र नौजवान भी कदम घरैगा
महिला पीछे ना रहैगी रैली का न्यारा ढंग फिरैंगा
इन्कलाब का नारा प्यारा सबके अन्दर उमंग भरैगा
शीशे के महलों मैं बैठे उन चोरों को दंग करेगा वै
ज्ञानिक सोच के दम पै सब अन्धकार मिटाणा से ।।
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