[21/10, 6:49 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: हर क्यान्हें मैं मिलावट होगी
हरयाणे का हाल सुणो के के होवै आज सुनाऊँ मैं ।
मिलावट छागी चारों कूट मैं पूरी खोल बताऊँ मैं।
बर्फी खोआ मिलें बनावटी भरोसा नहीं मिठाई का
नकली टीके तैं मरीज मरते भरोसा नहीं दवाई का
आट्टा और मशाले नकली ना भरोसा दाल फ्राई का
पानी प्रदूषित हो लिया भरोसा नहीं दूध मलाई का
कुछ भी खाँते डर लागै सोचें जाँ ईब के खाऊँ मैं।
बीज नकली खाद नकली ना बेरा पाटै असली का
डीजल पेट्रोल मैं मिलावट ना बेरा पाटै नकली का
कीट नाशक घुले पाणी मैं ना बेरा पाटै बेअक्ली का
कद नकली धागा टूटज्या ना बेरा पाटै तकली का
पाणी सिर पर कै जा लिया ना कति झूठ भकाऊं मैं।
राजनीति मैं मिलावट होगी नकली असली होगे रै
ये मिलावटी आज खेत मैं बीज बिघण के बोगे रै
माणस बी आज दो नंबर के नैतिकता सारी खोगे रै
असली माणस नकली के बोझ साँझ सबरी ढोगे रै
बैठया बैठया सोचें जाँ ईंनतै कैसे पिंड छुटाऊं मैं।
मिलावटी चीज तो बिकती यो दीन ईमान बिकता
माणस मरवाकै बी इनका पेट जमा नहीं छिकता
मिलावट के अन्धकार मैं कोए कोए बस दिखता
जनता एकता के आगै यो मुश्किल नकली टिकता
रणबीर जतन करकै नै बंजर के मैं फूल उगाऊं मैं ।
21.10.2015
[21/10, 7:38 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: हमनै मार गई म्हंगाई, तमनै देवै नहीं दिखाई, मिलता कोनी पेट भराई,कोई तो सुणले पुकार।।
1)
चालीस फीसदी लोग रोज बीस रुपये के खर्चे
दस फीसद के चारों तरफ आज हो रहे चर्चे
तीस फीसद कीमतें बढ़ाई, कमेरयां की श्यामत आई, बढ़ी सबकी सै कठिनाई, कोई तो सुणले पुकार।।
2
छह दशमलव छह आठ या मुद्रास्फीति हुई सै
गरीब तो गरीब मध्यम वर्ग की बुरी हाल भई सै
चावल छब्बीस की आई, आट्टा अठाईस का भाई, या दूध पच्चीस की बताई, कोई तो सुणले पुकार।।
3)
जात गोत नात इलाके पै आज या जनता भिड़ाई
साम्प्रदायिकता सोच समझ देश के अंदर फैलाई
फासीवाद की दे गूंज सुनाई, जो बोलै उसकी रेल बनाई, बहु विविधता खोसी चाही, कोई तो सुणले पुकार।।
4)
फीस स्कूल कालेजों की आसमानों पै चढ़ी जाकै
भगवान कित सोग्या देख जरा सी नजर उठाकै
बिना भोजन बीमारी छाई, असप्तालां मैं नहीं दवाई, रणबीर क्यों बढ़ी बुराई, कोई तो सुणले पुकार।।
[21/10, 8:32 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: उनके घरां मनै दिवाली म्हारै मनै यो दीवाला क्यूं
नाज के गोदाम भरे हमनै म्हारे मुंह ना निवाला क्यूं
1
एक कानहिं साइनिंग दूजे कान्हीं सफरिंग रहते रै
वे ऐश करैं मौज उड़ावैं क्यों सफरिंग दुख ये सहते रै
यो इतना अंतर क्यों होग्या म्हारे नेता क्या कहते रै
उनके बालक खाते पीते म्हारयां की आंख्या आंसू बहते रै
मनै भगवान आकै नै बतादे यो रोप दिया चाला क्यूं।।
2
अंतर उनके म्हारे बीच का यो दिन दिन बढ़ता जावै सै
खैर खांसी का भी वो तै अपोलो मैं इलाज करावै सै
म्हारे बरगा सरकारी मैं धक्के भीड़ के उड़ै खावै सै
उनके सकूल तो पांच सितारा आड़े मास्टर ना पावै सै
मेहनत म्हारी अर ऐश उनकी हुया गुड़ का राला क्यूं।।
3
पहले कर्मों का भोग रहे सो ऐसा वो हमें फरमाते हैं
इसका आगे फल मिल जायेगा रोजाना ही बहकाते हैं
यो जन्म तो मिथ्या बंदे वे भजनों में रोजाना ऐसा गाते हैं
हम बिना सोचे और समझे उनकी बहका में आ जाते हैं
इसपै सवाल नहीं सैं ठाणे यो खींच दिया पाला क्यूं।।
4
धरती जमा निचोड़ दई अंधा धुंध इसका भोग करते
कुदरत खुद पढ़न बिठा दी नाम इसका म्हारै धरते
बाली मैं सबकै साहमी देखे बुश दुनियां तैं मुकरते
पृथ्वी उप्पर संकट ल्याये वे इसकी नहीं हां भरते
कहै रणबीर बरोने आला यो बैरी म्हारा रुखाला क्यूं।।
[21/10, 9:51 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: भंवरी बाई
सारे धोखा देगे उसनै कसम खाना बेकार गया
बर्तावा देख गाम का उसका मन हो लाचार गया
1
खुला मुकद्दमा चला उसपै आरोप पत्र सुनाया था
औरत होकै करै सामना उसपै यो दोष लगाया था
कुल्टा कहकै खारिज करदी भूंडी ढाल दबाया था
न्यों बोले बदनाम होगे क्यों मामला यो ठाया था
हुक्म दिया चुप रैहज्या नहीं तो हो बहिष्कार गया।।
2
हिम्मत कोन्या हारी वा जुल्मी तैं उनै लड़ना चाहया
इज्जत बिगाड़ बीर की यो पुराना हथियार चलाया
मरूं इतनै करूं सामना भंवरी बाई नै बीड़ा ठाया
घर आले नै धीर बंधाई पूरा उसका साथ निभाया
होंसला देख भंवरी का सोच मैं पड़ परिवार गया।।
3
थाने मैं रपट लिखावन भंवरी बाई चाल पड़ी
सारे गाम की महिला देखैं सभी उड़े लाचार खड़ी
देख नजारा भंवरी के मन मैं उठी थी झाल बड़ी
रानी झांसी याद आई वा हो घोड़े पै असवार लड़ी
थानेदार भी हंसया उसपै फेर हो कड़वा व्यौहार गया।।
3
न्योँ बोल्या झूठ बोलती इज्जतदारों नै बदनाम करै
नीच जात की औरत हो कै मत ईसा कसूता काम करै
रामकरण न्यामी गिरामी सै क्यों झूठा इल्जाम धरै
चाचा भतीजा दोनों का क्यों खामखा तों नाम धरै
कौन गवाह सै तेरा जो कहदे हो ब्लातकार गया।।
4
सुनकै सुन्न होगी भंवरी फेर होंसला करकै बोली
ब्लातकार का गवाह चाहो मेरी काया सुनकै डोली
साच्ची साच बताई सारी घुंडी बात की सै खोली
थानेदार नै दूसरे कमरे मैं पीस्यां की थैली तोली
कहै रणबीर ज्यां करकै हो पात्थर थानेदार गया।।
[21/10, 10:03 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: भटेरी गांव की भंवरी बाई, संघर्ष की जिनै राह दिखाई,सारे देश मैं छिड़ी सै लड़ाई, साथ मैं चालो सारी बहना।।
1
साथिन भंवरी नहीं अकेली हम कसम आज उठाते सारे
बाल विवाह की बची बुराई इसके खिलाफ जंग चलाते सारे
जालिमों की क्यों ज्यान बचाई, कचहरी क्यों मदद पै आई, सब छिपा रहे हैं सच्चाई,भंवरी साथिन पुकारी बहना।।
2
देकर झूठी दलीलें देखो बलात्कारियों को बचाते क्यों
परम्परा का ढोंग रचाकर असल सच्चाई को दबाते क्यों
भंवरी ने सही आवाज उठाई,जुल्मी चाहते उसे दबाई,समझ गई भरतो भरपाई, भंवरी नहीं बिचारी बहना।।
3
इस तरह से नहीं झुकेंगी जुल्मो सितम से टकरायेंगी
परम्परा की गली सड़ी जंजीरें आज हम तोड़ बगायेंगी
भटेरी ने नई लहर चलाई, समता की है पुकार लगाई, जयपुर में हूंकार उठाई, यह जंग रहेगी जारी बहना।।
4
फासीवाद का खूनी चेहरा इससे हरगिज ना घबरायेंगी
आगे बढ़े हैं कदम हमारे हम नया इतिहास बनायेंगी
रणबीर सिंह ने कलम चलाई, अपने डिक्ल की बात बताई,सच की हुई जीत दिखाई, ना सेखी है बघारी बहना।।
[21/10, 9:09 pm] Dr. Ranbir Singh Dahiya: छांती जावै पूरे देश मैं आज कमर तोड़ महंगाई रै ।।
सरसों तेल फल सब्जी म्हंगे घणी हाहाकार मचाई रै ।।
1
आसमान चढ़े इलाज के खर्चे दवाई भी घणी म्हंगी होगी
रेल किराए बढ़गे बस भाड़े गरीबों की आत्मा रोगी
बिजली बिलों का औड़ नहीं किताबों की कीमत बढ़ाई रै ।।
2
पहलमै जिंदगी मुश्किल थी इब यो दबाव बढ़या देखो
गरीबों की बदहाली बढ़गी कर्जे पै कर्जा चढ्या देखो
धक्के खवाए बेरोजगारी नै ना कितै होवै इब सुनाई रै ।।
3
महंगाई की मार नै आज मध्यमवर्ग भी चपेट लिया
कोरोना लॉकडाउन नै अचानक सबको ही लपेट लिया
बदइन्तजामी कारण कईयों नै अपनी ज्यान गंवाई रै ।।
4
टैक्स बढ़ा बढ़ा कै नै सरकार खजाने भारती देखो रै
लुटा खजाने पूंजीपतियों पै उनको राजी करती देखो रै
रणबीर सिंह कमेरे के दम पै लुटेरे नै मौज उड़ाई रै।।
[22/10, 6:53 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: सबका देश हमारा देश
सबका हरयाणा हमारा हरयाणा
मशीन नै तरीके बदले खेत क्यार की कमाई के ।।
गाड्डी की जागां या बाइक बदलाव दीखैं पढ़ाई के ।।
बाइक उप्पर चढ़कै नै छोरा खेत मैं जावै देखो
ज्वार काट खेत म्हां तैं भरौटा बणा छोड्यावै देखो
भरौटा ल्यावां ट्रेक्टर मैं दिन गए सिर पै ढवाई के।1।
जिसकै ट्रेक्टर कोण्या उड़ै आज झोटा बुग्गी आगी रै
घरके काम गैल छोटा बुग्गी या औरत नै खागी रै
घणखरे काम औरत जिम्मै मर्द के काम ताश खिलाई के।2।
प्रवासी मजदूर पै कई का टिक्या खेत क्यार का काम
म्हणत तैं घिन्न होगी चाहवै चौबीस घण्टे आराम
दारू बीमारी घर घर मैं आगी करे हालात तबाही के ।3।
सबका हरियाणा अपना ल्याकै भाईचारा बणावांगे
मानवता का झंडा हरेक गाम शहर पहोंचावांगे
कहै रणबीर बरोने आला छंद लिखै ना अंघाई के ।4।
[22/10, 6:53 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: आज का माणस
आज का माणस किसा होग्या सारे सुणियो ध्यान लगाकै
स्वार्थ का कोए उनमान नहीं देख्या ज़िब नजर घुमाकै
चाट बिना भैंस हरियाणे की दूध जमा ना देवै देखो
इसका दूध पी हरियाणवी खुबै ए रिश्वत लेवै देखो
भगवान इणनै सेहवै देखो यो बैठया घर मैं आकै।
और किसे की परवाह कोण्या अपने आप्पे मैं खोया
दूज्यां की खोज खबर ना हमेशा अपना रोना रोया
कमजोर कै ताकू चभोया बैठै ठाड्डे की गोदी जाकै।
दूसरयाँ नै ख़त्म करकै अपना व्यापर बढ़ावै देखो
चुगली चाटी डांडी मारै सारे हथकण्डे अपनावै देखो
दगाबाज मौज उड़ावै देखो चौड़ै सट्टे की बाजी लाकै।
मारो खाओ मौज उड़ाओ इस लाइन पै चाल पड़या
हाथ ना आवै जै आवै तो होवै रिश्वत कै तान खड़या
रणबीर सिंह नै छंद घड़या सच्चाई का पाळा पाकै।
[22/10, 9:38 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: क्या क्यों और कैसे बिना
क्या क्यों और कैसे बिना मिलै दुनिया का सार नहीं।।
ज्ञान विज्ञान के प्रकाश बिना होवै दूर अन्धकार नहीं।।
नीले आसमान मैं क्यों ये चकमक करते तारे भाई
क्यों इन्द्रधनुष के म्हां ये रंग बिरंगे प्यारे भाई
मोर के पंख न्यारे भाई क्यों लाया कदे विचार नहीं।।
तोता कोयल फर फर करकै क्यूकर गगन मैं उडज्यां
क्यों ना बिल्ली के तन पै भी पंख मोर के उगज्यां
क्यों मकड़ी जाला बुणज्यां म्हारी समझ तैं बाहर नहीं।।
क्यों जुगनू की कड़ के उपर जलती हुई मशाल भाई
क्यों गैंडे अर हाथी की पीठ सै उनकी ढाल भाई
विज्ञान के ये कमाल भाई झूठा इसका प्रचार नहीं।।
क्यों फूल गुडहल का हो सुर्ख एक दम लाल कहैं
क्यों झिलमिल करता ये मकड़ी का जाल कहैं
विज्ञान ठावै सवाल कहैं या माया अपरम पार नहीं।।
आम नीम अर इमली क्यों हमनै खड़े दिखाई दें
क्यों समुन्द्र मैं ऊंची नीची उठती लहर दिखाई दें
मछली क्यों रंगीन दिखाई दें जानै सै नम्बरदार नहीं।।
जुबां पै लाग्या ताला यो हमनैं पड़ै तोड़ना सुनियो
सवालां का यो पिटारा तो हमनै पड़ै खोलना सुनियो
हमनै पड़ै बोलना सुनियो क्यों बिना म्हारा उद्धार नहीं।।
[23/10, 6:08 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: बिजली कर्मचारी हड़ताल
एस्मा लगाकै सरकार कर्मचारी आंदोलन दबावै देखो
निजीकरण करकै बिजली का जनता नै लुटवावै देखो
ठेके पै देकै बिजली विभाग जनता के दुःख घने बढाये
बिजली बिल अनतोले देखो लोगां ताहिं जाकै पकड़ाये
मानस धक्के खावैं दफ्तरां के बिल ठीक नहीं हो पावै देखो
सारी मांग कर्मचारियों की पूरी करने आली लागैं देखो
बिजली रेट मत बढ़ाओ जनता की मांग ये उठावैं देखो
बिजली के रेट बढ़ाकै या आज जनता नै सतावै देखो ।
कर्मचारी एकता जिंदाबाद या जनता मदद मैं आवैगी
दुखी होरी सै बहोत घणी सुर मैं सुर जनता मिलावैगी
लडां मिलकै नै आज लड़ाई संघर्ष सफलता पावै देखो।
आज आर पार की लड़ाई निजीकरण कै खिलाफ लडांगे
नहीं डरां इस एस्मा तै अपनी माँगाँ पर
कति अडांगे
रणबीर करो होंसला एकबै सरकार झुक ज्यावै देखो ।
[23/10, 8:31 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: म्हारा हरियाणा
म्हारा हरियाणा दो तरियां आज दुनिया के म्हं छाया।।
आर्थिक उन्नति करी पर लिंग अनुपात नै खाया।।
1
छांट कै मारैं लड़की पेट मैं समाज के नर नारी
समाज अपने कसूर की माँ कै लावै जिम्मेदारी
जनता हुई सै हत्यारी पुत्र लालसा नै राज जमाया।।
आर्थिक उन्नति करी पर लिंग अनुपात नै खाया।।
2
औरत औरत की दुश्मन यो जुमला कसूता चालै
ना आदमी आदमी का दुश्मन यो रोजै ऐ घर घालै
समाज की बुन्तर सालै यो हरियाणा बदनाम कराया ।।
आर्थिक उन्नति करी पर लिंग अनुपात नै खाया।।
3
वंश की पुराणी परम्परा पुत्र नै चिराग बतावैं देखो
छोरा जरूरी होना चाहिए छोरियां नै मरवावैं देखो
जुल्म रोजाना बढते जावैं देखो सुनकै नै कांपै काया।।
आर्थिक उन्नति करी पर लिंग अनुपात नै खाया।।
4
अफरा तफरी मैच रही महिला कितै महफूज नहीं
जो पेट मार तैं बचगी उनकी समाज मैं बूझ नहीं
आती हमनै सूझ नहीं रणबीर सिंह घणा घबराया।।
आर्थिक उन्नति करी पर लिंग अनुपात नै खाया।।
[23/10, 8:32 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: कठिन दौर
यो समाज हरियाणा का कठिन दौर तैं गुजर रहया।।
आर्थिक विकास खूब किया सामाजिक तैं मुकर रहया।।
1
हरया भरया हरियाणा सै जित दूध दही का खाणा
दूध बेच दिया इसा आड़े पूत बेच दिया का गाणा
दूध भी बिकता पूत बिकै आज चेहरा उतर रहया।।
आर्थिक विकास खूब किया सामाजिक तैं मुकर रहया।।
2
गैंग रेप बलात्कार बढ़गे लिंग अनुपात सिर झुकावै
खून की कमी बढ़ी हरियाणा की महिलावां मैं पावै
छोरियां पर कसो शिकंजा समाज मैं हो जिकर रहया।।
आर्थिक विकास खूब किया सामाजिक तैं मुकर रहया।।
3
एक सिक्के के दो पहलू एक देख कै नहीं काम चलै
महिला पुरुष दो पहिये एक पर गाड्डी क्यूकर हिलै
पहलाँ बढ़िया खाण पाण था यो भूल बिसर रहया।।
आर्थिक विकास खूब किया सामाजिक तैं मुकर रहया।।
4
कीट नाशकों नै नाश करया म्हारे जीवन मैं रूलगे
म्हारे खाणे और पीणे मैं आज जहर कसूते घुलगे
कहै रणबीर सिंह सोचो क्यों ना बढ़िया सफर रहया।।
आर्थिक विकास खूब किया सामाजिक तैं मुकर रहया।।
[24/10, 6:36 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: वार्ता--
एक गाँव में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एक दलित महिला किरणलता से बात करती है। जनसंख्या के बढ़ने को लेकर बातचीत होती है। जब किरणलता समझ जाती है कि बहनजी आप्रेशन के बारे में पूछ रही हैं तो वह क्या जवाब देती है---
जिब फुर्सत होज्या तमनै, बात ध्यान तै सुणियो मेरी।।
भिड़ी धरती हो ज्यावै सै, उठती नै आवै मनै अँधेरी।।
1
खेत मजदूर बाप सै मेहनत करकै करै गुजारा
जितनी ढाल की खेती होवै उसपै सै ज्ञान का भण्डारा
फल सब्जी नाज उगावण मैं, किसान कै लाता साहरा
दिहाड़ी पै फेर लाठा बाजै संकट हो ज्या घणा भारया
घुट घुट कै शन करां सां ये कड़वी बात भतेरी।।
भिड़ी धरती हो ज्यावै सै, उठती नै आवै मनै अँधेरी।।
2
सात ब्लाक जन्मे थे माता नै,पांच भाण अर दो भाई
ताप मारग्या एक जणे नै, भाण मरगी बिना दवाई
दूजी नै बैरन टीबी चाट गई ,घर मैं मची तबाही
बची दस्ताँ तैं मरण तैं तीजी राम जी के घर तैं आई
सात मां तैं तीन बचे मुश्किल तैं , इसी घली राम की घेरी
भिड़ी धरती हो ज्यावै सै, उठती नै आवै मनै अँधेरी।।
3
याणी सी मैं ब्याह दी थी पति खेत मजदूर मदीणे का
उनका हाल और बुरा देख्या ब्यौन्त नहीं खाणे पीणे का
चाह गेल्याँ रोटी घूँट कै खावैं,हाल नहीं सै जीणे का
ठाडे की सै दुनिया हे बेबे,के सै म्हारे बरगे हीणे का
क्यूकर जीवां सुख चैन तै , चिंता खावै या शाम सबेरी।।
भिड़ी धरती हो ज्यावै सै, उठती नै आवै मनै अँधेरी।।
4
कई बै सोचूँ बालक कम हों , ना ठुकता कालजा मेरा
कितने बचैं कितने मरेंगे , नहीं इसका पाटता बेरा
सारे मिलकै करैं कमाई, जिब होवै सै म्हारा बसेरा
मनै समझ नहीं आवै क्यूकर , कैहणा मानूँ मैं तेरा
रणबीर सिंह धोरै बूझांगे , चाल मत करिए देरी।।
भिड़ी धरती हो ज्यावै सै, उठती नै आवै मनै अँधेरी।।
[25/10, 6:25 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: सांझी बिरासत
कोणार्क और एजन्ता एलोरा म्हारी खूबै श्यान बढ़ावैं।
चार मीनार कुतुब ताज महल ये च्यार चांद लगावैं।।
1
दोनूं भारत की विरासत इसतै कौण आज नाट सकैं
साहमी पड़ी दीखै सबनै कौण इस बात नै काट सकैं
जो पापी तोल घाट सकैं म्हारी संस्कृति कै बट्टा लावैं।।
चार मीनार कुतुब ताज महल ये च्यार चांद लगावैं।।
2
कालिदास बाणभट्ट रवीन्द्र नाथ नै श्यान बढ़ाई सै
खुसरो गालिब फिराक हुये सैं जिनकी कला सवाई सै
न्यारे-न्यारे बांटै जो इननै भारत के गछार कुहावैं।।
चार मीनार कुतुब ताज महल ये च्यार चांद लगावैं।।
3
जयदेव कुमार गंधर्व भीम सेन जोशी जसराज दिये
बड़े गुलाम अली मियां बिस्मिल्ला खान नै कमाल किये
एक दूजे नै जो नीचा कहते वे घटियापन दिखावैं।।
चार मीनार कुतुब ताज महल ये च्यार चांद लगावैं।।
4
सहगल हेमन्त मन्ना और लता गायकी मैं छागे ये
रफी नूर जहां नौशाद साथ मैं सब जनता नै भागे ये
रणबीर बरोने आले कान्ही ये हिन्दु मुस्लिम लखावैं।।
चार मीनार कुतुब ताज महल ये च्यार चांद लगावैं।।
[25/10, 6:26 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: रागनी
1
बिना बात के रासे मैं इब बख्त गंवाना ठीक नहीं।।
अपने संकट काटण नै यो जात का बाणा ठीक नहीं ।।
1
बेरोजगारी गरीबी महंगाई हर दिन बढ़ती जावै सै
जो भी मेहनत करने आला दूना तंग होता आवै सै
जब हक मांगै अपना वो तान बन्दूक दिखावै सै
कितै भाई कितै छोरा उसकी बहका मैं आवै सै
खुद के स्वार्थ मैं देश कै बट्टा लाणा ठीक नहीं ।।
अपने संकट काटण नै यो जात का बाणा ठीक नहीं ।।
2
म्हारी एकता तोड़ण खातिर बीज फूट का बोवैं सैं
मैं पंजाबी तूँ बंगाली जहर इलाके का ढोवैं सैं
मैं हरिजन तूँ जाट सै नश्तर कसूता चुभोवैं सैं
आपस कै महं करा लड़ाई नींद चैन की सौवैं सैं
इनके बहकावे मैं आपस मैं भिड़ जाणा ठीक नहीं।।
अपने संकट काटण नै यो जात का बाणा ठीक नहीं ।।
3
म्हारी समझ नै भाइयो दुश्मन ओछी राखणा चाहवै
म्हारे सारे दुखां का दोषी यो हमनै ए आज ठहरावै
कहै खलकत घणी बाधू होगी इसनै इब कौन खवावै
झूठी बातां का ले सहारा उल्टा हमनै ए वो धमकावै
इन सबके बहकावे मैं कमेरे का आणा ठीक नहीं।।
अपने संकट काटण नै यो जात का बाणा ठीक नहीं ।।
4
हमनै दूर रहण की शिक्षा दे राजनीत तैं राज करै
वर्ग संघर्ष की राही बिना इब कोण्या काज सरै
कट्ठे होकै देदयाँ घेरा दुश्मन भाजम भाज मरै
झूठे वायदां गेल्याँ म्हारा क्यूकर पेटा आज भरै
आपस मैं मरैं यारे प्यारे इसा तीर चलाणा ठीक नहीं।।
अपने संकट काटण नै यो जात का बाणा ठीक नहीं ।।
5
आज समझलयां काल समझलयां समझना पड़ै जरूरी
दोस्त दुश्मन का फर्क समझलयां या सै आज मजबूरी
सही गलत का अंदाज समझलयां ना चालै जी हजूरी
मेहनतकश भाई समझलयां झोड़ कै झूठी गरूरी
रणबीर सिंह की बातां का मखौल उड़ाणा ठीक नहीं ।।
अपने संकट काटण नै यो जात का बाणा ठीक नहीं ।।
2
पंजाब में खालिस्तान का दौर और फिर सिखों के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे। उसी दौर की लिखी एक रागनी :--
बुरा हाल देख देश का आज मेरा जिगरा रोया।।
चारों तरफ मची तबाही खड़्या हाथ कालजा होया।।
1
मेल मिलाप खत्म हुया पकड़या राह तबाही का
सिख हिन्दू का गल काटै हिन्दू सिख भाई का
मारकाट बिना बात की यो सै काम बुराई का
पर फिकर सै किसनै देखै खेल जो अन्याई का
माता खड़ी बिलख रही जिगर का टुकड़ा खोया।।
चारों तरफ मची तबाही खड़्या हाथ कालजा होया।।
2
पंजाब मैं लीलो लुटगी चमन दिल्ली मैं रोवै सै
धनपत तूँ कड़ै डिगरग्या चमन गली गली टोह्वै सै
यो सारा चमन उजड़ चल्या तेरा साज कित सोवै सै
ना मन की बुझनिया कोय लीलो बैठ एकली रोवै सै
कित तैं ल्याऊं लख्मीचंद जिसनै सही छंद पिरोया।।
चारों तरफ मची तबाही खड़्या हाथ कालजा होया।।
3
चौड़े कालर फुट लिया यो भांडा इस कुकर्म का
धर्म पै हो लिए नँगे ना रहया काम शर्म का
लाजमी हो तोड़ खुलासा इस छिपे हुए भ्रम का
घड़ा भर लिया पाप का यो खुलग्या भेद मरम का
देखी रोंवती हीर मनै जन सीने मैं तीर चुभोया।।
चारों तरफ मची तबाही खड़्या हाथ कालजा होया।।
4
इसे कसूते कर्म देखकै सूख गात का चाम लिया
प्रीत लड़ी बिखर गई अमृता नै सिर थाम लिया
शशि पन्नू की धरती पै कमा कसूता नाम लिया
भगत सिंह का देश भाई हो बहोत बदनाम लिया
असली के सै नकली के सै यो सच गया पूरा धोया ।।
चारों तरफ मची तबाही खड़्या हाथ कालजा होया।।
5
फिरकापरस्ती दिखै सै इन सब धर्मां की जड़ मैं
लुटेरा राज चलावै सै बांट कै धर्मां की लड़ मैं
जितनी ऊपर तैं धौली दीखै कॉलस उतनी धड़ मैं
जड़ दीखें गहरी हों जितनी गहरी हों बड़ मैं
या धर्म फीम इसी खाई दुनिया नै आप्पा खोया।।
चारों तरफ मची तबाही खड़्या हाथ कालजा होया।।
6
सिर ठाकै जीणा हो तै धर्म राजनीति तैं न्यारा हो
फेर मेहनत करणीया का आपस मैं भाईचारा हो
फेर नहीं कदे देश मैं लीलो चमन का बंटवारा हो
कमेरयां की बनै एकता ना चालै किसे का चारा हो
रणबीर बी देख नजारा ठाडू बूक मार कै रोया।।
चारों तरफ मची तबाही खड़्या हाथ कालजा होया।।
3
भूख
भूख बीमारी घणी कलिहारी कहैं इसका कोये इलाज नहीं।।
बाकी सारी टहल बजारी या करै मानस का लिहाज नहीं।।
1
भूख रूआदे भूख सुआदे भूख बिघन का काम करै
भूख सतादे भूख मरादे भूख ये जुल्म तमाम करै
कितना सबर इंसान करै उनकै माचै खाज नहीं ।।
बाकी सारी टहल बजारी या करै मानस का लिहाज नहीं।।
2
शरीर बिकादे खाड़े करादे भूख कति बर्बाद करै
आछे भुन्डे काम करादे मानस हुया बर्बाद फिरै
आज कौन किसे नै याद करै दीखै कोये हमराज नहीं
बाकी सारी टहल बजारी या करै मानस का लिहाज नहीं।।
3
भूख पैदा करै भिखारी पैदा बड़े बड़े धनवान करै
एक नै भूख दे करकै दूजा पेट अपना बेउन्मान भरै
एक इत्तर मैं स्नान करै दूजे धोरै दो मुट्ठी नाज नहीं ।।
बाकी सारी टहल बजारी या करै मानस का लिहाज नहीं।।
4
लूट नै दुनिया भाइयो दो पाल्यां बिचाळै बांट दई
मेहनत करने आला भूखा मक्कारी न्यारी छाँट दई
लूट नै सच्चाई आँट दी रणबीर सुनै धीमी आवाज नहीं ।।
बाकी सारी टहल बजारी या करै मानस का लिहाज नहीं।।
4
रामजी
सबकी कथा सुनै रामजी मेरी बीती तूँ सुणले ।।
दूध का दूध पाणी का पाणी हंस बनकै तूँ चुणले ।।
1
दिन रात कमाऊं हाड तोड़कै क्यों दुखड़ा काल करै
या गर्मी शर्दी घाम खेत मैं खड़्या नया बबाल करै
नहीं इब तलक तनै बिचारया मारण का मत हाल करै
इब खोल बतादे सारी किस तरियां मनै कंगाल करै
सवा पांच का प्रसाद चढ़ाऊँ मेरी भी तूँ सुधले ।।
दूध का दूध पाणी का पाणी हंस बनकै तूँ चुणले ।।
2
मेहरबानी दूजी तरफ तेरी लोग खूब मौज उड़ावैं
कमाई में करण लागरया लूट वे जालिम ले ज्यावैं
मेरे पै काम तीस का करवाकै देकै आठ बहकावैं
पूंजी बनाकै मेहनत मेरी मनै डाकू चोर ठहरावैं
तूँ हिम्मात करै झूठ की बजा उसकी धुनले।।
दूध का दूध पाणी का पाणी हंस बनकै तूँ चुणले ।।
3
सस्ता लेकै महंगा देवैं नीति इसी चाल रहे सैं
देदे कै करज दाब लिया बिछा मेरे पै जाल रहे सैं
सारी धरती गहनै धरली बिकवा घर का माल रहे सैं
बतावैं इसमैं तेरी महिमा सब तरियां कर काल रहे सैं
भरोसे की इमारत ढह ली इसनै हट कै नै चिणले।।
4
कहैं तेरे हुक्म बिना तो एक पत्ता तक ना हिलता
सारी चीज तों बनावै मेरा हिस्सा क्यों ना मिलता
न्याकारी किसा सै तूँ मेरे बगीचे फूल ना खिलता
खुद मनै बतादे क्यों बेइमानां का राज ना गिरता
जड़ दीख ली तेरी रामजी किसाए जाल तूँ बुणले।।
दूध का दूध पाणी का पाणी हंस बनकै तूँ चुणले।।
5
भगवान तेरी टेक मैं नहीं किसे नै सुख पाया
धयान किया मोरध्वज नै सुत पै आरा धरवाया
प्रण पै हरिश चन्दर के जल उसपै था भरवाया
ध्यान लगाया द्रोपदी नै जा चीर सभा मैं खिंचवाया
रणबीर लगामी तोड़ चल्या अपने खाते मैं गिणले।।
दूध का दूध पाणी का पाणी हंस बनकै तूँ चुणले नै।।
[25/10, 6:29 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: नशा
नशे पत्ते का व्यापार,
बढ़ाती जावै सरकार,
इतनी कसूती मार ,
म्हारी समझ नहीं आवै।।
अफीम और हीरोइन का भारत गढ़ बताया
आज माफिया नशे पते का पूरी दुनिया मैं छाया
लत कसूती लगा दे यो,
नेता ने भी मरवा दे यो,
भुन्डे कर्म करव दे यो,
म्हारी समझ नहीं आवै
माफिया नशे पते का कई देशों में राज चलावै
सीआईए तैं मिलकै यो बहोत उधम मचावै
युवा जमा बर्बाद हों,
बहुत घणे फ़साद हों
कैसे नशे से आजाद हों,
म्हारी समझ नहीं आवै
एक तरफ दारू ठेके हर रोज खुलाए जावैं
दूजी तरफ नशा मुक्ति केंद्र रोज बनाए जावैं
जहर पिलाऊ विकास,
नहीं हमनै अहसास ,
विकास नहीं विनाश ,
नहीं म्हारी समझ मैं आवै।।
परिवार नै यो नशा खत्म पूरी तरियां कर दे
म्हारी जिंदगी अंदर यो जहर कसूता
भरदे
सच्ची लिखै सै रणबीर ,
सही खींचै सै तस्वीर ,
नशा मारदे सै जमीर
म्हारी समझ नहीं आवै।।
[25/10, 6:32 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: रामजी
सबकी कथा सुनै रामजी मेरी बीती तूँ सुणले ।।
दूध का दूध पाणी का पाणी हंस बनकै तूँ चुणले ।।
1
दिन रात कमाऊं हाड तोड़कै क्यों दुखड़ा काल करै
या गर्मी शर्दी घाम खेत मैं खड़्या नया बबाल करै
नहीं इब तलक तनै बिचारया मारण का मत हाल करै
इब खोल बतादे सारी किस तरियां मनै कंगाल करै
सवा पांच का प्रसाद चढ़ाऊँ मेरी भी तूँ सुधले ।।
दूध का दूध पाणी का पाणी हंस बनकै तूँ चुणले ।।
2
मेहरबानी दूजी तरफ तेरी लोग खूब मौज उड़ावैं
कमाई में करण लागरया लूट वे जालिम ले ज्यावैं
मेरे पै काम तीस का करवाकै देकै आठ बहकावैं
पूंजी बनाकै मेहनत मेरी मनै डाकू चोर ठहरावैं
तूँ हिम्मात करै झूठ की बजा उसकी धुनले।।
दूध का दूध पाणी का पाणी हंस बनकै तूँ चुणले ।।
3
सस्ता लेकै महंगा देवैं नीति इसी चाल रहे सैं
देदे कै करज दाब लिया बिछा मेरे पै जाल रहे सैं
सारी धरती गहनै धरली बिकवा घर का माल रहे सैं
बतावैं इसमैं तेरी महिमा सब तरियां कर काल रहे सैं
भरोसे की इमारत ढह ली इसनै हट कै नै चिणले।।
4
कहैं तेरे हुक्म बिना तो एक पत्ता तक ना हिलता
सारी चीज तों बनावै मेरा हिस्सा क्यों ना मिलता
न्याकारी किसा सै तूँ मेरे बगीचे फूल ना खिलता
खुद मनै बतादे क्यों बेइमानां का राज ना गिरता
जड़ दीख ली तेरी रामजी किसाए जाल तूँ बुणले।।
दूध का दूध पाणी का पाणी हंस बनकै तूँ चुणले।।
[25/10, 6:32 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: एक महिला की पुकार
खत्म हुई सै श्यान मेरी , मुश्किल मैं सै ज्याण मेरी, छोरी मार कै भाण मेरी, छोरा चाहिए परिवार नै।।
1
पढ़ लिख कै कई साल मैं ,मनै नौकरी थ्याई बेबे
सैंट्रो कार दी ब्याह मैं ,बाकि सब कुछ ल्याई बेबे
घर का सारा काम करूं, ना थोड़ा भी आराम करूं, पूरे हुक्म तमाम करूं, ओटूं सासू की फटकार नै।।
ख़त्म हुई सै---
2
पहलम मेरा साथ देवै था ,यो मेरे घर आला बेबे
दो साल पाछै छोरी होगी, फेर करग्या टाला बेबे
चाहवैं थे जांच कराई, कुन्बा हुया घणा कसाई, मैं बहोत घणी सताई, हे पढ़े लिखे घरबार नै।।
ख़त्म हुई सै---
3
जाकै रोई पीहर के म्हं , पर वे करगे हाथ खड़े
दूजा बालक पेट मैं जांच कराने के दबाव पड़े
ना जांच कराया चाहूँ मैं, पति के थप्पड़ खाऊँ मैं, जी चाहवै मर जाऊं मैं, डाटी सूँ छोरी के प्यार नै।।
खत्म हुई सै---
4
दूजी छोरी होगी सारा परिवार तण कै खड़्या हुया
नाराजगी और गुस्सा दिखे सबके मूंह जड़या हुया
किसकै धोरै जाऊं मैं, अपनी बात बताऊं मैं, रणबीर पै लिखवाऊं मैं,बदळां बेढंगे संसार नै।।
खत्म हुई सै----
[25/10, 6:32 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: झूठे वायदे
सारे आकै न्यों कहवैं हम गरीबां की नैया पार लगावां।
एक बै वोट गेर दयो म्हारी धरती पै सुरग नै ल्यावां।।
1
वोट मांगते फिरैं इसे जणु फिरैं सगाई आले रै
जीते पाछे ये जीजा और हमसैं इनके साले रै
पांच साल बाट दिखावैं एडी ठा ठाकै इन कान्हीं लखावां।।
एक बै वोट गेर दयो म्हारी धरती पै सुरग नै ल्यावां।।
2
नाली तै सोडा पीवण आले के समझैं औख करणिया नै
कार मैं चढ़कै ये के समझैं नंगे पांव धरणियां नै
देसी-विदेसी अमीर लूटैं इनके हुकम रोज बजावां।।
एक बै वोट गेर दयो म्हारी धरती पै सुरग नै ल्यावां।।
3
गरमी मैं भी जराब पहरैं के जाणैं दरद बुआई का
गन्डे पोरी नै भी तरसां इसा बोदें बीज खटाई का
जो लुटते खुले बाजार मैं उनका कौणसा देश गिणावां।।
एक बै वोट गेर दयो म्हारी धरती पै सुरग नै ल्यावां।।
4
फरक हरिजन और किसान मैं कौण गिरावै ये लीडर
ब्राह्मण नै ब्राह्मण कै जाणा कौण सिखावैं ये लीडर
गरीब और अमीर की लड़ाई रणबीर दुनिया मैं बतावां।।
एक बै वोट गेर दयो म्हारी धरती पै सुरग नै ल्यावां।।
[25/10, 6:33 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: नया हिन्दुस्तान*
लालच लूट खसोट बचै नहीं नया हिन्दुस्तान बसावांगे।
धर्म का जहर खेल रचै नहीं हम इसा इन्सान बणावांगे।।
*1*
नई तरां का इन्सान उभरै नई तरां के म्हारे समाज मैं
नई बात और बोल नये कहं जां नये सुर और साज मैं
बीमारी हो ही नहीं पावै विज्ञान नै लोक हित मैं लावांगे।।
धर्म का जहर खेल रचै नहीं हम इसा इन्सान बणावांगे।।
*2*
दोगली शिक्षा का खात्मा हो ज्ञान पिटारा फेर इन्सान होज्या
नाड़ काट मुकाबला रहै ना एक दूजे का सम्मान होज्या
नशा खोरी नहीं टोही पावै इसका नामो निशान मिटावांगे।।
धर्म का जहर खेल रचै नहीं हम इसा इन्सान बणावांगे।।
*3*
मुनाफा मंजिल नहीं रहै ना चारों तरफ घमासान मचै
लाठी की भैंस नहीं रहै ना हथियारां का फेर सम्मान बचै
प्रदूषण बढ़ता जा धरती शमशान होण तै बचावांगे।।
धर्म का जहर खेल रचै नहीं हम इसा इन्सान बणावांगे।।
*4*
महिला नै इन्सान समझै रीत खत्म हो दोयम दरजे की
नौजवानां नै मिलै सही रास्ता ना मार बचै इस करजे की
जात पात खत्म हो इन्सान बनां सारे के बिगुल बजावांगे।।
धर्म का जहर खेल रचै नहीं हम इसा इन्सान बणावांगे।।
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