आज हम देखें औरत की जो सही तस्वीर सखी।।
दिया समाज ने जो हमें उसको कहती तकदीर सखी।।
घर में खटना पड़ता मर्दों की नजर में मोल नहीं औरत भी समझे इसे किस्मत लगा सकी तोल नहीं
करती हम मखौल नहीं हमारी हालत है गंभीर सखी।।
घर खेत में काम करें जुताई और बुवाई करती बहना
चारा पानी झोटा बुग्गी दिन और रात मरती बहना
बैठी आहें भरती बहना समझें किस्मत की लकीर सखी।।
कैसा सलूक करते हमसे मालिक बंधवा का व्यवहार यहां
खाना दोयम कपड़ा दोयम मिले सारा दोयम संसार यहां
करोड़ों महिला बीमार यहां इलाज की नहीं तदबीर सखी।।
अहम फैंसले बिना हमारे मरद बैठ कर क्यों करते देखो
जुल्म ढाते भारी हम पर नहीं किसी से डरते देखो
हम नहीं विचार करते देखो तोडे़ं कैसे यह जंजीर सखी ।।
खुद चुपचाप सहती जाती मानें कुदरत का खेल इसको
सदियों से सहती आई समझें राम का मेल इसको
क्यों रही हो झेल ईसको मसला बहोत गम्भीर सखी।।
सदियों से होता ही आया पर किया मुकाबला है हमने
सिर धड़की बाजी लगा नया रास्ता अब चुना है हमने
जो सपना बुना है हमने होगा पूरा लिखे रणबीर सखी।।
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