Wednesday, 14 June 2017

ZORA SINGH

हरियाणवी रागनी
क्यूकर होगा ईब गुजारा , महँगाई नै चूस्या खून सारा, काल्लर कोरै खडया बिचारा, रोवै गरीब किसान रै।।
ठेके पै भाई धरती ले ली, 
बीज की बीज्जी थी कई थेली,
धक्का पेली कर खाद हिथाया, वो भी सारा नकली पाया, पर्ची ले दुकान पै आया, पर हाल्ली नहीं जुबान रै।।
व्यापारी लोग मजाक उड़ावै,
यों बिल नकली सै कुछ ना थ्याहवै,
ना पार बसावै जिब लाग्या धक्का, सुणकै रहग्या हक्का बक्का,यो बिल भी होसै कच्चा पक्का हो मेरे भगवान रै।।।
फेर सामणी पै आस टिकाई.,
बाड़ी बोई किमे जीरी लाई,
आईं कोन्या मानसून बैरण, पाणी बिन लाग्गी जीरी ठहरण, कपास नै खाग्यी सूण्डी जहरण कति बिगड़ लिया ज्ञान रै।।।।
ईब्बे कोन्या खत्म होई कहाणी,
कई बै मोल के लाये पाणी,
खिंचाताणी कर फसल पकाई , सोच्या करी होई मेहनत रंग ल्याई, घणी जोर की बारिश आई, मूंधे पडग्ये धान रै।।।।।
जोरासिंह सब टूटल्यी आस,
खाण नै ल्याया फेर सल्फास,
नाश हो लिया जब जी ना लिकडया, एक लाख का लाग्या रगडा, डॉक्टर गैल्यां कर लिया झगड़ा, बचा लई क्यूँ ज्यान रै।।।।।।

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