Monday, 27 April 2015

हरी के हरियाणे मैं

हरी के हरियाणे मैं
श्यामत म्हारी आई , कोन्या दीखै राही , चढ़ी सै करड़ाई
हरी के हरियाणे मैं ॥
बोहर और भालौठ बताये , रूड़की किलोई संग दिखाए
कर्जा चढ्ज्या भारी , आया बैंक सरकारी , डूंडी पीटगी म्हारी
हरी के हरियाणे मैं ॥
धरती चढ़गी लाल स्याही मैं , फसल आयी म्हारी तबाही मैं
आज घंटी खुड़की , किलोई चाहे रूड़की , होवैगी म्हारी कुड़की
हरी के हरियाणे मैं ॥
आमदन या घाट लिकड़ती , लागत तो  बांधू लानी पड़ती
सब्सिडी खत्म म्हारी , देई घरां मैं बुहारी , श्यामत आगी म्हारी
हरी के हरियाणे मैं ॥
महंगी होन्ती जा सै  पढ़ाई रै , रणबीर मरै  बिना दवाई रै
दुःख होग्या  भारया , मन बी होग्या खारया , नहीं रास्ता पारया
हरी के हरियाणे मैं ॥   

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