Monday, 27 April 2015

राम क्यूँ आंधा होग्या

चारों तरफ तैं मैं  घेरया , सांस मुश्किल तैं लेरया
 कति निचोड़ कै गेरया , राम क्यूँ आंधा होग्या ॥
भावां पर निगाह टिकी , बधावन की आस किमै
बेरा  ना कितना बढ़ेँगे , आवैगी मनै सांस किमै
दीखै फंदा यो फांसी का , बखत नहीं सै हांसी का
दौरा पड़ै सै खांसी का , राम क्यूँ आंधा होग्या॥
पूरा हांगा ला हमनै दिन रात खेत क्यार कमाया रै
मंडी मैं जइब लागी बोली बहोत घणा घबराया रै
ना मेरी समझ मैं आया , नहीं किसे नै समझाया
पग पग पै धोखा खाया , राम क्यूँ आंधा होग्या॥
धरती बैंक आल्यां कै लाल श्याही मैं चढ़गी लोगो
बीस लाख मैं एक किल्ला कुड़की कीमत बढ़गी लोगो
बीस लाख मैं के करूंगा , किस डगर पै पैर धरूंगा
दो चार सल्ल मैं डूब मरूंगा , राम क्यूँ आंधा होग्या॥
मेरे बरगे भाई सल्फास की गोली खा खा मरते देखो
जी मेरा  बी करता खाल्यूं , आज गधे खेती चरते देखो
नहीं देखूं मैं कुआँ झेरा ,यो  रणबीर सिंह साथी मेरा
सघर्ष चलवांगे चौफेरा , राम क्यूँ आंधा होग्या॥ 

दिल्ली आल्यो

दिल्ली आल्यो
गिणकै दिये सैं बोल तीन सौ साठ दिल्ली आल्यो
यो दुखी किसान देखै थारी बाट दिल्ली आल्यो
ज्यान मरण मैं आरी क्यों तम गोलते कोन्या 
या फसल हुई बर्बाद क्यों तम तोलते कोन्या 
कति बोलते कोन्या बनरे लाट दिल्ली आल्यो
इसी नीति अपनाई किसान यो बर्बाद करया
घर उजाड़ कै म्हारा अडाणी का आबाद करया
घना यो फसाद करया तोल्या घाट दिल्ली आल्यो
म्हारे बालक सरहद पै अपनी ज्यान खपावैं
थारे घूमैं जहाझयां मैं म्हारे खेत मैं धक्के खावैं
भूख मैं टीम बितावैं थारे सैं ठाठ दिल्ली आल्यो
धरती म्हारी खोसण की क्यों राह खोल दई
गिहूं धान क्यों म्हारी बिकवा बिन मोल दई
मचा रोल दई गया बेरा पाट दिल्ली आल्यो
रणबीर
27.4.2015

बदेशी का बीज पर कब्जा

बदेशी का बीज पर कब्जा 
अपणा बीज क्यूकर बनावां सोचो मिलकै सारे रै।।
कारपोरेट नै करया कब्जा धरती पै दे कै मारे रै ।।
देशी बीज पुराणे म्हारे हटकै ढूंढ कै ल्याणे होवैंगे
कसम खावां मोनसेंटो के बीज कदे नहीं बोवैंगे 
सब्जी मैं कारपोरेट छाया इब दूजे बीजां पै छारे रै।।
हर साल नया बीज ल्यो इसा कम्पनी का प्रचार रै
बीज की कीमत बढ़ाकै लूटैं किसान घना लाचार रै
कीटनाशक अनतोले बरते चोए के पाणी खारे रै।।
खेती म्हारी जहर बनादी लागत इसकी बढ़ती जा
बदेशी कम्पनी रोजाना या म्हारे सिर पै चढ़ती जा
खेती बाड़ी खून चूसरी आज कर्जे नै पैर पसारे रै।।
भाइयो गाम म्हारा रै यो बीज भी हो म्हारे गाम का
बदेशी की लूट घटैगी यो मान बढ़ैगा सारे गाम का
रणबीर बीज अपणा हो बचै फेर नफे करतारे रै।।
27.4.2015

हरी के हरियाणे मैं

हरी के हरियाणे मैं
श्यामत म्हारी आई , कोन्या दीखै राही , चढ़ी सै करड़ाई
हरी के हरियाणे मैं ॥
बोहर और भालौठ बताये , रूड़की किलोई संग दिखाए
कर्जा चढ्ज्या भारी , आया बैंक सरकारी , डूंडी पीटगी म्हारी
हरी के हरियाणे मैं ॥
धरती चढ़गी लाल स्याही मैं , फसल आयी म्हारी तबाही मैं
आज घंटी खुड़की , किलोई चाहे रूड़की , होवैगी म्हारी कुड़की
हरी के हरियाणे मैं ॥
आमदन या घाट लिकड़ती , लागत तो  बांधू लानी पड़ती
सब्सिडी खत्म म्हारी , देई घरां मैं बुहारी , श्यामत आगी म्हारी
हरी के हरियाणे मैं ॥
महंगी होन्ती जा सै  पढ़ाई रै , रणबीर मरै  बिना दवाई रै
दुःख होग्या  भारया , मन बी होग्या खारया , नहीं रास्ता पारया
हरी के हरियाणे मैं ॥   

हरियाणा के समाज मैं

हरियाणा के समाज मैं 
किसानां की मर आगी हरियाणा के समाज मैं ॥ 
धरती जरूरी जागी हरियाणा के समाज मैं ॥ 
रैहवण नै मकान कड़ै खावण नै नाज नहीं 
पीवण नै पाणी कड़ै  बीमारी का इलाज नहीं 
महँगाई जमा खागी हरियाणा के समाज मैं ॥ 
कपास पीटी धान पीट दिया गेहूं की बारी सै 
सल्फास की गोली खा मरां हुई या लाचारी सै 
या किसानी दुःख पागी हरियाणा के समाज मैं ॥ 
बदेशी कंपनी कब्ज़ा करगी ये हिन्दुस्तान मैं 
लाल कालीन बिछाए किसनै इनकी शान मैं 
इतनी घनी क्यों भागी हरियाणा के समाज मैं ॥ 
खेती म्हारी बर्बाद होगी उनकी आँख मींचगी 
नाड़  म्हारी पाई तलवार उनकी क्यों खींचगी 
रणबीर की छंद छागी हरियाणा के समाज मैं ॥ 

Saturday, 18 April 2015

KISE

किसे और की कहाणी कोन्या इसमैं राजा रानी कोन्या
सै अपनी बात बिराणी कोन्या, थोड़ा दिल नै थाम लियो।।

यारी घोड़े घास की भाई, नहीं चलै दुनिया कहती आई
मैं बाऊं और बोऊं खेत मैं, बाळक रुळते मेरे रेत मैं
भरतो मरती मेरी सेत मैं, अन्नदाता का मत नाम लियो।।

जमकै लूटै सै मण्डी हमनै, बीज खाद मिलै मंहगा सबनै
मेहनत लुटै मजदूर किसान की, आंख फूटी क्यों भगवान की
भरै तिजूरी क्यों शैतान की, देख सभी का काम लियो।।

चाळीस साल की आजादी मैं, कसर रही ना बरबादी मैं
बाळक म्हारे सैं बिना पढाई, मरैं बचपन मैं बिना दवाई
कड़ै गई म्हारी कष्ट कमाई, झूठी हो तै लगाम दियो।।

शेर बकरी का मेळ नहीं, घणी चालै धक्का पेल नहीं
टापा मारें पार पडैग़ी धीरे, मेहनतकश रुपी जितने हीरे
बजावैं जब मिलकै ढोल मंजीरे, रणबीर का सलाम लियो।।

Friday, 17 April 2015

पोह का म्हिना

पोह का म्हिना रात अन्धेरी, पड़ै जोर का पाळा 
सारी दुनिया सुख तैं सोवै मेरी ज्यान का गाळा 

सारे दिन खेतां के म्हां मनै ईख की करी छुलाई 
बांध मंडासा सिर पै पूळी, हांगा लाकै ठाई 
पूळी भारया जाथर थोड़ा चणक नाड़ मैं आई 
आगे नै डिंग पाट्टी कोन्या, थ्योड़ अन्धेरी छाई 
झटका देकै चणक तोड़ दी हुया दरद का चाळा 

साझे का तै कोल्हू था मिरी जोट रात नै थ्याई 
रुंग बुळथ के खड़े हुए तो दया मनै भी आई 
इसा कसाई जाड्डा था भाई मेरी बी नांस सुसाई 
मजबूरी थी मिरे पेट की, कोन्या पार बसाई 
पकावे तैं न्यों कहण लग्या कदे होज्या गुड़ का राळा 

कई खरच कठ्ठे होरे सैं, ज्यान मरण मैं आई 
गुड़ नै बेचो गुड़ नै बेचो, इसी लोलता लाई 
छोरी के दूसर की सिर पै, आण चढ़ी करड़ाई 
सरकारी करजे आळयां नै, पाछै जीप लगाई 
मण्डी के म्हां फंसग्या क्यूकर होवै जीप का टाळा 

खांसी की परवाह ना करी, पर ताप नै आण दबोच लिया 
डाक्टर नै एक सूआ लाया, दस रुपये का नोट लिया 
मेरे पै गरदिश क्यों चढ़गी, मनै इसा के खोट किया 
कई मुसीबत कठ्ठी होगी, सारियां नै गळजोट लिया 
रणबीर साझे जतन बिना भाई टळै ना दुख का छाळा