Wednesday, 30 November 2016

KISSA UDHAM SINGH

किस्सा ऊधम सिंह
वार्ताः शहीद ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 में हुआ था। देश पर अंग्रेजों का कब्जा था। पूरे ही देश में अंग्रेज भारत वासियों पर जुल्म ढा रहे थे। आजादी की पहली जंग जो 1857 में लड़ी गई थी। इसके बाद अंग्रेजों ने जनता पर और भी ज्यादा कहर ढाया था। शहीद ऊधम सिंह की मां सारे माहौल को देखकर दुखी हो जाती है और क्या सोचती हैं भलाः
रागनी-1
यो घर खावण नै आवै, रहवै दिल मेरा उदास
नहीं दिखै कोए राही।।
देही रंज फिकर ने खाली
या उड़गी चेहरे की लाली
कंगाली या बढ़ती जावै, नहीं बची जिन्दगी मैं आस
गोरयां नै लूट मचाई।।
यो अंग्रेज गिरकाणा सै
हर बात मैं धिंगताणा सै
पिछताणा सै धमकावै ना लेवण दे सुख की सांस
ईज्जत तारणी चाही।।
मैं सिर पाकड़ कै रोती
सहन ये बात नहीं होती
मोती ये चोरया चाहवै गेर दी म्हारे बीच मैं फांस
बहोत घणा अन्याई।।
रणबीर नै अंग्रेज दबाता
गाम थो चुप रैह जाता
सताता अर यो गुर्रावै नहीं बात आवै या रास
दिल की बात बताई।।

शहीद ऊधम सिंह एक बहुत ही गरीब परिवार का बच्चा था, जब पूरे देश में अंग्रेजो का जोर जुल्म चल रहा था तो पंजाब में भी जलियां वाला बाग जैसा हत्या काण्ड 1919 में वैशाखी के दिन होता है। इसका ऊधम सिंह के दिलो दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। एक दिन वह बैठा-बैठा सोचने लगता है। क्या बताया भलाः
रागनी-2
भारत देश पै जिसनै भी अत्याचार भूल कै था ढाया।।
जुल्म ढावणिया का वीरों नै था नामों निशान मिटाया।।
हिर्णा कुश दुर्योधन कंस नै जुल्म घणा ढाया था
म्हारे वीरां नै बढ़ आगै इनको सबक सिखाया था
जालिम खत्म करने खातर अपना खून बहाया था
ठारा सौ सतावण की जंग मैं होसला खूब दिखाया था
सिख हिंदू मुस्लिम सबनै हंस-हंस वैफ शीश कटाया।।
ईस्ट इंडिया आई देश मैं अपणे पैर पसार लिये
राज पै करकै कब्जा बहोत घणे अत्याचार किये
गूंठे कटाये कारीगरां के मौत के घाट उतार दिये
मल-मल ढाका आली थी उसपै कसूते वार किये
बिगाड़ कै शिक्षा म्हारी यो राह गुलामी का दिखाया।।
यो वीर लाडला देश कातै ना अपणे प्रण तै भटकै
कोए करै प्राण न्यौछावर हंस-हंस फांसी पै लटकै
कई खेलगे खून की होली छाती खोल दी बेखटकै
पिठू अंग्रेजा की झोली मैं बहोत घणा यो मटकै
अंग्रेजां की पींड़ी कापी थी जिब जनता नै नारा लाया।।
भारत देश यो निराला बिरले घणे इसके माली
किस्म-किस्म के फूल खिले कई ढंग के पत्ते डाली
खड़ी फसल जब लूटी म्हारी तो खड़या रोया हाली
जलियां वाले बाग के अन्दर ये बही खून की नाली
रणबीर सिंह बरोने आले नै सुण कै छन्द बनाया।।

वार्ताः 21 जुलाई 1940 को भारत के इस महाल शहीद को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी। सन 1974 में जाकर इस शहीद की अस्थियां भारत आ पाई। ऊधम सिंह पंजाब में सुनाम गांव का रहने वाला था। उसके पिता टहल सिंह कम्बोज थे। तीन साल की उमर में माता का साया सिर से उठ जाता है। क्या बताया भलाः
रागनी-3
ऊधम सिंह हुआ शूरवीर भारत का अजब सिपाही।।
सुनाम शहर पंजाब मैं श्यान जिनकी गजब बताई।।
टहल सिंह कम्बोज बाबू था करकै मेहनत पाल्या था
गरीबी क्यूकर तोड़ै माणस नै उसका देख्या भाल्या था
भारत का जनमाणस गोरयां नै अपणै संग ढाल्या था
चपड़ासी की करै नौकरी अपणा सब कुछ गाल्या था
देश प्रेम की टहल सिंह नै पकड़ी नबज बताई।।
चारों कान्ही देश प्रेम की पंजाब मैं थी लहर चली
गाम-गाम मैं चर्चा होगी हर गली और शहर चली
    ईन्कलाब जिन्दाबाद की घणे गजब की बहर चली
सन ठारा सौ सतावण मैं हांसी मैं खूनी नहर चली
इस आजादी की चिन्गारी तै गोरयां कै दी कब्ज दिखाई।।
तीन साल का बालक था जिब माता हो बिमार गई रै
इलाज का कोए प्रबन्ध ना था बीमारी कर मार गई रै
याणे से की बिन आई मैं माता स्वर्ग सिधार गई रै
फेर खमोशी सारे घर मैं बिना बुलाएं पधार गई रै
बिन माता याणा बालक इसतै भूंडी ना मरज सुणाई।।
छह साल की उम्र हुई जिब पिताजी नै मुंह मोड़ लिया
तावले से नै लिया सम्भाला देशप्रेम तै नाता जोड़ लिया
रणबीर बरोने आले नै आज बणा सही यो तोड़ लिया
गरीबी मैं रैहकै बी ओ कदे भूल्या नहीं था फरज भाई।।

वार्ताः ऊधम सिंह जलियां वाले बाग के घायलों की सेवा के लिए अस्पताल में जाता है। वहां उसकी एक नर्स से मुलाकात होती है। घायलों के मुुुंह से सुन-सुन कर उस नर्स के पास बहुत सी बाते थी। एक दिन वह नर्स ऊधम सिंह को जलियां वाले बाग के बारे में क्या बताती है भलाः
रागनी-4
निशान काला जुलम कुढाला यो जलियां आला बाग हुया।।
अंग्रेज हकुमत के चेहरे पै घणा बड्डा काला दाग हुया।।
देश की आजादी की खातर बाग मैं तोड़ होग्या
इतिहास के अन्दर बाग एक खास मोड़ होग्या
देश खड़या एक औड़ होग्या जिब यो खूनी फाग हुया।।
इसतै पहलम बी देश भक्ति का था पूरा जोर हुया
मुठ्ठी भर थे क्रान्तिकारी सुधार वादियों का शोर हुया
दंग फिरंगी चोर हुया बुलन्द आजादी का राग हुया।।
शहरी बंगले गाम के कंगले सबको ही झकझोर दिया
कांप उठी मानवता सारी जुलम घणा महाघोर किया
एकता को कमजोर किया इसा फिरंगी जहरी नाग हुया।।
कुर्बानी दी उड़ै वीरों नै वा जावै कदे बी खाली ना
जिब जनता ले मार मंडासा फेर पार किसे की चाली ना
जीतों बैठैगी ठाली ना रणबीर सिंह चाहे निर्भाग हुया।।


वार्ताः ऊधम सिंह और नर्स की बात बढ़ती है। ऊधम सिंह कहता है कि ज्यादातर लोगों की राय में नर्से ज्यादा काम नहीं करती। सामाजिक स्तर पर इस काम को हेय समझा जाता है। कोई नर्स से शादी करने को तैयार नहीं। यह सुनकर नर्स ऊधम सिंह को क्या बताती है नर्सिंग प्रोफैशन के बारे मेंः
रागनी-5
माणस की ज्यान बचावैं अपणी ज्यान की बाजी लाकै।।
फिर बी सम्मान ना मिलता देख म्हारे राम जी आकै।।
मरते माणस की सेवा मैं हम दिन और रात एक करैं
भुलाकै दुख और दरद हंसती हंसती काम अनेक करैं
लोग क्यों चरित्रहीन का तगमा म्हारे सिर पर टेक धरैं
घरआली नै छोड़ भाजज्यां देखै बांट वा एड्डी ठाकै।।
फलोरैंस नाइटिगेल नै नर्सों की इज्जत आसमान चढ़ाई
लालटेन ले कै करी सेवा महायुद्ध मैं थी छिड़ी लड़ाई
कौण के कहवैगा उस ताहिं वा बिल्कुल भी नहीं घबराई
फेर दुनिया मैं नर्सों नै थी मानवता की अलग जगाई
बाट देखते नाइटिंगेेल की फौजी सारे मुंह नै बांकै।।
करती पूरा ख्यालबिमारां का फेर घर का सारा काम होज्या
डाक्टर बिना बात डाट मारदे जल भुन काला चाम होज्या
कहवैं नर्सें काम नहीं करती चाहवैं उसकी गुलाम होज्या
मरीज बी खोटी नजर गेर दे खतम खुशी तमाम होज्या
दुख अपणा ऊधम सिंह रोवां किसके धोरै जाकै।।
काम घणा तनखा थोड़ी म्हारा सबका शोषण होवै क्यों
सब भारत वासी मिल रोवैं जीतों अकेली रोवै क्यों
बिना एकता नहीं गुजारा न्यारा-न्यारा बोझा ढोवैं क्यों
गोरयां की चाल समझल्यां ईब झूठा झगड़ा झोवै क्यों
रणबीर सिंह साथ देवैगा आज न्यारे छन्द बणाकै।।

वार्ताः नर्स से बातचीत में ऊधम सिंह कहता है कि आजादी की लड़ाई तो हम नौजवान लड़ रहे है। महिलाओं को घर का मोर्चा सम्भालना चाहिये। महिलाओं की आजादी की जंग में हिस्सेदारी को लेकर काफी बहस होती है। जीतो ऊधम सिंह को इस बारे मंे क्या कहती है कवि के शब्दों मेंः
रागनी-6
बिन म्हारी हिस्सेदारी के क्यूकर देश आजाद करावैगा।।,
करकै घरां मैं कैद हमनै किसा भारत नया बणावैगा।।
जनता नै सुथरा सा सपना देख्या भारत नया बणावै
आजाद होकै अपणी बगिया मैं लाल गुलाब खिलावै
गोल मटोल से बालक होंगे हांगा लाकै खूब पढ़ावै
इन्सानी जज्बा मरण लागरया सोचै कैसे उल्टा ल्यावै
औरत की  जंजीर तोड़कै देश सही आजादी पावैगा।।
माणस हिंदू मुस्लिम होंगे ना इन्सान की जात मिलै
विश्वास कति खत्म हो लिया माणस करता घात मिलै
जीत कौर बरगी महिला का मुश्किल तनै साथ मिलै
महिला साथ लड़ी जड़ै उड़ै न्यारी ढाल की बात मिलै
जीत कौर का ना साथ लिया तै पीछे फेर तछतावैगा।।
शहीद होणा हम भी जाणैं तनै साची बात बताउं मैं
दिल म्हारे मैं जो तुफान उठ्या यो किसनै दिखाउं मैं
मुठ्ठी भर चाहो आजादी ल्याणा थारी कमी जत़ाउं मैं
महिला आधी भारत सै इनकी पूरी शिरकत चाहूं मैं
मेरी बात गांठ मार लिये बख्त मनै ठीक ठहरावैगा।।
म्हारी आजादी बिना इस आजादी का अधूरा सार रहै
मार काट मची रहवैगी यो नहीं सुखी घर बार रहै
मेरी बात गौर करिये कदे चढ़या योहे बुखार रहै
बेरा ना मेरी बात नै रणबीर सिंह क्यूंकर समझावैगा।।


वार्ताः ऊधम सिंह एक दिन जीत कौर के पास आता है। बहुत परेशान था। जीत कौर परेशानी का कारण पूछती है। ऊधम सिंह कहता है कि मुझे लोग समझाते है कि अंग्रेजों के राज में तो सूरज नहीं छिपता। ये भारत देश को छोड़ कर नहीं जाने वालें मुझे बड़ी परेशानी होती है यह सुनकर। क्या बताया भलाः
रागनी-7
हाल देख कै जनता का कोए बाकी रही कसर कोन्या।।
अंग्रेजां का जुलम बढ़या ईब बिल्कुल बच्या सबर कोन्या।।
सोने की चिड़िया भारत जमा लूट कै गेर दिया
किसान और मजदूर बिचारा जमा चूट कै गेर दिया
क्यों खसूट कै गेर दिया आवै जमा सबर कोन्या।।
सिर बी म्हारा जूती म्हारी म्हारे सिर पै मारैं सै
बोलैं जो उनके साहमी यो उसके सिर नै तारैं सै
कंस का रूप धारैं सै छोडया कोए नगर कोन्या।।
म्हारी कमाई मौज उनकी म्हारी समझ ना आई
देश की तरक्की के ना पै आड़ै जमकै लूट मचाई
या बन्दर बांट मचाई आसान रही बसर कोन्या।।
उनके पिठ्ठु कहते सुने राज मैं ना सूरज छिपता
क्यूकर काढ़ो देश तै रणबीर सिंह कुछ ना दिखता
हुक्म बिना ना पत्ता हिलता कहते तनै खबर कोन्या।।
वार्ताः ऊधम सिंह या उसके साथी बातचीत के बाद ऊधम सिंह को लन्दन भेजने की तैयारी करते हैं। वह नाम बदल कर लन्दन जाने की तैयारी करता है उसकी आंखों के सामने डायर घूमता रहता था। क्या बताया भलाः
रागनी-7
ऊधम ंिसंह नै सोच समझ कै करी लन्दन की जाने की तैयारी।।
राम मुहम्मद नाम धरया और पास पोर्ट लिया सरकारी।।
किस तरियां जालिम डायर थ्यावै चिन्ता थी दिन रात यही
बिना बदला लिये ना उल्टा आऊं हरदम सोची बात यही
उनै मौके की थी बाट सही मिलकै उंच नीच सब बिचारी।।
चौबीस घण्टे उसकै लाग्या पाछै यो मौका असली थ्याया ना
जितने दिन भी रहया टोह मैं उनै दाणा तक भी भाया ना
लन्दन मैं भी भय खाया ना था ऊधम क्रान्तिकारी।।,
दिन रात और सबेरी डायर उनै खड़ा दिखाई दे था
हाथ गौज में पिस्तोल उपर हमेशा पड़या दिखाई दे था
भगत सिंह भिड़या दिखाई दे भर आंख्यां के मां चिन्गारी।।
होई कदे समाई कोन्या उसकै लगी बदन मैं आग भाई
न्यों सोचें जाया करता हमनै हो खेलना खूनी फाग भाई
रणबीर का सफल राग भाई जिब या जनता उठै सारी।।
वार्ताःऊधम सिंह और डायर आमने-सामने होते हैं तो डायर कांप उठता है। वह अपने जीवन की भीख मांगता है तो ऊधम सिंह क्या जवाब देता है और क्या कहता हैः
रागनी-8
आहमी साहमी खड़े दोनों डायर का चेहरा पीला पड़ग्या।।
आसंग रही ना बोलण की जणो जहरी नाग आण कै लड़ग्या।।
थर-थर पींडी कांप उठी भय चेहरे कै उपर छाया था
मारै मतना मनै ऊधम सिंह डायर न्यों मिमयाया था
उसनै भाजना चाहया था ऊधम सिंह झट आग्गै अड़ग्या।
ऊधम सिंह की आंख्यां आग्गै वो बाग नाजारा घूम गया
डायर नै मरवाये हजारा्रं भारतवासी बिचारा घूम गया
यो पंजाब सारा घूम गया उसकै़ नाग बम्बी मैं बड़ग्या।।
पापी डायर कित भाजै सै करना मनै तुं माफ नहीं
भीख मांगता जीवन की उस दिन करया इंसाफ नहीं
काला दिल सै जमा साफ नहीं तेरा ईबक्यों चेहरा झड़ग्या।।
बणकै मौत खड़या साहमी उनै बिल्कुल भी भय खाया ना
ईन्कलाब कहया जिन्दाबाद कति भाजण का डा ठाया ना
ऊाम सिंह पिछताया ना रणबीर सिंह सही छन्द घड़ग्या।।्र
वार्ताः  हाल के अन्दर सभा हो रही थी। आमना सामना हुआ। आंखों में आंखें मिली। आंखों ही आंखों मंे कुछ कहा एक दूसरे को ।मौका पाते ही ऊधम सिंह ने निशाना साध दिया। कवि ने क्या बताया भलाः
रागनी-9
धांय धंाय धांय होई उड़ै दनादन गोली चाली थी।।
कांपग्या क्रैक्सटन हाल सब दरवाजे खिड़की हाली थी।।
पहली दो गोली दागी उस डायर की छाती के म्हां
मंच तै नीचैं पड़ग्या ज्यान ना रही खुरापाती के म्हां
काढ़ी गोली हिम्माती के म्हां खतरे की बाजी टाली थी।।
लार्ड जैट कै लागी जाकै दूजी  गोली दागी थी
लुई डेन हेन हुया घायल मेम ज्यान बचाकै भागी थी
चीख पुकार होण लागी थी सब कुर्सी होगी खाली थी।।
बीस बरस ग्यारा म्हीने मै जुलम का बदला तार लिया
तेरह मार्च चौबीस मैं माइकल ओ डायर मार दिया
अचम्भित कर संसार दिया उनै कोन्या मानी काली थी।।
जलियां आले बाग का बदला लिया लन्दन मैं जाकै
अंग्रेजां नै हुई भिड़ी धरती भाग लिये वे घबराकै
रणबीर नेेेेै कलम उठाकै नै झट चार कली ये घाली थी।।
वार्ताः 31 जुलाई 1940 को ऊधम सिंह को फांसी दे दी जाती है खबर उसके शहर सुनाम पहुंचती है। एक बुजुुुुुर्ग ऊधम सिंह को बहुत चाहता था। अनाथ घर में भी उसकी सम्भाल किया करता था। वह बहुत दुखी होता है और क्या कहता है भलाः
रागनी-10
बेटा उधम सिंह चला गया तो के सै मेरे लाल भतेरे।।
उस वीर बहादुर बरगे देश मैं न्यूंए ठोकैंगे ताल कमेरे।।
उसका कसूर था इतना देश प्रेम की लौ लगाई थी
देश नै आजाद करावां मिलकै नै अलाख जगाई थी
बढ़ता गया आगै बेटा आजादी की लड़ी लड़ाई थी
अंग्रेजां नै कदे बी ना कोए उसकी बात सुहाई थी
पूत पालनै मैं पिछणै सै यो करगे ख्याल बडेरे।।
मैं न्यों बोल्या उसतै अपणा बख्त बरबाद करै सै
उम्र्र सै खेलण खावण की राजनीति की बात करै सै
न्यों बोल्या ज्यांए करकै अंग्रेज हमपै राज करै सै
बिना शान के जीणा चाचा मनमैं दिन रात फिरै सै
सारी उम्र हम करां कमाई क्यों लूटैं माल लुटेरे।।
गैर कैंडै नहीं चलूंगा बोल्या मेरा विश्वास करिये
आर्शीवाद देदे अपणा ना मनै आज निराश करिये
भारत मां की आजादी की  दिल तै ख्यास करिये
पलहम परिक्षा लेले पाछै फेल और पास करिये
देश आजाद कराणा लाजमी ये ठारे ढाल पथेरे।।
मैं सूं भारत देश का सच्चा ताबेदार सिपाही
गोरयां नै वैशाखी आले दिन ढाई घणी तबाही
म्हारी बहू बेटी नै तकते होती ना जमा समाई
रणबीर मार गोली छाती मैं उसनै कसम पुगाई
फसल असली थे भारत की वे ना थे ंघास पटेरे।।
वार्ताः ऊधम सिंह ने देश के मान सम्मान और आजादी के लिए अपनी ज्यान न्यौछावर कर दी। लन्दन में जाकर माइकल ओ डायर को गोलियों से भून दिया और-और हंसते हंसते फांसी का पफंदा चूम गया। उसनै भारत के सपूतों को ललकार दी। क्या बताया कवि नेः
रागनी-11
ऊधम सिंह नै ललकार दी थी, भारत मैं पुकार गई थी,
जंजीर गुलामी की तोड़ दियो।।
न्यूं बोलियो सब कठ्ठे होकै भारत माता जिन्दाबाद
शहर सुनाम देश हमारा, गोरयां नै कर दिया बरबाद
फिरंगी सैं घणे सत्यानाशी, करकै अपनी दूर उदासी
मुंह तोपा का मोड़ दियो।।
म्हारा होंसला करदे खुन्डा उनके दमन के इथियार
लक्ष्मी सहगल साथ मैं म्हारै ठाकै खड़ी हुई तलवार
हिन्दुस्तान नै दी किलकारी, देश प्रेम की ला चिन्गारी
कुर्बानी की लगा होड़ दियो।।
हर भारतवासी नै देश प्रेम का यो झंण्डा ठाया था
पत्थर मतना पूजो भाई न्यूं यो आसमान गूजाया था
लाया था सारे कै नारा, जुणसा लाग्गै हमनै प्यारा
इन पत्थरां नै फोड़ दियो।।
देश मैं छाग्या सबकै ऊधम सिंह की बातां का रंग
इन्कलाब जिन्दाबाद का नारा अंग्रेज सुण होग्या दंग
रणबीर ने जंग तसबीर बनाई, गुलाब सिंह नै गाकै सुनाई
दखे सुर मैं सुर जोड़ दियो।।
वार्ताः देश में आन्दोलन पहले चल रहा था। किसान मजदूर डाक्टर वकील सब देश के मुक्ति आन्दोलन में सक्रिय हो रहे थे। ऊधम सिंह की शहादत ने भारत वर्ष में तहलका मचा दिया। उसकी कुर्बानी के चरचे लोगों की जुबान पर थे। कवि ने क्या बताया भलाः
रागनी-12
ऊधम सिंह मेरे ग्यान मैं, भारत देश की श्यान मैं
इस सारे विश्व महान मैं, यो तेरा नाम अमर हो गया।।
असूलां की जो चली लड़ाई, उसमैं खूब लड़या था तूं
स्याहमी अंग्रेजां के भाई, डटकै हुया खड़या था तूं
बबर शेर की मांद के म्हां, अकेला जा बड़या था तूं
अव्वल था तु ध्यान मैं, रस था तेरी जुबान मैं
सारे ही हिंदुस्तान मैं, यो तेरा पैगाम अमर हो गया।।
देख इरादा पक्का तुम्हारा, हो गया मैं निहाल जमा
भारत मां की सेवा में दे दिया सब धन माल जमा
एक बै मरकै देश की खातर जीवै हजारौ साल जमा
डायर नै सबक चखान मैं, इस लड़ाई के दौरान मैं
निशाना सही बिठान मैं, यो तेरा काम अमर होग्या।।
पक्के इरादे के साहमी अंग्रेजां की पार बसाई ना
जलियां आला बाग देखकै फेर तेरै हुई समाई ना
धार लई अपने मन मैं किसे और तै बताई ना
तू अपने इस इम्तिहान मैं, अपनी ही ज्यान खपान मैं
देश की आन बचान मैं, तू डेरा थाम अमर होग्या।।
जो लड़ी-लड़ाई तनै साथी वा लड़ाई थी असूला पै
वुर्बानी तेरी रंग ल्यावैगी जग थूकै ऊल जलूलां पै
जिस बाग का फूल हुया नाज करैं उसके फूलां पै
ईब आग्या सही पहचान मैं, भूले थे हम अनजान मैं
तूं सफल हुया मैदान मैं, यो तेरा सलाम अमर होग्या।।
वार्ताः जीत कौर को सुनाम के शहर में सूचना मिलती है ऊधम सिंह की शहादत की। वह मन ही मन रो पड़ती है पुरानी मुलाकातों को याद करके। समझ नहीं आता उसे कि वह ऊधम सिंह के साथ अपने रिश्ते को कैसे समझे। ऊधम सिंह का आजादी का सपना ही उसे सही रिश्ता लगता है उसके साथ। क्या सोचती है भला।
रागनी-13
कौण किसे की गेल्यां आया कौण किसे की गैल्यां जावै।।
ऊधम सिंह के सपन्यां का यो भारत ईब कौण रचावै।।
किसनै सै संसार बनाया किसनै रच्या समाज यो
म्हारा भाग तै भूख बताया बाधैं कामचोर कै ताज यो
मानवता का रूखाला आज पाई-पाई का मोहताज यो
अंग्रेज क्यों लूट रहया सै मेहनत कश की लाज यो
क्यों ना समझां बात मोटी अंग्रेज म्हारा भूत बणावै।।
कौण पहाड़ तोड़ कै करता धरती समतल मैदाल ये
हल चला खेंती उपजावै उसे का नाम किसान ये
कौन धरा नै चीर कै खोदै चांदी सोने की खान ये
ओहे क्यों कंगला घूम रहया गोरा बण्या धनवान ये
म्हारे करम सैं माड़े कहकै अंग्रेज हमनै यो बहकावै।।
हम आजादी चाहवां अक अनपढ़ता का मिटै अन्धकार
हम आजादी चाहवां अक जोर जुल्म का मिटै संसार
हम आजादी चाहवां अक ऊंच नीच का मिटै व्यवहार
हम आजादी चाहवां अक लूट पाट का मिटै कारोबार
जात पात और भाग भरोसै या कोन्या पार बसावै।।
झूठ्यां पै ना यकीन करां म्हारी ताकत सै भरपूर
म्हारी छाती तै टकराकै गोली होज्या चकना-चूर
जागते रहियो सोइयो मतना ना म्हारी मंजिल दूर
सिंरजन हारे हाथ म्हारे सै घणे अजब रणसूर
देश की आजादी खातर ऊधम सिंह राह दिखावै।।



Tuesday, 29 November 2016

किस्सा फौजी मेहर सिंह


आस बंधी अक भोर होवैगी शोशण जारी रहै नहीं ।।
लोक राज तैं राज चलैगा रिश्वत  बीमारी रहै नहीं ।।
रिश्वतखोर  मुनाफाचोर की स्वर्ण तिजूरी नहीं रहै
चेहरा सूखा मरता भूखा इसी मजबूरी नहीं रहै
गरीब कमावै उतना पावै बेगार हजूरी नहीं रहै
षरीफ बसैंगे उत मरैंगे या झूठी गरुरी नहीं रहै
फूट गेर कै राज करो फेर इसी बीमारी रहै नहीं ।।
करजे माफ होज्यांगे साफ आवैगा दौर सच्चाई का
बेरोजगारी भता कपड़ा लता हो प्रबन्ध दवाई का
पैंशन होज्या सुख तैं सोज्या होवै काम भलाई का
जच्चा बच्चा होज्या अच्छा मौका मिलै पढ़ाई का
मीठा पाणी चालै नल में यो पाणी खारी रहै नहीं।।
भाई चारा सबतैं न्यारा नहीं कोए धिंगताना हो
बदली खातिर ठाकै चादर ना मंत्री पै जाना हो
हक मिलज्या घीसा घलज्या सबनै ठौर ठिकाना हो
सही वोट डलैं ना नोट चलैं इसा ताना बाना हो
हम सबनै संघर्श चलाया अंग्रेज अत्याचारी रहै नहीं।।
पड़कै सोज्यांगे चाले होज्यांगे नहीं कुछ बी होवैगा
माथा पकड़ कै भीतर बड़कै फेर बूक मारकै रोवैगा
नया मदारी करैगा हुश्यारी  हमनै बेच के सोवेगा
चौकस रहियो मतना सोइयो काटैगा जिसे बौवैगा
रणबीर सिंह बरोने आला कितै दरबारी रहै नहीं।।

Saturday, 26 November 2016

JANTA

नोट बन्दी नै मोदी जी या अफरा  तफरी मचाई देख ॥  
 ब्याह शादी रूकगे म्हारे थामनै दया नहीं आयी देख ।।  
पीस्से म्हारी कमाई के हम कोन्या लिकड़वा पारे देख 
बालक बिलखैं बिना दवाई अमीरां के वारे न्यारे देख 
दूकानदार किसान मजदूरों की रेल क्यों बनाई देख ॥ 
ब्याह शादी रूकगे म्हारे थामनै दया नहीं आयी देख ।। 
कालेधन का इलाज पक्का दावा थामने करया दखे 
छह हजार करोड़ कर्ज अडानी खातै यो धरया दखे  
म्हारी जूती सिरभी म्हारा कसूती करी पिटाई देख ॥ 
ब्याह शादी रूकगे म्हारे थामनै दया नहीं आयी देख ।।  
कई कई घंटे खड़ी रहवै जनता जावै खाली हाथ या 
न्यू कितने दिन देवैगी तेरा बताओ मोदी जी साथ या 
बाजार जमा डूब लिया बेरोजगारी सारै छाई देख ॥ 
ब्याह शादी रूकगे म्हारे थामनै दया नहीं आयी देख ।। 
भरी हवा झूठ भका कै सहज सहज लिकड़ रही 
जनता थारी कारस्तानी या पूरी  तरियां पकड़ रही  
कुलदीप सिंह जनता ना तनै मचावण दे तबाही देख॥ 
 ब्याह शादी रूकगे म्हारे थामनै दया नहीं आयी देख ।। 

Friday, 25 November 2016

जो नियमों का पालन नहीं करै वो घणी यातना भोगैगा॥
शिक्षा व ज्ञान  लेनिया नै यो देश आच्छी ढालां ठोकैगा ॥

ज्योतिबा फुल्ले जी की याद में


उनीसवीं सदी मैं भारत म्हारा दूज्यां का गुलाम बताया ॥
धर्म और जात ऊपर समाज बंट्या टुकड़यां मैं दिखाया ॥
म्हारे समाज पर परम्परावादी सामन्तवादी सोच छारी थी
ज्ञान और सत्ता के स्रोतां पर उच्च वर्गों की थानेदारी थी
इस व्यवस्था नै एक अछूत वर्ग हिंदुस्तान मैं था बनाया ॥
इस वर्ग नै अपमान सह्या  दरिद्रता और अभाव झेले रै
अँधेरी गुफाओं के बीच मैं कहैं ये तबके गए धकेले रै
गैर बराबरी की आग नै चारों कूट भारत देश जलाया ॥
अमानवीय जुल्म ढाल ढाल के इनपै खूब करे जावें थे 
जानवरों से भी भुन्डी ढाल काम के बोझ धरे जावैं थे
माड़ी माड़ी बातों ऊपर  इनको समाज नै घणा सताया ।।
अछूत के अंदर भी कई जात म्हारे समाज नै बनाई
इनकी बस्ती गाम तैं बाहर म्हारे हिंदुस्तान मैं बसाई
धरती पर भी थूकन का पाबंद इनके ऊपर गया लगाया ॥
गले मैं हंडिया लटका कै ये तबके चाल्या करते भाई
निशान पैरों के साफ़ करते जितके डाल्या करते भाई
किसे तैं छू नहीं जावें ये जिम्मा घण्टी बजाने का लगाया ॥
ज्योतिबा फुल्ले नै अलख जात पात के खिलाफ जगाया
शिक्षा का प्रसार करने का फुल्ले जी नै था बीड़ा उठाया 
कहै रणबीर बरौने आला दबंगों नै खूब विरोध जताया ॥ 

Friday, 18 November 2016

NOIDA AND GURUGRAM

नोएडा और गुड़गामा
आज के कारपोरेट की असलियत बताणी चाही।
युवा और युवतियों की या मजबूरी दिखाणी चाही।
मियाँ बीबी ये दोनों मिलकै आज खूब कमावैं देखो
तीस लाख का पैकेज ये साल का दोनों पावैं देखो
तड़कै आठ बजे त्यार हो नौकरियां पर जावें देखो
रात के ग्यारह बजे ये वापिस घर नैं आवैं देखो
इन कमेरयां की आज या पूरी कथा सुणानी चाही।
अपने पारिवारिक रिश्ते बताओ कैसे चलावैं रै
ऐकले रैह रैह कै शहरां मैं ये कैरियर बनावैं रै
भीड़ मैं रैह कै भी अपने नै कतिअकेला पावैं रै
गांम गेल्याँ अपना रिश्ता बताओ कैसे निभावैं रै
आज के दौर की या विरोधाभाष दिखाणी चाही।
मोटे वेतन की नौकरी छोड नहीं पावैं देखो भाई
अपने बालकां नै घरां छोड़ कै नै जावैं देखो भाई
फुल टाइम की मेड एजेंसी तैं ये ल्यावैं देखो भाई
उसके धोरै बालक ये अपने पलवावैं देखो भाई
मजबूरी या लाइफ आज इणनै अपनाणी चाही।
मात पिता दूर रहवैं टाइम काढ़ नहीं पाते भाई
दादा दादी नाना नानी इनके बन्द हुए खाते भाई
घर मैं आवैं इस्तै पहले बालक तो सो जाते भाई
नॉएडा गुड़गामा का रणबीर यो हाल सुनाते भाई
बदल गया जमाना हरयाणा ली अंगड़ाई चाही।

नया निजाम

नया निजाम किन किन बातां पर खरया उतरैगा देखियो ॥
झूठ कै साहरे मीडिआ तैं कितने दिन निखरैगा देखियो ॥
विकास का मॉडल कौनसा यो इब अपनाया जावैगा देखो
मेहनत कश तैं कौनसा लॉली पॉप थमाया जावैगा देखो
बदेशी पूंजी तांहि दरवाजा कितना खुलवाया जावैगा देखो 
रौंद कै पायाँ तलै कितने भारत ऊपर उठाया जावैगा देखो
तामझाम कितने दिन मैं सारा का सारा बिखरैगा देखियो ॥
महंगाई डायन नै सबकै कसूते ये घर घाल दिए सैं देखो
मेहनत काश के घर मैं आज भक्कड़ बाल दिए सैं देखो
अम्बानी अडानी बरगे आज कर मालामाल दिए सैं देखो
महंगाई क्यूकर रोकी जागी कौनसे ख्याल दिए सैं देखो
महंगाई नहीं रुकी तो आम घणा तावला बिफरैगा देखियो ॥
भ्रष्टाचार तैं मुक्ति का आज कौनसा रास्ता अपनाया जावैगा
इलैक्शनां का खर्चा इब यो क्यूकर कितना उघवाया जावैगा
बेलगाम घोड्यां कै यो लगाम किस तरियां लगवाया जावैगा
देखना बाकि सै आम आदमी किस तरियां उलझाया जावैगा
भ्रष्टाचार भाग व्यवस्था का किस तरियां डिगरैगा देखियो ॥
एक और जंग खड़ी साहमी देश म्हारे मैं बेरोजगारी की
अठाईस करोड़ युवा शक्ति सै शिकार इस महामारी की
किततैं पैदा होवैगा रोजगार कैसे मिलै मुक्ति बीमारी की
युवा की उम्मीद बहोत घणी देखी उसनै समों लाचारी की
नहीं पाया सही रास्ता तो यो घणा कसूता चिंगरैगा देखियो ॥
इलैकशन पहलम खूब हुया काळा धन का जिकरा देखो
बोले इसनै उल्टा ल्यावण नै चाहिए कसूता जिगरा देखो
आगै काला धन नहीं बनै इसका नहीं कोय फिकरा देखो
कित कित तैं रोक्या ज्यावै अडानी के तवयां सिकरा देखो
काला धन बदमाश घणा सै किस ढालां यो सुधरैगा देखियो ॥
महिला की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करी जावैगी देखो
छेड़छाड़ रेप छीना झपटी क्यूकर कम हो पावैगी देखो
छाँट कै पेट मैं मारी जांती क्यूकर संसार मैं आवैगी देखो
काम मुश्किल बहोत सै कद सुख तैं या रोटी खावैगी देखो
हामी भरी थी इन कामां की कद सी इब मुकरैगा देखियो ॥
06/06 /2016

Thursday, 17 November 2016

जागो देश वासियो जागो

हम लड़ रहे हैं जात धर्म आरक्षण और पहचान की राजनीति पर और वो लूट रहे हैं हमें यूं बांटकर हमारी खून पसीने की कमाई ।  कहाँ है भगवान तूं ? क्यूँ तुझे यह सब दिखाई नहीं दे रहा ? दिखाई दे रहा है तो खामोश क्यूँ है ? एक रोज तेरे पर से जनता का विश्वास उठ जायेगा यदि अडानी अम्बानी का लूट में साथ निभाएगा । 
 जागो भाई बहनो जागो 
जागो देश वासियो जागो 


Tuesday, 15 November 2016

हिटलर


हिटलर की जर्मनी आले हालात भारत मैं ल्यावैंगे 
हिन्दू राष्ट्र इस हिंदुस्तान नै भाजपा आले बनावैंगे 
इस की खातर हर हथकंडा बंधु देश मैं अपनावैंगे 
दंगा फसाद मार काट जात धर्म ऊपर करवा वैंगे 

MODI JI

असली बातों से हिन्द का हटाया सुनो माहरे मोदी जी  
विदेशी काला धन ना गया ल्याया सुनो माहरे मोदी जी
कारपोरेट कै नहीं नकेल लगाया  सुनो माहरे मोदी जी 
जात धर्म ऊपर देश क्यों लड़वाया सुनो माहरे मोदी जी 
बिना सही इंतजाम यो कदम ठाया सुनो माहरे मोदी जी 
कई तरियां तैं गरीब को भरमाया सुनो माहरे मोदी जी 

बेरोजगारी



बेरोजगारी , महंगाई , बढ़िया शिक्षा बढ़िया इलाज 
बैंकां की लाइन नै भुलाये , देखो मोदी जी का राज 
विवेक तैं सोचन का खत्म करवाया सै तरीका आज 
बहकाने का चलाया और एक बहुत ही नया अंदाज 
जनता देखती रहो करती अपने शरीर पर या खाज 
पन्दरा  का विकास करने का चलाया बढ़िया रिवाज 
पिचासी की  लाइन लगवाकै ल्या दिया यो रामराज 






RAMLOO

कमलू -- ओ फूलू फांसी खा कै मरग्या परसों । 
रमलू -- लड़कै मरता तो बातै न्यारी होंती ।  
कमलू --किसकै खिलाफ लड़ै ? 
रमलू -- सारी कौमां के किसान कठ्ठे होके लड़ें ( रोड , सिख, जाट , गुजर , 
अहीर अर और भी सारे ?
कमलू -- ये तो न्यारे न्यारे झंडा ठाएँ  घूमैं सैं । 
रमलू -- न्यौईं घूमैं गए तो राजपाट सही घूमा देगा ।  किसानी एकता 
बख्त की मांग सै । नहीं तो न्यारे न्यारे खूब पिटेंगे अर फांसी खाऍंगे । 

Sunday, 13 November 2016

किसे ओर की कहानी कोण्या,

          किसे ओर की कहानी कोण्या, इसमैं ये राजा राणी कोण्या
सै अपनी बात बिरानी कोण्या, थोड़ा दिल नै थाम लियो।।
यारी घोड़े घास की भाई, नहीं चालै दुनिया कहती आई
बाहूं ओर फेर बोउं खेत मैं,बालक रुलते म्हारे रेत मैैं
भरतो मरती मेरी सेत मैं, अन्नदाता का मत नाम लियो।।
जमकै लूटै सै मण्डी सबनै, बीज खाद मिलै म्हंगा हमनै
लूटाई  मजदूर किसान की, ये आंख फूटी भगवान की
यो भरै तिजूरी शैतान की, देख इसके तम काम  लियो।।
छप्पण साल की आजादी मैं, कसर रही ना बरबादी मैं
ये बालक महारे बिना पढ़ाई, मरैं बचपन मैं बिना दवाई
कड़ै गई म्हारी कष्ट कमाई, झूठी होतै तम लगाम दियो।।
शेर बकरी का मेल नहीं सै,घणी चालै धक्का पेल नहीं सै
आप्पा मारें पार पड़ैगी म्हारी, जिब कठ्ठी होकै जनता सारी,
लीख काढ़ै या सबतै न्यारी, रणबीर सिंह का सलाम लियो।।

Wednesday, 9 November 2016

किस्सा 1857

किस्सा 1857
1857 का स्वतन्त्रता संग्राम भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना ही नहीं थी यह साम्राज्यवाद के विरू़द्ध उस दौर की विश्व की सबसे बड़ी जंग थी। इसी कारण मार्क्स ने अपने समकालीन लेखों में  इस जंग की ‘फांस की क्रान्ति’ 1789 के युद्ध से तुलना की है और इसे फौजी बगावत न मानकर राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा दी है।भारत वर्ष मंे बहुत से लोग आये। हुन, शक, कुशान, अरबी, तुर्क सभी आये मगर वह यहां की कल्चर में घुल-मिल गये। अंग्रेज जब भारत आये तो वह अपनी कल्चर भी साथ ले कर आये और भारत के जनजीवन को गहरे तक प्रभावित किया। क्या बताया भलाः
रागनी 1
बिदेशी बहोत आये भारत मैं वे देशी होगे आड़ै आकै।।
फिरंगी तो खुद रहया फिरंगी रंग म्हारा बदल्या हांगा लाकै।।
हून शक कुशान आये तो पहण लिया भारत का बाण़ा
अरबी तुर्क आये भारत मैं धारया म्हारा पीणा खाणा
कई-कई कल्चर मिली आपस मैं मिला लिया नया पुराणा
कई देशों का भारत यो म्हारा सबतै न्यारा इसका ताणा
फिरंगी नै राज जमाया या जात पात की खाई बढ़ाकै।।
अपणी कल्चर लयाया देश में म्हारा भेस अपनाया ना
म्हारे अंध विश्वास पै खेल्या पीछे मुड़कै लखाया ना
मैकाले ल्याया किसी शिक्षा यो खेल समझ में आया ना
रेल बिछाई पूरे देश मैं भारतवासी फुल्या समाया ना
कच्चा माल लेग्या लंदन मैं बेच्या पक्का भारत ल्याकै।।
सस्ते मैं लिया म्हारा कच्चा महंगे भाव दिया पक्का माल
दोनूं कान्यहां फिरगी नै भारत देश की तारी खाल
देख बायो डाय वर सिटी म्हारी अंग्रेजां ने गेरी राल
लूटे हम गेर फिरंगी नै श्याम दाम दण्ड भेद का जाल
बिठाये हम भगवान भरोसे ना देख्या हिसाब लगाकै।।
         गंगा जमुनी संस्कृति म्हारी तोडण की ठान लई थी
        किसानों  पर लगान बढ़ाये कईयों की जान लई थी
        जनता दब्बू बहोत भारत की  या उसनै मान लई थी
        सभ्य बणावण आये तमनै कहानी या बखान लई थी
        रणबीर सिंह बरौने आले नै छंद बनाई कलम घिसाकै  ॥










वार्ता------
भारत उन दिनों सामन्तों, राजा, नवाबों, जमीदारांे व तालुक दारों की रियासतों व जागीरों, जायदादों में बंटा हुआ था। इनके निहित स्वार्थों के चलते आपस में टकराव और विरोध था। रैयत भी विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, जातियों एवं गोत्रों में विभाजित थी। और इन तबकों के खाते-पीते पंडे-पुरोहित, चौधरी, सरदार, मुल्ला मौलवी और सामाजिक व साम्रदायिक इकाइयों के नेताओं में भी निहित स्वार्थों के कारण अपने-अपने समुदाय वाली गोल बन्दी बनी हुई थी,हालांकि 18 वीं सदी और पहले के भी भक्ति आन्दोलन, सन्त सूफी परम्परा ने पुराण पंथी नजरिये की सामाजिक सास्कृतिक दिवारों को कुछ कमजोर तो किया था। इस माहौल का अंग्रेजों ने बहुत फायदा उठाया। क्या बताया भलाः
रागनी-2
फूट गेरो राज करो का गुर अंग्रेजों ने अपनाया था।।
म्हारे लाडले भरती करकै उनको खूब दुलराया था।।
भारत की छाती पै मूंग दलैं इसकी पूरी तैयारी करली
मार-काट मची राज्यां मैं सबकी गद्यी पै नजर धरली
अंध विश्वास बढ़ा म्हारे मैं सोच्चण की ताकत हरली
जात-पात पै बंटे हुए थे हमनै नाष की कोली भरली
देशी गाभरू बनाकै फौजी अपने साथ मिलाया था।
भरती हो कै म्हारा बेटा बणग्या ताबेदार सिपाही फेर
मात पिता तैं मुंह मोड़ण मैं उसनै कति नहीं लाई देर
अंग्रेजां का गुणगाण करै दिन रात और श्याम सबेर
पाइया मुश्किल तै था बढ़ाकै होग्या कति सवा सेर
टूटे लीतर पाट्टे लत्ते अंग्रेजों ने वर्दी तै सजाया था।।
ये यू पी हरियाणा के छोरे फिरंगी के हुक्म बजावैं रै
अड़ौसी-पड़ौसी चाचा ताउ दरबारां  मैं शीश झुकावैं रै
माल उगाही होज्या उसकी जो हम खेता मैं कमावैं रै
सिर भी म्हारा जूती म्हारी म्हारे अपणे डण्डे बरसावैं रै
सिपाही बेटा उनका होग्या बेराना के घोल पिलाया था।।
बढ़िया खाणा पीणा फौज मैं झोटे बरगे पुट्ठे होगे रै
दो दिन बिताये फौज मैं म्हारे बिराणे खूट्टे होगे रै
उनकी तै लागै स्वाद मिठाई म्हारे खारे बुट्टे होगे रै
अंग्रेजां के उनके दम पै म्हारी घिट्टी पै गूंठे होगे रै
कहै रणबीर बरोने आला न्यों अंग्रेज घणा बौराया था।

वार्ता-------
भारत वर्ष मंें अंग्रेजांे ने एक ईस्ट इंडिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर कदम रखे थे। इस प्रकार  आहिस्ता-आहिस्ता पुरे भारत पर अंग्रेजों ने कब्जा जमा लिया। दौ सौ साल तक भारत वर्ष पर राज किया। यह दौ सौ साल का इतिहास मानवता के इतिहास पर कालिख लगाने वाला, असमानतापूर्ण लूटों को बचाये रखने वाला था। एक समय के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी को हटाकर होम गर्वन मैंट की स्थापना कर ली गई थी। ईस्ट इंडिया कम्पनी के बारे में क्या बताया भलाः
रागनी-3
ईस्ट इंडिया कम्पनी आई, व्यापारी बणकै छाई
अंग्रेजी अपणे संग मैं ल्याई, दाब्या म्हारा प्यारा हिंदुस्तान।।,
भारत देश के मल-मल ये घणे मशहूर हुया करते
मिरच मसाले भारत के दुनिया भर मैं लिया करते
कारीगरां के गूंठे कटवाये, ढाका जिसे शहर उजड़वाये
मानचैस्टर उभार कै ल्याये, दाब्या म्हारा प्यारा हिंदुस्तान।।
सहज-सहज ये राजे रजवाड़े कम्पनी की दाब मानगे
अंग्रेज काइयां बहोत घणे म्हारे सारे राज जानगे
कम्पनी ने चक्कर चलाया रै, व्यापार गेल्यां राज जमाया रै
चारो कान्ही लगांेट घूमाया रै, दाब्या म्हारा प्यारा  हिंदुस्तान।।
पढ़े लिखे हुश्यार घणे थे म्हारे उपर राज जमाया फेर
कर कै राज रजवाड़े काबू कम्पनियों नै डंका घुमाया फेर
प्रचार करया सभ्य समाज का, ना बेरा लग्या इनके अन्दाज का
चिड़िया उपर झपटा बाज का, दाब्या म्हारा प्यारा हिंदुस्तान।।,
एक ईस्ट इंडिया कम्पनी पूरे भारत उपर छागी देखो
म्हारी कमजोरी का ठाकै फायदा अपना राज जमागी देखो
मन मानी लूट मचाई फेर, सोने की चिड़िया चिल्लाई फेर
या बंगाल आर्मी बनाई फेर, दाब्या म्हारा प्यारा हिंदुस्तान।।

वार्ता-------
अंग्रेजों ने धीरे-धीरे पूरी देशी फौज तैयार करली। जिसे बंगाल आर्मी के नाम से जाना गया। देसी लोगों की सेना से जिसे अंग्रेजों के ड्रिलसार्जेंट ने संगठित तथा प्रशिक्षित किया वह जहां अंग्रेजों के काम आई वहीं वह हिंदुस्तानी आत्मोत्यान की आवश्यक शर्त भी थी। देसी सेना अंग्रेजों की वफादार फौज मानी गई उस आर्मी में हिंदु व मुसलमान दोनों थे। कई साल तक इस आर्मी ने कई लड़ाइयां लड़ी जिसके चलते दोनों सम्प्रदाय के फौजियों में एकता और मजबूत हुई। क्या बताया भला:
रागनी-4
बंगाल आर्मी अंग्रेजां की उसका पूरा इतिहास सुणो।।
फिरंगी राज की नींव बताई इसपै था पूरा विश्वास सुणो।।
सवा लाख सिपाही इसमैं यू पी बिहार और हरियाणे के
खड़ग हस्त बने ब्रिटिस के सिपाही पूरे इस समाणे के
हिंदु मुस्लिम टिवाणे के बढ़िया सबका इकलास सुणो।।
ठारा सौ बत्तीस मैं आर्मी नै ग्वालियर मैं लड़ी लड़ाई
ठारा सौ चवालिस मैं सिंघ पै विजय पताका जा फैहराई
पंजाब की फेर बारी आई हुई आर्मी बदहवास सुणो।।
ठारा सौ बावण मैं बर्मा की लड़ाई दूसरी लड़ी फेर
दक्षिण बर्मा जीत दिखाया दुश्मन कर दिए हजारों ढेेर
डटे ंफ्रट पै लखमी शमशेर नहीं हुये ये निराश सुणो।।
अफीम यु़द्ध चीन देश का इसके सिर पै आण पड़या
ठारा सौ चालीस ब्यालिस मैं आर्मी सिपाही खूब लड़या
ठारा सौ छप्पण मैं फेर भिड़या बिछी हजारां लाश सुणो।।
लगातार लड़ाइयां मैं रही जो वा बंगाल आर्मी बताई
सिर धड़की या बाजी लाकै हमेशा लड़ती रही लड़ाई
रणबीर की कविताई नै जाणै गाम बरोणा खास सुणो।।

वार्ता------
अंग्रेजों ने भारत वासियों पर बहुत जुलम ढाये। पहले जमीन पर किसान का पूरा हक था मगर उन्हें जमीन से अलग कर दिया गया। जमीनों पर लगान वसूली बढ़ा दी गई। इतना लगान बढ़ा दिया जो भुगतान सामर्थ्य से बाहर था। औजार गिरवी रखने पर मजबूर किया जाने लगा। खेती करना असम्भव बना दिया। हल नहीं चला जमीन पर, फसल नहीं पर कर देने पर मजबूर किया गया। मंागी जा रही रकम नहीं दी तो यातनाएं दी गई। दिन की तपती दोपहर में पांव से बांधकर उल्टे लटकाया गया। लकड़ी की पैनी छिप्पटें नाखूनों में घुसाई गई। बाप और बेटों को एक साथ बांधकर कोड़े बरसाये गये। औरतों को कोड़े मारे जाते थे। आँखो में लाल मिर्च का चूरा बुरक दिया जाता था। गुनाहो का प्याला लबरेज हो गया। औरतों के स्तनों पर बिछू बांध दिये जाते थे। यह सब जुलमों की खबरे बंगाल आर्मी के फौजियों के पास भी पहंुची। क्या बताया गयाः
रागनी-5
बल्यू आइड आर्मी कहैं बगावत उपर आगी फेर।।
दम-दम मैं जो उठी चिन्गारी फैलण मैं ना लागी देर।।
ठारा सौ सतावण साल था जनवरी का म्हिना बताया रै
विद्रोह की जब लाली फूटी फिरंगी घणा ए घबराया रै
मंगल पाण्डे आगे आया रै नींद अंग्रेजां की भागी फेर।।
इसकी लपट मई के मैं मेरठ छावनी मैं पहोंच गई
मेरठ छावनी तै कूच करया दिल्ली आकै दबोच लई
फिरंगी की सोच बदल दई छाती मैं गोली दागी फेर।।
हिंदु मुस्लिम सिपाही सारे थे कठ्ठे लड़े सतावण मैं
पहले भी एकता थी उनकी मिलकै भिडे़ सतावण मैं
डटकै अड़े सतावण मैं या देश भावना जागी फेर।।
किसान और जमींदार दोनों फिरंगी खिलाफ खड़े होगे
दुनिया के साहसी खड़े इसपै ये सवाल बड़े होगे
फिरंगी और कड़े होगे मदद लंदन तै मांगी फेर।।

वार्ता-------
इस प्रकार इस विद्रोह के ज्यादा व्यापकता वाले कारण थे। देश प्रेम की भावना और अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ गुस्सा था। अंग्रेजों के प्रति सहानुभ्ूाति खत्म होती जा रही थी। ऐसी राष्ट्रीय भावना गौ और सुअर की चर्बी लगे कारतूसों के इस्तेमाल से पैदा नहीं की जा सकती थी। ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि अंग्रेजों के विरूद्ध जंग में हमारे फौजियों ने इन्ही कारतूसों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया था। मेरठ से देसी फौज दिल्ली के लिए चल पड़ी। क्या बताया भलाः
रागनी-6
बंगाल आर्मी फौज के सिपाही डटगे रणभूमि मैं आकै।।
हिंदु मुस्लिम साथ लडंे फिरंगी पड़या तिवाला खाकै।।
हर जवान फौजी के दिल मंे उमंग भरी घणी भारी रै
सारै फौजी पाछै-पाछै चाले आगै  पांडे क्रान्तिकारी रै
न्यों सोचैं थे फौजी तिरंगा लहरा दयां दिल्ली जाकै।।
तिल-तिल करकै आगे बढ़ते देश आजाद कराया चाहवैं
धर कांधे बन्दूक फौजी सभी कदम तै कदम मिलावैं
  थी नई-नई तकरीब भिड़ाई सारै भाज्या फिरंगी घबराकै।।
महिला कति पाछै रही कोन्या हर जगां वो साथ लड़ी
अंग्रेजां नै होई धरती भीड़ी ये देखी औरत साथ खड़ी
पहली आजादी की जंग फिंरगी छोड़या कति रंभा कै।।,
बंगाल आर्मी फोजी सेना नया इतिहास रचाया था
तन-मन-धन सब लाकै देश आजाद कराना चाहया था
रणबीर सिंह करै कविताई  रै कलम अपनी या ठाकै।।
वार्ता---------
मेरठ के बागियों ने 11 मई 1857 को दिल्ली पर कब्जा कर लेने के बाद मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को शंहशाह ए हिंदुस्तान बना दिया गया। इसके साथ ही बागी सैनिकों की निगाहें दिल्ली के आसपास के इलाके पर पड़ी। दिल्ली के तीन तरफ हरियाणा का क्षेत्र का है और 1803 कम्पनी राज ने दिल्ली समेत  इसे महाराजा सिंधिया से छीनकर बंगाल प्रै्र्रसीडेंसी के उत्तर पश्चिमी प्रान्त का दिल्ली डिविजन बना दिया था। इसमें गुड़गांव रोहतक, हिसार, पानीपत और अंबाला के जिले शामिल थे। 11 मई को गुड़गावां पर कब्जा कर लिए जाने से शुरू हुई। एक मेव किसान सदरूद्दीन ने बागी सेना और किसानों व कारीगरों को नेतृत्व प्रदान किया। क्या बताया भलाः
रागनी-7
बढ़ां आगाड़ी भाई लड़ण का मौका है फिलहाल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
दुश्मन का सामना करना है, फिरंगी के जुल्म तै के डरना है
एक रोज जरूरी मरना है, इसे आज मरे इसे काल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
नींव आजादी की हम धरज्यावां, हम नाम भारत का कर ज्यावां
देश की खातर कट कै मरज्यावां, म्हारा सबका योहे ख्याल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
कदम बढ़ावा फर्ज बुलावै सै, वीर मरद मिल बतलावै सै
देश गुलाम रखना चाहवै सै, यू अंग्रेज फिरंगी चाण्डाल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
सदरूद्दीन नै लाया नारा, यो हिंदुस्तान सै सबनै प्यारा
बीर मरद रणबीर देश सारा, आजादी की उठैं झाल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
दिल्ली पर 13 सितम्बर के बाद अंग्रेजीं सेना का कब्जा हो जाने पर भी मेवात के शूरवीर दिल्ली के हालात से बेखबर आजादी का परचम उठाये दो महीने तक अंग्रेजीं सेना के मशहूर जनरल शावर का मुकाबला करते रहे। राय सीमा के यु़द्ध में अंगेेज क्लेक्टर कोर्ड को 13 अक्टूबर को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस सब के बावजूद देश आजाद कराने का जुनून था उनमें।
रागनी-8
फौजीं हैं देश दिवाने अब आजाद करा कर मानैंगे।।
हम आजादी पाने आये आजादी पाकर मानैंगे।।
गुलामी की जंजीरे टूटेगीं उस वक्त तसल्ली पायेंगे
पीछे हटने वाले नहीं लड़ते-लड़ते ही मर जायेंगे
हम भी किसी से कम नहीं तूफान उठाकर मानैंगे।।
फिरंगी ने जुलम ढाये कारीगरों के हाथ कटवायें
सोने की चिड़िया को फिरंगी कंगाल बनाना चाहे
एक बार कदम बढ़े हमारे तो मंजिल जाकर मानैंगे।।
मैदाने जंग में डटे हुए ज्यान की बाजी लगा रहे
देश की आजादी की खातर गोली सीने मैं खा रहें
नये तराने दिल में हैं हम इनको गाकर मानैंगे।।
कटते रहें बढ़ते रहें ये लाल खून रंग लायेगा
बंगाल आर्मी का फौजी आगे कदम बढ़ाता जायेगा
दे बड़ी से बड़ी से कुर्बानी हम दुश्मन को हिलाकर मानैंगे।।
1857 की क्रान्ति में कानपुर के योगदान की जब चर्चा होगी तो सबसे पहले नाना राव पेशवा, तात्या टोपे, और अजी मुल्ला का नाम आयेगा लेकिन नाच गाकर अंग्रेजी अफसंरो का मन बहलाने वाली तवायफ अजीजन बाई और उसकी मस्ताना टोली की सदस्य हुसैनी खानम के योगदान और बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। अजीजन को हुस्न का जादू और घुंघरूओं की खनक अंग्रेज पर वह असर डालती थी जिससे शराब के नशे में मदहोश होकर अंग्रेज कई महत्वपूर्ण राज अजीजन के सामने ब्यान कर देते थे जो वह क्रान्तिकारियों को पहुंचाकर उनके आन्दोलन को मजबूत बना रही थी। बाद में अंग्रेजों ने इन्हें माफी मांगने तथा उनके सामने जमीन पर नाक रगड़ कर रहम की प्रार्थना करने को कहा। आजादी की इन सिपाहियों ने यह तो कबूल किया कि उन्होंने अंग्रेजों के खून से होली खेली है लेकिन देश का माथा ऊंचा रखते हुए माफी माँगने और रहम की  भीख मांगने से इन्कार कर दिया।
रागनी-9
देश भक्ति की घणी निराली या मिशाल अजीजन बाई।।
फिरंगी के किले मैं नाच गाने के दम पै सेंध लगाई।।
कानपुर में तवायफ का वा जीवन बिताया करती
नाचना गाना कमाल का था अंग्रेजों नै रिझाया करती
नशे मैं धुत करने के वास्ते दारू खूब पिलाया करती
भीतर की सारी सी आई डी बागियों नै पहुंचाया करती
अजीजन के साथी हैरान तवायफ औरत गजब बताई।।
अंग्रेजां के छबके मारै अजीजन तरफ लखाले नै
चापलूसी छोड़ फिरंगी की देशप्रेम का झण्डा ठाले नै
तो जमींदार इलाके का ईब उल्टे कदम हटाले नै
देश प्रेम की बहार चली सुर गेल्यां सुर मिलाले नै
देख अजीजन की दलेरी तनै चाहिये बदलनी राही।।
कानपुर दिया छोड़ फिरंगी चारों तरफ लखाया
महिला बच्चों को उननै बीवी घर में पहोंचाया
अजीजन बाई ने घेरा दे उनका खात्मा चाहया
बागी फौजी तो नाट गये बाई नै गुस्सा आया
अजीजन बाई ने तुरत फेर बुलाये च्यार कसाई।।
इस जनम के करमां का फल इसे जनम मैं थ्याया
तवायफां नै डेढ़ सौ मारे फौज का पूरा साथ निभाया
फिरंगी का साथ नहीं देउं न्यों नसीब नै मन बनाया
जन विद्रोह देख फिरंगी रणबीर सिंह घणा घबराया
कई किताब पढ़कै नै रागनी अजीजन की बनाई।।
अजीजन का जब बगावत का दौर था तो बहुत दिलेरी के साथ फौजियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी। एक दिन सोते वक्त अजीजन बाई सपने के अन्दर क्या देखती हैं भलाः
रागनी-10
ये अपने चाल पड़े हैं फौजी भारत देश के।।
बगावत पै जमे खड़े हैं फौजी भारत देश के।।
पूछती है झोपड़ी और पूछते हैं खेत भी
अब तक गुलाम पड़े हैं फौजी भारत देश के।।
बिना लड़े कुछ नहीं मिलता यहां यह जानकर
फिरंगी से सही भिड़े हैं फौजी भारत देश के।।
चीखती हैं रुकावटे ठोंकरों की मार से ही
ये होंसले लिए बड़़़े हैं फौजी भारत देश के।।
गुमान है इनकी खून से लतपथ लाशों पर
मोरचे पर खूब अड़े हैं फौजी भारत देश के।।
रोहतक को मुक्त कराने के लिए मुगल बादशाह बहादुर शाह जपफर ने 24 मई 1857 को सेना की एक टुकड़ी के साथ तफजुल हुसैन को रोहतक भेजा। विद्रोही सेना का मुकाबला न कर पा रोहतक का डिप्टी कमिश्नीर जी.डी. लाक व दूसरे अफसर पानीपत की छावनी की तरफ भाग निकले। कचहरी और सरकारी दफतर जला डाले। बागियों ने महम और मदीने पर कब्जा कर लिया। एक दिन एक किसान और उसकी पत्नी अंग्रेजों के बारे में बात करते हैं। पति अंग्रेजों के हक में था मगर पत्नी खिलाफ थी। क्या बताया भलाः
रागनी-11
नहीं देता तनै दिखाई इननै सिर पै चढ़ावै क्यों।।
भारत देश आगे बढ़ाया अंग्रेजां ने बिसरावै क्यों।।
न्यारे-न्यारे रजवाड़े थे कई देश आड़े बस्या करते
एक नै लेते अपनी गोदी दूंजे उपर ये हंस्या करते
तीर निशाने आपस के मैं ये रजवाड़े कस्या करते
बन्दर बांट मचा फिरंगी भारत नै ये डस्या करते
नीच फिरंगी मनै बता पिया तनै इतना भावै क्यों।।
अंग्रेजां ने सुण गोरी भारत राज्य एक बनाया सै
रेल और सड़को का इननै गहरा जाल बिछाया सै
बिदेशां नै मेहनत करी ना पाछै कदम हटाया सै
देख इनकी जीवन शैली मेरा तो सिर चकराया सै
कहै अंग्रेज नै फिरंगी इननै लुटेरे बतावै क्यों।।
भारत बणा कई देशां का भोतै बढ़िया काम करया
रेल बिछाकै म्हारे देश मैं अपने देश का गोदाम भरया
कच्चा माल लेग्या लाद कै म्हारा मजदूर तमाम मरया
लगान के कानून बदले निशानै लजवाणा गाम धरया
भूरा निंघाइया लड़े पिया बता उननै तूं भुलावै क्यों।।
मनै के बेरा जो कुछ देख्या वोहे मनै बताया गोरी
इतनी गहरी बात कदे मै समझ नहीं पाया गोरी
इनका जमींदार सै सूरता उसनै मैं बहकाया गोरी
रणबीर बरोने आला कहै तनै मैं समझाया गोरी
सारे सोचा मिल बैठ कै फिरंगी लूट कै खावैं क्यों।।
तफजुल हुसैन अब वापिस लौटते समय सांपला और मांडौठी के सरकारी दफतरों को भी आग देते गए। अंग्रेज अफसरों ने लिखा है कि उच्य वर्ग के लोगों से छोंटों तक सबकी हमदर्दी बादशाह के सैनिकों और बागियों के साथ है। परन्तु ज्यों ही रोहतक जिले में अंग्रेजी सत्ता समाप्त हुई किसान लोग कबिलाई आधार पर आपस में लड़ने लग गये। इन्हीं हालात में कम्पनी सरकार ने जी.डी लाक डिप्टी कमिश्नर को भारतीय रैजीमेंट वेफ साथ रोहतक पर काबू पाने के लिए दोबरा रवाना कर दिया। खिड़वाली गांव के लोग आपस में इन बातों पर चर्चा करते हैं और गाम गुहांड में एकता बनाने की बात करते हैं। क्या बताया भलाः
रागनी-12
सारस बरगी जोट बणाकै, सब हों कट्ठे नर और नारी हो
खान फैक्टरी स्कूल मैं जाकै, साझा सघर्ष का बिगुल बजाकै
देश नै माना आजाद कराकै, यो फिरंगी घणा अत्याचारी हो।।
मजबूत यूनियन बणाकै, आपस के सब मतभेद भुलाकै
टी सी चमचा गिरी मिटाकै, बणै ढाल एकता न्यारी हो।।
न्यारे-न्यारे कड़ नै तड़वाकै, बैठे अपने घर नै जाकै
एक दूजे की चुगली खाकै, कुल्हाड़ी अपनंे पाहयां पर मारी हो।।
देखो उत्तर प्रदेश मैं जाकै, आंख खोल चारो तरफ लखाकै
हरियाणे तै चिट्ठी मंगवाकै, बूझो जो झूठी बात म्हारी हो।।
या जात पात की खाई हटाकै, सही गलत का अन्दाज लगाकै
साझे हकां की लिस्ट बणाकै, करां आजादी की तैयाारी हो।।
इनके राज ना सूरज छिपता, इनके साहमी कोए ना टिकता
नहीं इनका यो भकाना दिखता, म्हारी सबकी खाल उतारी हो।।
ईस्ट इडिंया पै लुटवाकै, कई हजार करोड़ मुनाफा दिवाकै
म्हारे कान्ही फेर हाथ हिलाकै, कहते किस्मत माड़ी थारी हो।।
उल्टे सीधे म्हारे पै कानून लाकै, साथ जेल का डर दिखलाकै
फेर पुलिस पै गोली चलवाकै, फिरंगी करेगा हमला भारी हो।।
पूरी जनता साथ मिलाकै, हरतबके नै या बात समझाकै
ना रहै रणबीर कहै कसम उठाकै फेर फिरंगी भ्रष्टाचारी हो।।
17 अगस्त को बाबर खान के तहत 300 रांघड़ घुडसवारों और 1000 पैदल सैनिकों ने अंग्रेजी सेना पर  रोहतक पर धावा बोल दिया। लड़ाई बड़ी भीषण थी। परन्तु कुछ समय बाद अंग्रेजी सैनिक शक्ति की और अधिक कुमुक आ जाने के  बाद बागियों को रोहतक छोड़कर हांसी के पास बसी गांव मंे मोर्चा जमाना पड़ा। हडसन खरखोदा, सांपला, पानीपत, महम गोहाना आदि कस्बों का दबाने के  बाद इलाके को जींद के महाराजा और चौधारियों के हाथ सौंप कर चला गया। इस लड़ाई में खिडवाली के कई शहीद हुए थे। क्या बताया भलाः
रागनी-13
ठारा सौ सतावण में आजादी की पहली जंग लड़ी।।
खिडवाली की पलटन नै तोड़ी कई मजबूत कड़ी।।
माणस खिडवाली के भिड़गं अंग्रेजां के साहमी जाकै
दो फिरंगी तहसील मैं मारे मेम पड़ी तिवाला खाकै
भीतरला जमा भरया पड़या बाट देखैं थे एडडी ठाकै
पाछले जुल्मां का सारा हिसाब फेर धरा लिया आकै
फिरंगी से लड़णे की पूरी गुप्त योजना सही घड़ी।।
बही शेख और लालू वाल्मिकी जमकै लड़ी लड़ई थी
तिरखा बाल्मिकी मोहमा शेख हिम्मत खूब दिखाई थी
जुलफी मोची सुनार राम बक्स आजादी पानी चाही थी
बेमा बाल्मिकी इदुर मौची ने ज्यान की बाजी लााई थी
मुफी औला पठान लडया साथ मैं जनता खूब भिड़ी।।
मोहर नीलगर खिडवाली का ना मुड़कै कदे लखाया
सायर बाल्मिकी लड़ाकू नै फिरंगी तै सबक सिखाया
सुनाकी बाल्मिकी साथ लड़या वो कदे नहीं घबराया
बीर मरद जितने सबनै धुर ताहिं का साथ निभाया
फिरंगी राज के कफन मैं इस जंग नै कील जड़ी।।
खिडवाली ना रहया एकला साथ गामड़ी आया था
एक बै कब्जा रोहतक पै सबने मिलकै जमाया था
फिरंगी भाज लिया था नहीं कोए रास्ता पाया था
बहादुर शाह जफर को राजा सबने ही अपनाया था
रणबीर बरोने आला बतावै जंग की बात बड़ी।।
अलीपुरा और सोनीपत के बीच लिबास पुर कुंडली, मुरथल, बहाल गढ़, खानपुर, हमीद पुर सराय के वीरों ने बार-बार अंग्रेजी सेना और उनकी कानवाई पर हमले करने शुरू कर दिये। लिबास पुर के उदमीराम की युवको की टोली के कारनामें आज भी लोक गीतों में याद किये जाते हैं। इन छोटी-छोटी लड़ाइयों में इलाके के अनेक लोक शहीद हुए। अलीपुर गांव के 70-75 लोग शहीद हुए थे। लोगों को दो बातों का अहसास इस लड़ाई ने करवा दिया था। एक तो मजबूत संगठन की कमी और दूसरे मजबूत नीडर का अभाव। बागी देहात के हमलों का ही नतीजा था कि कम्पनी राज को अपनी पानीपत की छावनी करनाल ले जानी पड़ी थी। उदमीराम को यातनाएं दी गई उसे पेड़ पर लटका कर हाथों पैरों मंे कीले गाड़ दी गई। उदमीराम ने उस वक्त भारत वर्ष के लिए लोगों को संदेश दिया था। क्या बताया भलाः
रागनी-14
संगठन के आधार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
भाइचारे के प्र्रसार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
फिरंगी नै कर दिये चाले घरां कै लवा दिये ताले
आपस के रै प्यार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
बच्चे और बूढ़े होगें तंग बुरा महिलावां का यो ढंग
समता के व्यवहार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
फिरंगी के राज मैं जुल्म बढ़े बहोत माणस फांसी पै चढ़ै
आजादी के उभार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
मानवता का खून करया सै, म्हारा कालजा भून गिरया सै
लीडर की पतवार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
फिरंगी कै घेरी देनी होगी, बिपता सबनै या खेणी होगी
रणबीर एतबार  बिना, म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
1857 की आजादी की पहली जंग हुई। चार महीने तक दिल्ली पर हमारा राज्य स्थापित हो गया। बहुत से कारणों से चलते अंग्रेजों ने फिर कब्जा कर लिया। इतना तसदुद किया कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह जंग उस वक्त तक के सबसे महान आंदोलनों में एक थी। अंग्रेजों के पिठूओं को इनाम दिये गये तथा विद्रोहियों पर कहर ढाया गया। उसी दौर में एक मुहावरा चला साहब की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी नहीं होनी चाहिये। मगर एक बात साप हो गई कि अंग्रेजों का भारत से जाना शत प्रतिशत तय हो गया था जो कि सौ साल बाद हुआ। देश के शहीदो को दुनिया की कोई ताकत नहीं मार सकती। क्या बताया भलाः
रागनी-15
समाज की खातर मरने वाले आज तलक तो मरे नहीं।।
कुरबान देश पर होने वाले कदे किसी से डरे नहीं।।
अजीजन की हंसी हवा में आज भी न्योंए गूंज रही
चारों धाम यो मच्या तहलका हो दुनिया मैं बूझ रही
बैरी को नहीं सूझ रही पिछले गढे इबै भरे नहीं।।
फौजियां मैं जगा बनाई सी आई डी बढ़िया ढाल करी
उन बख्तां मैं अजीजन नै पेश कुरबानी की मिशाल धरी
जवानी मैं हुंकार भरी कदे होंसले म्हारे गिरे नहीं
मेरठ आम्बाला और मेवात एक बर ली अंगड़ाई थी
मिलकै लड़ी लड़ाई थी न्यारे रहे लाल पीले हरे नहीं।।
बेशक पहली जंग हारे अंग्रेेज का जाना लाजमी होग्या
ठारा सौ सतावण बीज देश मैं म्हारी आजादी के बोग्या
अंग्रेेेज का सूरज डबोग्या बेशक हम भी पार तिरे नहीं।।
सतावण नै राह दिखाई हजारा मंगल पांडे आगै आये
सौ साल पाछै बलिदान सैंतालिस मैं हटकै रंग ल्याये
रणबीर सिंह नै छन्द बनाये कलम दवात जरे नहीं।।