Wednesday, 9 November 2016

किस्सा 1857

किस्सा 1857
1857 का स्वतन्त्रता संग्राम भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना ही नहीं थी यह साम्राज्यवाद के विरू़द्ध उस दौर की विश्व की सबसे बड़ी जंग थी। इसी कारण मार्क्स ने अपने समकालीन लेखों में  इस जंग की ‘फांस की क्रान्ति’ 1789 के युद्ध से तुलना की है और इसे फौजी बगावत न मानकर राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा दी है।भारत वर्ष मंे बहुत से लोग आये। हुन, शक, कुशान, अरबी, तुर्क सभी आये मगर वह यहां की कल्चर में घुल-मिल गये। अंग्रेज जब भारत आये तो वह अपनी कल्चर भी साथ ले कर आये और भारत के जनजीवन को गहरे तक प्रभावित किया। क्या बताया भलाः
रागनी 1
बिदेशी बहोत आये भारत मैं वे देशी होगे आड़ै आकै।।
फिरंगी तो खुद रहया फिरंगी रंग म्हारा बदल्या हांगा लाकै।।
हून शक कुशान आये तो पहण लिया भारत का बाण़ा
अरबी तुर्क आये भारत मैं धारया म्हारा पीणा खाणा
कई-कई कल्चर मिली आपस मैं मिला लिया नया पुराणा
कई देशों का भारत यो म्हारा सबतै न्यारा इसका ताणा
फिरंगी नै राज जमाया या जात पात की खाई बढ़ाकै।।
अपणी कल्चर लयाया देश में म्हारा भेस अपनाया ना
म्हारे अंध विश्वास पै खेल्या पीछे मुड़कै लखाया ना
मैकाले ल्याया किसी शिक्षा यो खेल समझ में आया ना
रेल बिछाई पूरे देश मैं भारतवासी फुल्या समाया ना
कच्चा माल लेग्या लंदन मैं बेच्या पक्का भारत ल्याकै।।
सस्ते मैं लिया म्हारा कच्चा महंगे भाव दिया पक्का माल
दोनूं कान्यहां फिरगी नै भारत देश की तारी खाल
देख बायो डाय वर सिटी म्हारी अंग्रेजां ने गेरी राल
लूटे हम गेर फिरंगी नै श्याम दाम दण्ड भेद का जाल
बिठाये हम भगवान भरोसे ना देख्या हिसाब लगाकै।।
         गंगा जमुनी संस्कृति म्हारी तोडण की ठान लई थी
        किसानों  पर लगान बढ़ाये कईयों की जान लई थी
        जनता दब्बू बहोत भारत की  या उसनै मान लई थी
        सभ्य बणावण आये तमनै कहानी या बखान लई थी
        रणबीर सिंह बरौने आले नै छंद बनाई कलम घिसाकै  ॥










वार्ता------
भारत उन दिनों सामन्तों, राजा, नवाबों, जमीदारांे व तालुक दारों की रियासतों व जागीरों, जायदादों में बंटा हुआ था। इनके निहित स्वार्थों के चलते आपस में टकराव और विरोध था। रैयत भी विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, जातियों एवं गोत्रों में विभाजित थी। और इन तबकों के खाते-पीते पंडे-पुरोहित, चौधरी, सरदार, मुल्ला मौलवी और सामाजिक व साम्रदायिक इकाइयों के नेताओं में भी निहित स्वार्थों के कारण अपने-अपने समुदाय वाली गोल बन्दी बनी हुई थी,हालांकि 18 वीं सदी और पहले के भी भक्ति आन्दोलन, सन्त सूफी परम्परा ने पुराण पंथी नजरिये की सामाजिक सास्कृतिक दिवारों को कुछ कमजोर तो किया था। इस माहौल का अंग्रेजों ने बहुत फायदा उठाया। क्या बताया भलाः
रागनी-2
फूट गेरो राज करो का गुर अंग्रेजों ने अपनाया था।।
म्हारे लाडले भरती करकै उनको खूब दुलराया था।।
भारत की छाती पै मूंग दलैं इसकी पूरी तैयारी करली
मार-काट मची राज्यां मैं सबकी गद्यी पै नजर धरली
अंध विश्वास बढ़ा म्हारे मैं सोच्चण की ताकत हरली
जात-पात पै बंटे हुए थे हमनै नाष की कोली भरली
देशी गाभरू बनाकै फौजी अपने साथ मिलाया था।
भरती हो कै म्हारा बेटा बणग्या ताबेदार सिपाही फेर
मात पिता तैं मुंह मोड़ण मैं उसनै कति नहीं लाई देर
अंग्रेजां का गुणगाण करै दिन रात और श्याम सबेर
पाइया मुश्किल तै था बढ़ाकै होग्या कति सवा सेर
टूटे लीतर पाट्टे लत्ते अंग्रेजों ने वर्दी तै सजाया था।।
ये यू पी हरियाणा के छोरे फिरंगी के हुक्म बजावैं रै
अड़ौसी-पड़ौसी चाचा ताउ दरबारां  मैं शीश झुकावैं रै
माल उगाही होज्या उसकी जो हम खेता मैं कमावैं रै
सिर भी म्हारा जूती म्हारी म्हारे अपणे डण्डे बरसावैं रै
सिपाही बेटा उनका होग्या बेराना के घोल पिलाया था।।
बढ़िया खाणा पीणा फौज मैं झोटे बरगे पुट्ठे होगे रै
दो दिन बिताये फौज मैं म्हारे बिराणे खूट्टे होगे रै
उनकी तै लागै स्वाद मिठाई म्हारे खारे बुट्टे होगे रै
अंग्रेजां के उनके दम पै म्हारी घिट्टी पै गूंठे होगे रै
कहै रणबीर बरोने आला न्यों अंग्रेज घणा बौराया था।

वार्ता-------
भारत वर्ष मंें अंग्रेजांे ने एक ईस्ट इंडिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर कदम रखे थे। इस प्रकार  आहिस्ता-आहिस्ता पुरे भारत पर अंग्रेजों ने कब्जा जमा लिया। दौ सौ साल तक भारत वर्ष पर राज किया। यह दौ सौ साल का इतिहास मानवता के इतिहास पर कालिख लगाने वाला, असमानतापूर्ण लूटों को बचाये रखने वाला था। एक समय के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी को हटाकर होम गर्वन मैंट की स्थापना कर ली गई थी। ईस्ट इंडिया कम्पनी के बारे में क्या बताया भलाः
रागनी-3
ईस्ट इंडिया कम्पनी आई, व्यापारी बणकै छाई
अंग्रेजी अपणे संग मैं ल्याई, दाब्या म्हारा प्यारा हिंदुस्तान।।,
भारत देश के मल-मल ये घणे मशहूर हुया करते
मिरच मसाले भारत के दुनिया भर मैं लिया करते
कारीगरां के गूंठे कटवाये, ढाका जिसे शहर उजड़वाये
मानचैस्टर उभार कै ल्याये, दाब्या म्हारा प्यारा हिंदुस्तान।।
सहज-सहज ये राजे रजवाड़े कम्पनी की दाब मानगे
अंग्रेज काइयां बहोत घणे म्हारे सारे राज जानगे
कम्पनी ने चक्कर चलाया रै, व्यापार गेल्यां राज जमाया रै
चारो कान्ही लगांेट घूमाया रै, दाब्या म्हारा प्यारा  हिंदुस्तान।।
पढ़े लिखे हुश्यार घणे थे म्हारे उपर राज जमाया फेर
कर कै राज रजवाड़े काबू कम्पनियों नै डंका घुमाया फेर
प्रचार करया सभ्य समाज का, ना बेरा लग्या इनके अन्दाज का
चिड़िया उपर झपटा बाज का, दाब्या म्हारा प्यारा हिंदुस्तान।।,
एक ईस्ट इंडिया कम्पनी पूरे भारत उपर छागी देखो
म्हारी कमजोरी का ठाकै फायदा अपना राज जमागी देखो
मन मानी लूट मचाई फेर, सोने की चिड़िया चिल्लाई फेर
या बंगाल आर्मी बनाई फेर, दाब्या म्हारा प्यारा हिंदुस्तान।।

वार्ता-------
अंग्रेजों ने धीरे-धीरे पूरी देशी फौज तैयार करली। जिसे बंगाल आर्मी के नाम से जाना गया। देसी लोगों की सेना से जिसे अंग्रेजों के ड्रिलसार्जेंट ने संगठित तथा प्रशिक्षित किया वह जहां अंग्रेजों के काम आई वहीं वह हिंदुस्तानी आत्मोत्यान की आवश्यक शर्त भी थी। देसी सेना अंग्रेजों की वफादार फौज मानी गई उस आर्मी में हिंदु व मुसलमान दोनों थे। कई साल तक इस आर्मी ने कई लड़ाइयां लड़ी जिसके चलते दोनों सम्प्रदाय के फौजियों में एकता और मजबूत हुई। क्या बताया भला:
रागनी-4
बंगाल आर्मी अंग्रेजां की उसका पूरा इतिहास सुणो।।
फिरंगी राज की नींव बताई इसपै था पूरा विश्वास सुणो।।
सवा लाख सिपाही इसमैं यू पी बिहार और हरियाणे के
खड़ग हस्त बने ब्रिटिस के सिपाही पूरे इस समाणे के
हिंदु मुस्लिम टिवाणे के बढ़िया सबका इकलास सुणो।।
ठारा सौ बत्तीस मैं आर्मी नै ग्वालियर मैं लड़ी लड़ाई
ठारा सौ चवालिस मैं सिंघ पै विजय पताका जा फैहराई
पंजाब की फेर बारी आई हुई आर्मी बदहवास सुणो।।
ठारा सौ बावण मैं बर्मा की लड़ाई दूसरी लड़ी फेर
दक्षिण बर्मा जीत दिखाया दुश्मन कर दिए हजारों ढेेर
डटे ंफ्रट पै लखमी शमशेर नहीं हुये ये निराश सुणो।।
अफीम यु़द्ध चीन देश का इसके सिर पै आण पड़या
ठारा सौ चालीस ब्यालिस मैं आर्मी सिपाही खूब लड़या
ठारा सौ छप्पण मैं फेर भिड़या बिछी हजारां लाश सुणो।।
लगातार लड़ाइयां मैं रही जो वा बंगाल आर्मी बताई
सिर धड़की या बाजी लाकै हमेशा लड़ती रही लड़ाई
रणबीर की कविताई नै जाणै गाम बरोणा खास सुणो।।

वार्ता------
अंग्रेजों ने भारत वासियों पर बहुत जुलम ढाये। पहले जमीन पर किसान का पूरा हक था मगर उन्हें जमीन से अलग कर दिया गया। जमीनों पर लगान वसूली बढ़ा दी गई। इतना लगान बढ़ा दिया जो भुगतान सामर्थ्य से बाहर था। औजार गिरवी रखने पर मजबूर किया जाने लगा। खेती करना असम्भव बना दिया। हल नहीं चला जमीन पर, फसल नहीं पर कर देने पर मजबूर किया गया। मंागी जा रही रकम नहीं दी तो यातनाएं दी गई। दिन की तपती दोपहर में पांव से बांधकर उल्टे लटकाया गया। लकड़ी की पैनी छिप्पटें नाखूनों में घुसाई गई। बाप और बेटों को एक साथ बांधकर कोड़े बरसाये गये। औरतों को कोड़े मारे जाते थे। आँखो में लाल मिर्च का चूरा बुरक दिया जाता था। गुनाहो का प्याला लबरेज हो गया। औरतों के स्तनों पर बिछू बांध दिये जाते थे। यह सब जुलमों की खबरे बंगाल आर्मी के फौजियों के पास भी पहंुची। क्या बताया गयाः
रागनी-5
बल्यू आइड आर्मी कहैं बगावत उपर आगी फेर।।
दम-दम मैं जो उठी चिन्गारी फैलण मैं ना लागी देर।।
ठारा सौ सतावण साल था जनवरी का म्हिना बताया रै
विद्रोह की जब लाली फूटी फिरंगी घणा ए घबराया रै
मंगल पाण्डे आगे आया रै नींद अंग्रेजां की भागी फेर।।
इसकी लपट मई के मैं मेरठ छावनी मैं पहोंच गई
मेरठ छावनी तै कूच करया दिल्ली आकै दबोच लई
फिरंगी की सोच बदल दई छाती मैं गोली दागी फेर।।
हिंदु मुस्लिम सिपाही सारे थे कठ्ठे लड़े सतावण मैं
पहले भी एकता थी उनकी मिलकै भिडे़ सतावण मैं
डटकै अड़े सतावण मैं या देश भावना जागी फेर।।
किसान और जमींदार दोनों फिरंगी खिलाफ खड़े होगे
दुनिया के साहसी खड़े इसपै ये सवाल बड़े होगे
फिरंगी और कड़े होगे मदद लंदन तै मांगी फेर।।

वार्ता-------
इस प्रकार इस विद्रोह के ज्यादा व्यापकता वाले कारण थे। देश प्रेम की भावना और अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ गुस्सा था। अंग्रेजों के प्रति सहानुभ्ूाति खत्म होती जा रही थी। ऐसी राष्ट्रीय भावना गौ और सुअर की चर्बी लगे कारतूसों के इस्तेमाल से पैदा नहीं की जा सकती थी। ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि अंग्रेजों के विरूद्ध जंग में हमारे फौजियों ने इन्ही कारतूसों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया था। मेरठ से देसी फौज दिल्ली के लिए चल पड़ी। क्या बताया भलाः
रागनी-6
बंगाल आर्मी फौज के सिपाही डटगे रणभूमि मैं आकै।।
हिंदु मुस्लिम साथ लडंे फिरंगी पड़या तिवाला खाकै।।
हर जवान फौजी के दिल मंे उमंग भरी घणी भारी रै
सारै फौजी पाछै-पाछै चाले आगै  पांडे क्रान्तिकारी रै
न्यों सोचैं थे फौजी तिरंगा लहरा दयां दिल्ली जाकै।।
तिल-तिल करकै आगे बढ़ते देश आजाद कराया चाहवैं
धर कांधे बन्दूक फौजी सभी कदम तै कदम मिलावैं
  थी नई-नई तकरीब भिड़ाई सारै भाज्या फिरंगी घबराकै।।
महिला कति पाछै रही कोन्या हर जगां वो साथ लड़ी
अंग्रेजां नै होई धरती भीड़ी ये देखी औरत साथ खड़ी
पहली आजादी की जंग फिंरगी छोड़या कति रंभा कै।।,
बंगाल आर्मी फोजी सेना नया इतिहास रचाया था
तन-मन-धन सब लाकै देश आजाद कराना चाहया था
रणबीर सिंह करै कविताई  रै कलम अपनी या ठाकै।।
वार्ता---------
मेरठ के बागियों ने 11 मई 1857 को दिल्ली पर कब्जा कर लेने के बाद मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को शंहशाह ए हिंदुस्तान बना दिया गया। इसके साथ ही बागी सैनिकों की निगाहें दिल्ली के आसपास के इलाके पर पड़ी। दिल्ली के तीन तरफ हरियाणा का क्षेत्र का है और 1803 कम्पनी राज ने दिल्ली समेत  इसे महाराजा सिंधिया से छीनकर बंगाल प्रै्र्रसीडेंसी के उत्तर पश्चिमी प्रान्त का दिल्ली डिविजन बना दिया था। इसमें गुड़गांव रोहतक, हिसार, पानीपत और अंबाला के जिले शामिल थे। 11 मई को गुड़गावां पर कब्जा कर लिए जाने से शुरू हुई। एक मेव किसान सदरूद्दीन ने बागी सेना और किसानों व कारीगरों को नेतृत्व प्रदान किया। क्या बताया भलाः
रागनी-7
बढ़ां आगाड़ी भाई लड़ण का मौका है फिलहाल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
दुश्मन का सामना करना है, फिरंगी के जुल्म तै के डरना है
एक रोज जरूरी मरना है, इसे आज मरे इसे काल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
नींव आजादी की हम धरज्यावां, हम नाम भारत का कर ज्यावां
देश की खातर कट कै मरज्यावां, म्हारा सबका योहे ख्याल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
कदम बढ़ावा फर्ज बुलावै सै, वीर मरद मिल बतलावै सै
देश गुलाम रखना चाहवै सै, यू अंग्रेज फिरंगी चाण्डाल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
सदरूद्दीन नै लाया नारा, यो हिंदुस्तान सै सबनै प्यारा
बीर मरद रणबीर देश सारा, आजादी की उठैं झाल
वीर महिला भारत मां के लाल।।
दिल्ली पर 13 सितम्बर के बाद अंग्रेजीं सेना का कब्जा हो जाने पर भी मेवात के शूरवीर दिल्ली के हालात से बेखबर आजादी का परचम उठाये दो महीने तक अंग्रेजीं सेना के मशहूर जनरल शावर का मुकाबला करते रहे। राय सीमा के यु़द्ध में अंगेेज क्लेक्टर कोर्ड को 13 अक्टूबर को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस सब के बावजूद देश आजाद कराने का जुनून था उनमें।
रागनी-8
फौजीं हैं देश दिवाने अब आजाद करा कर मानैंगे।।
हम आजादी पाने आये आजादी पाकर मानैंगे।।
गुलामी की जंजीरे टूटेगीं उस वक्त तसल्ली पायेंगे
पीछे हटने वाले नहीं लड़ते-लड़ते ही मर जायेंगे
हम भी किसी से कम नहीं तूफान उठाकर मानैंगे।।
फिरंगी ने जुलम ढाये कारीगरों के हाथ कटवायें
सोने की चिड़िया को फिरंगी कंगाल बनाना चाहे
एक बार कदम बढ़े हमारे तो मंजिल जाकर मानैंगे।।
मैदाने जंग में डटे हुए ज्यान की बाजी लगा रहे
देश की आजादी की खातर गोली सीने मैं खा रहें
नये तराने दिल में हैं हम इनको गाकर मानैंगे।।
कटते रहें बढ़ते रहें ये लाल खून रंग लायेगा
बंगाल आर्मी का फौजी आगे कदम बढ़ाता जायेगा
दे बड़ी से बड़ी से कुर्बानी हम दुश्मन को हिलाकर मानैंगे।।
1857 की क्रान्ति में कानपुर के योगदान की जब चर्चा होगी तो सबसे पहले नाना राव पेशवा, तात्या टोपे, और अजी मुल्ला का नाम आयेगा लेकिन नाच गाकर अंग्रेजी अफसंरो का मन बहलाने वाली तवायफ अजीजन बाई और उसकी मस्ताना टोली की सदस्य हुसैनी खानम के योगदान और बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। अजीजन को हुस्न का जादू और घुंघरूओं की खनक अंग्रेज पर वह असर डालती थी जिससे शराब के नशे में मदहोश होकर अंग्रेज कई महत्वपूर्ण राज अजीजन के सामने ब्यान कर देते थे जो वह क्रान्तिकारियों को पहुंचाकर उनके आन्दोलन को मजबूत बना रही थी। बाद में अंग्रेजों ने इन्हें माफी मांगने तथा उनके सामने जमीन पर नाक रगड़ कर रहम की प्रार्थना करने को कहा। आजादी की इन सिपाहियों ने यह तो कबूल किया कि उन्होंने अंग्रेजों के खून से होली खेली है लेकिन देश का माथा ऊंचा रखते हुए माफी माँगने और रहम की  भीख मांगने से इन्कार कर दिया।
रागनी-9
देश भक्ति की घणी निराली या मिशाल अजीजन बाई।।
फिरंगी के किले मैं नाच गाने के दम पै सेंध लगाई।।
कानपुर में तवायफ का वा जीवन बिताया करती
नाचना गाना कमाल का था अंग्रेजों नै रिझाया करती
नशे मैं धुत करने के वास्ते दारू खूब पिलाया करती
भीतर की सारी सी आई डी बागियों नै पहुंचाया करती
अजीजन के साथी हैरान तवायफ औरत गजब बताई।।
अंग्रेजां के छबके मारै अजीजन तरफ लखाले नै
चापलूसी छोड़ फिरंगी की देशप्रेम का झण्डा ठाले नै
तो जमींदार इलाके का ईब उल्टे कदम हटाले नै
देश प्रेम की बहार चली सुर गेल्यां सुर मिलाले नै
देख अजीजन की दलेरी तनै चाहिये बदलनी राही।।
कानपुर दिया छोड़ फिरंगी चारों तरफ लखाया
महिला बच्चों को उननै बीवी घर में पहोंचाया
अजीजन बाई ने घेरा दे उनका खात्मा चाहया
बागी फौजी तो नाट गये बाई नै गुस्सा आया
अजीजन बाई ने तुरत फेर बुलाये च्यार कसाई।।
इस जनम के करमां का फल इसे जनम मैं थ्याया
तवायफां नै डेढ़ सौ मारे फौज का पूरा साथ निभाया
फिरंगी का साथ नहीं देउं न्यों नसीब नै मन बनाया
जन विद्रोह देख फिरंगी रणबीर सिंह घणा घबराया
कई किताब पढ़कै नै रागनी अजीजन की बनाई।।
अजीजन का जब बगावत का दौर था तो बहुत दिलेरी के साथ फौजियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी। एक दिन सोते वक्त अजीजन बाई सपने के अन्दर क्या देखती हैं भलाः
रागनी-10
ये अपने चाल पड़े हैं फौजी भारत देश के।।
बगावत पै जमे खड़े हैं फौजी भारत देश के।।
पूछती है झोपड़ी और पूछते हैं खेत भी
अब तक गुलाम पड़े हैं फौजी भारत देश के।।
बिना लड़े कुछ नहीं मिलता यहां यह जानकर
फिरंगी से सही भिड़े हैं फौजी भारत देश के।।
चीखती हैं रुकावटे ठोंकरों की मार से ही
ये होंसले लिए बड़़़े हैं फौजी भारत देश के।।
गुमान है इनकी खून से लतपथ लाशों पर
मोरचे पर खूब अड़े हैं फौजी भारत देश के।।
रोहतक को मुक्त कराने के लिए मुगल बादशाह बहादुर शाह जपफर ने 24 मई 1857 को सेना की एक टुकड़ी के साथ तफजुल हुसैन को रोहतक भेजा। विद्रोही सेना का मुकाबला न कर पा रोहतक का डिप्टी कमिश्नीर जी.डी. लाक व दूसरे अफसर पानीपत की छावनी की तरफ भाग निकले। कचहरी और सरकारी दफतर जला डाले। बागियों ने महम और मदीने पर कब्जा कर लिया। एक दिन एक किसान और उसकी पत्नी अंग्रेजों के बारे में बात करते हैं। पति अंग्रेजों के हक में था मगर पत्नी खिलाफ थी। क्या बताया भलाः
रागनी-11
नहीं देता तनै दिखाई इननै सिर पै चढ़ावै क्यों।।
भारत देश आगे बढ़ाया अंग्रेजां ने बिसरावै क्यों।।
न्यारे-न्यारे रजवाड़े थे कई देश आड़े बस्या करते
एक नै लेते अपनी गोदी दूंजे उपर ये हंस्या करते
तीर निशाने आपस के मैं ये रजवाड़े कस्या करते
बन्दर बांट मचा फिरंगी भारत नै ये डस्या करते
नीच फिरंगी मनै बता पिया तनै इतना भावै क्यों।।
अंग्रेजां ने सुण गोरी भारत राज्य एक बनाया सै
रेल और सड़को का इननै गहरा जाल बिछाया सै
बिदेशां नै मेहनत करी ना पाछै कदम हटाया सै
देख इनकी जीवन शैली मेरा तो सिर चकराया सै
कहै अंग्रेज नै फिरंगी इननै लुटेरे बतावै क्यों।।
भारत बणा कई देशां का भोतै बढ़िया काम करया
रेल बिछाकै म्हारे देश मैं अपने देश का गोदाम भरया
कच्चा माल लेग्या लाद कै म्हारा मजदूर तमाम मरया
लगान के कानून बदले निशानै लजवाणा गाम धरया
भूरा निंघाइया लड़े पिया बता उननै तूं भुलावै क्यों।।
मनै के बेरा जो कुछ देख्या वोहे मनै बताया गोरी
इतनी गहरी बात कदे मै समझ नहीं पाया गोरी
इनका जमींदार सै सूरता उसनै मैं बहकाया गोरी
रणबीर बरोने आला कहै तनै मैं समझाया गोरी
सारे सोचा मिल बैठ कै फिरंगी लूट कै खावैं क्यों।।
तफजुल हुसैन अब वापिस लौटते समय सांपला और मांडौठी के सरकारी दफतरों को भी आग देते गए। अंग्रेज अफसरों ने लिखा है कि उच्य वर्ग के लोगों से छोंटों तक सबकी हमदर्दी बादशाह के सैनिकों और बागियों के साथ है। परन्तु ज्यों ही रोहतक जिले में अंग्रेजी सत्ता समाप्त हुई किसान लोग कबिलाई आधार पर आपस में लड़ने लग गये। इन्हीं हालात में कम्पनी सरकार ने जी.डी लाक डिप्टी कमिश्नर को भारतीय रैजीमेंट वेफ साथ रोहतक पर काबू पाने के लिए दोबरा रवाना कर दिया। खिड़वाली गांव के लोग आपस में इन बातों पर चर्चा करते हैं और गाम गुहांड में एकता बनाने की बात करते हैं। क्या बताया भलाः
रागनी-12
सारस बरगी जोट बणाकै, सब हों कट्ठे नर और नारी हो
खान फैक्टरी स्कूल मैं जाकै, साझा सघर्ष का बिगुल बजाकै
देश नै माना आजाद कराकै, यो फिरंगी घणा अत्याचारी हो।।
मजबूत यूनियन बणाकै, आपस के सब मतभेद भुलाकै
टी सी चमचा गिरी मिटाकै, बणै ढाल एकता न्यारी हो।।
न्यारे-न्यारे कड़ नै तड़वाकै, बैठे अपने घर नै जाकै
एक दूजे की चुगली खाकै, कुल्हाड़ी अपनंे पाहयां पर मारी हो।।
देखो उत्तर प्रदेश मैं जाकै, आंख खोल चारो तरफ लखाकै
हरियाणे तै चिट्ठी मंगवाकै, बूझो जो झूठी बात म्हारी हो।।
या जात पात की खाई हटाकै, सही गलत का अन्दाज लगाकै
साझे हकां की लिस्ट बणाकै, करां आजादी की तैयाारी हो।।
इनके राज ना सूरज छिपता, इनके साहमी कोए ना टिकता
नहीं इनका यो भकाना दिखता, म्हारी सबकी खाल उतारी हो।।
ईस्ट इडिंया पै लुटवाकै, कई हजार करोड़ मुनाफा दिवाकै
म्हारे कान्ही फेर हाथ हिलाकै, कहते किस्मत माड़ी थारी हो।।
उल्टे सीधे म्हारे पै कानून लाकै, साथ जेल का डर दिखलाकै
फेर पुलिस पै गोली चलवाकै, फिरंगी करेगा हमला भारी हो।।
पूरी जनता साथ मिलाकै, हरतबके नै या बात समझाकै
ना रहै रणबीर कहै कसम उठाकै फेर फिरंगी भ्रष्टाचारी हो।।
17 अगस्त को बाबर खान के तहत 300 रांघड़ घुडसवारों और 1000 पैदल सैनिकों ने अंग्रेजी सेना पर  रोहतक पर धावा बोल दिया। लड़ाई बड़ी भीषण थी। परन्तु कुछ समय बाद अंग्रेजी सैनिक शक्ति की और अधिक कुमुक आ जाने के  बाद बागियों को रोहतक छोड़कर हांसी के पास बसी गांव मंे मोर्चा जमाना पड़ा। हडसन खरखोदा, सांपला, पानीपत, महम गोहाना आदि कस्बों का दबाने के  बाद इलाके को जींद के महाराजा और चौधारियों के हाथ सौंप कर चला गया। इस लड़ाई में खिडवाली के कई शहीद हुए थे। क्या बताया भलाः
रागनी-13
ठारा सौ सतावण में आजादी की पहली जंग लड़ी।।
खिडवाली की पलटन नै तोड़ी कई मजबूत कड़ी।।
माणस खिडवाली के भिड़गं अंग्रेजां के साहमी जाकै
दो फिरंगी तहसील मैं मारे मेम पड़ी तिवाला खाकै
भीतरला जमा भरया पड़या बाट देखैं थे एडडी ठाकै
पाछले जुल्मां का सारा हिसाब फेर धरा लिया आकै
फिरंगी से लड़णे की पूरी गुप्त योजना सही घड़ी।।
बही शेख और लालू वाल्मिकी जमकै लड़ी लड़ई थी
तिरखा बाल्मिकी मोहमा शेख हिम्मत खूब दिखाई थी
जुलफी मोची सुनार राम बक्स आजादी पानी चाही थी
बेमा बाल्मिकी इदुर मौची ने ज्यान की बाजी लााई थी
मुफी औला पठान लडया साथ मैं जनता खूब भिड़ी।।
मोहर नीलगर खिडवाली का ना मुड़कै कदे लखाया
सायर बाल्मिकी लड़ाकू नै फिरंगी तै सबक सिखाया
सुनाकी बाल्मिकी साथ लड़या वो कदे नहीं घबराया
बीर मरद जितने सबनै धुर ताहिं का साथ निभाया
फिरंगी राज के कफन मैं इस जंग नै कील जड़ी।।
खिडवाली ना रहया एकला साथ गामड़ी आया था
एक बै कब्जा रोहतक पै सबने मिलकै जमाया था
फिरंगी भाज लिया था नहीं कोए रास्ता पाया था
बहादुर शाह जफर को राजा सबने ही अपनाया था
रणबीर बरोने आला बतावै जंग की बात बड़ी।।
अलीपुरा और सोनीपत के बीच लिबास पुर कुंडली, मुरथल, बहाल गढ़, खानपुर, हमीद पुर सराय के वीरों ने बार-बार अंग्रेजी सेना और उनकी कानवाई पर हमले करने शुरू कर दिये। लिबास पुर के उदमीराम की युवको की टोली के कारनामें आज भी लोक गीतों में याद किये जाते हैं। इन छोटी-छोटी लड़ाइयों में इलाके के अनेक लोक शहीद हुए। अलीपुर गांव के 70-75 लोग शहीद हुए थे। लोगों को दो बातों का अहसास इस लड़ाई ने करवा दिया था। एक तो मजबूत संगठन की कमी और दूसरे मजबूत नीडर का अभाव। बागी देहात के हमलों का ही नतीजा था कि कम्पनी राज को अपनी पानीपत की छावनी करनाल ले जानी पड़ी थी। उदमीराम को यातनाएं दी गई उसे पेड़ पर लटका कर हाथों पैरों मंे कीले गाड़ दी गई। उदमीराम ने उस वक्त भारत वर्ष के लिए लोगों को संदेश दिया था। क्या बताया भलाः
रागनी-14
संगठन के आधार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
भाइचारे के प्र्रसार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
फिरंगी नै कर दिये चाले घरां कै लवा दिये ताले
आपस के रै प्यार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
बच्चे और बूढ़े होगें तंग बुरा महिलावां का यो ढंग
समता के व्यवहार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
फिरंगी के राज मैं जुल्म बढ़े बहोत माणस फांसी पै चढ़ै
आजादी के उभार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
मानवता का खून करया सै, म्हारा कालजा भून गिरया सै
लीडर की पतवार बिना म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
फिरंगी कै घेरी देनी होगी, बिपता सबनै या खेणी होगी
रणबीर एतबार  बिना, म्हारा ऊट मटिल्ला हो ज्यागा।।
1857 की आजादी की पहली जंग हुई। चार महीने तक दिल्ली पर हमारा राज्य स्थापित हो गया। बहुत से कारणों से चलते अंग्रेजों ने फिर कब्जा कर लिया। इतना तसदुद किया कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह जंग उस वक्त तक के सबसे महान आंदोलनों में एक थी। अंग्रेजों के पिठूओं को इनाम दिये गये तथा विद्रोहियों पर कहर ढाया गया। उसी दौर में एक मुहावरा चला साहब की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी नहीं होनी चाहिये। मगर एक बात साप हो गई कि अंग्रेजों का भारत से जाना शत प्रतिशत तय हो गया था जो कि सौ साल बाद हुआ। देश के शहीदो को दुनिया की कोई ताकत नहीं मार सकती। क्या बताया भलाः
रागनी-15
समाज की खातर मरने वाले आज तलक तो मरे नहीं।।
कुरबान देश पर होने वाले कदे किसी से डरे नहीं।।
अजीजन की हंसी हवा में आज भी न्योंए गूंज रही
चारों धाम यो मच्या तहलका हो दुनिया मैं बूझ रही
बैरी को नहीं सूझ रही पिछले गढे इबै भरे नहीं।।
फौजियां मैं जगा बनाई सी आई डी बढ़िया ढाल करी
उन बख्तां मैं अजीजन नै पेश कुरबानी की मिशाल धरी
जवानी मैं हुंकार भरी कदे होंसले म्हारे गिरे नहीं
मेरठ आम्बाला और मेवात एक बर ली अंगड़ाई थी
मिलकै लड़ी लड़ाई थी न्यारे रहे लाल पीले हरे नहीं।।
बेशक पहली जंग हारे अंग्रेेज का जाना लाजमी होग्या
ठारा सौ सतावण बीज देश मैं म्हारी आजादी के बोग्या
अंग्रेेेज का सूरज डबोग्या बेशक हम भी पार तिरे नहीं।।
सतावण नै राह दिखाई हजारा मंगल पांडे आगै आये
सौ साल पाछै बलिदान सैंतालिस मैं हटकै रंग ल्याये
रणबीर सिंह नै छन्द बनाये कलम दवात जरे नहीं।।

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