Friday, 17 July 2015

जुल्मी घूँघट

जुल्मी घूँघट
देवर भाभी की बहस
देवर- के होग्या दो दिन मैं क्यों घणा उप्पर नै मुह ठाया तनै।।
भाभी-दुनिया मैं एक इन्सान मैं भी ढंग तैं जीवणा चाहया मनै।।
           देवर
      बता भाभी गाम की इज्जत यो घूंघट नहीं सुहावै क्यों
      रिवाज नीची नजर तैं जीने का आंख तैं आंख मिलावै क्यों
      उघाड़े सिर चालै गाम मैं सरेआम म्हारी नाक कटावै क्यों
      सीटी मारैं कुबध करैं हाथ भिरड़ां के छते तों लगावै क्यों
      बहू सजै ना घूंघट के बिना बिन बूझें तार बगाया तनै।।
           भाभी
      रिवाजां की घाल कै बेड़ी क्यों बिठा करड़ा डर राख्या
      दुभान्त जिन रिवाजां मैं उनका भरोटा सिर पै धर राख्या
      घूंघट का रिवाज घणा बैरी ईनै पंख म्हारा कुतर राख्या
      कान आंख नाक मुह बांधे ज्ञान दरवाजा बन्द कर राख्या
      घूंघट ज्ञान का दुश्मन होसै पढ़ लिख कै बेरा लाया मनै।।
             देवर
      क्यूकर ज्ञान का दुश्मन सै तूं किसनै घणी भका राखी सै
      तेरै अपनी बुद्धि सै कोन्या चाबी और किसे नै ला राखी सै
      घंूघट तार कै पूरे गाम मैं ईज्जत धूल मैं खिंडा राखी सै
      सारा गााम थू थू करता घर घर तेरी बात चला राखी सै
      उल्टे रिवाज चला गाम मैं यो कसूता तूफान मचाया तनै।।
            भाभी
       ब्याह तैं पहलम तेरे भाई तैं घूंघट की खोल करी थी
       कही और सोच समझल्यां उनै ब्याह की तोल करी थी
       मनै सारी बात साफ बताई इनै ल्हको कै रोल करी थी
       रणबीर सिंह गवाह म्हारा मनै कति नहीं मखौल करी थी
       साची साच बताई सारी देवर कति ना झूठ भकाया मनै।।


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