Wednesday, 31 December 2014

रेगुलर नौकरी

रेगुलर नौकरी 

रेगुलर नौकरी पाना कोन्या कति आसान बताऊँ मैं ||
सी ऍम ऍम  पी सब धोरै पाँच साल तैं धक्के खाऊँ मैं ||  
पहलम कहवैं थे टेस्ट पास करे पाछै तूं बताईये 
पास करे पाछै बोले पहले चालीस गये बुलाईये 
एक विजिट चार सिफरिसी दो  हजार तले आऊँ मैं ||
सरकारी नौकरी रोज तड़कै ढूंढूं सूँ अख़बार मैं 
दुखी इतना हो लिया सूँ यकिन रहया ना सरकार मैं 
एजेंट हाँडें बोली लानते कहैं चाल  नौकरी दिवाऊं मैं  ||
एम् सी ए कर राखी कहैं डेटा आपरेटर लवा देवां 
कदे कहैं नायब तसीलदार ल्या तनै बना देवां 
तिरूँ डूबूं मेरा जी होरया सै पी दारू रात बिताऊँ मैं ||
घर आली पी एच डी करै उसकी फिकर न्यारी मने 
दोनूं बेरोजगार रहे तो के बनेगी या चिंता खारी मने  
रणबीर बरोने आले तनै सुनले दुखड़ा सुनाऊँ मैं ||

Sunday, 28 December 2014

बिल्ली कै घंटी कौण बांधै

बिल्ली  कै घंटी  कौण  बांधै
भेड़ों की  ढालां  बेघर लोगों का शहरां के ख़राब तैं  ख़राब घरां  में बढ़ता जमावड़ा आज के हरयाणा  की एक  कड़वी सच्चाई  सै ।
सारे  सामाजिक नैतिक बन्धनों का तनाव ग्रस्त होना तथा टूटते जाना  गहरे संकट की घंटी बजावण  सैं ।  बेर ना 
हमनै  सुनै   बी सै अक नहीं ? माहरे परिवार के  पितृ स्तात्मक  ढांचे में अधीनता (परतंत्रता ) का तीखा होना साफ  साफ  
देख्या जा  सकै  सै  । जिंघान  देखै  उँघानै पारिवारिक रिश्ते नाते ढहते जाना ।   युवाओं के  साहमी  पढ़ाई  लिखाई अर  रोजगार 
 की गंभीर चुनौतीयाँ  सैं ।   परिवारों में बुजुर्गों की असुरक्षा का बढ़ते जाना  जगहां  जगहाँ  देखन  मैं आवै सै ।  दारू नै रही सही 
कसर पूरी करदी , घर तो गामां  मैं  कोई बच नहीं रह्या  दारू तैं , मानस एकाध घर मैं बचरया  हो तो  न्यारी बात सै । ताश खेलण
तैं  फुरसत  नहीं ।  काम कै  हाथ लाकै  कोए  राज्जी  नहीं । बैलगाड्डी  की जागां  बुग्गी  नै   ले  ली  अर  बुग्गी  चलना  भी महिला 
के सिर  पै  आण  पड़या ।  ऐह्दी पणे  की हद होगी । महिलावाँ  पै और  बालकां  पै काम का बोझ बढ़ता जाण  लागरया  सै  | 
असंगठित क्षेत्र  बधग्या  अर  जन सुविधावां  मैं  घनी  कमी  आंती  जावै  सै |  एक नव धनाढ्य  वर्ग  पैदा होग्या  हरित क्रांति 
पाच्छै  उसकी  चांदी  होरी  सै  ।  उसका  निशाना  सै  पीस्से   कमाना  कुछ  भी  करकै   \ कठिन जीवन होता जा   सै । मजदूर वर्ग 
को पूर्ण रूपेण ठेकेदारी प्रथा में धकेल्या जाना आम बात की  ढा लां  देख्या  जा  सै  ।गरीब लोगों के जीने के आधार  कसूते  ढा ल  
सिकुड़ता  जान  लाग रया  सै \गाँव  तैं शहर को पलायन   का बढ़ना तथा लम्पन तत्वों की बढ़ोतरी होणा   चारों  कान्ही  दीखै  सै 
 | शहरां के विकास में अराजकता  छागी | ठेकेदारों  और प्रापर्टी डीलरों का बोलबाला  होग्या  चा रों तरफ ।
 जमीन की उत्पादकता में खडोत , पानी कि समस्या , सेम कि समस्या  तैं  किसानी का   संकट  गहरा ग्या ।  कीट नाशकां  के  
अंधाधुंध  इस्तेमाल  नै  पानी कसूता प्रदूषित कर दिया अर  कैंसर  जीसी  बीमारियां  के बधण  का   खतरा  पैदा  कर दिया । 
कृषि  तैं  फालतू  उद्योग कि तरफ  अर व्यापार की तरफ जयादा ध्यान  दिया  जावै  सै  इब  । 
स्थाई हालत से अस्थायी हालातों 
पर जिन्दा रहने का दौर आग्या  दीखै  सै ।   अंध विश्वासों को बढ़ावा दिया  जावण  लाग रया  सै  | हर दो किलोमीटर पर मंदिर 
का उपजाया जाना अर टी वी पर भरमार  सै  इसे  मैटर की ।
अन्याय  अर  असुरक्षा का बढ़ते जाण  की  साथ  साथ  कुछ लोगों के प्रिविलिज बढ़ रहे  सैं ।  मारूति से सैंट्रो कार की तरफ रूझान | आसान काला धन काफी इकठ्ठा किया गया सै । उत्पीडन अपनी सीमायें लांघता जा रया  सै  |गोहाना काण्ड  , मिर्चपुर कांड अर  रूचिका कांड ज्वलंत उदाहरण  सैं |
* व्यापार धोखा धडी में बदल  लिया  दीखै  सै । शोषण उत्पीडन और भ्रष्टाचार की तिग्गी भयंकर रूप धार रही  सै । भ्रष्ट नेता , 
भ्रष्ट अफसर और भ्रष्ट पुलिस   का  गठजोड़ पुख्ता हो  लिया  सै । प्रतिस्पर्धा ने दुश्मनी का रूप धार लिया ।  तलवार कि जगह 
सोने ने ले ली । वेश्यावृति दिनोंदिन बढ़ती जा सै  ।  भ्रम  अर  अराजकता का माहौल बढ़रया  सै  | धिगामस्ती बढ़ री  सै ।  
               संस्थानों की स्वायतता पर हमले बढे  पाछले  कुछ सालों  मैं । लोग मुनाफा कमा कर रातों रात करोड़ पति से अरब पति
 बनने के सपने देख रहे सैं  अर  किसी भी हद तक अपने  आप  नै गिराने को तैयार  सैं  । खेती में मशीनीकरण तथा औद्योगिकीकरण मुठ्ठी भर लोगों को मालामाल कर गया तथा लोक  जण को गुलामी व दरिद्रता में धकेलता जारया  सै । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का शिकंजा कसता जावण  लाग रया  सै 
वैश्वीकरण को जरूरी बताया जारया  सै जो असमानता पूर्ण विश्व व्यवस्था को मजबूत करता जाण  लाग  रहया  सै । पब्लिक सेक्टर
 की मुनाफा कमाने वाली कम्पनीयों को भी बेच्या जा रया   सै ।  हमारी आत्म निर्भरता खत्म करने की भरसक नापाक साजिश 
की जा रही सै । साम्प्रदायिक ताकतें देश के अमन चैन के माहौल को धाराशाई करती जा रही  सैं  जिनतें  हरयाणा  भी  अछूता  
 कोणी   सकता ।  सभी संस्थाओं का जनतांत्रिक माहौल खत्म किया जा रया  है । बाहुबल, पैसे , जान पहचान , मुन्नाभाई , ऊपर
 कि पहुँच वालों के लिए ही नौकरी के थोड़े बहुत अवसर बचे  सैं ।  महिलाओं  में अपनी मांगों के हक़ में खडा  होने  का उभार 
दिखाई देवै  सै | सबसे ज्यादा वलनेरेबल भी समाज का यही हिस्सा दिखाई देसै  मग़र सबसे ज्यादा जनतांत्रिक मुद्दों पर , नागरिक 
समाज के मुद्दों पर , सभ्य समाज के मुद्दों पर संघर्ष करने कि सम्भावना भी यहीं ज्यादा दिखाई देसै ।  वर्तमान विकास प्रक्रिया
भारी सामाजिक व इंसानी कीमत मानगणे  आली   सै  | इसको संघर्ष के जरिये पल ट्या जाना बहुत जरूरी  सै । फेर  बिल्ली  कै 
घंटी  कौण  बांधै ?

गया चौदा आवैगा पन्दरा

गया चौदा  आवैगा पन्दरा 
उठा पटक घनी देखि दो हजार चौदा  के साल मैं । 
दो हजार पन्दरा  मैं देश जान्ता दिखै बुरे हाल मैं । 
कालेधन का बोलबाला पाछले साल बताया देखो 
घोटाले पर घोटाला यो   सबके साहमी आया देखो 
कांग्रेस को सबक सिखाया देखो गेरदी पातळ मैं । 
जिन बातां का साहरा लेकै भाजपा केंद्र मैं आगी 
मोदी जी की लफ्फाजी एकबै पूरी जनता मैं छागी 
मीडिआ भी रोल निभागी मोदी के छवि उछाल मैं । 
महंगाई तैं ध्यान हटावन नै आर एस एस भड़कावै 
क्लेश हिन्दू मुस्लिम का जागां जागां पै भढ़वावै 
नफरत का जहर फैलावै यू पी बिहार बंगाल मैं । 
मेक इन इंडिया का नारा या बोल दई सरकार नै 
नकेल बदेशी कम्पनियाँ की खोल दई सरकार नै 
जहर घोल दई सरकार नै किसानां के खलिहान मैं । 
रणबीर --28 . 12 . 2014 


Saturday, 13 December 2014

धोल कपड़िये

16  दिसंबर 2014 को निर्भया के साथ हुई जघन्य बलात्कार की घटना के दो वर्ष पूरे होने जा रहे हैं । इस प्रकार की हो रही तमाम जघन्य घटनाओं के विरोध में 12 संगठनों  के द्वारा मानसरोवर पार्क रोहतक में 2  बजे बाद दोपहर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है ।  आप  सबसे अपील  है कि  ज्यादा से जयादा संख्या में शामिल  हों । 
"संगठनों के समूह की ओर  से "

धोल कपड़िये
मित्र बण कै वार करैं आज के धोल कपड़िये रै।
बेटा इन आली राही तूं मतना कदे पकड़िये रै।
बिना हेरा फेरी चोरी जारी ये जमा नहीं जी पावैं रै
मिलावट कर सब क्याहें मैं मुनाफा खूब कमावैं रै
बिना बात की बातां पै ये बणज्यां सैं अकड़िये रै।
बिन मेहनत कमा मुनाफा पीस्से नै पीस्सा खींचै रै
काले धन पर ऐष करैं सच्चाई तैं आंख मींचै रै
अरदास म्हारी सै इनके धोरे कै ना लिकड़िये रै।
काला धन कई तरियां के घर मैं ऐब ल्यावै फेर
दारू की लत पड़ज्या पराई बीर पै लखावै फेर
यो काला धन माणस नै घणा कसूता जकड़िये रै।
काली नैतिकता आज या धोली पै छाती आवै सै
सच्चाई कै गोला लाठी देकै रोजाना धमकावै सै
रणबीर काले की दाब मैं जमा नहीं सिकुड़िये रै।

नया साल चुनौतियों भरा है मंजूर सबको

कलकता हवाई अड्डे पर पता लगा की दामिनी ने अपने संघर्ष की आखिरी सांस सिंघापुर में ली है तो बहुत दुख हुआ और यह रागनी वहीं पर लिखी-
याद रहैगा थारा बलिदान दामिनी भारत देष जागैगा।
थारी कुरबानी रंग ल्यावैगी समाज पूरा हिसाब मांगैगा।
सिंघापुर मैं ले जा करकै बीह म थामनै बचा नहीं पाये
थारी इस कुर्बानी नै दामिनी आज ये सवाल घने ठाये
गैंग रेप की कालस का यो अंधेरा भारत देष तैं भागैगा।
दामिनी पूरा देश थारी साथ यो पूरी तरियां खड्या हुया
जलूस विरोध प्रदर्शन कर समाज सारा अड़या हुया
फांसी तोड़े जावैंगे वे जालिम इसपै हांगा पूरा लागैगा।
महिला संघर्ष की थाम दामिनी आज एक प्रतीक उभरगी
दुनिया मैं थारी कुर्बानी की कोने-कोने सन्देश दिगर गी
इसमें शक नहीं बचर या कोर्ट जालिमों नै फांसी टांगैगा।
लम्बा संघर्ष बदलन का सोच समझ आगै बढ़ ज्यांगे
मंजिल दूर साई दामिनी हम राही सही पै चढ़ ज्यांगे
कहै रणबीर सिंह नए साल मैं जालिम जरूरी राम्भैगा।
वास्तव में पूरे देश में एक बार निर्भया के हक में और ब्लात्कारियों के विरोध में एक जन सैलाब सड़कों पर उमड़ आया था। जस्टिस वर्मा की रिपोर्ट में कई सिफारिसें की गई थी ।

Wednesday, 10 December 2014

गरज गरज के प्यारे

दादा पंडित लखमी चन्द की एक रागनी
गरज गरज के प्यारे
देखे मर्द नकारे हों सैं गरज गरज के प्यारे हों सैं
भीड़ पड़ी मैं न्यारे हों सैं तज कै दीन ईमान नै।।
जानकी छेड़ी दशकन्धर नै,गौतम कै गया के सोची इन्द्र नै
रामचन्द्र नै सीता ताहदी,गौरां षिवजी नै जड़ तैं ठादी
हरिश्चन्द्र  नै भी डायण बतादी के सोची अज्ञान नै।।
मर्द किस किस की ओड घालदे, डबो दरिया केसी झाल दे
निहालदे मेनपाल नै छोड़ी , जलग्यी घाल धर्म पै गोड़ी
अनसूइया का पति था कोढ़ी,वा डाट बैठगी ध्याान नै।।
मर्द झूठी पटकैं सैं रीस, मिले जैसे कुब्जा से जगदीश
महतो नै शीष बुराई धरदी,गौतम नै होकै बेदर्दी
बिना खोट पात्थर की करदी खोकै बैठगी प्राण नै।।
कहैं सैं जल शुद्ध पात्र मैं घलता लखमीचन्द कवियों मैं रलता
मिलता जो कुछ करया हुया सै, छन्द कांटे पै धरया हुया सै
लय दारी मैं भरया हुया सै, देखो तसे मिजान नै।।

साच्ची बात


बाजे भगत जी की एक रागनी सम सामयिक मुद्ये को छूती हुई
साच्ची बात कहण मैं सखी हुया करै तकरार।।
दगाबाज बेरहम बहन ना मरदां का इतबार।।
रंगी थी सती प्रेम के रंग मैं, साथ री बिपत रुप के जंग मैं
दमयन्ती के संग मैं किसा नल नै करया ब्यौहार
आधी रात छोड़ग्या बण मैं लिहाज षरम दी तार।।
सखी सुण कै क्रेाध जागता तन मैं  मरद जले करैं अन्धेरा दिन मैं
चौदहा साल दुख भोगे बण मैं,ना तज्या पिया का प्यार
फेर भी राम नै काढ़ी घर तैं, वा सीता सतवन्ती नार।।
बात हमनै मरदां की पागी,घमन्ड गरुर करै मद भागी
बिना खोट अन्जना त्यागी, करया पवन नै अत्याचार
काग उडाणी बणा दई, हुया इसा पवन पै भूत सवार।।
खोट सारा मरदां मैं पाया, षकुन्तला संग जुल्म कमाया
गन्धर्व ब्याह करवाया दुश्यन्त नै, कर लिए कौल करार
शकुन्तला ना घर मैं राखी , बण्या कौमी गद्दार।।