Tuesday, 31 December 2013

मुबारक नया साल

मुबारक नया साल 
नए  साल मैं चौखे ब्यौंत आला खूबै काच्चे काटो भाई रै ॥ 
ऑन लाइन पर काम कराओ बढ़िया स्कीम चलायी रै ॥ 
मॉल घने गजब के सब कुछ मिलै एक छत नीचै 
बाहर खड़या गरीब तो अपने खाली पेट नै भींचै 
ब्यौंत आला घरां बैठ करै बुकिंग जहाज हवाई रै ॥ 
अपोलो बरगे फाइव स्टार अस्पताल गजब खोले 
इलाज घना मंहगा करया सुनकै म्हारा हिया डोले 
गरीब मरो सड़ कै नै कहवण की ये मुफ्त दवाई रै ॥ 
एयर कंडीशन्ड जीवन का न्यारा यो संसार बनाया 
स्कूल घर कार अस्पताल सारै इसका जाल बिछाया 
नये साल की आज रात नै जावैगी धूम मचाई रै ॥ 
मुबारक क्यांकि अर किसनै थोडा गम्भीर सवाल 
आप पार्टी आगै ल्याई जनता का सै गजब कमाल 
जनता नै बेचैनी अपनी पूरी दुनिया ताहिं बताई रै ॥ 
सब रंगां का समावेश भारत देश हमारा देश होवै 
जात पात और मजहब का आड़ै ना यो क्लेश होवै 
रणबीर सोच समझ कै करता अपनी  कविताई रै ॥ 

Monday, 30 December 2013

मुबारक नए साल की

मुबारक नए साल की
शाइनिंग इंडिया सफरिंग इंडिया अंतर बढ़ता जाता रै ।
क्यूकर पाटाँ इस अंतर नै नहीं कोए मनै समझाता रै ।
यो शाइनिंग इंडिया बहोत घणी आगै जा लिया बताऊँ मैं
गुड़गामा नया और पुराना देखल्यो ना जमा झूठ भकाऊँ  मैं
नए और पुराने का अंतर रोज मेरे जिस्याँ नै उलझाता  रै ।
पुराने ढाँचयाँ तैं लोग घणे दुखी हो लिए हिंदुस्तान म्हारे के
पुराणी सोच ओछी जूती सै काटै पैरों नैं या किसान म्हारे के
नए ढांचे लूट के बनाये सैं भ्रष्टाचार घुमै सै दनदनाता रै ।
नए साल मैं नयी इबारत जनता लिखनी चाहवै जरूर
जात मजहब तैं उप्पर उठकै या भ्रष्टाचार मिटावै जरूर
लड़ाई लम्बी सै संघर्ष मांगती कति नहीं झूठ भकांता रै ।
सिस्टम एक रात मैं बदलै इसा इतिहास ना तोह्या पावै
सिर धड़ की क़ुरबानी मांगै जिब खरोच या इसकै आवै
मेरा जी तो अंतर कम करने को अपनी कलम घिसाता रै ।

Monday, 16 December 2013

TARK AUR VIVEK KI DUNIYA



Reasoning is one of the major component of Scientific Temper

GHUNGHAT TAR BAGAYA HEY


EVEN TODAY THERE IS GHUNGHAT IN RURAL HARYANA

our heritage

डॉ रणबीर सिंह दहिया

विज्ञानं का पैगाम


MESSAGE OF SCIENCE

अपने हाथ कलम पकड़ो

अपने हाथ कलम पकड़ो
चालाक आदमी फैयदा ठारे , इब माणस की कमजोरी का
घर की खांड किरकरी लागे , कहैं गूँद मीठा चोरी का
भगत और भगवान के बीच , दलाल बैठगे आकै
एक दूसरे की थाली पै , यें राखें नजर जमाकै
सीधी साच्ची बात करैं ना , यें करते बात घुमाकै
झोटे जैसे पले पड़े यें , सब माल मुफ्त का  खाकै
म्हारी जेब पै बोझ डालते , अपनी जीभ चटोरी का||
हम बैठे भगवान भरोसे , ये कहरे हम दुःख दर्द हरैं
यें मंदिर की ईंट चुरा कै अपने घर की नीव धरैं
सारा बेच चढ़ावा खाज्याँ टीका लाकै ढोंग करैं
आप सयाने हम पागल बनाये , पाप करण तैं नहीं डरें
म्हारी राह मैं कांटे बोये , यें फैयदा ठारे धौरी का ||
राम के खातर खीलां फीकी ,यें काजू पिसता खावें
भगवान के ऊपर पंखा कोनी , यें ए सी मैं रास रचावें
मुर्गे काट चढ़ा पतीली , यें निश दिन छौंक लगावें
रिश्वत ले कै राम जी की , यें भगतों तैं भेंट करावें
बड़े बड़े गपौड़ रचें , यें करते काम टपोरी का ||
यें व्रत करारे धक्के तैं , धर्म का डर बिठा कै
खुद पड़े पड़े हुक्म चलावें म्हारी राखें रेल बना कै
टीके लाकै पोथी बांचें , कई राखें झूठे ढोंग रचा कै
'रामेश्वर ' सब अँधेरा मेटो , थाम तर्क के दीप जला कै
अपने हाथ कलम पकड़ो , लिखो इब अंत स्टोरी का ||

tod ho liya

निचोड़ हो लिया
सफ़दर जी की हत्या से निचोड़ हो लिया
हुया हड्खाया राजवर्ग यो तोड़ हो लिया
एक जनवरी साल नवासी मोटा चाला होग्या
हुया हमला सफ़दर ऊपर घायल कुढाला होग्या
हमलावर खुद राज करनीये खुल्ला पाला होग्या
सफ़दर के नाटक का ढंग योतै निराला होग्या
यो राजनीती और हत्या का गठजोड़ हो लिया ||
चारों कूट मैं शोक फैलग्या कूकी दुनिया सारी
गाँव गाँव और शहर शहर मैं दुखी हुए नर नारी
पैरिस लन्दन रोम के अन्दर सदमा था बड़ा भरी
कलाकार था जग मैं नामी थी संस्कृति प्यारी
यो सरकारी चिलत्तर का भन्दा फोड़ हो लिया ||
सफ़दर हाश्मी डस लिया सर्प राज का काला है
अभिव्यक्ति की आजादी का इब तक यो टाला है
राजवर्ग की भाषा बोलो वर्ना मुंह पर ताला है
साच पर से जो पर्दा ठावै उसी ज्यान का गाला है
राजवर्ग सारी जगह का दीखे एक औड हो लिया ||
जल्दी संभलो रचना कारो कला पर यो हमला है
जन पक्ष की कला हमारी ना बिल्कुल ये अबला है
रोंदना चाहते हो तुम जैसे करता हाथी पगला है
हबीब भारती विचार करों क्या कदम हमारा अगला है
वर्ग लुटेरा हत्यारा यो एक ठयोड़ हो लिया ||

salam safdar ko

सलाम सफ़दर को
समाज की खातर मरने आले आज तलक तो मरे नहीं ||
कुर्बान देश पर होने वाले कदे कभी किसी से डरे नहीं ||
सफ़दर की हांसी हवा मैं आज भी न्योंये गूँज रही
चारों धाम था मच्या तहलका हो दुनिया मैं बूझ रही
बैरी को नहीं सूझ रही पिछले गढ़े इब्बऐ भरे नहीं ||
मीडिया मैं जगहां बनाई विडीयो बढ़िया त्यार करी थी
खिलती कलियाँ के महां बात सही हर बार करी थी
जवानी उसकी हुनकर भरी थी गलत काम कदे करे नहीं ||
जितने जीया सफ़दर साथी जीया जमा जी भर कै नै
था लेखक बढ़िया अदाकार नुकड़ रच्या कोशिश कर कै नै
निभाया वायदा मर कै नै जुल्मों से सफ़दर डरे नहीं ||
एक सफ़दर नै राह दिखाई हजारों सफ़दर आगे आवैंगे
माला हाश्मी बनी सै चिंगारी घर घर मैं अलख जगावैंगे
हम फिरकापरस्ती तैं टकरावैंगे रणबीर के कलम जरे नहीं ||



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GHUNGHAT

SEHAT KA RAJ

GUPTI JAKHAM

15 AUGUST

गरीब किस्सान की आप बीती

गरीब किस्सान की आप बीती
दो किल्ले धरती सै मेरी मुश्किल हुया गुजारा रै॥ 
खाद बीज सब महंगे होगे कुछ ना चालै  चारा रै॥ 
बुलध यो पड्या बेचना ट्रैक्टर की सै  मार पड़ी
मैं एकला कोन्या लोगो मेरे जिस्याँ की लार खड़ी
स्वाद प्याज की चटनी का पाछै सी होग्या खारा रै ॥ 
मिंह बरस्या कोन्या ट्यूबवैल का खर्चा खूब हुया
धान पिटग्या मंदी के माँ इसका चर्चा खूब हुया 
चावल का भा ना तले आया देख्या इसा नजारा रै ॥ 
भैंस बांध ली बेचूं दूध यो दिन रात एक करां
तीन हजार भैंस बीमारी के गए डाक्टर के घरां 
तीस हजार कर्जा सिर पै टूट्या पड्या ढारा  रै ॥ 
बालक धक्के खान्ते हाँडै  इननै रुजगार नहीं 
छोरी बिन ब्याही बिन दहेज़ कोए त्यार नहीं
छोरा हाँडै गालाँ  मैं मेरे बाबू का चढ़ज्या पारा रै॥ 
घर आली करै सिलाई दिन रात करै वा काले
खुभात फालतू बचत नहीं हुए ये कसूते चाले
दारू पी दिल डाटूं ये  बालक कहैं मने आवारा रै॥ 
कर्जा जिस पै लिया उसकी नजर घनी बुरी सै
घरां आकै जम्जया सै दिलपै चल्ले मेरे छुरी सै
रणबीर बरोनिया का बिक्गया  घर का हारा  रै॥ 

Sunday, 15 December 2013

Mahila Virodhi

महिला विरोधी माहौल नजर हरयाने मैं आवै 
मातृशक्ति जिंदाबाद का उपरले मन  तै नारा लावै  
असुरक्षा बढ़ाई चारों कान्ही महिला जमा घिरगी रै 
महिला अजेंडा  ठारे सें   पर लिंग अनुपात गिरगी रै 
दिशा म्हारी कदे गलत हो रोजाना याहे  चिंता खावै। 
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महिला महिला की बैरी झूठ पै गहटा जोड़ लिया 
सच्ची बात किमै दूसरी उसतै  मूंह क्यों मोड़ लिया  
पितृसता पुत्र लालसा पै नहीं कोए अन्गली ठावै   । 
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म्हारी मानसिकता सुनल्यो हुई सै कसूती हत्यारी  
धन दौलत मैं हिस्सा ना बातबात पर जा दुत्कारी 
पूरी मोर्चे बंदी करदी दरवाजा नहीं खुल्या पावै। 
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इसी निराशा मैं बी कई महिला आगे बढ़ी बताऊँ 
खेलां मैं छाई सें करैं संघर्ष हर मोर्चे पै दिखाऊँ 
रणबीर सिंह जी लाकै सच्चाई सबकै साहमी ल्यावै । 
 
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Wednesday, 6 November 2013

PREM KAUR KA INTZAR

बहुत इन्तजार किया प्रेमकौर ने फौजी के छुट्टी आने का। तरह तरह की खबरें थी। भारत की फौज के बारे अफवाहें जारी थी। आजाद हिन्द फौज के लिए सुभाश चन्द्र बोस बहुत प्रयास कर रहे थे। मेहर सिंह का कोई अता पता नहीं लग रहा था। तब प्रेम कौर एक चिठ्ठी लिखवाती है। क्या बतसष भला-

लिख्या चिठ्ठी के दरम्यान,कुछ तो करो मेहर सिंह जी ध्यान, ल्यो मेरा कहया मान
, जिसकै घरां बहू जवान, ना रुसानी चाहिये सै,ख्याल करिये।
समझ कै कार करो इन्साफी, गल्ती होतै दियो माफी,पापी ना हो कमा खुषहाल,
 जिसनै नहीं बहू का ख्याल, जो देवे कानां पर को टाल, 
उनै देती दुनिसा गााल, ना खानी चाहिये सै, ख्याल करिये।
अपनी इज्जत खुद क्यूं खोवै, अगत के राह मैं कांटे बोवै
होवै या बीमार लाइलाज, जल्दी करदे किमै इलाज,होवै तनै बीर पै नाज
तूं तो गया फौज मैं भाज, बहू बुलानी चाहिये सै, ख्याल करिये।
बिना तेरे जवां उम्र ना कटती,इसमैं तेरी बी आबरु घटती,
डटती ना उठती जवानी,कर साजन मेहरबानी, मतना कर तूं मनमानी
कदे होज्या ना कोए नादानी, समझाानी चाहिये सै, ख्याल करिये।
कहूं रणबीर सिंह तैं डरकै,ध्यान सब उंच नीच पै धरकै
लिख कै बहू को दो बात, चिन्ता कम करो मेरे नाथ, मैं देउंगी थारा पूरा साथ
करकै घरां खूब खुभात,या दिखानी चाहिये से, ख्याल करिये।

SACHA PAYAR

फौजी मेहर सिंह की मुसलमानों में बहुत पक्की यारी दोस्ती थी। यह बात उनकी छोटी भाभी ने चैपाल में सबके सामने बताई थी। वह इसे फौजी के जीवन के अवगुण के रुप में देखती थी। फौजी मेहर सिंह ने हिन्दू लड़के और मुसलमान लड़की के प्यार और विवाह पर आधारित एक किस्सा कालीचरण भी लिखा था। इस किस्से की सब सीमाओं के बावजूद फौजी मेहर सिंह लड़के लड़की के प्यार को बड़ी अहमियत देते हैं और उन दोनों की षादी तक किस्से को पहुंचाते हैं। एक बार फौज में अन्र्तजातीय विवाह और हीर रांझा के किस्से को लेकर काफी बहस होती है। मेहर सिंह कई दिन तक सोचते हैं और फिर एक रागनी म नही मन सोचते हैं। इस मौके के बारे में कवि ने क्या कल्पना की है भला-
सच्चा प्यार करणियां नै कदे पाछै कदम हटाये कोन्या।।
एक बर जो मन धार लिया मुड़कै फेर लखाये कोन्या।।
हीर रांझा नै अपने बख्तां मैं पूरा प्यार निभाया कहते
लीलो चमन हुए समाज मैं घणा लोड उठाया कहते
सोनी महिवाल सच्चे प्रेमी मौत को गले लगाया कहते
आज के लोग नहीं बेरा क्यूं प्रमियों को मरवाया कहते
सुण कै फरमान समाज के कदे प्रेमी घबराये कोन्या।।
नल दमयन्ती का किस्सा हम कदे कदीमी सुणते आवां
दमयन्ती नै वर माला घाली या सच्चाई कैसे भुलावां
अपना वर आपै चुण्या क्यों इस परम्परा नै छिपावां
खुद की मर्जी तै जो ब्याह करैं उनकै फांसी क्यों लावां
हरियाणा के प्रेमी जोड़े ये समाज कै काबू आये कोन्या।।
सत्यवान ओर सावि़त्री का किस्सा बाजे लख्मी गागे आड़ै
सावित्री लड़ी यमराज तैं कहते पिंड छुड़ाकै भागे आडै़
सावित्री तै इतनी आजादी देवणिया लेखक बी छागे आड़ै
हयिाणा के दो जात बीच के प्रेमी क्यों फांसी खागे आड़ै
हरियाणा नम्बर वन प्यार मैं इसे गाणे गाये कोन्या।।
दो जात्यां बीच प्रेम विवाह का चलन बढ़ता आवै सै
फांसी का फंदा दीखै साहमी पर प्यार पींग बढ़ावै सै
इसी चीज के होसै प्यार मैं प्रेमी जोड़यां नै उकसावै सै
रणबीर सोचै पड़या खाट मैं बात समझ नहीं पावै सै
तहे दिल तैं साथ थारै सूं मनै झूठे छन्द बनाये कोन्या।।

KISAN DUKH KATHA

आज दो एकड़ वाले किसान की माली और सामाजिक  हालत काफी खराब है, खासकर जब परिवार का कोई सदस्य महिला या पुरुश सरकारी या गैर सरकारी नौकरी पर भी नहीं है। उसकी खेती मुष्किल में है। एकाध भैंस बांध कर उसका दूध बेचकर गुजारा भी मुष्किल हो रहा है। दिन रात पूरा परिवार खास कर महिला वर्ग मेहनत में जुटा रहता है। कवि ने कल्पना की इसकी हालत की और क्या बताया भला-
चारों तरफ तैं घेरया, सांस मुष्किल तैं लेरया
कति निचैड़ कै गेरया, राम क्यूं आन्धा होग्या।ं
भावां पर निगाह टिकी, बधावण की आस किमैं
बेरा ना ये कितना बढ़ैंगे,आवैगी मनै सांस किमैं
दीखै फंदा यो फांसी का, बख्त नहीं से हांसी का
दौरा पड़ै सै खांसी का, राम क्यूं आन्धा होग्या।।
पूरा हांगा ला हमनै दिन रात खेत क्यार कमाया रै
मण्डी मैं जिब लाग्गी बोली बहोत घणा घबराया रै
ना मेरी समझ मैं आया,नहीं किसै नै समझाया
पग पग पै धोखा खाया, राम क्यूं आन्धा होग्या।।
धरती बेंक आल्यां कै लाल स्याही मैं चढ़गी लोगो
बीस लाख मैं एक किला कुड़की कीमत बधगी लोगो
बीस लाख मैं का के करुंगा, किस डगर पैर धरुंगा
दो चार साल मैं डूब मरुंगा, राम क्यूं आन्धा होग्या।।
मेरे बरगे भाई सल्फास की, गोली खा खा मरते देखो
जी मेरा बी करता खाल्यूं,खाल्यूं गधे खेती चरते देखो
नहीं देखूं मैं कुआं झेरा,रणबीर सिंह साथी मेरा
संघर्श चलावांगे चै फेरा, राम क्यूं आन्धा होग्या।।


Tuesday, 13 August 2013

इब्बी चाहवै

दारू नाश करै घरका दीमक की ढा लां  शरीर खावै ॥ 
मां बाप घणे दुखी रहवैं  घर आली पर  संकट छावै ॥ 
शुरू शुरू मैं तो ब्याह शादी मैं दो चार घूँट लगाई रै 
सहज सहज आदत पड़गी चाहकै ना छुट पाई रै 
कदे  इस कदे उस गाल मैं पी कै दारू पड्या पावै ॥ 
तड़कै उठ कै  कान पकड़ ले ईब ना कदे पीऊँगा 
छोड़ छाड़ इस दारू नै बीरो मैं तेरी खातर जीऊँगा 
उसे साँझ नै बीरो उस नै ठाकै अपने कंधे पै ल्यावै ॥ 
अगले दिन पाँ पकड़ ले खड़दू  करै परिवार मैं 
बीरो घी प्यावै और रहवै दारू छोडण की इन्तजार मैं 
रात नै कई कई घंटे लुग बीरो धर्मे नै समझावै ॥ 
आठ दस साल बीतगे तीन बालक घर मैं रलगे 
दारू नशे मैं रहवै रोजाना खावण के लाले पड़गे 
टूम ठेकरी बेच कै पीवै कै चोरी कर कै नै चढ़ावै ॥ 
खेत क्यार तैं चोरी कर ले दारू हुई घनी जरूरी या 
बीरो कहै घरां बैठ कै पीले समझै सै मजबूरी वा 
बीरो की हद छाती सै रणबीर धर्मे नै इब्बी चाहवै ॥ 

Wednesday, 7 August 2013

KAI DIN RAJ CHALAI TERA



SAKHEE


MAT BANO KASAYEE


MAHREE AJADEE


KE KHOYA KE PAYA


HAWALA KAND


HOCKEY KEE JEET


EK DIN JAGAIGEE


KURBANEE


KHAYEE


Friday, 2 August 2013

लाठी गोली

लाठी गोली
एक किसान अख़बार में पढता है की किसानों पर कितना  जा रहा है /  वह मन ही मन बहुत कुछ सोचता है / शायद इस प्रकार से :
लाठी गोली बन्दूक तेरी सब धरे रह ज्यांगे आ डै
किसान पाछै  हटै नहीं चुच्ची बच्चा फैह ज्यांगे आ डै
किसान करता कष्ट कमाई अपना खून पस्सीना बा हवै
कष्ट कमाई घर मैं आज्या हरयाने का किसान चाहवै
और कोए तनै पाया ना गरीबों नै तूँ कयूं  गाह वै
चीफ मिनिस्टर बनाया जिन नै उन नै आज क्यों ताह वै
दारू बंदी तैं पीस्सा कमाया किस्सान सारी लैह ज्यांगे आ डै //
ट्रांसफार्मर  करन का के गलत सै नारा बत लाओ
बीजली नहीं मिलती हम नै के कसूर सै म्हारा बतलाओ
पूंजीपति कै पाणी भरते के ख्याल सै थारा बतलाओ
गोली चलवा निर्दोषों पै किया चाहवै निपटारा बतलाओ
लाठी गोली थारी देखांगे जुल्म क्यूकर सह ज्यांगे आ डै //
पांच मानस मरे त्ताम्नै इसका हिस्साब चुकाना होगा
कादमा कांड फेर दोहराया तम्नै लाजमी जाना होगा
कुर्सी पडै छोडनी सयाने हट कै तम्नै पछताना होगा
हरयाणा खाया  लूट जमा कुछ तो इब शरमाना होगा
जितने महल बनाये तम्नै ये सारे ढह ज्यांगे आ डै //
कुर्बानी किसानों की या जरूर अपना रंग दिखा वैग़ी
संगठन बना कै मजबूत अपना थारै साँस चढ़ा वैग़ी
किस किसने मा रैगा पापी गिनती किट ताहीं जा वैग़ी
इब होन्स सम्भाल किमै ना या जनता सबक सिखा वैगी
बियर सिंह जिसे ठाठी भजनी सही बोल कैह ज्यांगे आ डै //


Wednesday, 24 July 2013

tum aur ham

हमारी बर्बादी पर आज आशियाँ बनाया तुमने
 दूर से रोटी फैंकी हम पे रहम दिखाया तुमने
हमारी   मेहनत लूट कर बने बहुत इज्जतदार
हम ने हंसाया हमेशा ही पर हमें रुलाया तुमने