दारू नाश करै घरका दीमक की ढा लां शरीर खावै ॥
मां बाप घणे दुखी रहवैं घर आली पर संकट छावै ॥
शुरू शुरू मैं तो ब्याह शादी मैं दो चार घूँट लगाई रै
सहज सहज आदत पड़गी चाहकै ना छुट पाई रै
कदे इस कदे उस गाल मैं पी कै दारू पड्या पावै ॥
तड़कै उठ कै कान पकड़ ले ईब ना कदे पीऊँगा
छोड़ छाड़ इस दारू नै बीरो मैं तेरी खातर जीऊँगा
उसे साँझ नै बीरो उस नै ठाकै अपने कंधे पै ल्यावै ॥
अगले दिन पाँ पकड़ ले खड़दू करै परिवार मैं
बीरो घी प्यावै और रहवै दारू छोडण की इन्तजार मैं
रात नै कई कई घंटे लुग बीरो धर्मे नै समझावै ॥
आठ दस साल बीतगे तीन बालक घर मैं रलगे
दारू नशे मैं रहवै रोजाना खावण के लाले पड़गे
टूम ठेकरी बेच कै पीवै कै चोरी कर कै नै चढ़ावै ॥
खेत क्यार तैं चोरी कर ले दारू हुई घनी जरूरी या
बीरो कहै घरां बैठ कै पीले समझै सै मजबूरी वा
बीरो की हद छाती सै रणबीर धर्मे नै इब्बी चाहवै ॥
मां बाप घणे दुखी रहवैं घर आली पर संकट छावै ॥
शुरू शुरू मैं तो ब्याह शादी मैं दो चार घूँट लगाई रै
सहज सहज आदत पड़गी चाहकै ना छुट पाई रै
कदे इस कदे उस गाल मैं पी कै दारू पड्या पावै ॥
तड़कै उठ कै कान पकड़ ले ईब ना कदे पीऊँगा
छोड़ छाड़ इस दारू नै बीरो मैं तेरी खातर जीऊँगा
उसे साँझ नै बीरो उस नै ठाकै अपने कंधे पै ल्यावै ॥
अगले दिन पाँ पकड़ ले खड़दू करै परिवार मैं
बीरो घी प्यावै और रहवै दारू छोडण की इन्तजार मैं
रात नै कई कई घंटे लुग बीरो धर्मे नै समझावै ॥
आठ दस साल बीतगे तीन बालक घर मैं रलगे
दारू नशे मैं रहवै रोजाना खावण के लाले पड़गे
टूम ठेकरी बेच कै पीवै कै चोरी कर कै नै चढ़ावै ॥
खेत क्यार तैं चोरी कर ले दारू हुई घनी जरूरी या
बीरो कहै घरां बैठ कै पीले समझै सै मजबूरी वा
बीरो की हद छाती सै रणबीर धर्मे नै इब्बी चाहवै ॥
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