Wednesday, 6 November 2013

KISAN DUKH KATHA

आज दो एकड़ वाले किसान की माली और सामाजिक  हालत काफी खराब है, खासकर जब परिवार का कोई सदस्य महिला या पुरुश सरकारी या गैर सरकारी नौकरी पर भी नहीं है। उसकी खेती मुष्किल में है। एकाध भैंस बांध कर उसका दूध बेचकर गुजारा भी मुष्किल हो रहा है। दिन रात पूरा परिवार खास कर महिला वर्ग मेहनत में जुटा रहता है। कवि ने कल्पना की इसकी हालत की और क्या बताया भला-
चारों तरफ तैं घेरया, सांस मुष्किल तैं लेरया
कति निचैड़ कै गेरया, राम क्यूं आन्धा होग्या।ं
भावां पर निगाह टिकी, बधावण की आस किमैं
बेरा ना ये कितना बढ़ैंगे,आवैगी मनै सांस किमैं
दीखै फंदा यो फांसी का, बख्त नहीं से हांसी का
दौरा पड़ै सै खांसी का, राम क्यूं आन्धा होग्या।।
पूरा हांगा ला हमनै दिन रात खेत क्यार कमाया रै
मण्डी मैं जिब लाग्गी बोली बहोत घणा घबराया रै
ना मेरी समझ मैं आया,नहीं किसै नै समझाया
पग पग पै धोखा खाया, राम क्यूं आन्धा होग्या।।
धरती बेंक आल्यां कै लाल स्याही मैं चढ़गी लोगो
बीस लाख मैं एक किला कुड़की कीमत बधगी लोगो
बीस लाख मैं का के करुंगा, किस डगर पैर धरुंगा
दो चार साल मैं डूब मरुंगा, राम क्यूं आन्धा होग्या।।
मेरे बरगे भाई सल्फास की, गोली खा खा मरते देखो
जी मेरा बी करता खाल्यूं,खाल्यूं गधे खेती चरते देखो
नहीं देखूं मैं कुआं झेरा,रणबीर सिंह साथी मेरा
संघर्श चलावांगे चै फेरा, राम क्यूं आन्धा होग्या।।


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