Saturday, 4 June 2011

SANSKRITI KA RAJNAITIKARAN

आज हम एक ऐसी अवस्था में पहुँच गए हैं की संस्कृति की दिशा या प्रकृति काया होगी ,इसकी संभावनाएं सिमित होंगी या व्यापक ,वह जनहित में होंगी या अभिजनों के हित में ,वह जीवन को कौनसा अर्थ या परिभाषा देगी,इत्यादि बातों का निर्णय स्वयम संस्कृति क्षेत्र में नहीं हो रहा है, बल्कि आर्थिक राजनैतिक क्षेत्र में किया जा रहा है |

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