Monday, 11 April 2011
कलम पकड ल्यो
अपने हाथ कलम पकड़ो
चालाक आदमी फैयदा ठारे ,इब माणस की कमजोरी का
घर की खांड किरकरी लागे , कहैं गूद मीठा चोरी का
भगत और भगवान के बीच , दलाल बैठगे आकै
एक दूसरे की थाली पै , यें राखें नजर जमाकै
सीधी साच्ची बात करैं ना , यें करते बात घुमाकै
झोटे जैसे पले पड़े यें , सब माल मुफ्त क खा कै
म्हारी जेब पै बोझ डालते , अपनी जीभ चटोरी का||
हम बैठे भगवान भरोसे , ये कहरे हम दुःख दर्द हरैं
यें मंदिर की ईंट चुरा कै अपने घर की नीव धरैं
सारा बेच चढ़ावा खाज्याँ टीका लाकै ढोंग करैं
आप सयाने हम पागल बनाये , पाप करण तैं नहीं डरें
म्हारी राह मैं कांटे बोये , यें फैयदा ठारे धौरी का ||
राम के खातर खीलां फीकी ,यें काजू पिसता खावें
भगवान के ऊपर पंखा कोनी , यें ए सी मैं रास रचावें
मुर्गे काट चढ़ा पतीली , यें निश दिन छौंक लगावें
रिश्वत ले कै राम जी की , यें भगतों तैं भेंट करावें
बड़े बड़े गपौड़ रचें , यें करते काम टपोरी का ||
यें व्रत करारे धक्के तैं , धर्म का डर बिठा कै
खुद पड़े पड़े हुक्म चलावें म्हारी राखें रेल बना कै
टीके लाकै पोथी बांचें , कई राखें झूठे ढोंग रचा कै
'रामेश्वर ' सब अँधेरा मेटो , थाम तर्क के दीप जला कै
अपने हाथ कलम पकड़ो , लिखो इब अंत स्टोरी का ||
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