Monday, 11 April 2011

प्रजातंत्र


प्रजातंत्र
लग्गी दिल पै चोट , लेगे जात पै वोट
बनते साथ मैं नोट , यो परजातंत्र क खोट
ले गरीबी की ओट ,अमीर खेले धन मैं ||
नाम जनता क लेवें ये , अंडे अमीरों के सेहवें ये
बतावें माणस क दोष , कहैं या व्यवस्था निर्दोष
ये बुधि लेगे खोस , इसे करे हम मदहोश
ना करता कोए रोष , सोचूँ अपने मन मैं ||
ये साधें सें हित अपना, ना करैं ये पूरा सपना
जितने बैठे मुनाफाखोर , सबसे बड्डे डाकू चोर
सदा सुहानी इनकी भोर , ना पावै इनका छोर
थमा जात धर्म की ड़ोर, फूट गेर दी जन मैं ||
कुर्सी खातर रचते बदमाशी , ना लिहाज शर्म जरा सी
पालतू इनकी हो सरकार, ना जावै कहे तै बाहर
गरीबों की कहै मददगार , लारे दिए बारम्बार
इब रहया नहीं एतबार ,इस गदरी बन मैं ||
स्कूली किताबों पै तकरार , गन्दा साहित्य बेसुम्मार
सबको शिक्षा सबको कम , आजादी पै दिया पैगाम
पचास अनपढ़ बैठे नाकाम , पचास के लगते दाम
ना पढ़ते करैं बदनाम , आग लागरी तन मैं ||

1 comment:

Teacher said...

बहुत बदीया