Tuesday, 2 August 2022

5 रागनी

 

विश्व कर्मा दिवस के मौके पर


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छोटे मोटे औजार हमारे बणावैं महल अट्टारी रै

कारीगरों की मेहनत नै इनकी लियाकत उभारी रै

मंजिलों के हिसाब लगाकै ईमारत की नींव धरी जाती

मालिक जिसी चाहवैं उसी मजबूत नींव भरी जाती

खिड़की दरवाजे रोशन दान की माप तौल करी जाती 

करणी और हुनर हथौड़े का ईंट पै ईंट ये धरी जाती 

लैंटर डालण की न्यारी हो आज बतादयूं कलाकारी रै।

छजे पर तैं पाँ फिसलज्या सिर धरती मैं लागै जाकै

एकाध बै पडूँ कड़ कै बल फेर रोऊँ ऊंचा चिलाकै

रीड की हड्डी जवाब देज्या पटकैं अस्पताल मैं ठाकै

सरकार कोए मदद करै ना देख लिया हिसाब लगाकै

काम करण के खतरे इतने भुगतां खुद हारी बीमारी रै।

जितनी ईमारत सैक्टरों की सारी हमनै बनाई देखो

नींव से लेकर तीन मंजिल की करी ये चिनाई देखो

म्हारी खातर एक कमरा सै पांच नै घर बसाई देखो 

इतने महल बनाकै रात फुटपाथों पर बिताई देखो 

म्हारी एकता रंग ल्यावैगी औजारों मैं ताकत भारी रै।

असंगठित क्षेत्र के भाई सारे मिलकै आवाज लगावां

अपने हकों की खातर मजदूर भाइयों को समझावाँ

वोट कदम पर अपने नेता विधान सभा मैं पहोंचावां

मिलकै विश्वकर्मा दिवस नै सारे हरियाणा मैं मनावां

कहै रणबीर बरौने आला या एकता बढ़ावां म्हारी रै।

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दारू और दवा की दुकान 

दारू और दवा की दुकान हर गाम शहर मैं पाज्या

बढ़ी दारूबाजी और बीमारी असल देश की बताज्या

पी दारू मजदूर किसान अपने घर का नाश करै

दारू फैक्ट्री बन्द होवैं महिला इसकी आस करै

आस करती होज्या बूढी पति नै इतनै दारू खाज्या।।

दवा के रेट का कोए हिसाब ना गोज ढ़ीली करज्या

मरीज खरीद कै खाली होज्या डॉक्टर की गोज भरज्या

पूरा इलाज फेर भी न होवै चानचक सी मौत आज्या।।

दारू का बेर या नाश करै सर्कार क्यों फैक्ट्री खुलवावै

रोज खोल दूकान दारू की मौत न्यौता देकै बुलवावै

के बिना दारू विकास ना हो कोए आकै मनै बताज्या।।

इलाज महँगा कर दिया गरीब बिना दवाई मरता 

इलाज ब्योपार बणा दिया खामियाजा मरीज भरता 

रणबीर बरोने आला सोच समझ कलम घिसाज्या।।

19.3.2015

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आज ही पानीपत के मौके पर लिखी रागनी :

घणा बढ़िया काम करया सारे स्कूलों की छुट्टी करदी ।।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पानीपत मैं नींव धरदी।।

रोजाना ही बलात्कार होवैं बस मैं छेड़खानी होती रोज

घर भित्तर भी लूटी जाती बाहर भी इज्जत खोती रोज

घुट घुट कै नै या महिला रोज कई कई बरियां मरदी।।

नारे लगाना बात आच्छी सिर्फ नारयां तैँ काम ना चालै 

समाज पुत्र लालसा खिलाफ जब तक ना कबड्डी घालै

तेजाब फैंकैं ठा लेज्यावैं असुरक्षा तैँ महिला डरदी।।

छोरा छोरी बराबर होज्यां यो काम कति आसान कोन्या

बाजार मैं लयाकै बनादी चीजो समझी जा इंसान कोन्या 

मालिकाना हक़ देते कोन्या नारयाँ गेल्याँ झोली भरदी।।

बराबर का मतलब जब समझ मैं आज्या म्हारी रै

पेट मैं मारण की फेर नहीं बचैगी कोए लाचारी रै

भोग की वस्तु बणा महिला काट सारी इसकी परदी।।

समझ नहीं आंदा क्यूकर बाजार के मैं सुरक्षा पावै

एक बाजार यो दूजा यो पुरुष प्रधान परिवार छावै

कहै रणबीर बरोने आला आड़ै बाड़ खेत नै चरदी।।

22.1.2015

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राय फीम्चियाँ की 

दो फीमची आपस मैं बतलाये , सिगरेट के दो तीन सुट्टे लाये 

भीतर बाहर के हाल सुनाये , मतना बुरा मानियो भाइयो रै ||

एक फीमची नयों बोल्या  हमनै वे लोग नैतिकता सिखावैं रै 

जो रोजाना साँझ  कै पूरी बोतल बिना पानी के चढ़ावैं रै 

म्हारी फ़ीम ऊपर रोला मचाया ,दो बरियाँ पाँच सौ जुरमाना लाया 

के उनका कोए बिटोडा जलाया , मतना बुरा मानियो भाइयो रै ||

दूजा बोल्या लहर या न्यारी लुन्गाड़े नश्हेडी दारू बाज 

शरीफ बीर मर्द चालें बच कै या गूंजै इनकी ए आवाज  

दो तीन गुट इनके बनरे रै , रिवाल्वर आपस मैं तनरे रै   

भ्रष्ट नेता की गौज मैं घलरे रै , मतना बुरा मानियो भाइयो रै ||

गामाँ  के महां  किसे बहु बेटी की ना इज्जत महफूज रही 

भ्रष्ट पुलिस भ्रष्ट नेता साथ लुन्गाड़े की हो आडै बूझ रही 

जोर जबरदस्ती रौजे चा लै रै , किते लालच पूरे घर घालै रै 

काला धन इसे कुब्धी पा लै रै , मतना बुरा मानियो भाइयो रै ||

गाम की इज्जत के ये सारे फेर बण जाते ठेकेदार दखे 

कद के पुवाडे ये कर बैठैं नहीं रहया कोए एतबार दखे 

रणबीर बरोने आला कैहरया , कलम ठा कै इन गेल्याँ फैहरया 

सड़ांध ऊठ ली बाकी के रैहरया , मतना बुरा मानियो भाइयो रै ||

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मुन्शी प्रेम  चन्द जयंती के मौके पर 

मुंशी प्रेमचंद ने लगभग 300 कहानियां और 14 उपन्यास लिखे । जन्म 31 जुलाई 1880  को हुआ । 8  अक्टूबर 1936 को चल बसे । एक रागनी के माध्यम से :

बनारस तैं  चार मील की दूरी यो लमही गाम सुण्या होगा ॥ 

इसे गाम का रहने आला था प्रेम चन्द नाम सुण्या होगा ॥ 

असली  नाम धनपत राय यो उनका गया बताया भाई 

तांगा तुलसी मैं दिन काटे खस्ता हाल गया जताया भाई 

 लाल गंज गाम मैं पढ़ने खातर इनको गया खंदाया भाई 

इसे हालात मैं पलकै नै यो कलम गया था पिनाया भाई 

अल्हड बालकपन बीत्या खेल कै  सुबो शाम सुण्या होगा॥ 

इसे गाम का रहने आला----------------------------------॥ 

बालकपन मैं माता जी बहोत घणी  बीमार होगी भाई

दिनों दिन बढ़ी बीमारी खान पीन तैं लाचार होगी भाई 

घर मैं घने हाथ भींचरे थे  मुश्किल उपचार होगी भाई 

चल बसी माता सोचै बैठ्या जिंदगी बेकार होगी भाई 

सात साल की उम्र याणी माता का इंतकाम सुण्या होगा ॥

 इसे गाम का रहने आला-----------------------------------॥ 

माँ का जगह बहन बड़ी नै घर मैं ली बताई भाईयो 

शादी हुए पाछै बेबे बी सासरै गयी खन्दाई भाईयो

दुनिया सूनी लागी जिंदगी मुश्किल बितायी भाईयो 

अपने पात्रों मैं भी कथा कई बरियां दिखाई भाईयो

उनकी कहानियों मैं यो किस्सा हमनै तमाम सुण्या होगा ॥ 

 इसे गाम का रहने आला----------------------------------॥ 

चुनार गाम मैं मास्टरी की मुश्किल तैं नौकरी थ्याई रै 

बालकपन मैं ब्याह होग्या इब माड़ी उल्गी साँस आई रै 

इंटर पास करी फेर पूरी  बी ए तक की करी पढ़ाई रै

जगह जगह घणे तबादले जान जीवन सहमी आई रै 

रणबीर लिखे कहनी उपन्यास उन्मैं पैगाम सुण्या होगा ॥ 

 इसे गाम का रहने आला---------------------------------॥

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