Thursday, 25 October 2018

प्रजातंत्र

प्रजातंत्र
लागी दिल पै चोट, लेगे जात पै वोट
बंटे साथ मैं नोट, यो प्रजातंत्र का खोट
ले गरीबी की ओट, अमीर खेले धन मैं।।
1
नाम जनता का लेवैं सैं,अमीरां के अंडे सेहवैं सैं,
बतावैं माणस का दोष, कहैं व्यवस्था निर्दोष, ये लेगे बुद्धि खोस, धर्म तैं करे मदहोश, ना हमनै कोये रोष, सोचूं अपने मन मैं।।
2
ये साधते हित अपना, ना ये करैं पूरा सपना,
जितने बैठे मुनाफाखोर, सबसे बड्डे डाकू चोर, सदा सुहानी इनकी भोर, ना पावै इनका छोर, थमा जात धर्म की डोर, फूट गेरदी जन मैं।।
3
कुर्सी खातर रचते बदमाशी, ना शरम लिहाज जरा सी,
पालतू अम्बानी की सरकार, ना जावै कहे तैं बाहर, गरीबां की कह मददगार,
या जुमले देवै बारंबार, ईब रहया ना एतबार, इस गदरी बण मैं।।
4
स्कूली किताबों पै तकरार, गंदा साहित्य बेशुमार
सबको शिक्षा सबको काम, आजादी पै दिया पैगाम, लाखों अनपढ़ बैठे नाकाम,
हर चीज के लगते दाम, नौकरी करते हैं नीलाम, आग लागरी तन मैं।।

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