Friday, 30 September 2016

बख्त पुगाऊँ मैं


कहानी घर घर की--नौकरानी की नजर से  अपने पति को संबोधन 
मरे गरीबी के बोझ तलै , तेरी बी ना कोए पार चलै  
अमीरी हमनै रोज छलै , शरीर  को कसूत सताऊँ मैं ||
दो घरों में जाकै मैं करूँ यो पूरा काम सफाई का 
एक घर डाक्टर का सै दूजा घर वकील अन्यायी का 
दोनों घरों का के जिकरा सै , मेरे पै ना कोए फिकरा सै 
ख़राब सबका जिगरा सै , पेट पकड़ बैठे दिखाऊँ मैं ||
वकील साहब की वकालत बस इसी चलती  बतावैं 
ओला बोला पीसा उन धौरे धंधा कई ढाल का चलावैं  
घर मैं पीटता  घरआली नै , बाहर देखो शान निराली नै 
बेटा ठाएँ हाँडै  दुनाली नै , के के सारी खोल सुनाऊँ मैं ||
डाक्टरनी दुखी कई बर बैठी रोंवती  वा पाई बेबे  
शौतन का दुःख झेल रही कई बै चुप कराई बेबे  
बड्डी कोठ्ठी पर दिल छोट्टे, बाहर शरीफ भित्तर खोट्टे
कुछ तो अकल के बी मोट्टे  , कई बै अंदाज लगाऊं मैं ||
घूर घूर कै देखै मने ना डाक्टर का एतबार बेबे 
उसकी आँख्यां  मैं दीखे यो शैतान हरबार बेबे 
डाक्टर का घर छोड़ दिया , तीजे घर मैं बिठा जोड़ लिया 
काढ मने यो निचोड़ लिया रणबीर यो बख्त पुगाऊँ मैं ||

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