Wednesday, 27 April 2016

मुफतखोर

मुफतखोर का कुटम्ब रहै ना आलीसान मकान बिना
काम करनिया फिरें भटकते टूटी झोंपड़ी छान बिना
मुफ्त खोर के घर मैं हमेशा हलवा खीर बनाई जा
इनके घर मैं बासी खिचड़ी घोल शीत मैं खाई जा
उनके घर मैं बर्फी पड़े बाहर तैं बालू स्याही जा
उनके घर मैं सूकी रोटी प्याज के साथ धिकाई जा
उनके घर मैं कोई रहै ना बढ़िया खान और पान बिना ||
इनके घर मैं हो सै लडाई पेट भराई अन्न और धान बिना||
मुफ्त खोर कै दो दो तीन तीन लिफ्ट लागरी कोठी मैं
इस गरीब बेचारे का जीवन बीते हालात घनी खोटी मैं
मुफ्त खोर मंदिर मैं बैठज्या गांठ मारके चोटी मैं
मेहनतकश नै मिर्च मिलै ना मोटे धान की रोटी मैं
खून मनष्य का पीवी नहीं कोई पूंजीपति धनवान बिना ||
चौबीस घंटे पचै नहीं कोए मजदूर और किसान बिना ||
कहीं सोने चान्दी की ईंट दबा रहे देश के चोर दीवारां मैं
कहीं रोटी उप्पर जूट बज रहया दलित गरीब बिचारयाँ मैं
कहीं मुफ्तखोर की बहन बेटियां घूमैं सें मोटर कारा मैं
कहीं नंगे पैर जेठ महिना रोवै पौध देखो गलियारा मैं
कहीं मुफ्तखोर की मेम रहैना मेकप के सामान बिना ||
कहीं मेहनतकश की बेटी तरसै कपडे और पहरान बिना ||
चोर लुटेरे मुफ्तखोर की यह सरकार हिमात करै
गरीब मेहनतकश के उप्पर बात बात मैं घात करै
माल मुफ्त का खाने आला सब तै घना उत्पात करै
इनकी खातर वर्ग कमरा नहीं बैठ कै कदे बात करै
इनसे पैंडा छूटे ना जनता के जंग महान बिना ||
भागू राम नहीं जीना आछा आन बाण और शान बिना ||

No comments: