Monday, 18 August 2014

shayari

रोने से किसी को कभी पाया नहीं जा सकता
खोने से किसी को भुलाया नहीं जा सकता
वक्त तो  मिलता है जिंदगी बदलने के लिए
मगर जिंदगी छोटी है वक्त बदलने के लिए


आज रास्ते बदल लिए मौका परस्ती दिखलाई
पन्द्रह साल तक तुमने कदम से कदम  मिलाई
चुनौती ज्यादा गंभीर आज जब सामने है आयी
भूल गए वो इंकलाबी नारे नकली कुर्सी है भाई


इंकलाब छुपा रखा है  इन पलकों मे ही
पर इनको ये बताना ही  तो नहीं आया,
संकट के वक्त लाल हो जाती ऑंखें पर ,
गरीब का दर्द दिखाना ही तो  नहीं आया


ये रिश्ते काँच की तरह होते है,
 टूट जाए तो चुभते है अंदर तक 
इन्हे संभालकर हथेली पर यारो 
क्योकि इन्हे टूटने मे एक पल
और बनाने मे बरसो लग जाते हैं 

एक क्रोधित  हुए दिल का  आगाज़ मुझे कहिए
सुर जिसमें सब क्रान्ति के, वो साज़ मुझे कहिए
मैं कौन हूँ क्या हूँ  मैं किसके लिए ज़िंदा हूँ यारो 
वंचित और दमित की एक आवाज  मुझे कहिए.


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