मॉनसून नै इबकै बहोतै बाट या दिखाई बेबे
बरस्या नहीं खुलकै बूंदा बांदी सी आयी बेबे
साम्मण के मिहने मैं सारे कै हरयाली छाज्या
सोचै प्रदेश गया पति भाज कै घर नै आज्या
ना गर्मी ना सर्दी रूत या घणी ए सुहाई बेबे
कोये हरया लाल कोये जम्फर पीला पहर रही
बाँट गुलगुले सुहाली फैला खुशी की लहर रही
कोये भीजै बूंदां मैं कोये सुधां लत्यां नहाई बेबे
आयी तीज बोगी बीज आगली फसल बोई या
झूला झूल कै पूड़े खाकै थाह मन की टोही या
पुरानी तीज तो इसी थी आज जमा भुलाई बेबे
बाजार की संस्कृति नै म्हारी तीज जमा भुलाई
इस मौके पर जाया करती प्रेम की पींघ बढ़ायी
कहै रणबीर सिंह कैसे करूँ आज की कविताई
No comments:
Post a Comment