Tuesday, 22 July 2014

ईद और तीज



तीजां का त्यौहार आ जाता है मगर मेहर सिंह को फ़ौज से छूटी नहीं मिलती । गॉव बरौना बहुत याद आता है । वो बाग़ भरा पूरा और वहां डाले गए झूले । बार बार उसके इमाग में घूमते हैं । सोचता है और क्या लिखता है । 
मतना देखिये बाट प्रेमकौर छूटी मनै मिली कोन्या।  
मनै कई तरियां बात करी कोए चाल चली कोन्या । 
पहर कै दाम्मण काला तीज मनावन जाईये जरूर 
फ़ौजी नै गीत लिख कै भेज्या सबनै बताईये जरूर
जरूर तीज मनाईये कदे कहै पींघ तो घली कोन्या । 
पींघ बढ़ा कै नाक सासू की जरूर तोड़ कै नै ल्याईयो 
सुहाली पूड़े और गुलगले सब रेल मिल कै नै खाईयों 
आपस की राड़ घरां मैं होती जमा या भली कोन्या । 
सारे गाम  नै मेरे तरफ की या राम राम दियो जरूर 
दोनो भान रहियो प्रेम तैं आदर सम्मान कियो जरूर 
फ़ौज मैं हालात नहीं अच्छे लड़ाई इब्बै टली कोन्या । 
 इस मिहने साम्मण की या रुत घनी गजब बताई
ईद बी आज काल मैं या जावै पूरे गुहांड मैं मनाई    
रणबीर करै कविताई छाणी बरोने की गली कोन्या । 

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