Monday, 3 February 2014

विक्रम और चमेली

विक्रम और चमेली प्रेम विवाह करते हैं । घरवाले नाराज थे । मगर भगत सिंह से काफी प्रभावित हुए । समाज सुधर के काम में जुट गए । लेकिन विक्रम आप में जाने का मन बनता है और दिल्ली चला जाता है । चमेली गाओं में अकेली रह जाती है । एक दिन क्या लिखती है चिठ्ठी में ---
आप मैं चाल पड़या दिल तोड़ कै नयी नवेली का ॥ 
दोनों नै क्रान्ति की कसम खाई जी लागै ना अकेली का ॥ 
मेरे दिल पै  के गुजरी सै थाम मरदां नै के बेरा 
करवट बदलतें रात चली जा होज्या न्यूयें सबेरा 
बिना तेरे साथ विक्रम यो घर भूतां का डेरा 
तेरे बिन दिल मैं अँधेरा के सपने की हवेली का ॥ 
दिल की दिल मैं रहै थारे बिन कैसे हो मन चाह्या 
असली रही बीच छोड़ चल्या दूजा रह अपनाया 
मेरे वो बख्त याद आवै जो मनै थारी साथ बिताया 
संघर्ष मैं जी लगता कोन्या मन मैं लागै ना उम्हाया ॥ 
क्रांति तैं भरी सै काया समझ हाल तूँ चमेली का ॥ 
हाली बिन धरती सूनी बिना सवार के घोड़ी 
विचार मेल बिना कलह रहै घनी नहीं तो थोड़ी 
मनै सोची म्हारी या धुर तक चलैगी जोड़ी 
आप मैं दम कडै सै क्रांति विचार ना धेली कोड़ी  
बिन परखनिया देख किरोड़ी होज्या सस्ता धेली का ॥ 
आप मैं पार पड़ै कोन्या देख लिए गुण ग़ाकै नै 
याद रखिये बात मेरी कदे भूलै आप मैं जाकै नै 
राजी खुसी की खबर दिए मेरी चिठ्ठी नै पाकै नै 
जै उल्टा आवैगा तो मैं गाऊंगी गीत उम्हा कै नै 
रणबीर मतलब  खुलैगा इस अनखुली पहेली का ॥ 

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