Monday, 8 April 2024
आज़ादी की पहली जंग
आज़ादी की पहली जंग में गुप्त योजना घड़ी गयी।
लाखों-लाख लड़े थे उसमैं, सारे हिन्द मैं लड़ी गयी।।
सन् सत्तावन मई महीना तारीख थी वा एक कम तीस,
हांसी और हिसार के म्हां अंग्रेजां की बांधी घीस,
गोरे अफसर उड़ा दिए भई कर दिए धड़ तै न्यारे शीश,
अफरा-तफरी फैली गई भई प्रशासन को दिया पीस,
अंग्रेजां की तोप देखल्यो कूण्यां के म्हां पड़ी रही।।
हिसार के म्हां जेळ तोड़ दी, कैदी-कैदी लिया छूट,
गोरे अफसर बारहा मारे खजाना था लिया लूट,
बेड्डरबर्न डी.सी. मार्या राजपाट लिया टूट,
खोज-खोज के गोरे मारे पाणी का ना मांग्या घूंट,
नखरे आळी मेम देखल्यो कोणे के म्हां खड़ी रही।
हांसी ऊपर हमले मैं भाई देखी कला निराली थी,
बर्छी, भाले, तलवार उठा रहे संग बंदूक दुनाली थी,
रोहणात, पुट्ठी, मंगलखां और संग-संग चली मंगाली थी,
खरड़, अलीपुर, हाजमपुर, भाटोल राघड़ां आळी थी,
जमालपुर के वीरां स्याह्मी गोरी पलटण अड़ी नहीं।।
पुट्ठी आळे वीरां नै रण मैं कमाल दिखाया था,
तहसीलदार किले पै मार्या अचूक निशाना लाया था,
ग्यारहा गोरे टोटल मारे एकदम करया सफाया था,
खज़ाना लूट्या, जेळ तोड़ दी, अपणा राज बणाया था,
हबीब भारती देख छावणी पैरां नीच्चै छड़ी गयी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment