Sunday, 24 October 2021

मंगत राम शास्त्री

 हरियाणवी गजल 

 मिरी आजाद ख्याली का मनै कुछ तो हुया फैदा. 

मेरा बेखौफ जीणे का तरीका हो लिया लैह्दा.. 

 मुबारक हो उनै मझबी किताबां की पवित्तरता 

जड़ै बेअदबियां कहकै कतल करणे का हो रैदा. 

 बिना जाणें बिना समझें धरम के नाम पै हत्या 

निरी धरमान्धता कोन्या पलानिंग हो सै बाकैदा. 

 सुणैं ना बात भी पूरी करैं हत्या कसाई 

ज्यूं इजाजत  या नहीं देन्दा गुरू दशमेश का कैदा. 

 चुवाइस हो जनम लेवण त पहले जो छंटाई की 

बता फेर कोण चाह्वैगा गरीबां कै हुवै पैदा. 

 लिकड़ ज्या तोड़ कै पिंजरा बगावत कर जमान्ने तै 

के दाई ऊत जा री सै जो जीवनभर भरै बैदा. 

 इबारत जो लिखी संविधान म्हं निरपेख पन्थां की

 बचाणी लाजमी होगी कवि "खड़तल" करै वैदा.

 मंगतराम शास्त्री "खड़तल"

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