Friday, 17 March 2017

ढेरयां आला कुड़ता


जात पात का लेकै साहरा म्हारी खाल उतारी क्यों ।
चित बी मेरी पिट बी मेरी चलायी तलवार दुधारी क्यों। 
बढ़िया दावत होटल के मैं सारे रलमिल खावैं क्यों 
जब चालैं रेल मोटर मैं उड़ै भींटण नहीं पावैं क्यों 
नल का पानी पिया मजे मैं प्यासे ना रैह ज्यावैं क्यों
कठ्ठा कम कर कै खेतां मैं दस दिन नहीं न्हावै क्यों
गाल गली मैं पल्ला लागै न्हाकै अगत सुधारी क्यों ।
मेले के मैं धक्कम धका ओड़ै माणस कदे भींटै नहीं
रन्धती दाल भींटै म्हारै उड़द चावल मूंग भींटै नहीं
बांधी पगड़ी भींटै भारी चाद्दर दोहर खेस भींटै नहीं
हारै धरया दूध भींटै देखो धार काढ़या दूध भींटै नहीं
कुआँ भींटै जोहड़ नदी ना भींटयल कदे पुकारी क्यों।
बैठें साथ खाट भींटै नहीं भींटै सिर उप्पर ठायां तैं
सिर बुक्कल ना भींटै बिस्तरा पल मैं भींटै बिछायाँ तैं
नेजू बाल्टी डोल भींटै नहीं घड़िया भींटै ठवायां तैं
कुत्यां तक की झूठ नहीं भींटै हाथ मनुष्य के लायां तैं
सौ सौ गाल बकैं उसनै फेर देकै नै ठोकर मारी क्यों।
गाजर मूली गंठे काकड़ी हरिजनां पै उपजवावां सां
आलू गोभी मटर टमाटर अरवी शलगम खावाँ सां
सेब सन्तरे आम नारियल हाथों हाथ ले ज्यावां सां
सारी चीज भींटण आली हम कोण्या भींट बतावां सां
मुंशी राम रणबीर मिलकै बूझें म्हारी अक्कल मारी क्यों

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