Wednesday, 22 March 2017

चोट

चोट
या चोट मनै ,गई घोट मनै,गई फिरते जी पै लाग
ईब खेलूं मैं खूनी फाग।।
चाला होग्या गाला होग्या क्यूकर बात बताऊँ बेबे
इज्जत गंवाई चिंता लाई क्यूकर ज्यान बचाऊँ बेबे
डाकू लुटेरे फिरैं घनेरे क्यूकर गात छिपाऊं बेबे
देख अकेली करी बदफेली क्यूकर हालात बताऊँ बेबे
ना पार बसाई नहीं रोटी भाई मेरै सुलगै बदन मैं आग
ईब मैं खेलूं खूनी फ़ाग ।।
के बुझेगी भाण राहन्दे काटूँ दिन मर पड़कै हे
दिन रात परेशान हुई मैं रोऊं कोठे मैं बड़कै हे
बात बणी घणी कसूती मेरे भीतर मैं रड़कै हे
रामजी किसा खेल रचाया सोचूँ खाट मैं पड़कै हे
ये उल्टा धमकावैं मनै कुलटा बतावैं उसनै कहैं ये बेदाग
ईब मैं खेलूं खूनी फ़ाग ।।
जिस देश मैं नहीं करते सही सम्मान लुगाई का
उस देश का नाश लाजमी जड़ै अपमान लुगाई का
सारी उम्र भज्या रामजी नहीं भुगतान दुहाई का
घणा अष्टा बना दिया सै यो इम्तिहान लुगाई का
मैं तो मरली दिल मैं जरली ल्याऊं नाश जले कै झाग
ईब मैं खेलूं खूनी फाग।।
राम गाम सुनता होतै हम कति ज्यान तैं मरली
औरत ईब्बे और सताई जा या मेरे दिल मैं जरली
सबला लूटी अबला लूटी बना दासी घर मैं धरली
इबै तो और सहना होवैगा रणबीर के इतने मैं सरली
होंठ सीऊं कोण्या चुप जीऊँ कोण्या तेरा करूं सामना निर्भाग
ईब मैं खेलूं खूनी फ़ाग ।।

Friday, 17 March 2017

VOTE


चमेली पड़ौस की महिलाओं के बीच दोपहर को बात करती है ।
सभी महिलाएं महंगाई के बारे में बताती हैं । लैक्सन आगे पर महंगाई फेर
बी कम नहीं हुई । चमेली क्या कहती है ----
वोट देवां  जिब राखते हम सही गलत का ध्यान नहीं ॥
नाश करैंगे वे नेता जिनकै धोरै आज ईमान नहीं ॥
नजर घुमा कै देख लियो नित पेड़ झूठ का फलै सै
सच का तेल घलै दीवे मैं तो यो ज्ञान उजाला जलै सै
सच के दायरे मैं रहकै मन नहीं हिलाया हिलै सै
सच पै खड्या रहवै उसनै दिलां मैं जगां मिलै सै
विचार करै बुद्धि चेतन बिन चेतन मिलै ज्ञान नहीं ॥
भगत सिंह का नाम सुण्या धूम मचाई हिन्द म्हारे मैं
तेईस बरस का फांसी चढग्या सोचो कदे इस बारे मैं
सुणो आसान बात नहीं होती या ज्यान देनी आरे मैं
घर बार कति छोड़ दिया उसनै देश के प्रेम इशारे मैं  
म्हणत करकै दौलत पैदा करां समझे जां इंसान नहीं ॥
साच्ची बात कहूँ थारे तैं हम सच्चाई मंजूर करावैं
हाथ जोड़ कहूँ थारे तैं सच का साथ जरूर निभावें
सच्चाई पै चलना चाहिए सच्चाई का घर दूर बतावैं
बनावटी मिलावटी की जागां इंसानियत का नूर खिलावें
सच्चा सौदा ए बिकवावेंगे झूठ की चलै दुकान नहीं ॥
वो मानस ना किसे काम का जो सच पै सिर धुनै नहीं
अपनी कमाई का हिसाब वो बैठ कै कदे बी गिनै नहीं
वोहे मानस सदा सुख पावै सै जो बात झूठी सुनै नहीं
आज जो ठीक नहीं वो उस परम्परा का जाल बुनै नहीं
छुआछात की जो बात करै वो इंसान की संतान नहीं ॥

ढेरयां आला कुड़ता


जात पात का लेकै साहरा म्हारी खाल उतारी क्यों ।
चित बी मेरी पिट बी मेरी चलायी तलवार दुधारी क्यों। 
बढ़िया दावत होटल के मैं सारे रलमिल खावैं क्यों 
जब चालैं रेल मोटर मैं उड़ै भींटण नहीं पावैं क्यों 
नल का पानी पिया मजे मैं प्यासे ना रैह ज्यावैं क्यों
कठ्ठा कम कर कै खेतां मैं दस दिन नहीं न्हावै क्यों
गाल गली मैं पल्ला लागै न्हाकै अगत सुधारी क्यों ।
मेले के मैं धक्कम धका ओड़ै माणस कदे भींटै नहीं
रन्धती दाल भींटै म्हारै उड़द चावल मूंग भींटै नहीं
बांधी पगड़ी भींटै भारी चाद्दर दोहर खेस भींटै नहीं
हारै धरया दूध भींटै देखो धार काढ़या दूध भींटै नहीं
कुआँ भींटै जोहड़ नदी ना भींटयल कदे पुकारी क्यों।
बैठें साथ खाट भींटै नहीं भींटै सिर उप्पर ठायां तैं
सिर बुक्कल ना भींटै बिस्तरा पल मैं भींटै बिछायाँ तैं
नेजू बाल्टी डोल भींटै नहीं घड़िया भींटै ठवायां तैं
कुत्यां तक की झूठ नहीं भींटै हाथ मनुष्य के लायां तैं
सौ सौ गाल बकैं उसनै फेर देकै नै ठोकर मारी क्यों।
गाजर मूली गंठे काकड़ी हरिजनां पै उपजवावां सां
आलू गोभी मटर टमाटर अरवी शलगम खावाँ सां
सेब सन्तरे आम नारियल हाथों हाथ ले ज्यावां सां
सारी चीज भींटण आली हम कोण्या भींट बतावां सां
मुंशी राम रणबीर मिलकै बूझें म्हारी अक्कल मारी क्यों