वार्ताः शहीद ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर
1899 में हुआ था। देश पर अंग्रेजों का
कब्जा था। पूरे ही देश में
अंग्रेज भारत वासियों पर जुल्म ढा
रहे थे। आजादी की पहली जंग
जो 1857 में लड़ी गई थी। इसके
बाद अंग्रेजों ने जनता पर
और भी ज्यादा कहर
ढाया था। शहीद ऊधम सिंह की मां सारे
माहौल को देखकर दुखी
हो जाती है और क्या
सोचती हैं भलाः
रागनी.1
यो घर खावण
नै आवैए रहवै दिल मेरा उदास
नहीं दिखै कोए राही।।
देही रंज फिकर ने खाली
या उड़गी चेहरे
की लाली
कंगाली या बढ़ती जावैए
नहीं बची जिन्दगी मैं आस
गोरयां नै लूट मचाई।।
यो अंग्रेज गिरकाणा
सै
हर बात मैं
धिंगताणा सै
पिछताणा सै धमकावै ना
लेवण दे सुख की
सांस
ईज्जत तारणी चाही।।
मैं सिर पाकड़ कै रोती
सहन ये बात नहीं
होती
मोती ये चोरया चाहवै
गेर दी म्हारे बीच
मैं फांस
बहोत घणा अन्याई।।
रणबीर नै अंग्रेज दबाता
गाम थो चुप रैह
जाता
सताता अर यो गुर्रावै
नहीं बात आवै या रास
दिल की बात बताई।।
शहीद
ऊधम सिंह एक बहुत ही
गरीब परिवार का बच्चा थाए
जब पूरे देश में अंग्रेजो का जोर जुल्म
चल रहा था तो पंजाब
में भी जलियां वाला
बाग जैसा हत्या काण्ड 1919 में वैशाखी के दिन होता
है। इसका ऊधम सिंह के दिलो दिमाग
पर गहरा असर पड़ता है। एक दिन वह
बैठा.बैठा सोचने लगता है। क्या बताया भलाः
रागनी.2
भारत देश पै जिसनै भी
अत्याचार भूल कै था ढाया।।
जुल्म ढावणिया का वीरों नै
था नामों निशान मिटाया।।
हिर्णा कुश दुर्योधन कंस नै जुल्म घणा
ढाया था
म्हारे वीरां नै बढ़ आगै
इनको सबक सिखाया था
जालिम खत्म करने खातर अपना खून बहाया था
ठारा सौ सतावण की
जंग मैं होसला खूब दिखाया था
सिख हिंदू मुस्लिम सबनै हंस.हंस वैफ शीश कटाया।।
ईस्ट इंडिया आई देश मैं
अपणे पैर पसार लिये
राज पै करकै कब्जा
बहोत घणे अत्याचार किये
गूंठे कटाये कारीगरां के मौत के
घाट उतार दिये
मल.मल ढाका
आली थी उसपै कसूते
वार किये
बिगाड़ कै शिक्षा म्हारी
यो राह गुलामी का दिखाया।।
यो वीर लाडला
देश कातै ना अपणे प्रण
तै भटकै
कोए करै प्राण न्यौछावर हंस.हंस फांसी पै लटकै
कई खेलगे खून
की होली छाती खोल दी बेखटकै
पिठू अंग्रेजा की झोली मैं
बहोत घणा यो मटकै
अंग्रेजां की पींड़ी कापी
थी जिब जनता नै नारा लाया।।
भारत देश यो निराला बिरले
घणे इसके माली
किस्म.किस्म के फूल खिले
कई ढंग के पत्ते डाली
खड़ी फसल जब लूटी म्हारी
तो खड़या रोया हाली
जलियां वाले बाग के अन्दर ये
बही खून की नाली
रणबीर सिंह बरोने आले नै सुण कै
छन्द बनाया।।
वार्ताः 31 जुलाई 1940 को भारत के
इस शहीद
को अंग्रेजों ने फांसी की
सजा दी थी। सन
1974 में जाकर इस शहीद की
अस्थियां भारत आ पाई। ऊधम
सिंह पंजाब में सुनाम गांव का रहने वाला
था। उसके पिता टहल सिंह कम्बोज थे। तीन साल की उमर में
माता का साया सिर
से उठ जाता है।
क्या बताया भलाः
रागनी.3
ऊधम सिंह हुआ शूरवीर भारत का अजब सिपाही।।
सुनाम शहर पंजाब मैं श्यान जिनकी गजब बताई।।
टहल सिंह कम्बोज बाबू था करकै मेहनत
पाल्या था
गरीबी क्यूकर तोड़ै माणस नै उसका देख्या
भाल्या था
भारत का जनमाणस गोरयां
नै अपणै संग ढाल्या था
चपड़ासी की करै नौकरी
अपणा सब कुछ गाल्या
था
देश प्रेम की टहल सिंह
नै पकड़ी नबज बताई।।
चारों कान्ही देश प्रेम की पंजाब मैं
थी लहर चली
गाम.गाम मैं चर्चा होगी हर गली और
शहर चली
ईन्कलाब जिन्दाबाद की घणे गजब
की बहर चली
सन ठारा सौ
सतावण मैं हांसी मैं खूनी नहर चली
इस आजादी की
चिन्गारी तै गोरयां कै
दी कब्ज दिखाई।।
तीन साल का बालक था
जिब माता हो बिमार गई
रै
इलाज का कोए प्रबन्ध
ना था बीमारी कर
मार गई रै
याणे से की बिन
आई मैं माता स्वर्ग सिधार गई रै
फेर खमोशी सारे घर मैं बिना
बुलाएं पधार गई रै
बिन माता याणा बालक इसतै भूंडी ना मरज सुणाई।।
छह साल की
उम्र हुई जिब पिताजी नै मुंह मोड़
लिया
तावले से नै लिया
सम्भाला देशप्रेम तै नाता जोड़
लिया
रणबीर बरोने आले नै आज बणा
सही यो तोड़ लिया
गरीबी मैं रैहकै बी ओ कदे
भूल्या नहीं था फरज भाई।।
वार्ताः ऊधम सिंह जलियां वाले बाग के घायलों की
सेवा के लिए अस्पताल
में जाता है। वहां उसकी एक नर्स से
मुलाकात होती है। घायलों के मुुुंह से
सुन.सुन कर उस नर्स
के पास बहुत सी बाते थी।
एक दिन वह नर्स ऊधम
सिंह को जलियां वाले
बाग के बारे में
क्या बताती है भलाः
रागनी.4
निशान काला जुलम कुढाला यो जलियां आला
बाग हुया।।
अंग्रेज हकुमत के चेहरे पै
घणा बड्डा काला दाग हुया।।
देश की आजादी की
खातर बाग मैं तोड़ होग्या
इतिहास के अन्दर बाग
एक खास मोड़ होग्या
देश खड़या एक औड़ होग्या
जिब यो खूनी फाग
हुया।।
इसतै पहलम बी देश भक्ति
का था पूरा जोर
हुया
मुठ्ठी भर थे क्रान्तिकारी
सुधार वादियों का शोर हुया
दंग फिरंगी चोर हुया बुलन्द आजादी का राग हुया।।
शहरी बंगले गाम के कंगले सबको
ही झकझोर दिया
कांप उठी मानवता सारी जुलम घणा महाघोर किया
एकता को कमजोर किया
इसा फिरंगी जहरी नाग हुया।।
कुर्बानी दी उड़ै वीरों
नै वा जावै कदे
बी खाली ना
जिब जनता ले मार मंडासा
फेर पार किसे की चाली ना
जीतों बैठैगी ठाली ना रणबीर सिंह
चाहे निर्भाग हुया।।
वार्ताः ऊधम सिंह और नर्स की
बात बढ़ती है। ऊधम सिंह कहता है कि ज्यादातर
लोगों की राय में
नर्से ज्यादा काम नहीं करती। सामाजिक स्तर पर इस काम
को हेय समझा जाता है। कोई नर्स से शादी करने
को तैयार नहीं। यह सुनकर नर्स
ऊधम सिंह को क्या बताती
है नर्सिंग प्रोफैशन के बारे मेंः
रागनी.5
माणस की ज्यान बचावैं
अपणी ज्यान की बाजी लाकै।।
फिर बी सम्मान ना
मिलता देख म्हारे राम जी आकै।।
मरते माणस की सेवा मैं
हम दिन और रात एक
करैं
भुलाकै दुख और दरद हंसती
हंसती काम अनेक करैं
लोग क्यों चरित्रहीन का तगमा म्हारे
सिर पर टेक धरैं
घरआली नै छोड़ भाजज्यां
देखै बांट वा एड्डी ठाकै।।
फलोरैंस नाइटिगेल नै नर्सों की
इज्जत आसमान चढ़ाई
लालटेन ले कै करी
सेवा महायुद्ध मैं थी छिड़ी लड़ाई
कौण के कहवैगा उस
ताहिं वा बिल्कुल भी
नहीं घबराई
फेर दुनिया मैं नर्सों नै थी मानवता
की अलग जगाई
बाट देखते नाइटिंगेेल की फौजी सारे
मुंह नै बांकै।।
करती पूरा ख्यालबिमारां का फेर घर
का सारा काम होज्या
डाक्टर बिना बात डाट मारदे जल भुन काला
चाम होज्या
कहवैं नर्सें काम नहीं करती चाहवैं उसकी गुलाम होज्या
मरीज बी खोटी नजर
गेर दे खतम खुशी
तमाम होज्या
दुख अपणा ऊधम सिंह रोवां किसके धोरै जाकै।।
काम घणा तनखा थोड़ी म्हारा सबका शोषण होवै क्यों
सब भारत वासी
मिल रोवैं जीतों अकेली रोवै क्यों
बिना एकता नहीं गुजारा न्यारा.न्यारा बोझा ढोवैं क्यों
गोरयां की चाल समझल्यां
ईब झूठा झगड़ा झोवै क्यों
रणबीर सिंह साथ देवैगा आज न्यारे छन्द
बणाकै।।
वार्ताः नर्स से बातचीत में
ऊधम सिंह कहता है कि आजादी
की लड़ाई तो हम नौजवान
लड़ रहे है। महिलाओं को घर का
मोर्चा सम्भालना चाहिये। महिलाओं की आजादी की
जंग में हिस्सेदारी को लेकर काफी
बहस होती है। जीतो ऊधम सिंह को इस बारे
मंे क्या कहती है कवि के
शब्दों मेंः
रागनी.6
बिन म्हारी हिस्सेदारी के क्यूकर देश
आजाद करावैगा।।ए
करकै घरां मैं कैद हमनै किसा भारत नया बणावैगा।।
जनता नै सुथरा सा
सपना देख्या भारत नया बणावै
आजाद होकै अपणी बगिया मैं लाल गुलाब खिलावै
गोल मटोल से बालक होंगे
हांगा लाकै खूब पढ़ावै
इन्सानी जज्बा मरण लागरया सोचै कैसे उल्टा ल्यावै
औरत की जंजीर
तोड़कै देश सही आजादी पावैगा।।
माणस हिंदू मुस्लिम होंगे ना इन्सान की
जात मिलै
विश्वास कति खत्म हो लिया माणस
करता घात मिलै
जीत कौर बरगी महिला का मुश्किल तनै
साथ मिलै
महिला साथ लड़ी जड़ै उड़ै न्यारी ढाल की बात मिलै
जीत कौर का ना साथ
लिया तै पीछे फेर
तछतावैगा।।
शहीद होणा हम भी जाणैं
तनै साची बात बताउं मैं
दिल म्हारे मैं जो तुफान उठ्या
यो किसनै दिखाउं मैं
मुठ्ठी भर चाहो आजादी
ल्याणा थारी कमी जत़ाउं मैं
महिला आधी भारत सै इनकी पूरी
शिरकत चाहूं मैं
मेरी बात गांठ मार लिये बख्त मनै ठीक ठहरावैगा।।
म्हारी आजादी बिना इस आजादी का
अधूरा सार रहै
मार काट मची रहवैगी यो नहीं सुखी
घर बार रहै
मेरी बात गौर करिये कदे चढ़या योहे बुखार रहै
बेरा ना मेरी बात
नै रणबीर सिंह क्यूंकर समझावैगा।।
वार्ताः ऊधम सिंह एक दिन जीत
कौर के पास आता
है। बहुत परेशान था। जीत कौर परेशानी का कारण पूछती
है। ऊधम सिंह कहता है कि मुझे
लोग समझाते है कि अंग्रेजों
के राज में तो सूरज नहीं
छिपता। ये भारत देश
को छोड़ कर नहीं जाने
वालें मुझे बड़ी परेशानी होती है यह सुनकर।
क्या बताया भलाः
रागनी.7
हाल देख कै जनता का
कोए बाकी रही कसर कोन्या।।
अंग्रेजां का जुलम बढ़या
ईब बिल्कुल बच्या सबर कोन्या।।
सोने की चिड़िया भारत
जमा लूट कै गेर दिया
किसान और मजदूर बिचारा
जमा चूट कै गेर दिया
क्यों खसूट कै गेर दिया
आवै जमा सबर कोन्या।।
सिर बी म्हारा जूती
म्हारी म्हारे सिर पै मारैं सै
बोलैं जो उनके साहमी
यो उसके सिर नै तारैं सै
कंस का रूप धारैं
सै छोडया कोए नगर कोन्या।।
म्हारी कमाई मौज उनकी म्हारी समझ ना आई
देश की तरक्की के
ना पै आड़ै जमकै
लूट मचाई
या बन्दर बांट
मचाई आसान रही बसर कोन्या।।
उनके पिठ्ठु कहते सुने राज मैं ना सूरज छिपता
क्यूकर काढ़ो देश तै रणबीर सिंह
कुछ ना दिखता
हुक्म बिना ना पत्ता हिलता
कहते तनै खबर कोन्या।।
वार्ताः ऊधम सिंह या उसके साथी
बातचीत के बाद ऊधम
सिंह को लन्दन भेजने
की तैयारी करते हैं। वह नाम बदल
कर लन्दन जाने की तैयारी करता
है उसकी आंखों के सामने डायर
घूमता रहता था। क्या बताया भलाः
रागनी.7
ऊधम सिंह नै सोच समझ
कै करी लन्दन की जाने की
तैयारी।।
राम मुहम्मद नाम धरया और पास पोर्ट
लिया सरकारी।।
किस तरियां जालिम डायर थ्यावै चिन्ता थी दिन रात
यही
बिना बदला लिये ना उल्टा आऊं
हरदम सोची बात यही
उनै मौके की थी बाट
सही मिलकै उंच नीच सब बिचारी।।
चैबीस घण्टे उसकै लाग्या पाछै यो मौका असली
थ्याया ना
जितने दिन भी रहया टोह
मैं उनै दाणा तक भी भाया
ना
लन्दन मैं भी भय खाया
ना था ऊधम क्रान्तिकारी।।ए
दिन रात और सबेरी डायर
उनै खड़ा दिखाई दे था
हाथ गौज में पिस्तोल उपर हमेशा पड़या दिखाई दे था
भगत सिंह भिड़या दिखाई दे भर आंख्यां
के मां चिन्गारी।।
होई कदे समाई कोन्या उसकै लगी बदन मैं आग भाई
न्यों सोचें जाया करता हमनै हो खेलना खूनी
फाग भाई
रणबीर का सफल राग
भाई जिब या जनता उठै
सारी।।
वार्ताःऊधम सिंह और डायर आमने.सामने होते हैं तो डायर कांप
उठता है। वह अपने जीवन
की भीख मांगता है तो ऊधम
सिंह क्या जवाब देता है और क्या
कहता हैः
रागनी.8
आहमी साहमी खड़े दोनों डायर का चेहरा पीला
पड़ग्या।।
आसंग रही ना बोलण की
जणो जहरी नाग आण कै लड़ग्या।।
थर.थर पींडी
कांप उठी भय चेहरे कै
उपर छाया था
मारै मतना मनै ऊधम सिंह डायर न्यों मिमयाया था
उसनै भाजना चाहया था ऊधम सिंह
झट आग्गै अड़ग्या।
ऊधम सिंह की आंख्यां आग्गै
वो बाग नाजारा घूम गया
डायर नै मरवाये हजारा्रं
भारतवासी बिचारा घूम गया
यो पंजाब सारा
घूम गया उसकै़ नाग बम्बी मैं बड़ग्या।।
पापी डायर कित भाजै सै करना मनै
तुं माफ नहीं
भीख मांगता जीवन की उस दिन
करया इंसाफ नहीं
काला दिल सै जमा साफ
नहीं तेरा ईबक्यों चेहरा झड़ग्या।।
बणकै मौत खड़या साहमी उनै बिल्कुल भी भय खाया
ना
ईन्कलाब कहया जिन्दाबाद कति भाजण का डा ठाया
ना
ऊाम सिंह पिछताया ना रणबीर सिंह
सही छन्द घड़ग्या।।्र
वार्ताः हाल
के अन्दर सभा हो रही थी।
आमना सामना हुआ। आंखों में आंखें मिली। आंखों ही आंखों मंे
कुछ कहा एक दूसरे को
।मौका पाते ही ऊधम सिंह
ने निशाना साध दिया। कवि ने क्या बताया
भलाः
रागनी.9
धांय धांय धांय होई उड़ै दनादन गोली चाली थी।।
कांपग्या क्रैक्सटन हाल सब दरवाजे खिड़की
हाली थी।।
पहली दो गोली दागी
उस डायर की छाती के
म्हां
मंच तै नीचै पड़ग्या
ज्यान ना रही खुरापाती
के म्हां
काढ़ी गोली हिम्माती के म्हां खतरे
की बाजी टाली थी।।
लार्ड जैट कै लागी जाकै
दूजी गोली
दागी थी
लुई डेन हेन हुया घायल मेम ज्यान बचाकै भागी थी
चीख पुकार होण लागी थी सब कुर्सी
होगी खाली थी।।
बीस बरस ग्यारा म्हीने मै जुलम का
बदला तार लिया
तेरह मार्च चैबीस मैं माइकल ओ डायर मार
दिया
अचम्भित कर संसार दिया
उनै कोन्या मानी काली थी।।
जलियां आले बाग का बदला लिया
लन्दन मैं जाकै
अंग्रेजां नै हुई भिड़ी
धरती भाग लिये वे घबराकै
रणबीर ने कलम उठाकै
नै झट चार कली
ये घाली थी।।
वार्ताः 31 जुलाई 1940 को ऊधम सिंह
को फांसी दे दी जाती
है खबर उसके शहर सुनाम पहुंचती है। एक बुजुर्ग ऊधम
सिंह को बहुत चाहता
था। अनाथ घर में भी
उसकी सम्भाल किया करता था। वह बहुत दुखी
होता है और क्या
कहता है भलाः
रागनी.10
बेटा उधम सिंह चला गया तो के सै
मेरे लाल भतेरे।।
उस वीर बहादुर
बरगे देश मैं न्यूंए ठोकैंगे ताल कमेरे।।
उसका कसूर था इतना देश
प्रेम की लौ लगाई
थी
देश नै आजाद करावां
मिलकै नै अलाख जगाई
थी
बढ़ता गया आगै बेटा आजादी की लड़ी लड़ाई
थी
अंग्रेजां नै कदे बी
ना कोए उसकी बात सुहाई थी
पूत पालनै मैं पिछणै सै यो करगे
ख्याल बडेरे।।
मैं न्यों बोल्या उसतै अपणा बख्त बरबाद करै सै
उम्र्र सै खेलण खावण
की राजनीति की बात करै
सै
न्यों बोल्या ज्यांए करकै अंग्रेज हमपै राज करै सै
बिना शान के जीणा चाचा
मनमैं दिन रात फिरै सै
सारी उम्र हम करां कमाई
क्यों लूटैं माल लुटेरे।।
गैर कैंडै नहीं चलूंगा बोल्या मेरा विश्वास करिये
आर्शीवाद देदे अपणा ना मनै आज
निराश करिये
भारत मां की आजादी की दिल
तै ख्यास करिये
पलहम परिक्षा लेले पाछै फेल और पास करिये
देश आजाद कराणा लाजमी ये ठारे ढाल
पथेरे।।
मैं सूं भारत देश का सच्चा ताबेदार
सिपाही
गोरयां नै वैशाखी आले
दिन ढाई घणी तबाही
म्हारी बहू बेटी नै तकते होती
ना जमा समाई
रणबीर मार गोली छाती मैं उसनै कसम पुगाई
फसल असली थे भारत की
वे ना थे ंघास
पटेरे।।
वार्ताः ऊधम सिंह ने देश के
मान सम्मान और आजादी के
लिए अपनी ज्यान न्यौछावर कर दी। लन्दन
में जाकर माइकल ओ डायर को
गोलियों से भून दिया
और.और हंसते हंसते
फांसी का पफंदा चूम
गया। उसनै भारत के सपूतों को
ललकार दी। क्या बताया कवि नेः
रागनी.11
ऊधम सिंह नै ललकार दी
थीए भारत मैं पुकार गई थीए
जंजीर गुलामी की तोड़ दियो।।
न्यूं बोलियो सब कठ्ठे होकै
भारत माता जिन्दाबाद
शहर सुनाम देश हमाराए गोरयां नै कर दिया
बरबाद
फिरंगी सैं घणे सत्यानाशीए करकै अपनी दूर उदासी
मुंह तोपा का मोड़ दियो।।
म्हारा होंसला करदे खुन्डा उनके दमन के इथियार
लक्ष्मी सहगल साथ मैं म्हारै ठाकै खड़ी हुई तलवार
हिन्दुस्तान नै दी किलकारीए
देश प्रेम की ला चिन्गारी
कुर्बानी की लगा होड़
दियो।।
हर भारतवासी नै
देश प्रेम का यो झंण्डा
ठाया था
पत्थर मतना पूजो भाई न्यूं यो आसमान गूजाया
था
लाया था सारे कै
नाराए जुणसा लाग्गै हमनै प्यारा
इन पत्थरां नै
फोड़ दियो।।
देश मैं छाग्या सबकै ऊधम सिंह की बातां का
रंग
इन्कलाब जिन्दाबाद का नारा अंग्रेज
सुण होग्या दंग
रणबीर ने जंग तसबीर
बनाईए गुलाब सिंह नै गाकै सुनाई
दखे सुर मैं सुर जोड़ दियो।।
वार्ताः देश में आन्दोलन पहले चल रहा था।
किसान मजदूर डाक्टर वकील सब देश के
मुक्ति आन्दोलन में सक्रिय हो रहे थे।
ऊधम सिंह की शहादत ने
भारत वर्ष में तहलका मचा दिया। उसकी कुर्बानी के चरचे लोगों
की जुबान पर थे। कवि
ने क्या बताया भलाः
रागनी.12
ऊधम सिंह मेरे ग्यान मैंए भारत देश की श्यान मैं
इस सारे विश्व
महान मैंए यो तेरा नाम
अमर हो गया।।
असूलां की जो चली
लड़ाईए उसमैं खूब लड़या था तूं
स्याहमी अंग्रेजां के भाईए डटकै
हुया खड़या था तूं
बबर शेर की मांद के
म्हांए अकेला जा बड़या था
तूं
अव्वल था तु ध्यान
मैंए रस था तेरी
जुबान मैं
सारे ही हिंदुस्तान मैंए
यो तेरा पैगाम अमर हो गया।।
देख इरादा पक्का तुम्हाराए हो गया मैं
निहाल जमा
भारत मां की सेवा में
दे दिया सब धन माल
जमा
एक बै मरकै
देश की खातर जीवै
हजारौ साल जमा
डायर नै सबक चखान
मैंए इस लड़ाई के
दौरान मैं
निशाना सही बिठान मैंए यो तेरा काम
अमर होग्या।।
पक्के इरादे के साहमी अंग्रेजां
की पार बसाई ना
जलियां आला बाग देखकै फेर तेरै हुई समाई ना
धार लई अपने मन
मैं किसे और तै बताई
ना
तू अपने इस
इम्तिहान मैंए अपनी ही ज्यान खपान
मैं
देश की आन बचान
मैंए तू डेरा थाम
अमर होग्या।।
जो लड़ी.लड़ाई
तनै साथी वा लड़ाई थी
असूला पै
वुर्बानी तेरी रंग ल्यावैगी जग थूकै ऊल
जलूलां पै
जिस बाग का फूल हुया
नाज करैं उसके फूलां पै
ईब आग्या सही
पहचान मैंए भूले थे हम अनजान
मैं
तूं सफल हुया मैदान मैंए यो तेरा सलाम
अमर होग्या।।
वार्ताः जीत कौर को सुनाम के
शहर में सूचना मिलती है ऊधम सिंह
की शहादत की। वह मन ही
मन रो पड़ती है
पुरानी मुलाकातों को याद करके।
समझ नहीं आता उसे कि वह ऊधम
सिंह के साथ अपने
रिश्ते को कैसे समझे।
ऊधम सिंह का आजादी का
सपना ही उसे सही
रिश्ता लगता है उसके साथ।
क्या सोचती है भला।
रागनी.13
कौण किसे की गेल्यां आया
कौण किसे की गैल्यां जावै।।
ऊधम सिंह के सपन्यां का
यो भारत ईब कौण रचावै।।
किसनै सै संसार बनाया
किसनै रच्या समाज यो
म्हारा भाग तै भूख बताया
बाधैं कामचोर कै ताज यो
मानवता का रूखाला आज
पाई.पाई का मोहताज यो
अंग्रेज क्यों लूट रहया सै मेहनत कश
की लाज यो
क्यों ना समझां बात
मोटी अंग्रेज म्हारा भूत बणावै।।
कौण पहाड़ तोड़ कै करता धरती
समतल मैदाल ये
हल चला खेंती
उपजावै उसे का नाम किसान
ये
कौन धरा नै चीर कै
खोदै चांदी सोने की खान ये
ओहे क्यों कंगला घूम रहया गोरा बण्या धनवान ये
म्हारे करम सैं माड़े कहकै अंग्रेज हमनै यो बहकावै।।
हम आजादी चाहवां
अक अनपढ़ता का मिटै अन्धकार
हम आजादी चाहवां
अक जोर जुल्म का मिटै संसार
हम आजादी चाहवां
अक ऊंच नीच का मिटै व्यवहार
हम आजादी चाहवां
अक लूट पाट का मिटै कारोबार
जात पात और भाग भरोसै
या कोन्या पार बसावै।।
झूठ्यां पै ना यकीन
करां म्हारी ताकत सै भरपूर
म्हारी छाती तै टकराकै गोली
होज्या चकना.चूर
जागते रहियो सोइयो मतना ना म्हारी मंजिल
दूर
सिंरजन हारे हाथ म्हारे सै घणे अजब
रणसूर
देश की आजादी खातर
ऊधम सिंह राह दिखावै।।
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