Saturday, 30 May 2015

फागन

फागन का महीना आ जता है | फ़ौजी को छुटी नहीं मिलती | तो उसकी घरवाली उसको कैसे संबोधन करती है 

मनै पाट्या कोन्या तोलक्यों करदी तनै बोल
नहीं गेरी चिठ्ठी  खोलक्यों सै छुट्टी मैं रोळ
मेरा फागण करै मखोलबाट तेरी सांझ तड़कै।।

या आई फसल पकाई पैदुनिया जावै  लाई पै
लागै दिल मेरे पै चोटक्यूकर ल्यूं  इसनै ओट
सोचूं खाट के मैं लोटतूं कित सोग्या पड़कै।।

खेतां मैं मेहनत करकैरंज फिकर यो न्यारा धरकै
लुगाइयां नै रोनक लाई_ी हो बुलावण आई
मेरी कोन्या पार बसाईतनै कसक कसूती लाई
पहली दुलहण्डी याद आईमेरा दिल कसूता धड़कै।।

इसी किसी तेरी नौकरीकुणसी अड़चन तनै रोकरी
अमीरां के त्योहार घणे सैंम्हारे तो एकाध बणे सैं
खेलैं रळकै सभी जणे सैंबाल्टी लेकै मरद ठणे सैं
मेरे रोंगटे खड़े तनै सैंआज्या अफसर तै लड़कै।।

मारैं कोलड़े आंख मीचकैखेलैं फागण जाड़ भींचकै
उड़ै आग्या था सारा गामपड़ै था थोड़ा घणा घाम
पाणी के भरे खूब ड्रामदो तीन थे जमा बेलगाम
मनै लिया कोलड़ा थाममारया आया जो जड़कै।।

पहल्यां आळी ना धाक रहीना बीरां की खुराक रही
तनै मैं नई बात बताऊंडरती सी यो जिकर चलाऊं
रणबीर पै बी लिखवाऊंहोवे पिटाई हर रोज दिखाऊं
कुण कुण सै सारी गिणवाऊंनहीं खड़ी होती अड़कै।।


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