Saturday, 18 October 2014

जनता बी खूब बिगाड़ दई

जनता बी खूब बिगाड़ दई

नेता की नीयत माड़ी जनता बी खूब बिगाड़ दई
पीकै  दारू लेकै पीस्से जीवन की राह लिकाड लई
जनता का बी बेरा  ना दन साच्चेी बात नै समझै रै
बेर सै कौण नाश करणिया पांच दो सात नै समझे रै
विकल्प की बात ना सोचै झूठ गेल्याँ कज जुगाड़ लई।
जिस डाहले पै बैठी जनता उसे नै काट रही सै
 लाल झण्डा  सही हिम्माती वोट तैं नाट रही सै
लूट कई बी ना समझै बंद कर दिमागी किवाड़ लई ।
साहूकारां की चाल लुभाले  लाल झण्डा भूल जावै या
छियासठ साल हो लिए सैं पूंजी चौपड़ सार बिछावै या
भ्र्ष्टाचारी व्यवस्था नै जनता तै ठवा कबाड़ दई ।
लाल झंडे आले बी इसकी श्यान समझा ना पाये रै
यूनियन मैं इंकलाब जिंदाबाद ये नारे गुंजाये रै
रणबीर सिंह दुखी घणा सै कलम  आज चिंघाड़ दई ।

Friday, 17 October 2014

मरीज  का इंसानी पक्ष 


इंसान  मरीज  हो  गया  
मरीज  का  भी  हर्निया  
बस  दिखाई  देता  है  
सर्जन   को  क्या  हुआ  
मायोपिक नजर हो गयी  
इंसानियत और इंसान की  
परिभाषा  ही  खो गयी 

तीन मुँही नागण काली


तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
शरीर हुया काला इंका जनता आज कसूती फंसगी ॥
मुद्रा कोष का फण जहरी इंका काट्या मांगै पाणी ना
दूसरा फण विश्व बैंक का तासीर इसकी पिछाणी ना
डब्ल्यू टी ओ तीजा फण सै बचै इंका डस्या प्राणी ना
नागण के सप्लोटिये कहैं नागण माणस खाणी ना
इसके जहर की छाया समाज की नस नस मैं बसगी ॥
तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
ढांचागत समायोजन सैप नै कसूते गुल खिला दिए
शिक्षा पाई खर्चा कम करो फरमान इसे सुणा दिए
सेहत तैं ना कोए लेना देना मंतर गजब पढ़ा दिए
पब्लिक सैक्टर औने पौने मैं ये इसनै बिका दिए
संकट मोचक बणकै आया संकट की कोळी क्सगी ॥
तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
गरीब देशां का हितेषी वैश्वीकरण बणकै आया रै
तीन मुँही नाग के दम पै हर देश लूट कै खाया रै
अपनी मौज मस्ती की ताहिं नया गुल खिलाया रै
चका चौंध इसी मचा दी अपना दीखै सै पराया रै
ये गरीब तबाह होते आवैं गाळ भीतर नै धंसगी ॥
तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
बाळकां की दुर्गति करदी जवानी आज की बोड़ी होगी
म्हारे डांगर मरण लागरे ठाड्डी रेश  की घोड़ी होगी
अमीर गरीब के बीच की खाई आज और भी चौड़ी होगी
बदेशी तीन मुँही नागण की देशी नागण तैं  जोड़ी होगी
 रणबीर सिंह की कविताई तैं ज्योत अँधेरे मैं चसगी ॥
तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
2001 

Saturday, 11 October 2014

लोकगीतों का बुगचा बालम की जकड़ी

लोकगीतों का बुगचा
बालम की जकड़ी
बेबे  मैं  बालम की प्यारी हे घर म्है सासू का नखरा
मैं तो चून  पीस के  ल्याई उनै मोटा  हे बताया
उनै मोटा  हे बताया मनै चुटकी से उड़ाया
बेबे  मैं  बालम की प्यारी हे घर म्है सासू का नखरा
उनै मोटा हे बताया उनै   बेटा  हे सिखाया
उनै बेटा  हे सिखाया ओ तो  फूलसन्टी ल्याया
 तो  फूलसन्टी ल्याया मेरी सुड़म सूड़  मचाई
बेबे  मैं  बालम की प्यारी हे घर म्है सासू का नखरा
मेरी सूड़म सूड़ मचाई मनै आसन पाटी खाई
मनै आसान  पाटी खाई उनै हलवा ऐ बनाया 
उनै हलवा हे  बणाया उनै ऊँगली से चटाया 
बेबे  मैं  बालम की प्यारी हे घर म्है सासू का नखरा
उनै अंगली से चटाया मनै अँगली काट खाई 
मनै अँगली काट खाई ओ डाक्टर नै ल्याया 
बेबे  मैं  बालम की प्यारी हे घर म्है सासू का नखरा
ओ तो डाक्टर नै ल्याया  मेरी हाँसी छुट  आई
हाँसी छुट आई ओ तो सेर  लाड्डू ल्याया 
 ओ तो सेर लाडडू ल्याया मनै गप गप  खाया 
बेबे  मैं  बालम की प्यारी हे घर म्है सासू का नखरा
संकलन कर्त्ता --निर्मल