Friday, 10 May 2013

दुखती रग

 दुखती रग
ठीक थोडा गलत घना जगत मैं पीस्सा सर चढ़  कै  बोलै ॥
सांझै दारू पी कै रमलू सारी रात बहार भीतर वो डो लै ॥
कोए घर बार नहीं आज बच्या मानस चाहे बच्या हो घर मैं
घणी कुसंस्कृति बढावै  सै  दारू या दारू पीवनिया नर मैं
बाहर भीतर वो तां कै  झाँ कै  कलह जहर घणा घो लै ॥
बिना नौकरी बिन ब्याहे गाम गाम मैं घूम रहे दिखाऊँ
नशे पते के शिकार हुए किस किस के नाम गिनाऊँ
या हालत हरियाणे के गामां की मेरा कालजा छो लै ॥
नैतिकता जमा ख़तम हुई व्यभिचार घना बढ़ता जा वै
प्यार मोहब्बत कै ताला लाया अवैध सम्बन्ध सारै पावै
साच बोलानिया धक्के खावै मौज करै जो जमा कम तोलै ॥
घोटाले पै घोटाले करते म्हारे अफसर नेता ये  मिलकै 
कोए दण्ड ना इनकी खातर ठेस कसूती लागै  दिल कै
रणबीर सिंह बरोने आला आज  दुखती रग नै पपोलै ॥

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