Thursday, 27 December 2012

संघर्ष भारी

सोच सोच कै हार  गया आज क्यों बढ़गे ये बलात्कारी।।
पहले  भी हुआ करैं थे  नहीं मुंह  खोल्या  करती नारी।।
भोग की वास्तु हो सै  नारी ग्रन्थ  हमारे खूब  पुकारे
मर्द के दिमाग मैं विचार ये सैं  सदियों पुराने छाहरे
ईब मुंह खोलन लागी  करतूत थारी  साहमी आरी ।।
पूरे समाज मैं खतरा होग्य़ा  कोए बी महफूज नहीं
काले  धन की लीला छागी सच्चाई की बची गूँज नहीं
नंगेपन और हवस की अपसंस्कृति बढ़ती जारी ।।
गरीब दलित आदिवाशी घने दिनों तैं  यो झेल रहे
ये शरीफ सभ्य समाज के बना महिला का खेल रहे
दो मिनट मैं ठीक नहीं होवेगी सदियों की चली बीमारी ।।
कई स्तर पर रणबीर मिलकै पूरा हांगा लाना होगा 
न्यारे न्यारे बाजे छोड़ कै साझला बाजा बजाना होगा
आज नया नव जागरण विचार संघर्ष  मांगे भारी ।।

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