Saturday, 9 January 2021

SAHI RAM ALHA

 संघर्ष कथा

सही राम

आँखिन देखी मैं कहता हूँसुनी सुनायी झूठ कहाय |

गाम राम की कथा सुनाऊँ , पंचो सुनियो ध्यान लगाय |

हल और बल कुदाली कस्सी , धान बाजरा फसल गिनाय|

भैंस डोलती पूंछ मारतीगैय्या खड़ी खड़ी रम्भाय |

सुबह सवेरे हाली निकलैगर्मी सर्दी को बिसराय|

सारा दिन वो खटे  खेत में , मिटटी संग मिटटी होई जाय |         

चाहे धूप जेठ के चलके,चाहे कोहरा दे ठिठुराय |

उसकी धर्म मशक्कत करनाउसको इनकी क्या परवाय|

लेकिन उलटी रीति ये देखो , देऊँ आपका ध्यान दिलाय |

ये दुनिया जो गौरख धंधा , मिहनत कौड़ी हाट लगाय |

हल बैलों वाला भी भूखा , जो खेतों में अन्न उगाय|

मोटे सेठ हड़प कर जाएँ , सारा माल हाथ फैलाय |

रुखा टुकड़ा वे ना पावेंडाकू चिकनी चुपड़ी खाय |

डंगर भूखे मरते मर जाय , भुस्सा उनको मिलता नाय |

जमा फसल देकर बनिए को , कर्जदार फिर भी कहलाय |

ज्यों ज्यों ढलै  उमरिया उसकी , त्यों त्यों कर्जा बढ़ता जाय |

यह चक्कर देखो होनी कावाह फिर भी मरजाद कहाय

घर में  बेटी बीस बरस कीकुर्दी की ज्यों बढती जाय |

सेठ साहब का कर्ज  उतरै , लड़की क्योंकर ब्याही जाय |

जो भी देखे लानत भेजै ,वो क्या पडै कुंए में जाय |

बेटी भारी बोझ बाप परमाँ को औरत रही गरियाय |

पाँच हजार मांगता समधी , उसकी चिठ्ठी पहुंची आय |

लाला उसका अपना बनकरउंच नीच सब रहा बताय |

दुनिया में मरजाद पालनीयह मर्दों का धर्म कहाय |

खानदान को दाग लगै  नाबिटिया घर से देओं धकाय |

सारी दुनिया काल चबैना , क्यों फिर पगले तूं पछताय |

जाय कचैड़ी लाला जी संग , उसने दिया अंगूठा लाय |

अब वो नहीं भोमियां कोई , कर मजदूरी पेट चलाय |

  बच्चे कुच्चे सारे , भूखे बिलख बिलख सो जाय |

अगन पेट में धधक रही हैघर का चूल्हा जलता नाय |

खेलन -खावन के दिन आये , सो बच्चे कमगर कहलाय |

हड्डी तोड़ें खून सुखावै , सँझा तक बेगार कराय |

आधी पारदी उजरत देकर , धक्का दें और छुट्टी  पाय |

यह अन्याय   राम  का देखो ,किस किसका दूं नाम गिनाय |

बोटो बोटी नोचें उसकी , लोहू बूँद बूँद पी जाय |

पंचो यह तो एक कहानी , गाम राम की कही सुनाय |

और  जाने कितने दुखड़े , कितने लोग रहे दुःख पाय |

ढांचा यो सारा गड़बड़ है , बुन्गत इसकी समझ  आय |

सब इन्सान बराबर जन्मे , एक पेट दो हाथ कमाय |

एक तो करता ऐश महल में , दर दर दूजा ठोकर खाय |

एक उड़ावै  हलवा पूरीदूजा भूखा मर मर जाय |

यह इंसाफ कहाँ दुनिया में , सोचो पंचो ध्यान लगाय |

एक बना फिरता पंडत हैदूजा रहा चमार कहाय |

एक ही कुदरत एक ही माया ,एक तरह से जन्मे  माय |

फिर कोई क्यों ठाकुर बनता , दूजा हरिजन रहा कहाय |

सबरनता का गरब नशीला , त्यौरी उप्पर को चढ़ जाय |

बुलध समझ कै चमड़ी तारैऔर फिर उप्पर से गिरयाय |

जिन्दा उसको आग में झोंके , तब तक नशा नहीं थम जाय |

फिर भी उसको गाड्डी मिलतीवो मिटटी में मिलता जाय |

यह कैसा कानून राम का , यह तो नहीं इंसाफ कहाय |

बेटी , बहू,माय  हरिजन की,   सरेआम इज्जत लुट जाय |

छुट्टा  सांड गाँव में डोलैकोई नहीं सामने आय |

रात दिनों जो खेत जोतता , वो उसका मजदूर कहाय |

मलिक कोई और भूमि का , आनी ये  जागीर बताय|

उसको नहीं पता क्या मिटटी , क्या मिटटी की गंध कहलाय |

 वो बैठा है महलों अन्दर , उस तक गंध पहुँचती नॉय |

सौ रूपए के कर्ज बदले , बंधुआ सात पुश्त हों जाय |

ऐसा यह कानून राम का , ज्ञानी गुनियों ज्ञान लगाय |

सर्दी गर्मी पीठ पै झेले ,मलिक उसको रहा जुतियाय |

न्याय धर्म के नाम पै पंचोमाणस दिन दिन पिसता जाय|

मिल मजदूरों के बूते हीचिमनी धुआं उगलती जाय |

पर एक बात सोचियो पंचो ,वो क्यों अधभूखे रह जाय |

सेठ तिजौरी भर भर गाडै , काले धान को रहा छिपाय |

मजदूरों का खून चूसता , लोहू बूँद बूँद पी जाय |

वो महलों में बैठा लेकिन उसकी पूँजी बढती जाय |

शोषण वो कर रहा मजदूर का , उसकी चर्बी बढती जाय |

वो इन्सान नहीं कोई सीधा , दीखत का वो नरम सुभाय |

आदमखोर जानना उसकोउसका दीं धर्म कोई नॉय |

झूठा उसका पोथी पत्राझूठे मंदिर रहा बनाय |

मिल सारी मजदूरों की है ,वो झूठा मलिक कहलाय |

मजदूरों को गली देताहड़तालों को झूठ बताय |

छंटनी कर कर  के वो इनकी , और गुंडों से रहा पिटाय|

उसके हाथ बनैले पंजे , उसको खुनी समझो भाय |

उसकी सारी पुलिस फ़ौज है ,गौरमिंट भी वही बनाय |

वो नहीं देगा बोनुस तुमको , वो नहीं रहा स्कूल खुलाय |

छंटनी कर कर लोगों की , घाटा  ही घाटा  दिखलाय |

उसकी खातिर मारो भूख से , उसको बात लागती नॉय |

वो चमड़ी का मौत भैंसा ,उसके सींग रहे चिकनाय |

उससे लड़ना चाहो गर तो , एक्का पक्का कर लो भाय |

 उसके साथ है सारी ताकत , उसकी एक जानियो नॉय

अपनी ताकत एक जूता लो , एक साथ लेओ हाथ मिलाय |

वो खूंखार बनैला भैसा , उसे खून की गंध सुहाय |

वो रोंदेगा बस्ती को भी ,बच्चों को वो चींथत  जाय |

यह संघर्ष कथा उनकी है , सुनियो पंचो ध्यान लगाय

जिनके हाथ हथोडा केवल ,दोनाली से अड़ गया जाय

 सदियाँ से जो लुटते आये , और लूटना जिनका धर्म कहाय  |

जिनके पसीने को गंगा का ,वे गोली में मोल लगाय |

जिनके बूते दुनिया चलतीदुनिया पै हक़ उनका नाय |

सारे दिन जो खटते  पिटतेरोती उन्हें रही तरसाय |

कपडा उनको नहीं मयस्सर , दवा दारू की कौन बताय |

उस मेहनत का मौल है ,छाती में बन्दूक अड़ा   |

राय तुम्हारी क्या है ,पंचो,क्या यह नहीं अन्याय कहलाय |

धर्म की बात तुम्हीं कह देना ,लेकिन कहना ध्यान लगाय |

अन्यायी का पक्ष  लेना , पंचो से यकीन उठ जाय |

खूनखोर नरभक्षी देखा,भेद मुखौटा रहा लगाय |

पूरी कौम के ये दुश्मन हैं , इंका तो बस नफा खुदाय |

मेहनतकश का परोपकार है ,नाफखोर की क्या परवाय |

ऊपर से ये चिकने चुपड़े ,अन्दर कोढ़ रहा गन्धाय  |

पूरी कौम को कोढ़ी कर दें ,इनसे पिंड छुडाओ भाय |

ये कलंक पूरी दुनिया पर , इंका नामोंनिशा मिटाय |

अब ये दुनिया है नहीं इनकी ,अब ये और बसालें जाय |

पर इन्सान जहाँ होगा ,इनकी पेश पडेगी नॉय |

पंचो मैंने गलत कहा क्या ,झूठ साँच देना बताय |

जिसने इनको जन्म दिया हैवो पग की जूती कहलाय |

बहन खिलौने की वस्तु है , उनको कोठे दिया बिठाय |

हक़ जीने का नारी मांगे ,उसके सिर को रहे जुतियाय |

इनकी यह मर्दूमी देखो , यह इंका दमखम कहलाय |

मांग करेँ जो हक़ अपने की , उसकी खिल्ली दे उडाय |

उसको झांसे दे दे कर ही अब तक उसको भोगे जाय |

नीलामी की यह वस्तु है , इनके मनकी समझें नॉय |

लेकिन पंचो सुनना तुम भी , एक बात देऊँ बतलाय |

 नारी  जागी है तो देखो ,अब ये हक़ छोड़ेंगी नॉय |

अब ये इनके पग की जूती , और शो पीस बनेंगी नॉय|

मर्जादों की धमकी देकर , उसको रोक सकोगे नॉय |

यह प्रतिबंध हटाना होगा , इनकी शक्ति लेओ परचाय |

शोर शराब नहीं है केवल , पक्की बात लीजियो लाय |

अब ये नहीं कोई पूजा वस्तु ,धर्म कर्म की नहीं परवाय |

एक बराबर मानव शक्ति ,एक को छोटा दिया बताय |

अब यह चालाकी नहीं होगी , सुनियो सजनो ध्यान लगाय |

शोषित पीड़ित जनता कीजो मैं कथा रहा बतलाय |

इतनी लाम्बी कथा है पंचो ,एक एक चीज सुनोगे नॉय |

ना ये किस्सा तोता मैना , ना राजा -रानी की बात |

शोषित पीड़ित जनता की ही ,मैंने आज बताई बात |

नाले के कीड़े सी दुर्गत ,मानुष छोले की हों जाय |

श्रम शक्ति के दुरूपयोग से ,बेडा कैसे पार लगाय |

मानव श्रम को बिन पहचाने , देश रसातल को हों जाय |

गाँधी उनको कम  आया ,अर्थ शाश्त्र को घुन खाय |

मैं पूछूं नेता लोगों से , पहन जो खद्दर रहे इतराय |

कुर्सी जिंका धर्म हों गयी , जनता पडों कुंए में जाय |

कब तक वो देंगे भाषण हीकब तक वादों   की भरमार |

बहुत दिनों की बात नहीं अब , मेहनतकश हों रहे त्यार |

उनके हाथ दरांती अपनी ,और हथोडा रहे उठाय |

लस्सी और कुदाली उनकी ,हाथ बसूला पहुंचा आय |

तैयारी  पूरी है उनकी ,अब वो एक लेंय बनाय |

तब मैं आऊंगा और पूछूं ,अब क्यों छुपे किले में जाय |

कहाँ गयी बन्दूक दुनाली ,क्या तलवार गयी बल खाय |

फ़ौज ,पुलिस सब अपने भाई , वो भी शामिल हों जा आय |

वो दिन होगा सज्जनों अपना , वे जल्दी ही पहुंचे आय |

तब तुम सुनना लोकगीत भी , ढोल मजीरा तभी सुहाय |

सही राम


सेठों की यह भरै तिजोरी, लूट को उनकी रहा छुपाय।

बैंक लुटाए, खनिज लुटाए, दौलत सारी रहा लुटाय।

रेल भी बेची, तेल भी बेचा, सेल की तख्ती रहा लगाय।

सब संपत्ति सेठ की झोली, लालच फिर भी मिटता नाय।

फिर खेती पर नजर लगी तो बोला यह भी क्यूं बच जाए।

माल बहुत है इसमें प्यारे, यह भी हमको देओ दिलाय।

खेत किसानी खत्म करो तुम, भूख को दो व्यापार बनाय।

कोई भी प्रपंच रचो तुम, बस मांग हमारी देओ पुगाय।

ढ़ोंगी और प्रपंची राजा, फिर दिया उसने ढ़ोंग रचाय।

मेरा चमत्कार तुम देखो,देऊं ऐसा मैं स्वांग रचाय।

करैं भरोसा सब मुझपर, मैं ऐसा देऊं जाल फैलाय। 

अनदाता की आमद दुगनी, बस चुटकी में यूं हो जाय।

इसी ढ़ोंग की आड़ में उसने अपना जाल दिया फैलाय।

संसद उसकी, सत्ता उसकी, बैठ गया वो घात लगाय।

खेत भी उनके, फसलें उनकी, सेठों को मैं लेऊं रिझाय।

मंडी उनकी ,भाव भी उनके, गल्ला सब उनका हो जाय।

तभी कहर टूटा कुदरत का, दुनिया गयी सनाका खाय।

महामारी की आफत आयी, उसने दिया फरमान सुनाय।

घर में रहना ही अच्छा है, आपस में तुम मिलियो नाय।

कभी बजावै ताली-थाली और दीया-बाती रहा कराय।

मजदूरों की गयी मजूरी, धंधा सब चौपट हो जाए।

दुख मारी जनता रोयी, लोगों ने दी जान गवाए।

उसको फिकर रही सेठों, जनता की कुछ सुनता नाय।

विपदा को अवसर में बदलो, हांक यही बस रहा लगाय।

जनता को विपदा ने मारा, पर उसने अवसर लिया बनाय।

पहले हक मारा मजूर का, सेठों का दिया दास बनाय।

खेत-किसानी पर फिर झपटा, मौका उसने छोड़ा नाय।

ढोंग रचाया, स्वांग रचाया, मीठी बातें रहा बनाय।

शीश नवा कर, बात बना कर, मैं दूंगा सबको भरमाय।

लेकिन शैतानी चेहरा वो अनदाता से छुपता नाय।

भरम का पर्दा फाड़ के उसने दिनी यह हुंकार लगाय।

भोला-भाल हूं मैं बेशकं, पर हक अपना छोड़ूंगा नाय।

हक अपने की खातिर फिर वह दिल्ली बॉडर पंहुचा आय।

उस बॉडर पर बेटे बैठे, इस पर बैठ गया खुद आय।

जय जवान और जय किसान का नारा सच्चा दिया बनाय।

जालिम भी तो जालिम ही था, उसमें दया-धर्म कुछ नाय। 

छेड़ दिया प्रचार पुराना, झूठा राग रहा सुनवाय।

देशद्रोही और बिचौलिए, सब खालिस्तानी रहा बताय।

खाए और अघाय कहता, कहता दुश्मन रहा भरमाय।

बाहरी मदद पंहुचती उनको, वे किसान बिल्कुल भी नाय।

चैनल-चैनल बात चलायी, झूठी बातें दी फैलाय।

फिर भी पेश गयी उसकी, किसान का निश्चय टूटे नाय।

काले है कानून तुम्हारें, जब तक रद्द करोगे नाय।

एम एस पी पर फसल हमारी, जब तक खरीद करोगे नाय।

हम बैठे हैं इस बॉडर पर, हमको हटा सकोगे नाय।

पाला मांड दिया बैरी ने, पीछे हमको हटना नाय।

राजाजी संग सेठ-ब्यौपारी, प्रजा इधर जुटी है आय।

जीत हमारी होगी निश्चित, अब दीनी ललकार लगाय।

ऐसी यह हुंकार लगायी, थर-थर बैरी है थर्रराय।