Tuesday, 28 February 2017
Monday, 27 February 2017
Workshop
Tuesday, 21 February 2017
Khuni keedey
खूनी कीड़े नई सदी के
नई सदी के ये खूनी कीड़े फेर गुलाम बनाया चाहवैं।
संकट फैला के चारों कान्हीं म्हारी मोर नचाया चाहवैं।।
1. पानी खाद बिजली पै सब्सिडी खत्म हुई सारी क्यों
धरती लाल स्याही मैं चढ़ी दरवाजे खड़ी बीमारी क्यों
ब्याह शादी मुश्किल होगे बढ़ी ईब बेराजगारी क्यों
पेट्रोल डीजल महंगे करे ना ढंग की मोटर लारी क्यों
बढ़ा कै बेरोजगारी नै ये ध्याड़ी घटाया चाहवैं।।
2. गिहूं अर चावल देश मैं ये चिड़िया घर मैं टोहे पावैंगे
दूध शीत बिना ये बालक म्हारे भैंसा कान्ही लखावैंगे
फसल के मालिक बिदेशी होज्यां दूर बैठकै हुकम चलावैंगे
हम के बोवां अर के खावां देशी बदेशी साहूकार बतावैंगे
दारू सुलफा स्मैक पिलाकै हमनै कूण मैं लाया चाहवैं।।
3. दारू बुरी बीमारी जगत के मां जानै दुनिया सारी भाई
फेर क्यों या काढ़ी जावै सै नुकसान करती भारी भाई
माफिया पाल ये दारू के करैं फेर फरमान जारी भाई
म्हारे बालक फंसावैं जाल मैं म्हारी अकल मारी भाई
लाशां के उपर दारू बेचैं अपणा मुनाफा बढ़ाया चाहवैं।।
4. अमरीका जापान मैं सब्सिडी हम देते सभी किसानां नै
इम्पोर्ट ड्यूटी भारया उनकी पिटवाते म्हारे धानां नै
उड़े कुत्ते बिल्ली मौज करैं मुश्किल आड़ै इन्सानां नै
कमेरे जमा चूस कै बगाये देशी बिदेशी धनवानां नै
कहै रणबीर सिंह मुनाफा खोर ये लगाम लगाया चाहवैं।।
Wednesday, 8 February 2017
LAKHMI CHAND
इस प्रदेश में दादा लखमी को कौन नहीं जानता। काफी मशहूर सांगी रहे अपने दौर के और कई सांगों की रचना की और सांग खेले भी। लखमी दादा और मेहर सिंह के बारे में दो तीन अवसरों पर आमना सामना होने की बातें कई बार सुनने कां मिलती हैं। एक बार लखमी दादा सांपला में दादा लखमी अपना प्रोग्राम कर रहे थे । वहां पर दादा लखमी ने मेहर सिंह को काफी कड़े शब्दों में सबके सामने धमका दिया । बताते कि मेहर सिंह वहां से उठकर कुछ दूर जाकर खरड़ बिछा कर गाने लगा। कुछ ही देर में सारे लोग मेहर सिंह की तरफ चले गये और दादा की स्टेज खाली हो गई । क्या बताया भला कवि ने -
-4-
मेहर सिंह लखमी दादा एक बै सांपले मैं भिड़े बताये।।
लखमी दादा नै मेहरु धमकाया घणे कड़े शब्द सुनाए।।
सुण दिल होग्या बेचैन गात मैं रही समाई कोन्या रै
बोल का दरद सहया ना जावै या लगै दवाई कोन्या रै
सबकै साहमी डांट मारदी गल्ती उसतैं बताई कोन्या रै
दादा की बात कड़वी उस दिन मेहरु नै भाई कोन्या रै
सुणकै दादा की आच्दी भुन्डी उठकै दूर सी खरड़ बिछाये।।
इस ढाल का माहौल देख लोग एक बै दंग होगे थे
सोच समझ लोग उठ लिए दादा के माड़े ढंग होगे थे
लखमी दादा के उस दिन के सारे प्लान भंग होगे थे
लोगां ने सुन्या मेहर सिंह सारे उसके संग होगे थे
दादा लखमी अपनी बात पै बहोत घणा फेर पछताए ।।
उभरते मेहर सिंह कै एक न्यारा सा अहसास हुया
दुखी करकै दादा नै उसका दिल भी था उदास हुया
दोनूं जन्यां ने उस दिन न्यारे ढाल का आभास हुया
आहमा साहमी की टक्कर तैं पैदा नया इतिहास हुया
उस दिन पाछै एक स्टेज पै वे कदे नजर नहीं आये।।
गाया मेहर सिंग नै दूर के ढोल सुहाने हुया करैं सैं
बिना बिचार काम करें तैं घणे दुख ठाने हुया करैं सैं
सारा जगत हथेली पीटै ये लाख उल्हाने हुया करैं सैं
तुक बन्दी लय सुर चाहवै लोग रिझाने हुया करैं सैं
रणबीर सिंह बरोने आले नै सूझ बूझ कै छंद बनाये।।
Wednesday, 1 February 2017
आजादी का सपना जो पूरा होगा
आजादी का सपना जो पूरा होगा
जो रूकै नहीं जो झुकै नहीं जो दबै नहीं जो मिटै नहीं
हम वो इंक़लाब रै जुल्म का जवाब रै।
हर शहीद का हर रकीब का हर गरीब का हर मुरीद का
हम बनें ख्वाब रै हम खुली किताब रै।
लड़ते हम इसके लिए प्यार जग मैं जी सकै
आदमी का खून कोई फेर शैतान ना पी सकै
मालिक मजूर के नौकर हजूर के रिश्ते गरूर के जलवे शरूर के
ईब छोडै नवाब रै सरूर और शराब रै।
हम मानैं नहीं हुक्म जुल्मी हुक्मरान का
युद्ध छिड़ लिया आज आदमी शैतान का
सच की ढाल लेके मशाल हों ऊंचे ख्याल करें कमाल
खिलैं लाल गुलाब रै सीधा हो जनाब रै।
मानते नहीं हम फर्क हिन्दू मुसलमान का
जानते हम तो रिश्ता इंसान से इंसान का
जो टूटै नहीं जो छूटै नहीं जो रुठै नहीं जो चूकै नहीं
ना चाहवै खिताब रै बरोबर का हिसाब रै।
भोर की आँख फेर नहीं डबडबाई होगी
कैद महलां मैं नहीं या म्हारी कमाई होगी
जो छलै नहीं जो गलै नहीं जो ढलै नहीं जो जलै नहीं
रणबीर की आब रै या नहीं मानैगी दाब रै।
जो रूकै नहीं जो झुकै नहीं जो दबै नहीं जो मिटै नहीं
हम वो इंक़लाब रै जुल्म का जवाब रै।
हर शहीद का हर रकीब का हर गरीब का हर मुरीद का
हम बनें ख्वाब रै हम खुली किताब रै।
लड़ते हम इसके लिए प्यार जग मैं जी सकै
आदमी का खून कोई फेर शैतान ना पी सकै
मालिक मजूर के नौकर हजूर के रिश्ते गरूर के जलवे शरूर के
ईब छोडै नवाब रै सरूर और शराब रै।
हम मानैं नहीं हुक्म जुल्मी हुक्मरान का
युद्ध छिड़ लिया आज आदमी शैतान का
सच की ढाल लेके मशाल हों ऊंचे ख्याल करें कमाल
खिलैं लाल गुलाब रै सीधा हो जनाब रै।
मानते नहीं हम फर्क हिन्दू मुसलमान का
जानते हम तो रिश्ता इंसान से इंसान का
जो टूटै नहीं जो छूटै नहीं जो रुठै नहीं जो चूकै नहीं
ना चाहवै खिताब रै बरोबर का हिसाब रै।
भोर की आँख फेर नहीं डबडबाई होगी
कैद महलां मैं नहीं या म्हारी कमाई होगी
जो छलै नहीं जो गलै नहीं जो ढलै नहीं जो जलै नहीं
रणबीर की आब रै या नहीं मानैगी दाब रै।
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