Sunday, 22 January 2012


मिशाल बनाई 
सुभाष चन्द्र बोस तनै दुनिया मैं कई मिशाल बनाई 
उन बख्तों मैं भी हांगा लाकै तनै आई सी एस करी पढ़ाई 
कांग्रेस मैं रह कै तनै देश आजाद करवाना चाहया था 
नरम दल तैं  मतभेद थारे थे ज्याँ गरम दल बनाया था 
त्याग कै डिग्री अपनी तनै फेर अंग्रेजों की भ्यां बुलवाई ||
अंग्रेज फूट गेरो राज करो की निति कसूत अपनारे थे 
म्हारे बालक करकै भरती हम पै हथियार चलवारे थे 
इनको ताहने खातर थामनै फेर आजाद फ़ौज बनाई ||
भेष बदल कै भारत छोड्या जा पहोंचे फेर जापान मैं 
सपना था थारा अक यो आवै स्वराज प्यारे हिंदुस्तान मैं 
महिलाओं की पलटन न्यारी थामनै खडी करकै दिखाई ||
सारा हिंदुस्तान याद करै तेरी क़ुरबानी नहीं भुल्या देश 
हुक्मरान तनै भूल गये गोरयां आगे करया खुल्या देश 
रणबीर सिंह बरोने आला करै तेरी जयन्ती पै कविताई ||


Thursday, 19 January 2012


बस देख ली आजादी हामनै म्हारे हिन्दुस्तान की

बस देख ली आजादी हामनै म्हारे हिन्दुस्तान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ।।

न्यूं कहो थे हाळियाँ नै सब आराम हो ज्यांगे
-खेतों में पानी के सब इंतजाम हो ज्यांगे ।

घणी कमाई होवैगी, थोड़े काम हो ज्यांगे
-जितनी चीज मोल की, सस्ते दाम हो ज्यांगे ।

आज हार हो-गी थारी कही उलट जुबान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥

जमींदार कै पैदा हो-ज्याँ, दुख विपदा में पड़-ज्याँ सैं
-उस्सै दिन तैं कई तरहाँ का रास्सा छिड़-ज्या सै ।

लगते ही साल पन्द्रहवाँ, हाळी बणना पड़-ज्या सै
-घी-दूध का सीच्या चेहरा कती काळा पड़-ज्या सै ।

तीस साल में बूढ़ी हो-ज्या आज उमर जवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥

पौह-माह के महीने में जाडा फूक दे छाती
-पाणी देती हाणाँ माराँ चादर की गात्ती ।

चलैं जेठ में लू, गजब की लगती तात्ती
-हाळी तै हळ जोड़ै, सच्चा देश का साथी ।

फिर भी भूखा मरता, देखो रै माया भगवान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥

बेईमानी तै भाई आज धार ली म्हारे लीडर सारों नै -
रिश्वत ले कै जगहां बतावैं आपणे मिन्तर प्यारों नै ।

कर दिया देश का नाश अरै इन सारे गद्दारों नै
-आज कुछ अकल छोडी ना हाळी लोग बिचारों मैं ।

आज तो कुछ भी कद्र नहीं है एक मामूली इंसान की ।
सबतैं बुरी हालत सै आज मजदूर और किसान की ॥



-कवि नरसिं

NAR SINGH KA GEET


कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का

रचनाकार: कवि नरसिंह


कात्तिक बदी अमावस थी और दिन था खास दीवाळी का 
-आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

कितै बणैं थी खीर, कितै हलवे की खुशबू ऊठ रही 
-हाळी की बहू एक कूण मैं खड़ी बाजरा कूट रही ।

हाळी नै ली खाट बिछा, वा पैत्याँ कानी तैं टूट रही 
-भर कै हुक्का बैठ गया वो, चिलम तळे तैं फूट रही ॥

चाकी धोरै जर लाग्या डंडूक पड़्या एक फाहळी का 
-आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

सारे पड़ौसी बाळकाँ खातिर खील-खेलणे ल्यावैं थे 
-दो बाळक बैठे हाळी के उनकी ओड़ लखावैं थे ।

बची रात की जळी खीचड़ी घोळ सीत मैं खावैं थे 
-मगन हुए दो कुत्ते बैठे साहमी कान हलावैं थे ॥

एक बखोरा तीन कटोरे, काम नहीं था थाळी का 
-आंख्यां कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

दोनूँ बाळक खील-खेलणाँ का करकै विश्वास गये 
-माँ धोरै बिल पेश करया, वे ले-कै पूरी आस गये ।

माँ बोली बाप के जी नै रोवो, जिसके जाए नास गए 
-फिर माता की बाणी सुण वे झट बाबू कै पास गए ।

तुरत ऊठ-कै बाहर लिकड़ ग्या पति गौहाने आळी का 
-आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का ॥

ऊठ उड़े तैं बणिये कै गया, बिन दामाँ सौदा ना थ्याया 
-भूखी हालत देख जाट की, हुक्का तक बी ना प्याया !

देख चढी करड़ाई सिर पै, दुखिया का मन घबराया 
-छोड गाम नै चल्या गया वो, फेर बाहवड़ कै ना आया ।

कहै नरसिंह थारा बाग उजड़-ग्या भेद चल्या ना माळी का ।
आँख्याँ कै माँह आँसू आ-गे घर देख्या जब हाळी का