Sunday, 6 August 2017

शहीद ऊधम सिंह के बहाने


इस सदी  के दूसरे दशक का एक और साल समापन की ओर जा रहा है । इस सदी के तमाम सालों की तरह इस साल भी पूरी दुनिया की बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी की जि़न्दगी पर छाया सरमायेदारी  का कुहरा छँटने की बजाय और गहरा होता गया। जैसा कि अन्देशा था, इस साल फ़ासीवाद के रूझान  हमारे देश में अपने पैर अभूतपूर्व रूप से पसारते  हुए दिखाई दिए । ढाई साल पहले जनता को लोक-लुभावने वायदों के छलावे में फँसाकर सत्ता में पहुँची वर्तमान सरकार ने उन वायदों को पूरा करने में अपने फिसड्डीपन को छिपाने के लिए साल की शुरुआत से ही संघ परिवार की वाहिनियों की  मदद से पूरे देश में सुनियोजित ढंग से अन्धराष्ट्रवादी उन्माद फैलाया। साथ ही संघ परिवार का  गिरोह इस साल साम्प्रदाय‍िक व जातिगत विद्वेष को बढ़ावा देने की अपनी पुरानी रणनीति को नयी ऊँचाइयों पर ले गया। जब ये कुत्सित रणनीतियाँ भी सरकार के निकम्मेपन को छिपाने में कारगर नहीं साबित हुईं तो साल के अन्त में काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक करने के नाम पर मेहनतकश जन-जीवन पर ही सर्जिकल स्ट्राइक कर डाली जिससे आम लोग अभी तक त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। तीस दिसंबर के बाद भी हालात सुधरेंगे यह कहना मुश्किल लगता है । 

भारत ही नहीं दुनिया के विभिन्न हिस्सों में धुर-दक्षिणपन्थी व फ़ासिस्ट रुझान वाली ताक़तों ने अपना वीभत्स सिर उठाया और 2007 से जारी विश्व व्यापी मन्दी से निजात न मिलता देख पश्चिम के विकसित मुल्कों में नस्लवाद, रंगभेद, प्रवासी-विरोधी प्रवृत्तियाँ अपने चरम पर दिखीं। साल के अन्त तक आते-आते विश्व पूँजीवाद के सिरमौर अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में ट्रम्प जैसे फ़ासिस्ट और लम्पट धनपशु की जीत के बाद अब इस बात में शक की कोई गुंजाइश नहीं बची है कि पूँजीवाद ने आज मनुष्य‍ता को उस अन्धी गली में पहुँचा दिया है जहाँ वह उन्माद, नफ़रत कि़स्म-कि़स्म के प्रतिक्रियावादी विचारों और मूल्यों के अत‍िरिक्त और कुछ भी देने में नितान्त अक्षम है।


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