Saturday, 30 July 2016

HONDA KAND

 होंडा
वार्ता
एक अहम सवाल है कि होंडा कम्पनी के मजदूरों को संघर्ष करने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा। तीन हजार से ज्यादा श्रमिकों में से मात्रा 750 ही स्थाई मजदूर हैं बाकि सारे के सारे ठेेकेदार के अस्थाई मजदूर हैं जबकि सारा काम स्थाई प्रक्रति का है। बहुराष्र्टीय कम्पनियों के बारे में जो सब्ज बाग दिखाये जाते हैं असल में वस्तु स्थिति वैसी नहीं है। कार्य स्थितियों की असली हकीकत यह है कि जापानी अधिकारी द्वारा श्रमिकों  को लात मारने की बात अब सामने आई है। महिलाओें तक के शौंचालयों के दरवाजे इसलिये उतरवाये गये कि वहां बैठकर मजदूर आराम फरमाते हैं। इससे अपमानित होकर मजदूरों ने संगठन बनाया जिस पर चार मजदूरों  को बर्खाश्त कर दिया गया। ये चारों यूनियन के मुख्य पदाधिकारी हैं। मजदूरों की मीटिंग करते हैं और यूनियन बनाने की बात करते हैं। क्या कहते हैं भलारू
1.
सुणल्यो  सब साथी ललकार, होल्यो मिलकै नै तैयार
आज या मन मैं ठानी सै।।
होन्डा नै किया कसूता वार, इनै मजदूर दिया जमा मार
मालिक सै यो बैरी म्हारा, नाश करया से इसनै भारया
ईंकी काट बिछानी सै।।
बोनस म्हारा खत्म करैं देखो, ये अपणे घरां नै भरैं देखो
हम इननै सां खूब  भकाये, आपस के मैं हम लड़वाये
ईब राड़ मिटानी सै।।
कर दिया सत्यानाश देश का, बेरा पटग्या अब क्लेश का
घणी बीमारी देश मैं छाई, हौंडा  करैगी खूब तबाही
ईब या बात सुनानी सै।।
दो किल्ले आला जमा मरग्या, मजदूर कै टोटा घर करग्या
बिना लाल झण्डे के भाई, कोन्या होवै रणबीर भलाई
आज जनता हुई स्यानी सै।।
वार्ता
मजदूर अपना संगठन बना ही लेते हैं। कम्पनी असल में मजदूरों को यूनियन बनाने का अधिकार देना ही नहीं चाहती। इसके विपरीत दुनिया के अमीर देशों का संगठन जी.8 है और भारत में आई सी आई, फिक्की,ऐसोचेम आदि संगठन उद्योग पतियों ने बना रखे हैं जो संयुक्त रूप से सरकार को निर्देशित करके अरबों की रियासत प्राप्त करते हैं। कम्पनी की  गैर कानूनन  ताला बन्दी कर दी गई और समाचार पत्रों में विज्ञापन छपवा कर मजदूरों पर गैर कानूनी हड़ताल करने का आरोप मढ़ दिया। सच्चाई यह है कि मजदूरों द्वारा शपथ पत्रा लिखकर देने के बावजूद उन्हें  काम पर नहीं चढ़ाया गया। दो मजदूरं  गेट के बाहर बैठ कर बातें करते हैं और क्या कहते हैं भलाः
2.
हम दिये धरती कै मार, पुलिस प्रशासन के वार
करने हाथ पड़ै दो च्यार, सुणो हरियाणा के नर नारी।।
छोटी.छोटी बातां के उपर कमर तोड़ कै धर दी
बिना बात म्हारी करैं पिटाई नाड़ मोड़ कै धरदी
लिहाज शरम खत्म करदी, क्यों हांडी पाप की भरदी
झूंठी दिखावै हम दरदी, होन्डा जुल्म कमाया भारी।।
कारखाना खुद बन्द करवादें तोहमद हम पै लावैं
गुन्डागरदी खुद करते मजदूरा नै गुन्डे बतावैं
मजदूरां का मोर बनाया, चाहया हमतै सबक सिखाया
सैन्टर इननै खूब भकाया, बात बता कै झूठी सारी।।
होन्डा गेल्यां यारी दीखै इन नेता म्हारयां की
एक बोली बोलैं चिन्ता ना मजदूर बिचारयां की
असली चेहरा साहमी आया, बहोतै घणा जुल्म ढाया
हरियाणा बदनाम कराया, इज्जत महफूज ना म्हारी।।
छह म्हीने तै मांग म्हारी नहीं सुनता होंडा बताया
लोक आउट कर चाहवै मजदूरां नै कति भगाया
अनैतिकता मैं पलैं बढ़ें ये, नैतिकता के नारे गढ़ैं ये
मजदूरां की छाती पै चढ़ैं ये , मनै रोल लागती जारी।।
वार्ता
असल में असंगठित क्षेेत्रा के अलावा संगठित क्षेत्र में हरियाणा में गुड़गांवए फरीदाबादए सोनीपतए पानीपत आदि में कई वर्ष बाद ऐसा श्रमिक उभार है जिसके आधार में संकट की मार और रोजगार की अनिश्चतता के चलते इक्ठ्ठा हुआ रोष मौजूद है जो अभिव्यक्त हो रहा है। जब भी वह संगठित दिशा की तरफ कदम बढ़ाता है तो बहुुराष्ट्रीय कम्पनियां तिल मिला उठती हैं और इसे जड़मूल से उखाड़ने की पूरी प्लान बनाती हैं। असल में यह बेरोजगारी का अभिशाप इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिये बरदान साबित हो रहा है। गुड़गांव में पिछले डेढ़ दशक में उभरी आलीशान बहुमंजली इमारतों में चल रहे कॉल सैन्टरों में पूरी रात हमारे उच्च कुशलता प्राप्त  युवक.युवतियां कम्प्यूटरों पर काम करते हुये पश्चिमी देशों के ग्राहकों की भद्दी गालियां फोन पर सुनने को मजबूर हैं। अमीर लोग अमरबेल बन कर मेहनत करने वाले लोगों को लूट रहें हैं। एक दिन मजदूर नेता मजदूरों  को सम्बोधित करते हुये क्या कहता है भलाः
3.
एकले होंडा का मसला ना, मसला हरियाणे का विकास का।।
बिना रूजगार विकास हो रास्ता खतर नाक विनाश का।।
मुट्ठी भर तो आड़ै एैश करै बाकी का किसे नै फिकर कड़ै
डेढ़ करोड़ हरियाणी वासी हम सबका यो जिकर कड़ै
कहदूं  तो इनकै नाग लड़ै नहीं बेरा जमा इतिहास का।।
इन दारू के ठेक्या उपर माफिया कब्जा जमा रहे
पाणी मिला जहर पिलावैं कफन दुनिया के सिला रहे
झूठे आसूं ये बहा रहे कहना सरतो और सुुभाष का।।
अमरबेल बणकै नै अमीर ये मेहनत कश नै लूट रहे
म्हारे थारे बरगे दिन काटैं इनके दिन कांचे टूट रहें
बनवा सफारी सूट रहे पड़या नंगा बदन रोहतास का।।
जापनी जर्मनी कम्पनी लूटैं करैं बहाना म्हारी भलाई का
लाखां करोड़ा लेज्यां सालाना सविता कविता भरपाई का
देश हटकै गुलाम होवैगा रणबीर बेरा इस अहसास का।।
वार्ता
विदेशी निवेश को मुद्दा बनाकर हाय तौबा करने वाले जो लोग वैश्वीकरण के मानवीय चेहरे की बात करते हैं उसकी पोल खुलते देर नहीं लगती जब वे बड़े से बड़े पुलिस अत्याचार ए राष्ट्रीय संपदाओं की लूटए आर्थिक घोटाले और किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं पर होने वाली चर्चाओं को फालतू की बात मानते हैं । साथ ही पुलिस का असली चेहरा सामने आने में देर नहीं लगती। मजदूर नेता अपने साथियों को हरियाणा की पुलिस के कामों और कारनामों के बारे में बताते हुये क्या कहते हैंः
4.
आज की पुलिस किसी होगी सब सुणियो ध्यान लगाकै।।
जुल्म का कोए ढिकाणा ना जब देखी नजर गड़ाकै।।
बिना चाट के हरियाणे की भैंस दूध ना देवै
इसका दूध पुलिसिया पीकै खूबै रिश्वत लेवैं
भगवान किश्ती खेवै आज बैठ्या इनके घर आकै।।
दुनिया चाहे मेरो तिसाई थाणेदार बिसलेरी पाणी पीवै
और किसे की प्रवाह कोन्या बस पीस्यां खातर जीवै
सांझ ने सारा थाना धुत पावै कदे देखल्यो जाकै।।
बोलां तो होंठा नै सीवै न्यों होंडा व्यापार बढ़ावै
चुगली चांटी डांडी मारै सब हथकण्डे अपणावै
कति शर्म ना आवै बोनस मजदूरां का खाकै।।
हरियाणा पुलिस मैं दलाल इनके कई लोग बतायें सैं
अपणी गोझ भरण की खातर जुल्म घणे कराये सैं
रणबीर मजदूर सताए सैं पीस्से मालिकां पै खाकै।।
वार्ता

होंडा कम्पनी में मजदूरों की जमकर पिटाई की जाती है। लोगों को इससे पहले होंडा कम्पनी में क्या कुछ चल रहा है इसकी ज्यादा जानकारी नहीं थी। टीवी पर सबकुछ दिया गया। होंडा के एक कर्मचारी की मां यह सब उड़ीसा के गांव में बैठी देख रही थी। उसका बेटा कोसों दूर गुड़गांव में दो साल से होंडा का कर्म चारी है यह सब देख कर कर्मचारी की मां क्या कहती है भलाः
5.
मेरा कालजा धड़क्या रे मजदूरां की देख पिटाई।।
ईस्ट इंडिया कम्पनी की मनै याद एकदम आई।।
फिरंगी बणकै आये व्यापारी भारत देश म्हारे मैं
सहज.सहज आड़ै राज जमाया भारत देश सारै मैं
कारीगरां के गूठें कटा दिये जुल्मी बणे अन्याई।।
ईस्ट इंडिया बणी कम्पनी हजाराम हजार देश मैं
नई गुलामी की हटकै नै ल्यादी समों देश मैं
इस होंडा कम्पनी की सरकार रूखाली थ्याई।।
यूनियन बनाने का हक म्हारा कम्पनी खोस्या चाहवै
गुंडा करदी खुद करती कर्मचारी नै बुरा बतावै
कई सौ मजदूरां के उपर लाठी कसूत बजाई।।
निष्पक्ष जांच का मतलब इस होंडा का पक्ष लेवैं ये
सबनै पड़ी स्याहमी दीखै मजदूरां का ना साथ देवैं ये
रणबीर सिंह कहै उकी कलम ना पूरी बात लिखपाई
वार्ता
सवाल उठाया गया कि कानून किसने अपने हाथ में लिया। हिंसा पर पहले कौन उतारू हुआ। दोषी कौन है. मजदूर अथवा पुलिसघ् अज्ञान स्थान पर रखे गये मजदूर नेता खुशीराम की बहन बीरमती पुलिस का लठ छीन कर अकेली उनके सामने हो गई। कल को सवाल उठ सकता है कि बीरमती ने कानून अपने हाथ क्यों लियाघ् उस कम्पनी को कोई दोष नहीं दे रहा जो कानून को सिरे से ही नहीं मानती। होंडा कम्पनी पिछले दो महीने के दौरान भाड़े के गुडों से मजदूरों और उनके यूनियन पदाधिकारियों पर दर्जनों जान लेवा हमले करवा चुकी है। यदि लठ को ही कानून कहा जाने लगा जो उपायुक्त के हाथ में भी था तो सब जानते हैं वह किसके हाथ में है और वह किसके लिए प्रयोग हो रहा है। तरह.तरह की मीडिया में बाते होती हैं। क्या बताया भलाः
6.

कोए कुछ कहरया कोए किमै कोए कुछ पड़ते लावै सै
कोए मजदूरां नै बुरा कहै कोए होंडा नै गलत बतावै सै
अपणे.अपणे ला चश्मे गुड़गामा देख रहे सैं
गद्दी आले कहै रोटी राजनीति की सेक रहे सैं
उपर.उपर की बात करैं नहीं तह मैं कोए जावै सै
दो ढाला की राजनीति एक आच्छी एक भुण्डी हो
आम आदमी नहीं समझ पावै इसकी जो घुण्डी हो
एक जनता की बैरी दूजी जनता का साथ निभावै सै
बाजार वाद के नाम पै आज लूट मचारी सरमाये दारी
अमीर घणे अमीर होंगे या गरीबी दूनी बढ़ती जारी
पाले खींचगे आहमी साहमी कोए खड़या खड़या लखावै सै
अमीर देशां की पूंजी हटकै गुलाम बणाणा चाहवै सैं
विकास करैगी इस बहानै महारे हाड मांस नै खावै सैं
रणबीर सिंह कमेरे के पाले मैं रोजाना कलम घिसावै सैं
वार्ता
बार.बार यह कहा जा रहा है कि बाहरी तत्वों ने यह सब करवाया है। असल में बात यह है कि जो अब बाहरी तत्वों की बात कर रहें उन्ही लोगों ने क्षेत्राीय भावनाएं भड़का कर पहले तो होंडा के मजदूरों को ही बाहर का बताया गया ताकि उनकी एकता तोड़ी जा सके। दूसरे नवम्बर पर ट्रेड यूनियन पदाधिकारियों को ही बाहरी बताया गया ताकि उनकी एकता तोड़ी जा सके। यही नहीं सांसदों तक को बाहरी कहा गया। जानकारी होनी चाहिये कि पिछले कई महीनों से केवल होंडा कम्पनी के मजदूर ही संघर्षरत नहीं थे बल्कि अन्य कई कारखानों के मजदूर भी आंदोलन कर रहे थे। इन सबने मिलकर सयुंक्त मंच बना रखा था। 25 जुलाई के जुलूस में होंडा के श्रमिकों के अलावा उन युनिटों के श्रमिक भी शामिल थे और घायल हुये तथा जेल भी गये। कोइ पूछने वाला है कि नहीं कि जापानी कम्पनी तो बाहरी नहीं और यहां के लोग बाहरी हो गये। फिर तो बेरी का एम एल ए भी  बाहरी उसे क्या हक है ब्यान देने का होंडा कम्पनी पर। बड़ी बेहुदा बाते की जा रहीं थी। हरियाणा की असल में किसे परवाह है। अत्याचार बढ़ रहे हैं। एक मजदूर गुड़गांव के अस्पताल में बिस्तर पर लेटा गुन.गुनाता है--
आज इस हरियाणा मैं दौर दमन का चाल्या रै।।
किसान पै चालै गोली मजदूरां पै घेरा डाल्या रै।।
भ्रष्टाचार मैं हरियाणे मैं सभी रिकाट तोड़ दिये
नेता खावै अफसर लूटैं पुलिसिये खुले छोड़ दिये
झूठ के पौ बारा होगे सच्चाई के मटके फोड़ दिये
माफिया बिदेशी कम्पनी तै खूबै रिश्ते जोड़ लिये
कष्ट कमाई इन्साना की ईपै घपताड़ा घाल्या रै।।
अपणी लूट पै पोटो नहीं हड़ताल म्हारी बी रड़कै
हक मांगण लागै जनता सरकार कसूती फड़कै
आहमी साहमी होवण मैं बस कसर सांझ ओर तड़कै
पांच सितारा होटल लेरे म्हारा दरवाजा बी खड़कै
सुबो शाम जुल्म खेवा हम जिब तै होस सम्भाल्या रै।।
हम आह भरै बदनाम होज्यां इनके कत्ल माफ सैं
म्हारी तनखा रड़कै सै करना चाहते ये हाफ सैं
दिन धौली मैं बदफेली करते फेर बी ये साफ सैं
इननै महारी सौड़ खोसली बचे म्हारे पै लिहाफ सैं
इनकी काली करतूतां नै सबका हिया साल्या रै।।
जिसे बोवैं उसे काटैंगे बचैगा आज गरूर नहीं
गादड़ गाम सूही भाज लिया यौ सै म्हारा कसूर नहीं
इनका बहोत चाल लिया चालै और फतूर नहीं
इनका गिरकाणा म्हारी गेल्यां हमनै ये मंजूर नहीं
हरियाणे का हाल देखकै रणबीर का दिल हाल्या रै।।
वार्ता
घायलों को देखने अस्पताल जाने.वाले जन प्रतिनिधियो परं राजनैतिक रोटियां सेंकने का बेहुदा आरोप लगाने के पीछे भी दो तरह के कारक नजर आते हैं। एक वे सरकारी अधिकारी जिन पर कम्पनी से गड़ियां तक के तोहफे लेने के आरोप हैं और अपनी पोल खुलने से घबराते हैं। दूसरे वो जो अवसरवादी दलों के नेताओं के दोहरे चरित्र से जायज तौर पर खफा हैं। यदि आंख मूंद कर विदेशी पूंजी को पवित्र गाय की तरह देखा जाता रहा तो इसके देश भर मेें खतरनाक नतीजे होंगे। हरियाणे के इस सारे मसले को हरियाणा का एक आम किसान मजदूर कैसे देख रहा था क्या बताया भलाः
8.
जिब भी सै आवाज उठाई, म्हारी कसूती श्यामत आई, चढ़गी फेर म्हारी करड़ाई
हरि के हरियाणे मैं।।
होंडा के मालिक गिरकाए, संग मैं पुलिस प्रशासन बताए
पुलिस साथियों भांग खारी, फैक्ट्री सै घेरी सारी, लाठी चार्ज करदी भारी
हरि के हरियाणे मैं।।
धरती हुई खून मैं लाल, खुश हुये होंडा के दलाल
नम्बर उनके होगे डायल मजदूर करे काफी घायल, जनता होगी बेहद कायल
हरि के हरियाणे मैं।।
पूरा हरियाणा दंग रैहग्या , पुलिस प्रशासन का यो ढंग रैहग्या
सी एम बौखलाया देख्या, पी एम भन्नाया देख्या, सोनिया नै दुख जताया देख्या
हरि के हरियाणे मैं।।
जनता सड़का उपर आई सै, तुरत एक्शन की मांग ठाई सै
वाम पंथ जब गुर्राया, सी एम भी काफी घबराया, सुर इनका फेर बदल्या पाया
हरि के हरियाणे मैं।।
वार्ता
शासन की पीठ पर सवार होकर कम्पनी इस अभूत पूर्व दमन के बावजूद मजदूरों की दबा नहीं पाई। जिस मेहनत कश की रोटी रोजी का औैर कोई विकल्प ही नहीं बचा वह अब भी नहीं दबा और आगे भी नहीं दबेगा। पाले बन्दी खीचती जा रही है। यह राजनीतिक पार्टियों और जनता कोे तय करना हैं कि वे किस पाले में खड़ी होगीघ् साम्राज्यवाद के हक में या विरोध मेंघ् मजदूर के हक में या विरोध मेंघ् लाल झंडा मजदूर के साथ खड़या रहा और आज भी खड़ा है। एक कर्मचारी क्या सोचता है भलाः
9.
हरे पीले केसरिया सब हाथा मैं ठाकै देख लिये।।
कथनी करनी मैं फर्क घणा सब भीतर जाकै देख लिये।।
होंडा कम्पनी खेल खिलावै खुद रैफरी बणकै रै
हम भी एटैंसन खड़े होज्यां सीटी उसकी सुणकै रै
कदे इनेलो कदे कांग्रेस गाणे गाकै देख लिये।।
सब झण्डयां मैं बढ़िया झण्डा लाल यो पाया रै
डरते.डरते से नै आज अपणे हाथा मैं ठाया रै
कामरेडां नै भूत बतावैं आज हाथ लगाकै देख लिये।।
गरीबां का सही हिम्माती झण्डा लाल दिया दिखाई
बंगाल मैं धरती बांट दई पंचायतां की ताकत बढ़ाई
गरीब आदमी पंचायती सै आंख मिला कै देख लिये।।
लाल झंडे के खिलाफ प्रचार घणा भारया देख्या
गरीब का असली एजैंडा झंडा योहे ठारया देख्या
संकट मैं धोरै पावैगा रणबीर बुलाकै देख लिये।।
वार्ता
अगले दिन 26 तारीख को फिर इसी जनता का जुलूस इस लाठी चार्च के विरोध में निकलता है। पुलिस संसद में गृहमंत्राी के ब्यान के बावजूद जनता से फिर भी सख्ती से पेश आती है। एक बार फिर लाठियों की बौछार का सामना करना पड़ता है। एक लड़का अस्पताल में जख्मी कर्मचारी को खाना देने आता है तो उस पर लाठियां चलाई जाती हैं। उसकी मां टी वी पर यह सब देख रही है तो क्या कहती हैः

10.
या पुलिस हड़खाई लाठी मेरे बेटे पै बरसावै।।
टी वी उपर देख पिटाई दिल मेरा दुख पावै।।
फिटर की करै नौकरी कुल रूपइये तीन हजार मैं
ना छुट्टी मिलै कोए हारी बीमारी होज्या परिवार मैं
तनखा काटैं बेगार कराते यो जापानी खावै।।
किस नै नहीं दीखती होंडा कम्पनी की बदमाशी
उसनै उल्टे कामां की लागै मजदूरा के गल फांसी
होंडा कम्पनी की हेरा.फेरी प्रशासन साथ निभावै।।
जुल्म सहवै बेटा मेरा फेर जमा बोल चुप्पाका रैहग्या
उसकी ढालां दो हजार मजदूर जुलमां नै सहग्या
पाप की हाण्डी पूरी भरगी जब कर्मचारी आवाज उठावै।।
आवाज उठाई तो कम्पनी छोह मैं घणी कसूती आई
बोेली काढ़ बाहर करुंगी जै थामनै यूनियन बनाई
लिखै रणबीर साच्ची ना उंए कलम तै घिसावै।।

वार्ता
एक दिन टी आई सी यू का जलसा गुड़गावां के बस अड्डे के पास होता है। वहां डी सी और एस पी को सस्पैंड करने की मांग भी उठाई जाती है और मजदूरों द्वारा किये समझौते के साथ ही उन्हें आगाह करने की सलाह दी जाती है। साम्राज्यवादी देश कैसे मिलकर तीसरी दुनियां के देशों को लूट रहें हैं। कमाई हम करते हैै। और धन दौलत के मालिक ये बन बैठे हैं। हमारी मेहनत से कमाई धन दौलत का बंटवारा ठीक प्रकार से नहीं हो रहा। इस लिये यह लड़ाई लड़ते हुए हमें एक लम्बी लड़ाई के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा। क्या बताया धन दौलत के बंटवारे मेंः
11.
काफी तरक्की हुई देेश मैं रोल करी बंटवारे की।।
वर्ग कमरा सदा दबाया रही निति हिन्द हमारे की।।
सबको मिलै पढ़ाई छः अरब डालर खर्च बताया
अमेरिका में आठ अरब डालर सिंगार पै जावै खिड़ाया
पाणी और सफाई का खर्च नौ अरब डालर पाया
ग्यारा अरब डालर यूरोप मैं आईस क्रीम मै खर्चा आया
चैर सौ अरब डालर का नशा करावैं होज्या शक्ल छुहारे की।।
सब जनता की सेहत की खातर तेरह अरब डालर चाहवैं सैं
रूक्के पड़रे अमीरां के सारै ये म्हारी सेहत घटावैं सैं
अमेरिका यूरोप के कुत्ते बिल्ली सतरा अरब डालर खावैं सैं
जापान मैं मनोरंजन उपर पैंतीस अरब डालर बहावैं सैं
झूठी कोन्या साची सै या तसवीर विकास प्यारे की।।
झूठा नहीं आंकड़ा कोए मानव विकास रिपोर्ट में बतलाया
तीसरी दुनिया चूस बगादी ईब जी सेवन दुनिया में छाया
विश्व बैंक डबल्यू टी ओ नै अमीरों का साथ निभाया
मुद्रा कोष नै डांडी मार म्हारे विनाश का बीड़ा ठाया
नौकरी खत्म करण लागे कविता सविता मुख्तयारे की।।
नशे की दवा और दारू बेचैं दूसरा धन्धा हथियारां का
तीसरा धन्धा इत्र फुलेल का इन अमरीकी साहूकारां का
विकास नहीं विनाश पर टिकग्या जीवन इन थानेदारां का
बटवारा हो तो ठीक दुनिया में राह बंधै इन ठेकेदारां का
अमीर गरीब की खाई मैं मर आई रणबीर बेचारे की।।
वार्ता
शासन और सत्ता जनहित की उपेक्षा करके यदि कम्पनी के समक्ष समर्पण करते रहें तो कम्पनी और मजदूर किसानों के बीच के विवादों में कम्पनी तमाशा देखती रहेगी और पुलिस की लाठी यदि अपने ही देश के नागरिकों के सिर और बाजू तोड़ती रही तो यह सिलसिला ज्यादा समय तक नहीं चल सकता। इसलिये हम सब को इस सवाल से रूबरु होना पड़ेगा कि हम किस ओर हैं? उस जनता की ओर जो चुन कर हमे एसैम्बली और सांसद में भेजती है अथवा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की ओर जो अपनी एक तरफा शर्र्तों के बल पर श्रमशक्ति, हमारी मार्कीट, राष्ट्रीय सम्पदा और सांस्कृतिक धरोहर को लूटने के लिए नव औपनिवेशिक व्यवस्था निर्मित करना चाहती है। हम  सब को अपना पक्ष तय करने में  कितना समय लगेगा यह तो मालुम नहीं परन्तु बीरमती अपना पक्ष तय कर चुकी है।
12.
पलहम म्हारे चक्कर काटै फेर उड़ै टहल बजावै
जिब हम जावां उसके घोरै कबरां.कबरा सा लखावै
देख .देख नखरे इसके हटकै याद आवै चैटाला रै।।
जो म्हारे असली हिम्मती हमनै देेते नहीं दिखाई क्यों
जात.पात पै लाठा घल्या ना लड़ते असल लड़ाई क्यों
कहै रणबीर बरोनिया करो ताश खेलण का टाला रै।।
वार्ता
हमे बांट कर रखने के लिएए हममें फूट डालने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी की तरह होंडा कम्पनी ने भी अपना शतरंज का खेल गुड़गांव में जमा दिया है। बाहर और भीतर का खेल.खेल कर वे शतरंज की बाजी में मजदुरों को मात देना चाहते हैं। दूध का दूध और पानी का पानी जनता के सामने आ गया है। बाहर भीतर की राजनीति की धज्जियां उड़ती जा रही हैं। क्या बतलाया कवि ने भलाः
13.
बाहर और भीतर का मसला ठाया जाणा बेइमानी सै।।
हरियाणा दिल्ली आले बाहरी भीतर आला जापानी सै।।
बार.बार बाहरी तत्वां का जिकरां दिया सै सुणाई रै
मजदूर एकता तोड़ण नै मजदूरां मैं गेरी सै खाई रै
कोए यू पी का कोए बिहारी कहते आकै बणै सै जमाई रै
क्षेत्रवाद की जहरी गुड़गांव मैं गुहार भाई सै लाई रै
ये हथकण्डे काम नहीं आये फेर सोची दूजी शैतानी सै।।
दूजे नम्बर तत्व बाहरी ये यूनियन नेता दिखलायें
इतने मैं कोन्या साधी सांसद बी बाहरी गये बतलाये
कांग्रेस के एम एल ए भीतर ल्यां की गिनती मैं आये
ये भीतर के थे ज्यां करकै जापानी सुर मैं सुर मिलाये
होंडा बदेशी कम्पनी धुरतै करती आई मनमानी सै।।
गुड़गावां की दूसरी फैक्ट्री मजदूर जाते दबाये रै
सब सुख दुख की बतला कै वे एक मंच पर आये रै
संयुक्त मंच के बैनर तलै देख जापानी घबराये रै
नागरिक मजदूर नेता बाहरी तो कौन हिंदुस्तानी सै।।
किसा गजब हुआ रै भीतर बाहर.बाहर भीतर होग्या
म्हारी बुद्धि कड़ै चली गई थी मालिक बीज फूट के बोग्या
इस करकै म्हारे तवे पै बदेशी अपणी रोटी पोग्या
हिंदुस्तान फेर गुलाम होवै जै मजदूर ताणकै सोग्या
साचम साच कैहवण की रणबीर बरोनिया नै ठानी सै।।
वार्ता
अगर इन बदेशी कम्पनियों पर और साम्राज्यवाद के  खिलाफ आवाज नहीं उठाई जाती तो आने वाले समय भारत वर्ष के  लिए भयंकर साबित होगा। यह महज मजदूरों का मसला नही बल्कि पूरे देश की आत्म निर्भरता और आजादी का सवाल है। राष्ट्रीय एकता का सवाल है। कदम.कदम पर जनता की एकता तोड़ने के  लिए बारूदी सुरंगे बिछाई जा रहीं हैं निहित स्वार्थों के  द्वारा और उन्हें बिछाने का दोषी जनता को ही ठहराया जाने वेफ प्रयत्न जारी हैं। क्या बताया भलाः

14.
बेलगाम बदेशी कम्पनी म्हारा भट्ठा जरूर बिठावैंगी।।
दो चार खूड जो रैहरे सै इनकी निलामी करवावैंगी।।
म्हारे कारखान्या पै हमला एक.एक करकै  बोल रही
छंटनी करक्े मार दिये छाती म्हारी जमा छोल रही
म्हारा जीना दूभर कर दिया पिला सल्फास का घोल रही
किसानां की मशीहा बनती कर फेर बी घणी रोल रही
ये नेता म्हारे खरीद लिए जनता नै सबक सिखावैंगी।।
म्हारे कष्ट दूर करण खातर कारखाणे अपणे लावैं
सस्ती मजदूरी ठेके उपर दिन.रात काम करवावैं
जिब जी मैं आज्या करैं चालता झूठ.मूठ की कमी बतावैं
विरोध करैं जिब मजदूर पुलिस म्हारी तै पिटवावैं
बदेशी कम्पनी हटकै देश नै आंगलिया पै नचावैंगी।।ए
दोष म्हारा नहीं कोए फेर बी दोष म्हारे पै मढ़ेै क्यूकर
शिक्षा इतनी म्हंगी कर दी म्हारे बालक पढ़ै क्यूकर
पढ़ नहीं सके तो बताओं कम्पीटीशन मैं कढ़ै क्यूकर
पहली पैड़ी पै रोक लिए आगली पैड़ी पै चढं़ै क्यूकर
कुछ लोगां नै बणा चमचे बाकी नै नरक मैं धकावैंगी।।
म्हारे बालक उनकी कारां मैं ड्राइवरी का काम करैंगे
बर्तन मांजैं और सफाई घरा मै ये सुबो शाम करैंगे
रणबीर करै पहरेदारी जिब वे लेट ऐशो आराम करैंगे
भारत की महिलावां पै ये पापी हमले तमाम करैंगे
ट्रेलर नै सांस चढ़ाये के होगा पूरी फिल्म जिब दिखावैंगीं।।


किस्सा ऊधम सिंह



 वार्ताः शहीद ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 में हुआ था। देश पर अंग्रेजों का कब्जा था। पूरे ही देश में अंग्रेज भारत वासियों पर जुल्म ढा रहे थे। आजादी की पहली जंग जो 1857 में लड़ी गई थी। इसके बाद अंग्रेजों ने जनता पर और भी ज्यादा कहर ढाया था। शहीद ऊधम सिंह की मां सारे माहौल को देखकर दुखी हो जाती है और क्या सोचती हैं भलाः
 रागनी.1
 यो घर खावण नै आवैए रहवै दिल मेरा उदास
 नहीं दिखै कोए राही।।
 देही रंज फिकर ने खाली
 या उड़गी चेहरे की लाली
 कंगाली या बढ़ती जावैए नहीं बची जिन्दगी मैं आस
 गोरयां नै लूट मचाई।।
 यो अंग्रेज गिरकाणा सै
 हर बात मैं धिंगताणा सै
 पिछताणा सै धमकावै ना लेवण दे सुख की सांस
 ईज्जत तारणी चाही।।
 मैं सिर पाकड़ कै रोती
 सहन ये बात नहीं होती
 मोती ये चोरया चाहवै गेर दी म्हारे बीच मैं फांस
 बहोत घणा अन्याई।।
 रणबीर नै अंग्रेज दबाता
 गाम थो चुप रैह जाता
 सताता अर यो गुर्रावै नहीं बात आवै या रास
 दिल की बात बताई।।







शहीद ऊधम सिंह एक बहुत ही गरीब परिवार का बच्चा थाए जब पूरे देश में अंग्रेजो का जोर जुल्म चल रहा था तो पंजाब में भी जलियां वाला बाग जैसा हत्या काण्ड 1919 में वैशाखी के दिन होता है। इसका ऊधम सिंह के दिलो दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। एक दिन वह बैठा.बैठा सोचने लगता है। क्या बताया भलाः
 रागनी.2
 भारत देश पै जिसनै भी अत्याचार भूल कै था ढाया।।
 जुल्म ढावणिया का वीरों नै था नामों निशान मिटाया।।
 हिर्णा कुश दुर्योधन कंस नै जुल्म घणा ढाया था
 म्हारे वीरां नै बढ़ आगै इनको सबक सिखाया था
 जालिम खत्म करने खातर अपना खून बहाया था
 ठारा सौ सतावण की जंग मैं होसला खूब दिखाया था
 सिख हिंदू मुस्लिम सबनै हंस.हंस वैफ शीश कटाया।।
 ईस्ट इंडिया आई देश मैं अपणे पैर पसार लिये
 राज पै करकै कब्जा बहोत घणे अत्याचार किये
 गूंठे कटाये कारीगरां के मौत के घाट उतार दिये
 मल.मल ढाका आली थी उसपै कसूते वार किये
 बिगाड़ कै शिक्षा म्हारी यो राह गुलामी का दिखाया।।
 यो वीर लाडला देश कातै ना अपणे प्रण तै भटकै
 कोए करै प्राण न्यौछावर हंस.हंस फांसी पै लटकै
 कई खेलगे खून की होली छाती खोल दी बेखटकै
 पिठू अंग्रेजा की झोली मैं बहोत घणा यो मटकै
 अंग्रेजां की पींड़ी कापी थी जिब जनता नै नारा लाया।।
 भारत देश यो निराला बिरले घणे इसके माली
 किस्म.किस्म के फूल खिले कई ढंग के पत्ते डाली
 खड़ी फसल जब लूटी म्हारी तो खड़या रोया हाली
 जलियां वाले बाग के अन्दर ये बही खून की नाली
 रणबीर सिंह बरोने आले नै सुण कै छन्द बनाया।।

 वार्ताः 31 जुलाई 1940 को भारत के इस  शहीद को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी। सन 1974 में जाकर इस शहीद की अस्थियां भारत पाई। ऊधम सिंह पंजाब में सुनाम गांव का रहने वाला था। उसके पिता टहल सिंह कम्बोज थे। तीन साल की उमर में माता का साया सिर से उठ जाता है। क्या बताया भलाः
 रागनी.3
 ऊधम सिंह हुआ शूरवीर भारत का अजब सिपाही।।
 सुनाम शहर पंजाब मैं श्यान जिनकी गजब बताई।।
 टहल सिंह कम्बोज बाबू था करकै मेहनत पाल्या था
 गरीबी क्यूकर तोड़ै माणस नै उसका देख्या भाल्या था
 भारत का जनमाणस गोरयां नै अपणै संग ढाल्या था
 चपड़ासी की करै नौकरी अपणा सब कुछ गाल्या था
 देश प्रेम की टहल सिंह नै पकड़ी नबज बताई।।
 चारों कान्ही देश प्रेम की पंजाब मैं थी लहर चली
 गाम.गाम मैं चर्चा होगी हर गली और शहर चली
    ईन्कलाब जिन्दाबाद की घणे गजब की बहर चली
 सन ठारा सौ सतावण मैं हांसी मैं खूनी नहर चली
 इस आजादी की चिन्गारी तै गोरयां कै दी कब्ज दिखाई।।
 तीन साल का बालक था जिब माता हो बिमार गई रै
 इलाज का कोए प्रबन्ध ना था बीमारी कर मार गई रै
 याणे से की बिन आई मैं माता स्वर्ग सिधार गई रै
 फेर खमोशी सारे घर मैं बिना बुलाएं पधार गई रै
 बिन माता याणा बालक इसतै भूंडी ना मरज सुणाई।।
 छह साल की उम्र हुई जिब पिताजी नै मुंह मोड़ लिया
 तावले से नै लिया सम्भाला देशप्रेम तै नाता जोड़ लिया
 रणबीर बरोने आले नै आज बणा सही यो तोड़ लिया
 गरीबी मैं रैहकै बी कदे भूल्या नहीं था फरज भाई।।

 वार्ताः ऊधम सिंह जलियां वाले बाग के घायलों की सेवा के लिए अस्पताल में जाता है। वहां उसकी एक नर्स से मुलाकात होती है। घायलों के मुुुंह से सुन.सुन कर उस नर्स के पास बहुत सी बाते थी। एक दिन वह नर्स ऊधम सिंह को जलियां वाले बाग के बारे में क्या बताती है भलाः
 रागनी.4
 निशान काला जुलम कुढाला यो जलियां आला बाग हुया।।
 अंग्रेज हकुमत के चेहरे पै घणा बड्डा काला दाग हुया।।
 देश की आजादी की खातर बाग मैं तोड़ होग्या
 इतिहास के अन्दर बाग एक खास मोड़ होग्या
 देश खड़या एक औड़ होग्या जिब यो खूनी फाग हुया।।
 इसतै पहलम बी देश भक्ति का था पूरा जोर हुया
 मुठ्ठी भर थे क्रान्तिकारी सुधार वादियों का शोर हुया
 दंग फिरंगी चोर हुया बुलन्द आजादी का राग हुया।।
 शहरी बंगले गाम के कंगले सबको ही झकझोर दिया
 कांप उठी मानवता सारी जुलम घणा महाघोर किया
 एकता को कमजोर किया इसा फिरंगी जहरी नाग हुया।।
 कुर्बानी दी उड़ै वीरों नै वा जावै कदे बी खाली ना
 जिब जनता ले मार मंडासा फेर पार किसे की चाली ना
 जीतों बैठैगी ठाली ना रणबीर सिंह चाहे निर्भाग हुया।।


 वार्ताः ऊधम सिंह और नर्स की बात बढ़ती है। ऊधम सिंह कहता है कि ज्यादातर लोगों की राय में नर्से ज्यादा काम नहीं करती। सामाजिक स्तर पर इस काम को हेय समझा जाता है। कोई नर्स से शादी करने को तैयार नहीं। यह सुनकर नर्स ऊधम सिंह को क्या बताती है नर्सिंग प्रोफैशन के बारे मेंः
 रागनी.5
 माणस की ज्यान बचावैं अपणी ज्यान की बाजी लाकै।।
 फिर बी सम्मान ना मिलता देख म्हारे राम जी आकै।।
 मरते माणस की सेवा मैं हम दिन और रात एक करैं
 भुलाकै दुख और दरद हंसती हंसती काम अनेक करैं
 लोग क्यों चरित्रहीन का तगमा म्हारे सिर पर टेक धरैं
 घरआली नै छोड़ भाजज्यां देखै बांट वा एड्डी ठाकै।।
 फलोरैंस नाइटिगेल नै नर्सों की इज्जत आसमान चढ़ाई
 लालटेन ले कै करी सेवा महायुद्ध मैं थी छिड़ी लड़ाई
 कौण के कहवैगा उस ताहिं वा बिल्कुल भी नहीं घबराई
 फेर दुनिया मैं नर्सों नै थी मानवता की अलग जगाई
 बाट देखते नाइटिंगेेल की फौजी सारे मुंह नै बांकै।।
 करती पूरा ख्यालबिमारां का फेर घर का सारा काम होज्या
 डाक्टर बिना बात डाट मारदे जल भुन काला चाम होज्या
 कहवैं नर्सें काम नहीं करती चाहवैं उसकी गुलाम होज्या
 मरीज बी खोटी नजर गेर दे खतम खुशी तमाम होज्या
 दुख अपणा ऊधम सिंह रोवां किसके धोरै जाकै।।
 काम घणा तनखा थोड़ी म्हारा सबका शोषण होवै क्यों
 सब भारत वासी मिल रोवैं जीतों अकेली रोवै क्यों
 बिना एकता नहीं गुजारा न्यारा.न्यारा बोझा ढोवैं क्यों
 गोरयां की चाल समझल्यां ईब झूठा झगड़ा झोवै क्यों
 रणबीर सिंह साथ देवैगा आज न्यारे छन्द बणाकै।।

 वार्ताः नर्स से बातचीत में ऊधम सिंह कहता है कि आजादी की लड़ाई तो हम नौजवान लड़ रहे है। महिलाओं को घर का मोर्चा सम्भालना चाहिये। महिलाओं की आजादी की जंग में हिस्सेदारी को लेकर काफी बहस होती है। जीतो ऊधम सिंह को इस बारे मंे क्या कहती है कवि के शब्दों मेंः
 रागनी.6
 बिन म्हारी हिस्सेदारी के क्यूकर देश आजाद करावैगा।।ए
 करकै घरां मैं कैद हमनै किसा भारत नया बणावैगा।।
 जनता नै सुथरा सा सपना देख्या भारत नया बणावै
 आजाद होकै अपणी बगिया मैं लाल गुलाब खिलावै
 गोल मटोल से बालक होंगे हांगा लाकै खूब पढ़ावै
 इन्सानी जज्बा मरण लागरया सोचै कैसे उल्टा ल्यावै
 औरत की  जंजीर तोड़कै देश सही आजादी पावैगा।।
 माणस हिंदू मुस्लिम होंगे ना इन्सान की जात मिलै
 विश्वास कति खत्म हो लिया माणस करता घात मिलै
 जीत कौर बरगी महिला का मुश्किल तनै साथ मिलै
 महिला साथ लड़ी जड़ै उड़ै न्यारी ढाल की बात मिलै
 जीत कौर का ना साथ लिया तै पीछे फेर तछतावैगा।।
 शहीद होणा हम भी जाणैं तनै साची बात बताउं मैं
 दिल म्हारे मैं जो तुफान उठ्या यो किसनै दिखाउं मैं
 मुठ्ठी भर चाहो आजादी ल्याणा थारी कमी जत़ाउं मैं
 महिला आधी भारत सै इनकी पूरी शिरकत चाहूं मैं
 मेरी बात गांठ मार लिये बख्त मनै ठीक ठहरावैगा।।
 म्हारी आजादी बिना इस आजादी का अधूरा सार रहै
 मार काट मची रहवैगी यो नहीं सुखी घर बार रहै
 मेरी बात गौर करिये कदे चढ़या योहे बुखार रहै
 बेरा ना मेरी बात नै रणबीर सिंह क्यूंकर समझावैगा।।


 वार्ताः ऊधम सिंह एक दिन जीत कौर के पास आता है। बहुत परेशान था। जीत कौर परेशानी का कारण पूछती है। ऊधम सिंह कहता है कि मुझे लोग समझाते है कि अंग्रेजों के राज में तो सूरज नहीं छिपता। ये भारत देश को छोड़ कर नहीं जाने वालें मुझे बड़ी परेशानी होती है यह सुनकर। क्या बताया भलाः
 रागनी.7
 हाल देख कै जनता का कोए बाकी रही कसर कोन्या।।
 अंग्रेजां का जुलम बढ़या ईब बिल्कुल बच्या सबर कोन्या।।
 सोने की चिड़िया भारत जमा लूट कै गेर दिया
 किसान और मजदूर बिचारा जमा चूट कै गेर दिया
 क्यों खसूट कै गेर दिया आवै जमा सबर कोन्या।।
 सिर बी म्हारा जूती म्हारी म्हारे सिर पै मारैं सै
 बोलैं जो उनके साहमी यो उसके सिर नै तारैं सै
 कंस का रूप धारैं सै छोडया कोए नगर कोन्या।।
 म्हारी कमाई मौज उनकी म्हारी समझ ना आई
 देश की तरक्की के ना पै आड़ै जमकै लूट मचाई
 या बन्दर बांट मचाई आसान रही बसर कोन्या।।
 उनके पिठ्ठु कहते सुने राज मैं ना सूरज छिपता
 क्यूकर काढ़ो देश तै रणबीर सिंह कुछ ना दिखता
 हुक्म बिना ना पत्ता हिलता कहते तनै खबर कोन्या।।
 वार्ताः ऊधम सिंह या उसके साथी बातचीत के बाद ऊधम सिंह को लन्दन भेजने की तैयारी करते हैं। वह नाम बदल कर लन्दन जाने की तैयारी करता है उसकी आंखों के सामने डायर घूमता रहता था। क्या बताया भलाः
 रागनी.7
 ऊधम सिंह नै सोच समझ कै करी लन्दन की जाने की तैयारी।।
 राम मुहम्मद नाम धरया और पास पोर्ट लिया सरकारी।।
 किस तरियां जालिम डायर थ्यावै चिन्ता थी दिन रात यही
 बिना बदला लिये ना उल्टा आऊं हरदम सोची बात यही
 उनै मौके की थी बाट सही मिलकै उंच नीच सब बिचारी।।
 चैबीस घण्टे उसकै लाग्या पाछै यो मौका असली थ्याया ना
 जितने दिन भी रहया टोह मैं उनै दाणा तक भी भाया ना
 लन्दन मैं भी भय खाया ना था ऊधम क्रान्तिकारी।।ए
 दिन रात और सबेरी डायर उनै खड़ा दिखाई दे था
 हाथ गौज में पिस्तोल उपर हमेशा पड़या दिखाई दे था
 भगत सिंह भिड़या दिखाई दे भर आंख्यां के मां चिन्गारी।।
 होई कदे समाई कोन्या उसकै लगी बदन मैं आग भाई
 न्यों सोचें जाया करता हमनै हो खेलना खूनी फाग भाई
 रणबीर का सफल राग भाई जिब या जनता उठै सारी।।
 वार्ताःऊधम सिंह और डायर आमने.सामने होते हैं तो डायर कांप उठता है। वह अपने जीवन की भीख मांगता है तो ऊधम सिंह क्या जवाब देता है और क्या कहता हैः
 रागनी.8
 आहमी साहमी खड़े दोनों डायर का चेहरा पीला पड़ग्या।।
 आसंग रही ना बोलण की जणो जहरी नाग आण कै लड़ग्या।।
 थर.थर पींडी कांप उठी भय चेहरे कै उपर छाया था
 मारै मतना मनै ऊधम सिंह डायर न्यों मिमयाया था
 उसनै भाजना चाहया था ऊधम सिंह झट आग्गै अड़ग्या।
 ऊधम सिंह की आंख्यां आग्गै वो बाग नाजारा घूम गया
 डायर नै मरवाये हजारा्रं भारतवासी बिचारा घूम गया
 यो पंजाब सारा घूम गया उसकै़ नाग बम्बी मैं बड़ग्या।।
 पापी डायर कित भाजै सै करना मनै तुं माफ नहीं
 भीख मांगता जीवन की उस दिन करया इंसाफ नहीं
 काला दिल सै जमा साफ नहीं तेरा ईबक्यों चेहरा झड़ग्या।।
 बणकै मौत खड़या साहमी उनै बिल्कुल भी भय खाया ना
 ईन्कलाब कहया जिन्दाबाद कति भाजण का डा ठाया ना
 ऊाम सिंह पिछताया ना रणबीर सिंह सही छन्द घड़ग्या।।्र
 वार्ताः  हाल के अन्दर सभा हो रही थी। आमना सामना हुआ। आंखों में आंखें मिली। आंखों ही आंखों मंे कुछ कहा एक दूसरे को ।मौका पाते ही ऊधम सिंह ने निशाना साध दिया। कवि ने क्या बताया भलाः
 रागनी.9
 धांय धांय धांय होई उड़ै दनादन गोली चाली थी।।
 कांपग्या क्रैक्सटन हाल सब दरवाजे खिड़की हाली थी।।
 पहली दो गोली दागी उस डायर की छाती के म्हां
 मंच तै नीचै पड़ग्या ज्यान ना रही खुरापाती के म्हां
 काढ़ी गोली हिम्माती के म्हां खतरे की बाजी टाली थी।।
 लार्ड जैट कै लागी जाकै दूजी  गोली दागी थी
 लुई डेन हेन हुया घायल मेम ज्यान बचाकै भागी थी
 चीख पुकार होण लागी थी सब कुर्सी होगी खाली थी।।
 बीस बरस ग्यारा म्हीने मै जुलम का बदला तार लिया
 तेरह मार्च चैबीस मैं माइकल डायर मार दिया
  अचम्भित कर संसार दिया उनै कोन्या मानी काली थी।।
 जलियां आले बाग का बदला लिया लन्दन मैं जाकै
 अंग्रेजां नै हुई भिड़ी धरती भाग लिये वे घबराकै
 रणबीर ने कलम उठाकै नै झट चार कली ये घाली थी।।
 वार्ताः 31 जुलाई 1940 को ऊधम सिंह को फांसी दे दी जाती है खबर उसके शहर सुनाम पहुंचती है। एक बुजुर्ग ऊधम सिंह को बहुत चाहता था। अनाथ घर में भी उसकी सम्भाल किया करता था। वह बहुत दुखी होता है और क्या कहता है भलाः
 रागनी.10
 बेटा उधम सिंह चला गया तो के सै मेरे लाल भतेरे।।
 उस वीर बहादुर बरगे देश मैं न्यूंए ठोकैंगे ताल कमेरे।।
 उसका कसूर था इतना देश प्रेम की लौ लगाई थी
 देश नै आजाद करावां मिलकै नै अलाख जगाई थी
 बढ़ता गया आगै बेटा आजादी की लड़ी लड़ाई थी
 अंग्रेजां नै कदे बी ना कोए उसकी बात सुहाई थी
 पूत पालनै मैं पिछणै सै यो करगे ख्याल बडेरे।।
 मैं न्यों बोल्या उसतै अपणा बख्त बरबाद करै सै
 उम्र्र सै खेलण खावण की राजनीति की बात करै सै
 न्यों बोल्या ज्यांए करकै अंग्रेज हमपै राज करै सै
 बिना शान के जीणा चाचा मनमैं दिन रात फिरै सै
 सारी उम्र हम करां कमाई क्यों लूटैं माल लुटेरे।।
 गैर कैंडै नहीं चलूंगा बोल्या मेरा विश्वास करिये
 आर्शीवाद देदे अपणा ना मनै आज निराश करिये
 भारत मां की आजादी की  दिल तै ख्यास करिये
 पलहम परिक्षा लेले पाछै फेल और पास करिये
 देश आजाद कराणा लाजमी ये ठारे ढाल पथेरे।।
 मैं सूं भारत देश का सच्चा ताबेदार सिपाही
 गोरयां नै वैशाखी आले दिन ढाई घणी तबाही
 म्हारी बहू बेटी नै तकते होती ना जमा समाई
 रणबीर मार गोली छाती मैं उसनै कसम पुगाई
 फसल असली थे भारत की वे ना थे ंघास पटेरे।।
 वार्ताः ऊधम सिंह ने देश के मान सम्मान और आजादी के लिए अपनी ज्यान न्यौछावर कर दी। लन्दन में जाकर माइकल डायर को गोलियों से भून दिया और.और हंसते हंसते फांसी का पफंदा चूम गया। उसनै भारत के सपूतों को ललकार दी। क्या बताया कवि नेः
 रागनी.11
 ऊधम सिंह नै ललकार दी थीए भारत मैं पुकार गई थीए
 जंजीर गुलामी की तोड़ दियो।।
 न्यूं बोलियो सब कठ्ठे होकै भारत माता जिन्दाबाद
 शहर सुनाम देश हमाराए गोरयां नै कर दिया बरबाद
 फिरंगी सैं घणे सत्यानाशीए करकै अपनी दूर उदासी
   मुंह तोपा का मोड़ दियो।।
 म्हारा होंसला करदे खुन्डा उनके दमन के इथियार
 लक्ष्मी सहगल साथ मैं म्हारै ठाकै खड़ी हुई तलवार
 हिन्दुस्तान नै दी किलकारीए देश प्रेम की ला चिन्गारी
 कुर्बानी की लगा होड़ दियो।।
 हर भारतवासी नै देश प्रेम का यो झंण्डा ठाया था
 पत्थर मतना पूजो भाई न्यूं यो आसमान गूजाया था
 लाया था सारे कै नाराए जुणसा लाग्गै हमनै प्यारा
   इन पत्थरां नै फोड़ दियो।।
 देश मैं छाग्या सबकै ऊधम सिंह की बातां का रंग
 इन्कलाब जिन्दाबाद का नारा अंग्रेज सुण होग्या दंग
 रणबीर ने जंग तसबीर बनाईए गुलाब सिंह नै गाकै सुनाई
   दखे सुर मैं सुर जोड़ दियो।।
 वार्ताः देश में आन्दोलन पहले चल रहा था। किसान मजदूर डाक्टर वकील सब देश के मुक्ति आन्दोलन में सक्रिय हो रहे थे। ऊधम सिंह की शहादत ने भारत वर्ष में तहलका मचा दिया। उसकी कुर्बानी के चरचे लोगों की जुबान पर थे। कवि ने क्या बताया भलाः
 रागनी.12
 ऊधम सिंह मेरे ग्यान मैंए भारत देश की श्यान मैं
 इस सारे विश्व महान मैंए यो तेरा नाम अमर हो गया।।
 असूलां की जो चली लड़ाईए उसमैं खूब लड़या था तूं
 स्याहमी अंग्रेजां के भाईए डटकै हुया खड़या था तूं
 बबर शेर की मांद के म्हांए अकेला जा बड़या था तूं
 अव्वल था तु ध्यान मैंए रस था तेरी जुबान मैं
 सारे ही हिंदुस्तान मैंए यो तेरा पैगाम अमर हो गया।।
 देख इरादा पक्का तुम्हाराए हो गया मैं निहाल जमा
 भारत मां की सेवा में दे दिया सब धन माल जमा
 एक बै मरकै देश की खातर जीवै हजारौ साल जमा
 डायर नै सबक चखान मैंए इस लड़ाई के दौरान मैं
 निशाना सही बिठान मैंए यो तेरा काम अमर होग्या।।
 पक्के इरादे के साहमी अंग्रेजां की पार बसाई ना
 जलियां आला बाग देखकै फेर तेरै हुई समाई ना
 धार लई अपने मन मैं किसे और तै बताई ना
 तू अपने इस इम्तिहान मैंए अपनी ही ज्यान खपान मैं
 देश की आन बचान मैंए तू डेरा थाम अमर होग्या।।
 जो लड़ी.लड़ाई तनै साथी वा लड़ाई थी असूला पै
 वुर्बानी तेरी रंग ल्यावैगी जग थूकै ऊल जलूलां पै
 जिस बाग का फूल हुया नाज करैं उसके फूलां पै
 ईब आग्या सही पहचान मैंए भूले थे हम अनजान मैं
 तूं सफल हुया मैदान मैंए यो तेरा सलाम अमर होग्या।।
 वार्ताः जीत कौर को सुनाम के शहर में सूचना मिलती है ऊधम सिंह की शहादत की। वह मन ही मन रो पड़ती है पुरानी मुलाकातों को याद करके। समझ नहीं आता उसे कि वह ऊधम सिंह के साथ अपने रिश्ते को कैसे समझे। ऊधम सिंह का आजादी का सपना ही उसे सही रिश्ता लगता है उसके साथ। क्या सोचती है भला।
 रागनी.13
 कौण किसे की गेल्यां आया कौण किसे की गैल्यां जावै।।
 ऊधम सिंह के सपन्यां का यो भारत ईब कौण रचावै।।
 किसनै सै संसार बनाया किसनै रच्या समाज यो
 म्हारा भाग तै भूख बताया बाधैं कामचोर कै ताज यो
 मानवता का रूखाला आज पाई.पाई का मोहताज यो
 अंग्रेज क्यों लूट रहया सै मेहनत कश की लाज यो
 क्यों ना समझां बात मोटी अंग्रेज म्हारा भूत बणावै।।
 कौण पहाड़ तोड़ कै करता धरती समतल मैदाल ये
 हल चला खेंती उपजावै उसे का नाम किसान ये
 कौन धरा नै चीर कै खोदै चांदी सोने की खान ये
 ओहे क्यों कंगला घूम रहया गोरा बण्या धनवान ये
 म्हारे करम सैं माड़े कहकै अंग्रेज हमनै यो बहकावै।।
 हम आजादी चाहवां अक अनपढ़ता का मिटै अन्धकार
 हम आजादी चाहवां अक जोर जुल्म का मिटै संसार
 हम आजादी चाहवां अक ऊंच नीच का मिटै व्यवहार
 हम आजादी चाहवां अक लूट पाट का मिटै कारोबार
 जात पात और भाग भरोसै या कोन्या पार बसावै।।
 झूठ्यां पै ना यकीन करां म्हारी ताकत सै भरपूर
 म्हारी छाती तै टकराकै गोली होज्या चकना.चूर
 जागते रहियो सोइयो मतना ना म्हारी मंजिल दूर
 सिंरजन हारे हाथ म्हारे सै घणे अजब रणसूर

 देश की आजादी खातर ऊधम सिंह राह दिखावै।।