भगत सिंह ने आखिरी ख़त में अपने मन के विचार किस प्रकार से
एक शर्त पर रहूँ जिन्दा देश मैं घूमूं आजादी तैं पूरी।।
पाबंदी ना लगै कोए बचाऊँ देश नै बर्बादी तैं जरूरी।।
1
हम क्रांतिकारी प्रतीक बने आज हिंदुस्तानी क्रांति के
क्रांतिकारी आदर्श आगै ल्यागे छोड्डे ना छोर कोए भ्रान्ति के
आदर्श रैहकै फांसी टूटूं जरूरी इसमें ना कोय गरूरी।।
2
जिन्दा रहया तो इतना ऊंचा हरगिज मैं नहीं रैह पाऊँगा
जो मेरे भीतर की कमजोरी उणनै कितने दिन छिपाऊँगा
साहमी आगी तो जनता तैं बनै क्रांति प्रतीक की दूरी।।
3
फांसी चढ़ने की सूरत मैं माताएं बालकां नै बतावैंगी
भगत सिंह बणिये बेटा बढ़ती कतार नहीं थम पावैंगी
इतने क्रांतिकारी हों पैदा गोरयां नै हो जाने की मजबूरी।।
4
न्यों लिख्या ख़त मैं काम मानवता का बाकी रैहग्या दखे
आजादी तैं जिन्दा रैह पाता तो मैं पूरा करता कैहग्या दखे
रणबीर उस पल की बाट कैहग्या चढ़ावै सै शरूरी।।
रखे एक रागनी के माध्यम से कवि ने क्या बताया भला :
टेक:एक शर्त पर रहूँ जिन्दा देश मैं घूमूं आजादी तैं पूरी।।
पाबंदी ना लगै कोए बचाऊँ देश नै बर्बादी तैं जरूरी।।
1
हम क्रांतिकारी प्रतीक बने आज हिंदुस्तानी क्रांति के
क्रांतिकारी आदर्श आगै ल्यागे छोड्डे ना छोर कोए भ्रान्ति के
आदर्श रैहकै फांसी टूटूं जरूरी इसमें ना कोय गरूरी।।
2
जिन्दा रहया तो इतना ऊंचा हरगिज मैं नहीं रैह पाऊँगा
जो मेरे भीतर की कमजोरी उणनै कितने दिन छिपाऊँगा
साहमी आगी तो जनता तैं बनै क्रांति प्रतीक की दूरी।।
3
फांसी चढ़ने की सूरत मैं माताएं बालकां नै बतावैंगी
भगत सिंह बणिये बेटा बढ़ती कतार नहीं थम पावैंगी
इतने क्रांतिकारी हों पैदा गोरयां नै हो जाने की मजबूरी।।
4
न्यों लिख्या ख़त मैं काम मानवता का बाकी रैहग्या दखे
आजादी तैं जिन्दा रैह पाता तो मैं पूरा करता कैहग्या दखे
रणबीर उस पल की बाट कैहग्या चढ़ावै सै शरूरी।।
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